Monday, November 30, 2015

88 varshiy purv afasar ko 30 sal bad saja,Kya chor guruyon aur unhe niyukt karane vale bhrast kulapatiyon ko bhi hogi saja?

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88 वर्षीय पूर्व अफसर को 30 साल बाद सजा
पूर्व संयुक्त सचिव पर 1984 से चल रहा था भ्रष्टाचार का केस,
10 लाख जुर्माना व एक साल की कैद
धीरज बेनीवाल
नई दिल्ली। अफसर लोगों की सेवा करने के लिये होते हैं न कि उन्हें वंचित करने या अपनी जेबें भरने के लिए। अगर ऊंचे पदों पर बैठे लोग ऐसे कृत्य करके सार्वजनिक संसाधनों की लूट में शामिल हो जाएंगे तो उन पर विश्वास करने वालों का क्या होगा। यह तल्ख टिप्पणी सीबीआई अदालत ने भ्रष्टाचार के तीस साल पुराने मामले में दोषी 88 साल के पूर्व अफसरशाह को एक साल कैद की सजा सुनाते हुए की है।
सीबीआई ने यह मामला 1984 में पीसी एक्ट 1947 के तहत दर्ज किया था और इसकी सुनवाई 1986 से अदालत में चल रही थी। तीस हजारी अदालत के विशेष सीबीआई जज संजीव अग्रवाल ने भारतीय विधि सेवा के पूर्व संयुक्त सचिव एसके बहादुर को आय से अधिक संपत्ति जमा करने का दोषी ठहराते हुए भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम 1947 के तहत एक साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने दोषी पर दस लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि एसके बहादुर की संपत्ति उसकी घोषित आय से 23,77,358 रुपये अधिक पाई गई थी। अदालत ने बहादुर के लॉकर से बरामद 26,78,900 रुपये सरकारी खजाने में जमा करवाने का निर्देश दिया है।
पेश मामले में दोषी पूर्व अफसरशाह ने अपनी अधिक उम्र व तीस साल लंबी कानूनी लड़ाई का हवाला देते हुए उसे नेकचलनी की शर्त पर छोड़ने का आग्रह किया था। उसने दो आवेदन दायर कर कहा था कि उसकी तीन बेटियों की शादी हो चुकी है और उसकी पत्नी बीमार है और बिस्तर पर है। उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
अदालत ने इन दोनों आवेदनों को खारिज करते हुए कहा कि दोषी अधिकारी को नेकचलनी की शर्त पर नहीं छोड़ा जा सकता। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अगर कोई भी अफसरशाह आपराधिक दुराचार का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम एक साल और अधिकतम सात साल की सजा देने का प्रावधान है।
अदालत ने भ्रष्टाचार के अपराध को गंभीरता से लेते हुए कहा कि आपराधिक कृत्य दोषी की उम्र अधिक होने से हल्का नहीं हो जाता और न लंबे समय के साथ धुल जाता है। इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि दोषी भारतीय विधिक सेवा का वरिष्ठ अधिकारी था और वाणिज्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव व कानूनी सलाहकार पद पर कार्यरत था। इसके बाद भी उसने अपने पद का दुरुपयोग कर अवैध तरीके से अपनी घोषित आय से अधिक संपत्ति अर्जित की। सीबीआई ने 3 दिसंबर 1984 को एसके बहादुर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी। एजेंसी को जांच में पता चला कि बहादुर ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपनी घोषित आय से अधिक संपत्ति जमा की थी।
उस समय उनके पास कार, बाइक, फ्रिज, एसी, कलर टीवी समेत सुविधा का सभी महंगा सामान था। बहादुर ने अपनी पत्नी के नाम पर कवि नगर, गाजियाबाद में करीब ढाई लाख रुपये का मकान खरीदा था।
* साभार , अमर उजाला,नई दिल्ली,29 नवम्बर 2015,पेज 4