Tuesday, May 19, 2015

gharon me chulha - chauka kar layi 84% rank



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घरों में चूल्हा-चौका कर 12वीं में लाई 84% अंक

बेंगलुरु 17 साल की शालिनी 12वीं क्लास की परीक्षा में 84 प्रतिशत अंक लाई है। आप में से कई लोग कहेंगे कि इस खबर में और इस नंबर में खास जैसा क्या है। लेकिन अगर आपको यह पता चले कि आपके घर के और आसपास के बच्चे जब आराम से अपने घरों में बैठकर पढ़ रहे थे, तब शालिनी 5 घरों की सफाई कर रही होती थी। पढ़ाई के अलावा, अपने कम-आमदनी वाले परिवार की मदद करने के लिए शालिनी कई घरों में चौके-बरतन का काम करती थी।

'
मैं कपड़े धोती थी, बर्तन साफ करती थी और घरों में रंगोली बनाने का भी काम करती थी,' शालिनी ने यह बात बेबाक अंग्रेजी में कही। उसकी इच्छा है कि वह अपने परिवार में पहली इंजीनियर बने।

उसके पिता, अरमूगम, कई साल पहले ऊंचाई से गिर जाने के कारण शारीरिक रूप से अशक्त हो गए हैं। वह काम नहीं कर पाते इसलिए शालिनी की मां, मंगला, के ऊपर परिवार की रोजी-रोटी की सारी जिम्मेदारी है। मंगला घरों में साफ-सफाई का काम भी करती हैं। परिवार की मुसीबतें यहीं खत्म नहीं हो जाती। शालिनी के छोटे भाई, सूर्या, को ब्लड कैंसर है और वह अस्पताल में भर्ती है। काम करने के अलावा मंगला को अस्पताल में अपने बीमार बेटे की पूरी देखभाल भी करनी पड़ती है। इन हालातों में पढ़ाई के साथ-साथ काम करना शालिनी की मजबूरी है।

उससे यह पूछने पर कि काम के साथ-साथ पढ़ाई जारी रखना कैसे मुमकिन हो पाता है, वह कहती है, 'मैं सुबह 4.30 बजे उठ जाती थी। पास ही के एक घर में मैं रंगोली बनाने का काम करती थी। 5.30 बजे मैं एक दूसरे घर में साफ-सफाई का काम करती थी। वहां काम करते-करते 7.30 का समय हो जाता था। फिर मैं दूसरे घर जाकर कपड़े और बर्तन धोती थी। 9 बजे तक सुबह की पाली के अपने सारे काम निपटा कर मैं पढ़ने बैठ जाती थी। फिर नाश्ता करना, दूसरे घर जाकर कपड़े और बर्तन साफ करना और ऐसे ही सारे घरों के काम निपटा कर रात को अपनी पढ़ाई करती थी।' शालिनी से बात करते समय ऐसा लगता है कि हमारे-आपके दिन के जो 24 घंटे बस यूं ही बीत जाते हैं, वही दिन उसके लिए कितना लंबा हो जाता है।
शालिनी ने अपनी पढ़ाई की शुरूआत तमिल-माध्यम के स्कूल से की। फिर उसने कन्नड़-माध्यम के स्कूल में दाखिला लिया, और आखिरकार वह एक अंग्रेजी-माध्यम कॉलेज में दाखिल हो गई।
शालिनी और उसका परिवार बेंगलूरू शहर के एक छोटे से घर में रहता है। उसी घर में उसके मामा-मामी भी रहते हैं। शालिनी की मां मंगला ने हालांकि 5वीं क्लास तक पढ़ाई की है, लेकिन उसके पिता निरक्षर हैं। शालिनी की सबसे बड़ी प्रेरणा उसकी मां हैं।
कहावतों के मुताबिक जिंदगी का असली इम्तिहान परीक्षा हॉल के बाहर होता है। अगर यही सच है तो कहना होगा कि शालिनी न केवल परीक्षा हॉल के अंदर, बल्कि उसके बाहर असली जिंदगी में भी विजेता ही है।



Friday, May 15, 2015

KISI CHORGURU KI NAHI, MAJDUR KI LARAKI NE TOP 10 ME BANAYI JAGAH

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म.प्र. में किसी चोरगुरू - सौदेबाजगुरू
की नहीं, मजदूर की लड़की ने रचा इतिहास
, टॉप 10 में बनाई जगह

भोपाल। बूढ़े मजदूर रामलाल चौहान की जिंदगी का यह सबसे खुशनुमा क्षण है। इस दिहाड़ी करने वाले मजदूर की बेटी नन्दिनी ने माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, भोपाल की 10वीं की परीक्षा में मेरिट से चौथा स्थान हासिल किया है।

नन्दिनी सरस्वती शिक्षा मंदिर भोपाल की छात्रा है। मंगलवार को माध्यमिक शिक्षा मंडल द्वारा घोषित 10 वीं के रिजल्ट में उन्होंने 97 प्रतिशत मार्क अर्जित कर अपने परिवार का नाम रोशन किया। नन्दिनी की इच्छा एक आईएएस अधिकारी बनने की है।

चौहान से जब बेटी की सफलता के बारे में पूछा गया तो वे भावुक हो गए। वे कहते है कि 'मैं नहीं जानता कि मेरिट लिस्ट क्या होती है पर इतना पता है कि मेरी बेटी ने पढ़ाई में कुछ अच्छा किया है।' दिहाड़ी करने वाले अकुशल कामगार रामलाल की आंखे भर गईं और वे यह नहीं बता सके कि नन्दिनी 10 वीं के बाद क्या करेगी।

उन्होनें आगे कहा कि 'मुझे नहीं पता कि उसे क्या करना चाहिए पर इतना जरुर चाहता हूं कि वो इसी तरह से आगे बढ़ती रहे। वह गांव में रहती है इसलिए माध्यमिक शिक्षा परिषद द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में हिस्सा नहीं ले पायी। वह इतनी तल्लीनता के साथ दिन-रात पढ़ाई करती थी कि उसे खाने की भी सुध नहीं रहती थी।'

नन्दिनी की उपलब्धि पर स्कूल शिक्षा मंत्री द्वारा दिए गए मेडल को शान से दिखाते हुए रामलाल कहते हैं कि बेटी कि इस उपलब्धि के लिए उनके पास शब्द नहीं हैं।

नन्दिनी के स्कूल के प्रिसिंपल अनिल बघेल कहते हैं कि वह बचपन से ही पढ़ाई के प्रति सतर्क और मेहनती थी। स्कूल आर्थिक रुप से कमजोर इस प्रतिभावान छात्रा की जितनी भी हो सकेगा, मदद करेगा।