Thursday, September 26, 2013

HIGH COURT KE ANTIM AADESH KE PAHALE HI MEDIATION CENTER KE DASTAVEJ KA CHORGURU ,REGISTRAR NE KIYA DURUPAYOG, KYA A.K.UPADHYAY NE 20,000 DEKAR NAKALCHEPI HONA SVIKAR KIYA ?

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हाईकोर्ट के अंतिम आदेश के पहले ही मेडिएशन सेन्टर के दस्तावेज का चोरगुरू व कुलसचिव ने किया दुरूपयोग
चोरगुरू को बचाने ,प्रोफेसर बनाने के लिए कुलपति नाग,कुलसचिव साहब लाल ने किया यह कारनामा
क्या डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने 20 हजार रूपया देकर नकलचेपी होना स्वीकार किया  ?
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के अंतिम आदेश  के पहले ही मेडिएशन सेन्टर का दस्तावेज का महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के चोरगुरू डा. अनिल कुमार उपाध्याय और कुलसचिव साहब लाल वर्मा  ने दुरूपयोग किया। कहा जाता है कि  कुलपति पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने शैक्षणिक कदाचारी,चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय  को बचाने ,प्रोफेसर बनाने के लिए यह कारनामा किया। चर्चा  यह भी है कि डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने 20 हजार रूपया भी देने और नकलचेपी होना भी स्वीकारने वाला करार किया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट  के मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर में डा.अनिल उपाध्याय(नकलकरके डी.लिट./पुस्तक लिखने वाले) और डा. ओमप्रकाश सिंह (जिनकी पी.एचडी.थीसिस / पुस्तक से नकल किया है ) के बीच दिनांक 06-04-2013 को समझौते पर हस्ताक्षर हुआ।
 दोनों पक्षों के बीच विवाद के चलते उच्च न्यायालय में Crl.Mise Application No.9568 of 2012 फाइल हुआ। माननीय न्यायाधीश बाला कृष्ण नारायण के 22-05-2012 के आदेश पर मामला मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर में भेज दिया गया। जहां मेडिएटर/कांसिलेटर वकीलों के मार्फत दोनों पक्षों में विवाद सुलह के लिए 21-06-2012,21-07-2012,25-08-2012,06-10-2012,15-12-2012,05-01-2013,02-03-2013 और 06-04-2013 को  संयुक्त रूप से व अलग-अलग बैठक हुई। दोनों पक्षों ( अनिल कुमार उपाध्याय और ओम प्रकाश सिंह) ने मेडिएटर/कांसिलेटर वकीलों की उपस्थिति समझौते पर हस्ताक्षर किया।उस पर मेडिएटर/कांसिलेटर वकीलों व दोनों के वकीलों ने भी हस्ताक्षर किया।अभी केस पर उच्च न्यायालय का अंतिम आदेश नहीं आया है। 06.04.2013 के बाद भी लगातार तारीख पड़ रही है। दिनांक 26.09.2013 को सुनवाई संभावित रही।
CASE PENDING,DATE 26.09.2013
समझौते के अनुसार माननीय न्यायालय के समक्ष डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा  डा. ओम प्रकाश सिंह को रू.20,000 /- दिया जायेगा। अनिल उपाध्याय ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट III, वाराणसी में राहुल देव( तत्कालीन एडीटर इन चीफ सीएनईबी न्यूज चैनल) के विरूद्ध जो मुकदमा किया है और जिसके  तलबी आदेश के विरूद्ध राहुल देव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किया है और दोनों ही  याचिकाएं लंबित हैं,उस मामले में अनिल उपाध्याय वाराणसी के न्यायालय से मुकदमा वापस लेंगे । अनिल उपाध्याय और ओम प्रकाश सिंह एक दूसरे से और कोई दावा,मांग नहीं करेंगे।
यह है इलाहाबाद हाईकोर्ट  के मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर में डा.अनिल उपाध्याय(नकलकरके पुस्तक लिखने वाले) और डा. ओमप्रकाश सिंह (जिनकी पी.एचडी.थीसिस ,पुस्तक से नकल किया है ) के बीच 06-04-2013 को  समझौता का सारांश । चर्चा है कि अनिल कुमार उपाध्याय और ओमप्रकाश सिंह ने इस समझौते को विस्तार से अलग से कई पृष्ठ में हिन्दी में लिखित समझौता किया है । 
  अब इस समझौते पर कई सवाल खड़े होते हैं। विद्वान वकीलों का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट  के मेडिएशन सेन्टर में जब तक केस का फैसला नहीं हो जाता , जबतक उस पर हाई कोर्ट का अंतिम आदेश पारित नहीं  हो जाता , तबतक इस मुकदमे के किसी भी दस्तावेज को सार्वजनिक व उसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए । ऐसे में डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट  के मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर के 06-04-2013 के इस समझौता दस्तावेज को , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में प्रोफेसर पद पर प्रमोशन के लिए लगाना,उसके आधार पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा.पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्य का उनको मनमाने तरीके से प्रोफेसर पद पर पदोन्नति करा देना , यूजीसी द्वारा इस मामले में कैलाश गोदुका के 20-06-2013 के पत्र पर जवाब देने का आदेश दिये जाने के बाद कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने शैक्षणिक कदाचारी , चोरगुरू अनिल उपाध्याय को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नत किये जाने के कुलपति नाग व अपने किये को जायज ठहराने के लिए अन्य 3 पृष्ठ   दस्तावेज के साथ इस 1 पृष्ठ दस्तावेज को भी यूजीसी को दिनांक 12-08-2013 को भेज दिया जाना , दस्तावेज का सरासर दुरूपयोग है।
  डा.अनिल उपाध्याय , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी  में अध्यापक पद पर रहते हुए,जनता के टैक्स के पैसे से मोटी सेलरी लेते हुए ,नकल करके ( डा. ओम प्रकाश सिंह की पी.एचडी. थीसिस/पुस्तक से )उसी विश्वविद्यालय से डी.लिट. की डिग्री लेते हैं,किताब लिखते हैं,यूजीसी के नार्म के अनुसार उस डी.लिट.,किताब पर अंक पाकर रीडर और अब प्रोफेसर बना दिये जाते हैं। क्या यह शैक्षणिक कदाचार का मामला नहीं है?क्या यह महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिनियम – विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा शर्तें 14.02 का उल्लंघन नहीं है ? क्या यह नियुक्ति के समय अध्यापक द्वारा हस्ताक्षर किये जाने वाले करार का उल्लंघन नहीं है ? क्या यह विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा शर्तें 14.04 का (ख) दुराचरण (ग) विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के संबंध में बेईमानी , नहीं है ?   सब है।इसके सबूत हैं। उसके बाद भी कुलपति नाग,कुलसचिव साहब लाल विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा शर्तें  14.04 के तहत शैक्षणिक कदाचारी डा. अनिल कुमार उपाध्याय की डी.लिट. की डिग्री वापस ले ,नौकरी से बर्खास्त क्यों नहीं कर रहे हैं? इसे केवल कापी राइट का मामला बताकर, जिसके थीसिस या किताब से सामग्री चुराकर थीसिस या किताब लिखा उससे समझौता , सुलह हो जाने का मामला बताकर शैक्षणिक कदाचारी , चोरगुरू आरोपी डा. अनिल कुमार उपाध्याय को  बचाने का काम क्यों कर रहे हैं?  जबकि इसी तरह के चोर गुरू मामले में जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ,दिल्ली के रीडर डा. दीपक केम को बर्खास्त किया जा चुका है और उनकी बर्खास्तगी को दिल्ली हाइकोर्ट के डबल बेंच ने भी जायज ठहराया है।
  डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने 2009 और 2010 में  CNEB न्यूज चैनल के चोरगुरू कार्यक्रम में शैक्षणिक कदाचार , नकलचेपी कारनामा प्रमाण सहित दिखाये जाने के बाद  अपने को मौलिक लेखक होने का दावा करते हुए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट III, वाराणसी में राहुल देव ( तब CNEB न्यूज चैनल में थे) के विरूद्ध जो आपराधिक आदि मुकदमा किया है और जिसके  तलबी आदेश के विरूद्ध राहुल देव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किया है और दोनों ही  याचिकाएं लंबित हैं।उस मामले में अनिल उपाध्याय वाराणसी के न्यायालय से मुकदमा वापस करने का करार इस समझौता शर्त में क्यों किये ? इससे तो यही साबित होता है कि डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने स्वीकार कर लिया है कि वह चोरगुरू हैं ,शैक्षणिक कदाचारी हैं, नकल करके डी.लिट थीसिस व पुस्तक लिखे हैं। और जब यह स्वीकार कर लिए हैं तब तो उनको बर्खास्त किया जाना चाहिए।

A.H.C.medation center  agreement,06.04.13

ANIL KUMAR UPADHYAY


OM PRAKASH SINGH

RAJYPAL KE CHAHETE NAG KA KARNAMA,CHORGURU KO PROF BANAYA,UGC NE EDUCATIONAL CORRUPTION PAR CLEARFICATION MANGA



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date26-09-2013,09.55A.M.
यह खबर " लोकमत"लखनऊ में 25-09-2013 को पहले पन्ने पर छपी है।
RESITRAR S.L.MAURYA LETTER P-1

RESITRAR S.L.MAURYA LETTER P-2

ENQUIRY REPORT P-1

ENQUIRY REPOT P-2

CASE PENDING,DATE 26.09.2013

CM,UGC,ORDER

ANIL KUMAR UPADHYAY

PRITHVISH NAG

SAHAB LAL MAURYA
OM PRAKASH SINGH


राज्यपाल के चहेते नाग का कारनामा
हाईकोर्ट में फैसला हुआ नहीं,समझौता दिखा चोरगुरू को प्रोफेसर बनाया
यूजीसी अध्यक्ष ने शैक्षणिक कदाचार पर स्पष्टीकरण मांगा   
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली।उ.प्र. के राज्यपाल बी.एल.जोशी के चहेते कुलपति पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने नकल करके डी.लिट. और किताब लिखने वाले डा.अनिल कुमार उपाध्याय को मनमाने तरीके से प्रोफेसर बना दिया। इसके लिए इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला आये बिना ही( कोर्ट नं. 44 में अगली तारीख(संभावित) 26-09-2013 है),उसके  मेडिएशन सेंटर में 06-04-13 को दो व्यक्तियों(डा.ओम प्रकाश सिंह और डा. अनिल कुमार उपाध्याय) के आपसी समझौते(चर्चा है कि वह भी अभी फुलफिल नहीं हुआ है) को आधार बनाया है।और उसके आधार पर डा.अनिल कुमार उपाध्याय को विश्वविद्यालय के अध्यापक के रूप में किये शैक्षणिक कदाचार,शिक्षक आचार संहिता का उल्लंघन,धोखाधड़ी आदि से क्लीनचिट दे दिया है। जबकि दो व्यक्तियों के आपसी समझौते का इस मामले में कोई लीगल वैल्यू नहीं है। और इस समझौते से डा. अनिल उपाध्याय का शैक्षणिक कदाचार (एजुकेशनल मिसकंडक्ट),शिक्षक आचार संहिता का उल्लंघन,धोखाधड़ी आदि का अपराध खत्म नहीं हो जाता है। वह भी इस हालत में जबकि चर्चा है कि उस समझौते में अनिल कुमार उपाध्याय ने लिखित में स्वीकार किया है कि ओम प्रकाश सिंह के पुस्तक से सामग्री हूबहू उतारी है।  
मालूम हो कि डा.अनिल कुमार उपाध्याय ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अध्यापक के पद पर रहते हुए ओम प्रकाश सिंह के पी.एचडी. थीसिस से सामग्री हूबहू उतारकर अपनी डी.लिट. की थीसिस लिखा है । जिसको पुस्तक के रूप में भी छपवाया है।डा. ओम प्रकाश सिंह भी इसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। यानी एक ही विश्वविद्यालय के एक अध्यापक के पी.एचडी. थीसिस से सामग्री हूबहू उतारकर दूसरे अध्यापक ने डी.लिट.थीसिस लिख लिया , किताब लिख लिया, और उसी विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि ले लिया।   उसके इस नकलचेपी कारनामे को प्रमाण सहित एक टीवी चैनेल में चोरगुरू कार्यक्रम में दिखाया गया।जिस पर सांसद राजेन्द्रसिंह राणा,हर्षवर्धन सहित कई सांसद  व सामाजिक कार्यकर्ता आदि ने राष्ट्रपति, राज्यपाल ,प्रधानमंत्री,यूजीसी चेयरमैन,कुलपति ,कुलसचिव को 2009 से लगातार प्रमाण सहित पत्र लिखकर अनिल कुमार उपाध्याय व अन्य चोरगुरूओं को  अध्यापक के पद से बर्खास्त करने की मांग करते रहे हैं। इसके बावजूद काशी विद्यापीठ के कुलपति व कुलसचिव ने बेशर्मी व मनमाने तरीके से चोरगुरू डा.अनिल कुमार उपाध्याय को बचाते हुए प्रोफेसर बना दिया। इस बारे में 2009 से पत्र लिखते रहे सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश गोदुका ने यूजीसी अध्यक्ष,राज्यपाल,कुलपति,कुलसचिव को पत्र लिखा था कि चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने के लिए किया जा रहा साक्षात्कार स्थगित कराया जाय और उनके शैक्षणिक कदाचार पर कार्रवाई करते हुए उनकी डी.लिट. की डिग्री रद्द की जाय,नौकरी से बर्खास्त किया जाय । लेकिन अनिल कुमार उपाध्याय को संरक्षण देकर    शैक्षणिक कदाचार को बढावा देने में लगे कुलपति नाग और कुलसचिव साहब लाल ने उनको प्रोफेसर बना दिया। यूजीसी ने 18-07-2013 को पत्र संख्या F-54-4/2010(SU-II) के मार्फत कैलाश गोदुका के कई पत्रों में से 20-06-2013 वाले पत्र पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी से जवाब मांगा तो कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने यूजीसी के अनु सचिव को दिनांक 12-08-2013 का लिखा दो पृष्ठ का पत्र (पत्रांक – कु.स./8457/ 2A साप्र 1(जांच)/ 2013 भेजा।इसके साथ 4 पृष्ठ दस्तावेज भी भेजा। यूजीसी के अनुसचिव श्रीमति परमजीत ने एक पृष्ठ के कवरिंग लेटर के साथ उसकी प्रति दिनांक 6-09-2013 को कैलाश गोदुका के यहां भेज दिया।उसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के मेडिएशन और कानसिलिएशन सेंटर में किये सेटलमेंट एग्रीमेंट का मात्र एक पृष्ठ लगाया गया है,बाकी पृष्ठ नहीं जिससे कि अनिल कुमार उपाध्याय ने  क्या क्या कबूला है ,खुलासा नहीं हो सके। साहब लाल के पत्र के साथ अनिल उपाध्याय के शैक्षणिक कदाचार की जांच की 2 पृष्ठ की रिपोर्ट भी है। चोरगुरू अनिल उपाध्याय के शैक्षणिक कदाचार का लिखित शिकायत देने और आन कैमरा प्रमाण दिखाने के कई माह बाद तबके कुलपति अवध राम के आदेश पर 7 अप्रैल 2010 को प्रो.टी.सिंह(त्रिलोकी सिंह) की अध्यक्षता में 4 सदस्यों वाली जांच समिति गठित की गई। जिसमें प्रो.शिशिर बसु,प्रो.आरपी सेन और प्रो. नन्दलाल को सदस्य बनाया गया। प्रो.बसु ने मना कर दिया तो अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. के  प्रो. सफी किदवई को उनकी जगह सदस्य बनाया गया। इसकी पहली बैठक 19-01-2011 को हुई, जिसमें टी.सिंह,किदवई,नन्दलाल शामिल हुए। किदवई की अनुपस्थिति में दूसरी व अंतिम बैठक 23-07-2013 को हुई जिसमें अध्यक्ष टी.सिंह,और संयोजक नन्द लाल (दोनों कुरमी हैं और नंद लाल के विरूद्ध झारखंड पीसीएस की कापी में नम्बर बढाने के मामले में सीबीआई जांच चल रही है) शामिल हुए ।और दोनों ने 15-08-2013 को अंतिम रिपोर्ट लगा दी।  जिसका शीर्षक है- डा. अनिल कुमार उपाध्याय,रीडर,पत्रकारिता विभाग के शैक्षणिक कदाचार (विवादित – डी.लिट. थीसिस) की जांच हेतु गठित समिति की रिपोर्ट
इसमें है कि अध्यक्ष और संयोजक  की उपस्थिति में समिति ने अंतिम रूप से निम्नांकित निर्णय लिए-
1-      विधिक राय पर विचार करते हुए समिति ने यह निर्णय लिया कि शिकायत कर्ता अपनी पुस्तक से संबंधित शिकायत का निस्तारण इंडियन कापी राइट एक्ट के तहत यथोचित प्राधिकरण से कर सकता है, तथा
2-      डा. अनिल उपाध्याय की डी.लिट. थीसिस तीन विषय विशेषज्ञों की संस्तुति पर पहले ही एवार्ड की जा चुकी है । यह विश्वविद्यालय की सर्वोच्च उपाधि है। समिति का यह मानना है कि इस शोध – प्रबंध से संबंधित कोई भी प्रकरण / बिन्दु विषय विशेषज्ञों को ही संदर्भित किया जाना चाहिए।


इस तरह अपने दोनों विरादर के  मार्फत कुलपति अवध राम ने शैक्षणिक कदाचारी डा.अनिल कुमार उपाध्याय के जांच की लीपापोती करवा दी।
और इस जांच रिपोर्ट को संतोषजनक नहीं मानते हुए विश्वविद्यालय ने कार्यपरिषद के सदस्य प्रभाकर झा की अध्यक्षता में एक दूसरी जांच समिति भी गठित करवा दी,जिसकी रिपोर्ट अभी भी प्रतीक्षित है। जिसका जिक्र कुलसचिव साहब लाल के पत्र के पैरा 2 के अंत में है।
अपने पत्र के पृष्ठ 1 के पैरा 3 में साहब लाल क्या लिखते हैं  देखिये – .. यह भी कि इसी मध्य प्रो. ओम प्रकाश  सिंह के अभिलेखों की चोरी कर अपने नाम से प्रकाशित करने  के तथाकथित प्रकरण पर माननीय उच्च न्यायालय में डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा वाद में  प्रो. ओम प्रकाश सिंह एवं डा. अनिल कुमार उपाध्याय के बीच सुलह/ समझौता हो चुका है जो संलग्न 2 पर अवलोकनीय है जिससे स्पष्ट है कि प्रो. ओमप्रकाश सिंह का डा. अनिल कुमार उपाध्याय पर अब अभिलेखों  के चोरी  का कोई विवाद नहीं है। अब जबकि  प्रो. ओम प्रकाश सिंह का अपने अभिलेखों से चोरी का अब कोई विवाद नहीं है तो अन्य कोई यह आरोप कैसे लगा सकता है।
प्रत्यावेदन की प्रस्तरवार आख्या अधोलिखित प्रकार है :
उपर्युक्त सम्पूर्ण वस्तुस्थिति से स्पष्ट है कि प्रत्यावेदक द्वारा डा. उपाध्याय की प्रोन्नति को रोकने के उद्देश्य से समस्त कार्वाही की गई है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि डा. उपाध्याय के साथ प्रत्यावेदक का कोई व्यक्तिगत रंजिश या प्रतिद्वंदिता है। अत: प्रशनगत शिकायत विचारणीय न होकर निरस्त करने योग्य है। भवदीय –डा.(साहब लाल मौर्य),कुलसचिव ।
विश्वविद्यालय के कुलपति नाग ,कुलसचिव साहब लाल द्वारा शैक्षणिक कदाचारी को इस तरह से मनमाने तरीके से  संरक्षण व प्रोन्नति देते हुए बेशर्म तर्क देने वाला पत्र वाया अंडर सेक्रेटरी यूजीसी, दिनांक 12-09-2013 को पाने के बाद कैलाश गोदुका ने उनके इस कारनामे के विरूद्ध 15-09-2013 को अध्यक्ष,यूजीसी,कुलपति पृथ्वीश नाग,कुलसचिव साहब लाल मौर्य ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री उ.प्र. को 5 पृष्ठ का पत्र लिखा और उसके साथ साहब लाल का पत्र व संलग्न दस्तावेज 7 पृष्ठ लगाकर पहले ई-मेल  उसके बाद रजिस्ट्री करके कार्रवाई करने की मांग की। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष ने उस पर दिनांक 20-09-2013 को ज्वाइंट सेक्रेटरी ( स्टेट यूनिवर्सिटी) को  निम्न आदेश दे दिया – प्लीज सीक द क्लीयरिफिकेशन फ्राम द यूनिवर्सिटी एबाउट (I)एजुकेशनल करप्शन, एंड (II) प्लेगरिज्म। देखिए आगे क्या होता है।
DATE26.09.2013,09.55A.M.