Thursday, December 31, 2009

प्रो. के.पी. सिंह BHU – IIT के निदेशक

-सत्ताचक्र-
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , वाराणसी, आई.आई.टी के अगले निदेशक प्रो. के. पी. सिंह होंगे। वह प्रो. उपाध्याय से 1 फरवरी2010 को कार्यभार लेंगे। इसके लिए बीते दिनो हुई बैठक में डा. चूड़ामणि ने इनके नाम का प्रस्ताव किया । जिस पर बहुमत से इनका नाम ओ.के. हो गया। सूत्रो के मुताबिक आई.आई.टी के वर्तमान निदेशक उपाध्याय ने एक टर्म और पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। लेकिन बात बनी नहीं। एक सज्जन और रेस में थे। का.हि.वि.वि. के इलेक्ट्रानिक्स विभाग में प्रो. के.पी. सिंह, पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुलपति रह चुके हैं। वहां कुलपति रहने के दौरान उनकी जान-पहचान उस विश्वविद्यालय में हर साल लगभग पौने एक करोड़ रूपये की पुस्तकों की सप्लाई करने वाली इंडिका कम्पनी के चर्चित मालिक प्रशांत जैन से हुई। प्रशांत जैन परिवार उस श्री पब्लिकेशन और यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन का भी मालिक है जो देशी-विदेशी पुस्तकों से सामग्री हूबहू उतारकर अपने नाम छपवाने वाले प्रोफेसरो, रीडरों, लेक्चररों की पुस्तकें छापने के लिए और उनके सहयोग से विश्वविद्यालयों आदि में सप्लाई करने के लिए मशहूर है। उनके यहां हुई शादी में उनके आमंत्रण पर तमाम सुनामधन्य शिक्षक व कर्मचारी लोग संबंध निभाने दिल्ली गये थे । का.हि.वि.वि. में चर्चा है कि अब प्रशांत जैन और उसके प्रतिनिधियों के BHU – IIT में आने – जाने पर निगाह रखनी होगी।

चन्द्रशेखर : यादें

-सत्ताचक्र-
हिन्दी
दैनिक "राष्ट्रीय नवीन मेल" ने "चन्द्रशेखर - यादें " शीर्षक से लेख की श्रृंखला शुरू किया है। जिसमें उनसे जुड़े रहे कोई भी उनके साथ के बीते दिनो की यादों को लिखकर भेज सकते हैं ।

चन्द्रशेखर : यादें
( रामबहादुर राय की लिखी राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 334 पेज की पुस्तक “चन्द्रशेखर” में से सामग्री काट – छांट कर कृष्णमोहन सिंह ने यह लेख बनाया है )

दिनांक 17 अप्रैल , 1927 को बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गांव में द्रोपदी देवी की कोख से जिस बालक का जन्म हुआ, वह अपने मुंह में चांदी का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुआ । वह बालक बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुआ । कठिन परिस्थितियों से जूझते, संघर्ष करते हुए उसने अपनी राह बनाई । बड़े से बड़े तोप सुनामधन्यों से सीधे टक्कर लेने में, बिना लाग लपेट अपनी बात कहने में कभी रत्ती भर भी नहीं हिचका । जो उचित लगा वह ऐलानिया , डंके की चोट पर कहा । उस पर डटा रहा । जिसको सहयोग का वायदा किया दमदारी से उसका साथ दिया । वह हैं चन्द्रशेखर ।
उन्ही के शब्दों में – मैंने निकट से गरीबी और विवशता देखा है । जब मैं छोटा था,अपने गांव के स्कूल में पांचवे दर्जे का विद्यार्थी था , मेरे पैर में बड़ा फोड़ा हुआ। दो लोगो ने हाथ पकड़ा, दो लोगो ने पैर ...........नाई के छुरे से उस फोड़े का आपरेशन हुआ ।.......... बड़ा हुआ और जब मैं कालेज का विद्यार्थी था, मेरी मां को हैजा हुआ था और बिना किसी डाक्टर की सहायता के वह इस दुनिया से चल बसीं....




Monday, December 28, 2009

क्या प्रो.राममोहन पाठक की पीएच.डी. व नौकरी जा सकती है ?

-सत्ताचक्र-
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (MAHATMA GANDHI KASHI VIDYAPEETH) के महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान में प्रोफेसर राममोहन पाठक (Pro. RAM MOHAN PATHAK) ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,वाराणसी के हिन्दी विभाग से सन् 1983 में पी-एच.डी. किया है। इनके पी.एच.डी. के गाइड हिन्दी विभाग के तबके अध्यक्ष डा. विजयपाल सिंह थे। उन्होने दिनांक 20 मार्च 1983 को राममोहन पाठक के पूर्णकालिक शोध छात्र के रूप में पी.एच.डी. पूरा करने के बारे में जो लिखा व हस्ताक्षर किया है वह निम्न है-
हिन्दी विभाग
कला संकाय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय दिनांक 20 मार्च 1983

प्रमाणित किया जाता है कि श्री राममोहन पाठक , शोध छात्र , हिन्दी विभाग ने पी-एच0 डी0 आर्डिनेंस की धारा 1 के अनुसार पूर्ण समय तक कार्य करते हुए प्रबंध पूरा कर लिया है और पी-एच0डी0 छात्र के रूप में की गयी यह खोज इनके स्वयं के निष्कर्ष पर अघृत है।

( विजय पाल सिंह )
निर्देशक एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
उक्त पत्र में साफ-साफ लिखा है कि श्री राममोहन पाठक ने पूर्ण कालिक रूप से पी-एच.डी. किया है। यानी उन्होने पी-एच.डी. करते समय कहीं नौकरी या अन्य काम नहीं किया है।
लेकिन इसी राममोहन पाठक ने काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पत्रकारिता विभाग में स्थाई रीडर पद पर नियुक्ति के लिए जो बायोडाटा दिया था, जिसके लिए दिनांक 22-08-1987 को साक्षात्कार हुआ , उसमें अनुभव कालम में 2 नं. पर लिखा है- उपसंपादक रिपोर्टर – जुलाई 1973 से कार्यरत – “आज ” दैनिक पत्र समूह ।
उसमें 3 नं. पर लिखा है- संयुक्त संपादक - मार्च 1979 से फरवरी 1985 तक “अवकाश पाक्षिक ” ।
इस साक्षात्कार के बाद राम मोहन पाठक काशी विद्यापीठ में रीडर हो गये थे। इसी राममोहन पाठक ने इसी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता संस्थान में जब प्रोफेसर पद के लिए आवेदन के साथ बायोडाटा लगाया था , जिसका साक्षात्कार 06-01-1996 को हुआ था, तो उसमें अनुभव वाले कालम के 5 नं. पर लिखा था- सम्पादक हिन्दी आज दैनिक लगभग 15 वर्ष , 16 – 7 -73 से 2 – 9 -87 तक ।
6 नं. पर लिखा था- संयुक्त सम्पादक अप्रैल 79 से 86 .
राममोहन पाठक के ये दोनो बायोडाटा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के रिकार्ड में है। इन दोनो बायोडाटा से जाहिर होता है कि –
1- राममोहन पाठक , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. करने के दौरान आज अखबार समूह में पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में काम करते रहे थे ।
2- आज अखबार समूह में प्रिंट लाइन में सम्पादक का नाम पहले सत्येन्द्र कुमार गुप्त छपता था ,उनके बाद शार्दूल विक्रम गुप्त का नाम छपने लगा। ऐसे में प्रिंट लाइन में कब राममोहन पाठक के नाम के आगे सम्पादक छपा ?
3- दोनो बायोडाटा में अनुभव वाले कालम में राममोहन ने अपना पद अलग-अलग लिखा है।

Saturday, December 26, 2009

काशी विद्यापीठ में रीडर अनिल उपाध्याय के नकलचेपी कारनामे "चोर गुरू" के 11वें एपीसोड में CNEB पर

-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोर गुरू” के 11 वें एपीसोड में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के रीडर, हेड डा.अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी कारनामो का खुलासा होगा। यह कार्यक्रम रविवार 27 -12 -09 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा। जिसमें है कि किस तरह अनिल जी ने दिलेरी से अपनी किताब “पत्रकारिता एवं विकास संचार” में न केवल अपनी ही तरह के पत्रकारिता के एक शिक्षक डा. ओम प्रकाश सिंह की किताब से शब्दशः अनेक पन्ने उतार डाले, बल्कि गुमराह करने के लिए अध्यायों के अंत में दिये गये संदर्भ भी गलत लिख दिये।
डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की किताब का दूसरा संस्करण सन् 2007 में वाराणसी के भारती प्रकाशन से छपा है। इसी किताब का पहला संस्करण सन् 2001 में वाराणसी के ही विजय प्रकाशन से छपा था। जानकार यह भी कहते हैं कि यह किताब अनिल जी की डी. लिट. की उपाधि का ही मैटर है , और इस किताब का पहला संस्करण बाज़ार में आने के दो-तीन साल बाद अनिल जी को इसी मैटर पर डी. लिट. की उपाधि मिली है। उपाधि भी गजब तरीके से मिली। उपाध्याय ने डी.लिट. करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अर्थशास्त्र विभाग में और 11 साल बाद उसी रजिस्ट्रेशन पर ही डि.लिट. लिया पत्रकारिता विभाग से।
अनिल जी के ही सहकर्मी प्रो.ओम प्रकाश सिंह ने हाल ही में आरोप लगाया है कि उनकी सन् 1993 में दिल्ली से छपी किताब “संचार माध्यमों का प्रभाव ” से डॉ अनिल उपाध्याय ने मैटर न केवल चुराया है बल्कि गुमराह करने के लिए संदर्भ भी ग़लत लिखे हैं।
ओम प्रकाश सिंह ने आरोप लगाया है कि इस किताब ( संचार माध्यमों का प्रभाव ) के पेज 70 से 74 तक का मैटर और फिर पेज 97 से पेज 100 तक का मैटर शब्दशः अनिल जी ने अपनी किताब में उतार दिया है । उनका आरोप यह भी है कि अनिल उपाध्याय ने मैटर के साथ-साथ ओम प्रकाश जी के अपने विकसित किये हुए मॉडल भी कॉपी कर लिये हैं।
अनिल उपाध्याय ने अपनी किताब के सन् 2007 के संस्करण में , संचार के संघटक शीर्षक से शुरू करके शब्द-दर-शब्द उतार कर रख दिया है (अपनी किताब के ) पेज 84 से 87 तक। कॉमा, फ़ुलस्टॉप के साथ सब कुछ उतार कर रख देने की यही प्रक्रिया फिर से दोहराइ गयी है पेज 139 से 141 तक।
डा. अनिल कुमार उपाध्याय तो 12-13 पेज से कम के मैटर की नकल को किसी तरह से गलत मानते ही नहीं। कहते हैं – इतने तक का मैटर उतारना कापी राइट के नियम के अनुसार भी जायज है। लेकिन यह कापी राइट के किस खण्ड में कहां लिखा है , यह नतो बता पाते नहीं दिखा पाते हैं उपाध्याय जी।
नकल करके पी.एच.डी., डी.लिट.,किताब लिखने वाले काशी विद्यापीठ के चोरगुरूओं के बारे में कुलपति अवधराम जी ने पत्रकारद्वय संजय देव व कृष्णमोहन सिंह से आनकैमरा बातचीत में कहा- शिक्षक जब चोरी की नजीर बनेंगे तो छात्र उनसे क्या सीखेंगे। ऐसे शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए। होगी।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. श्री निवास ओझा, पूर्व अध्यक्ष डा. उदित नारायण चौबे और उ.प्र. आवासीय विश्वविद्यालय महासंघ के महामंत्री डा. सोमनाथ त्रिपाठी ने नकल करके शोध-प्रबंध, किताबें लिखने वालो को अध्यापन जैसे पवित्र पेशे से बिना रियायत दिये हमेशा के लिए निकाल बाहर करने की बात कही है।

Thursday, December 24, 2009

क्या प्रो.राममोहन पाठक ने शपथ पत्र में सच नहीं लिखा है ?


-सत्ताचक्र-
प्रो.राममोहन पाठक (PRO.RAM MOHAN PATHAK ) महात्मागांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के मदनमोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान में दिनांक 29 दिसम्बर 2008 तक निदेशक थे। विश्वविद्यालय के कुलसचिव के हस्ताक्षर वाले पत्र संख्या-कु0स0/1079/V I –विभागाध्यक्ष / 2008 के बाद उनको निदेशक पद से हटा दिया गया। 30 दिसम्बर 2008 को जारी कुलसचिव के कार्यालय-आदेश में लिखा है-
कार्य परिषद की बैठक दिनांक 27-12-2008 में लिये गये निर्णय एवं कुलपति जी के आदेश दिनांक 30-12-2008 के अनुपालन में प्रो. ओमप्रकाश सिंह को दिनांक 30-12-2008 से 29-12-2011 तक (तीन वर्ष) के लिए चक्रानुक्रम से वरिष्ठताक्रम में मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान का निदेशक नियुक्त किया जाता है।
प्रो. ओम प्रकाश सिंह , प्रो. राम मोहन पाठक से तत्काल कार्यभार प्राप्त कर उसकी सूचना प्रशासन एवं वित्त विभाग को भी दे दें।
डा.(रमाशंकर राम)
कुलसचिव
इस आदेश के बाद से प्रो.ओमप्रकाश सिंह निदेशक हो गये हैं।

लेकिन डा.राम मोहन पाठक ने माननीय न्यायालय सिविल जज (सी.डि.),वाराणसी में तथाकथित फर्जी दस्तावेज के आधार पर राधाकृष्ण मंदिर व जमीन अपने नाम कराने और उसकी मूर्ति चोरी के आरोप वाले मामले में 10 रूपये के स्टैंप पेपर पर दिनांक 06-08-2009 को जो शपथ पत्र दिया है , उसके पेज 13 पैरा 33 में लिखा है – यह कि प्रतिवादी संख्या -1 सम्भ्रांत नागरिक है और काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर व निदेशक पद पर कार्यरत है। .......
इसके प्रमाण के तौर पर इनके शपथ –पत्र के पेज 1 और 13 की स्कैन कापी लगी है,देखें-




Wednesday, December 23, 2009

प्रो.राममोहन पाठक पर मूर्ति चोरी का आरोप ?

-सत्ताचक्र -
गांडीव,वाराणसी में 17 अक्टूबर 2009 को छपा है।
राधाकृष्ण मंदिर हड़पने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो
काशी, 16 अक्टूबर । चेतगंज थाना अंतर्गत शहीद ,कबीरचौरा निवासिनी श्रीमति बेसर देवी ने राधाकृष्ण मंदिर को हड़पने की साजिश करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगाई है। उन्होने एक विज्ञप्ति में कहा है कि भवन संख्या सी- 25 / 19 मुहल्ला पुरानी टकसाल ,कबीरचौरा में विराजमान देवता श्रीराधाकृष्ण मंदिर की वह सेवायत हैं। मंदिर में देख-रेख के लिए रोहनिया थाना क्षेत्र के गोविंन्दपुर भीमचंडी निवासी बहनू के लड़के त्रिभुवन मिश्र को रखा था । बेसर देवी ने आरोप लगाया है कि त्रिभुवन ने नीयत खराब होने पर दशाश्वमेध थाना क्षेत्र के रानी भवानी गली के निवासी राममोहन पाठक ( RAMMOHAN PATHAK) व उनके पुत्र अमितांशु पाठक के साथ मिलकर मंदिर से मूर्तियां गायब करके हड़पने का प्रयास किया है। बसर देवी ने चेतगंज थाना प्रभारी से प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है।
………..
जनवार्ता,वाराणसी, गुरूवार 15 अक्टूबर 2009 को छपा है-
मूर्धन्य संगीतज्ञ के मकान का फर्जी बैनामा,प्रशासन ने जड़ा ताला
.........
अमर उजाला,वारणसी बृहस्पतिवार,15 अक्टूबर 2009 को छपा है-
मूर्ति चोरी का पर्दाफाश नहीं हुआ तो अनशन

मा.प.वि.वि. में जुगाड़कला के बदौलत कुलपति बनने की कोशिश

- सत्ताचक्र -
नईदिल्ली । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में 15 जनवरी 2010 से खाली हो रहे कुलपति पद के लिए एक दावेदार, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के पुस्तकालय घोटाले सहित अन्य कई मामले में आरोपी, प्रो. राममोहन पाठक भी हैं। सूत्रो के मुताबिक उनकी कोशिश जुगाड़ लगाकर वहां कुलपति बनने की है। यदि मा.प.वि.वि. में कुलपति नहीं बन पाये तो 17 मार्च 2010 से खाली हो रहे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर में कुलपति पद पर भी उनकी निगाह है। सूत्रो का कहना है कि पाठक इसके लिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह से पैरवी कराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन चक्कर यह है कि इग्नू में पत्रकारिता विभाग के निदेशक शंभूनाथ सिंह भी राजनाथ सिंह और अपनी दूसरी पत्नी दीक्षा के पिता यानी ससुर जे.एस.राजपूत व इनके संपर्को को अपना नाथ माने हुए हैं।सो राजनाथ सिंह जी कहेंगे भी तो शंभू के लिए कहेंगे या राममोहन पाठक के लिए। इधर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति सच्चिदानंद जोशी का 17 मार्च 2010 को 5 साल का टर्म पूरा हो रहा है। टर्म पूरा होने के बाद सच्चिदानंद भाजपा नेताओं से पैरवी कराकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में कुलपति बन जाना चाहते हैं। जुगाड़कला के महारथी जोशी रायपुर में कुलपति के पद पर जाने के पहले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में रजिस्ट्रार थे।सूत्रो के मुताबिक सच्चिदानंद भाजपा के राज्य सभा सांसद प्रभात झा के मार्फत भोपाल में कुलपति पद पाने की कोशिश कर रहे हैं। संघ के सूत्रो का कहना है कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में कुलपति पद के ये तीनो दावेदार महाजुगाड़ू ,अवसरवादी हैं। यदि भाजपा की सरकार में भी ऐसे अवसरवादियों,जुगाड़ियों ,भ्रष्टाचार के आरोपियों को ही कुलपति बनाया गया तो इस पार्टी का भगवान ही मालिक है।संघ के सूत्रो का कहना है कि इस विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए जो कुछ हो रहा है उस पर नागपुर में बैठे संघ प्रमुख की भी निगाह है।

Monday, December 21, 2009

जबरचोर सेंध में गावे , क्योंकि पुलिसवाला उसे बचावे




Dr. ANIL K. RAI ANKIT V.N. RAI की करनी की यह खबर स्वदेश, इंदौर में 4 अगस्त 2009 को पहले पेज की बाटम स्टोरी थी ।
-सत्ताचक्र-

Saturday, December 19, 2009

क्या पुलिस से कुलपति बने वी.एन. राय मैटर चोर को हेड बना बचा रहे हैं , देखें CNEB पर

-सत्ताचक्र-
नई दिल्ली । चोरी करके किताबें लिखने वाले चोर गुरुओं को किस तरह उनके कुलपति बचाने की कोशिश कर रहे हैं और किस तरह उनके इन कारनामों की देश के वरिष्ठ शिक्षाविद और सांसद आलोचना कर रहे हैं—इसी पर केंन्द्रित है रविवार 20 दिसंबर की रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखायी जाने वाली सीएनईबी के चोर गुरू कार्यक्रम की दसवीं कड़ी।चोर गुरू कार्यक्रम की पहली कड़ी में पहली नवंबर को वर्धा के महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर हेड अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित ( Dr. ANIL K. RAI ANKIT ) के कारनामे दिखाने के बाद चैनल ने इसकी सीडी विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण ( V.N. RAI ) और कुलाधिपति नामवर सिंह ( NAMVAR SINGH ) दोनों को भेजी थी। उसपर कुलपति ने क्या पलट-जवाब दिया, उसकी कलई खुलेगी इस रविवार को। रीवा के अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय और जौनपुर के वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के प्रशासन ने जो नोटिस अनिल अंकित को भेजे हैं, उसको दिखाते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद हर्षवर्धन से बातचीत भी इसी कड़ी में दिखाई जायेगी। उल्लेखनीय है कि प्रोफ़ेसर बिपिन चंद्रा और यशपाल सरीखे देश के बेहद सम्मानित शिक्षाविद और देश के पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री समेत अनेक वरिष्ठ सांसद इन चोर गुरुओं के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने की बात सीएनईबी के जरिये सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं।चोर गुरू की अगली यानी ग्यारहवीं कड़ी में दिखाये जाने वाले काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के रीडर हेड डा. अनिल कुमार उपाध्याय ( ANIL UPADHYAY ) के कारनामों और वहाँ के कुलपति अवध राम के विचारों की एक झलक भी रविवार के चोर गुरू कार्यक्रम की दसवीं कड़ी में देखने को मिलेगी।

Friday, December 18, 2009

दो बीवियों के पति, नकलची, भ्रष्टाचार के आरोपी हैं मा.प.वि.वि. भोपाल में कुलपति पद के दावेदार






यह खबर "दैनिक 1857" नागपुर में 18-12-09 को पेज 12 की लीड वाक्स स्टोरी है।



-कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल में कुलपति पद के दावेदार जो लोग हैं उनमें प्रमुख नाम हैं – शंभूनाथ सिंह(SHAMBHUNATH SINGH) , राममोहन पाठक (RAM MOHAN PATHAK) , सच्चिदानंद जोशी ( SACHCHIDANAND JOSHI) ।कहा जाता है कि ये तीनो ही भयंकर जुगाड़ू हैं। सूत्रो का कहना है कि शंभूनाथ सिंह की दो बीवियां हैं । पहली पत्नी का नाम सुनीता, दूसरी का नाम दीक्षा है। दोनो से बच्चे हैं।जैसा कि अक्सर होता है ,गांव के लोग पढ़ते –लिखते हैं गांव में शादी करते हैं,उसकेबाद शहर में आते हैं,किसी नेता के सिफारिश पर या किसी तरह कहीं नौकरी पाते हैं तो कुछ समय बाद उनको गांव वाली पत्नी गंवार लगने लगती है। सो माडर्न पत्नी की चाह पूरा करने के लिए शहर में किसी लड़की से इश्क करते हैं और मामला जब आगे बढ़ जाता है तो शादी कर लेते हैं। शंभूनाथ ने भी दूसरी शादी कर ली। जिस पर प्रभाष जोशी ने इनको “जनसत्ता” अखबार की नौकरी से निकाल बाहर कर दिया। सूत्रो के मुताबिक इनकी दूसरी पत्नी अपने महाजुगाड़ू व महामतलबी पिता के जुगाड़ से यू.जी.सी. में मिली मोटी सेलरी वाली नौकरी पर है। कहा जाता है कि शंभूनाथ जी एक समाजवादी नेता के सिफारिश से कुछ साल बाद दूसरे अखबार में नौकरी पा गये। कुछ साल बाद अखबार मालकिन और उनकी तबकी चहेती एक सम्पादिका ने इनको नौकरी से निकाल दिया । सूत्रो के अनुसार उसके बाद एक नेता और एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री के यहां सहायक रहे व्यक्ति ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. भोपाल में इनको रजिस्ट्रार बनवाने के लिए सिफारिश किया और दबाव डलवाया। लेकिन वहां रजिस्ट्रार नहीं बन पाये। फिर इनके महाजुगाड़ी दूसरे ससुर , एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री के सहायक आदि ने एक उद्योगपति को पकड़ा। उनके मार्फत एक विश्वविद्यालय के कुलपति को पकड़ा गया। उस समय उस वि.वि. में एक विभाग में एक बड़ा पद खाली था।उसके लिए जुगाड़ बैठाया गया। उद्योगपति से आग्रह किया गया कि फला-फला तीन व्यक्ति को इंटरव्यू बोर्ड में कुलपति से कह कर रखवा दिया जाय तो काम हो जायेगा। वही हुआ। जो नाम दिया गया था उन्ही तीनो को एक्सपर्ट बनाकर बुलाया गया। उन्होने नियुक्ति कर दी। बाद में उनमें से एक से इस संवाददाता ने बात भी की थी। अब इसी तरह माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. के कुलपति बनने के लिए भी जुगाड़ बैठाया गया है।सूत्रो के मुताबिक एक पार्टी के एक केन्द्रीय नेता और राज्य के एक मंत्री इसके लिए पूरा जोर लगा दिये हैं। इधर कानूनविदो का कहना है कि अपने देश के कानून के मुताबिक कोई हिन्दू यदि दो शादी किया है तो सरकारी नौकरी में नहीं रह सकता। मामला जब किसी वि.वि. के कुलपति पद का हो तब तो उसके लिए ऐसे व्यक्ति को लाना चाहिए जो छात्रो के लिए नजीर बने। ऐसे व्यक्ति को नहीं जिस पर दो शादी करने, किसी विधवा की जमीन हड़पने,मंदिर की मूर्ति गायब कराने, वि.वि. के पुस्तकालय का प्रभारी रहते घोटाला करने, नकल करके पी.एच.डी की थिसिस लिखने, किसी नकलची को अपने वि.वि. में रीडर व हेड नियुक्त करने,उसकी निजी पत्रिका के एडीटोरियल बोर्ड का मेंम्बर होने ,उसके नकल के कारनामों व धतकर्मो के बारे में सूचना मांगने पर लटकाने के आरोप हों। राम मोहन पाठक पर वाराणसी में एक विधवा ने अपना मंदिर और जमीन हडपने, मंदिर की मूर्ति गायब कराने का आरोप लगाया है। पाठक पर महात्मागांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पुस्तकालय प्रभारी रहते घोटाला करने का आरोप है। जिस पर एक जांच कमेटी बैठी थी। सूत्रो के मुताबिक उसने भी अपनी रिपोर्ट में घोटाले की तरफ इंगित किया है। राम मोहन पाठक पर नकल करके अपनी पी.एच.डी. की थिसिस लिखने का भी आरोप है। इसी तरह सच्चिदानंद जोशी पर नकलकरके एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी में पुस्तकें लिखने वाले अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित को कुशाभाऊ ठाकरे वि.वि. में रीडर व हेड बनाने ,उनके धतकर्मो के बारे में आर .टी.आई. के मार्फत मांगी गई सूचना को दबाने , करोड़ो रूपये की पुस्तको की खरीद का व्यौरा नहीं देने आदि का आरोप है। सूत्रो के अनुसार पाठक ने एक भाजपा के नेता और जोशी ने भाजपा के एक राज्य सभा सांसद के मार्फत कुलपति बनने का जुगाड़ लगाया है।

Monday, December 14, 2009

हरियाणा पुलिस एकेडमी के अफसरो का तथाकथित सेक्स स्कैडल उजागर करने वाले अखबार के खिलाफ हरियाणा पुलिस ने केस दर्ज कराया

इनेलो महासचिव अजय चौटाला ने हरियाणा पुलिस एकेडमी के आला अफसरो के खिलाफ की सी.बी.आई. जांच की मांग
एकेडमी के निदेशक वी.एन.राय व अन्य पुलिस अफसर संदेह के घेरे में
-सत्ताचक्र गपशप –
इनेलो महासचिव अजय चौटाला ने हरियाणा पुलिस एकेडमी ,मधुबन (करनाल) के आला पुलिस अफसरो के खिलाफ एक तथाकथित सेक्स स्कैंडल मामले की जांच सी.बी.आई. से कराने की मांग की है। इस एकेडमी के निदेशक वी.एन. राय हैं। अजय चौटाला का कहना है कि एक जूनियर महिला पुलिस अफसर ने (जो एकेडमी में ट्रेनिंग में रही) इसबारे में मुख्मंत्री हुड्डा को लिखित शिकायत की है,जिसकी छायाप्रति व अन्य प्रमाण उनके पास हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की अगुवाई में इनेलो नेताओ का एक प्रतिनिधि मंडल मंगलवार को राजभवन में राज्यपाल से मिलेगा और इस पूरे मामले को उनके सामने रखेगा तथा इसकी सीबीआई से जांच कराने ,जांच पूरा होने तक एकेडमी के आलापुलिस अफसरो को प्रशासनिक पदो से हटाने की मांग करेगा। अजय चौटाला का यह भी कहना है कि यह खबर छापने वाले एक स्थानीय अखबार के मालिक,संपादक और रिपोर्टर को पुलिस परेशान करने लगी है।उनके खिलाफ केस दर्ज करा दी है।उधर हरियाणा के पत्रकारो के बीच चर्चा है कि यदि इस मामले की ठीक से जांच हो जाय तो कईयों के चेहरे बेनकाब हो जायेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि हरियाणा और उ.प्र. के कुछ पुलिस अफसर साहित्य रस , सोम रस ,सौन्दर्य रस के कुछ ज्यादे ही प्रेमी और जोगाड़ी हो गये हैं। इसमें दो तो सगे भाई हैं। बताया जाता है कि जिस आईपीएस पुलिस अफसर पर आरोप है वह उ.प्र. के आजमगढ़ का रहने वाला है और उसका भाई भी आईपीएस है।



Saturday, December 12, 2009

पूर्वकुलपति रमेश चन्द्रा के नकलचेपी कारनामे और उस पर पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डा.जोशी की कड़ी टिप्पणी CNEB पर


-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” के अगले एपीसोड में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी(उ.प्र.) के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश चन्द्रा के नकल करके एक साल में 29 किताबें लिखने के काले कारनामों को दिखाया जायेगा। जिस पर पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी की टिप्पणी भी दिखाई जायेगी। प्रो.रमेश चन्द्रा अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.आर.अम्बेडकर सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक ( Pro. RAMESH CHANDRA , DIRECTOR- B.R.AMBEDKAR CENTRE FOR BIOMEDICAL RESEARCH , DELHI UNIVERSITY ) हैं , और उ.प्र. में किसी वि.वि. में कुलपति बनने के लिए जुगाड़ लगाये हुए हैं। चोर गुरू के इस नौंवे एपीसोड में यह दिखाया जायेगा कि पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम ने जब कैमरा के सामने प्रो. रमेश चन्द्रा से उनके नकलचेपी कारनामो के बारे पूछा तो किस तरह पहले तो वह बड़े ही टालू अंदाज में कहे – यह तो एडिटेड बुक है ।फिर जब उनको दिखाया गया कि इसमें एडिटेड बुक का कोई प्रमाण ही नहीं है। केवल उपर एडिटेड बुक लिख दिया गया है। इस किताब के सभी चैप्टर केवल आपने लिखा है । कौन चैप्टर किससे लिखवाया है ,किस लेखक ने लिखा है,उसका डिटेल क्या ,कहीं कुछ नहीं दिया है। न कोई रिफरेंस नहीं और कुछ। यह किताब कई देशी –विदेशी किताबो आदि से पेज के पेज ,चैप्टर के चैप्टर मैटर हूबहू उतार कर बनाई गई है। किस किताब से ,कहां से मैटर हूबहू उतार कर पुस्तक बनाई गई है यह प्रमाण दिखाने पर प्रो. रमेश चन्द्रा ने ठीक वही शब्द कहा जो जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली का नकलचेपी रीडर दीपक केम ने कहा था- यह तो मेरी किताब ही नहीं है। चन्द्रा ने कहा कि इसे तो मैंने लिखा ही नहीं है। इस किताब से तो मेरा कोई लेना –देना ही नहीं है। जब रमेश चन्द्रा से यह पूछा गया कि जब आप की लिखी किताब नहीं है तो प्रकाशक ने आपके नाम से यह पुस्तक छापा कैसे, इतने दिनो से कैसे बेच रहा है, आपने अब तक उसके खिलाफ केस क्यों नहीं किया ? किया तो ,उसका प्रमाण दे दीजिए ? प्रमाण मांगने पर चन्द्रा ने कहा – कहीं होगा। लेकिन प्रो.चन्द्रा ,आपने तो एक साल में 29 तक किताबें लिखी हैं। जो कि कई-कई वालूम में इन्साइक्लोपीडिया के रूप में छपी हैं।उन सभी पुस्तकों के अंतिम कवर पेज के अंदर वाले पेज पर आपका चित्र आपही के बायोडाटा सहित छपा है। इस सवाल पर भी प्रो. चन्द्रा ने झट से कह दिया – वे सब भी मेरी लिखी पुस्तकें नहीं है। यह पूछने पर कि आपके नाम से पुस्तकें छपी हैं आप कह रहे हैं आपकी लिखी नहीं है,आपकी नहीं हैं, फिर किसकी हैं ? इस पर चन्द्रा ने बड़े ही चालाकी वाला जबाब दिया- यह तो आप प्रकाशक से पूछिये। उसके बाद पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम गई प्रो.रमेश चन्द्रा के पुस्तकों के प्रकाशक – कल्पाज प्रकाशन, ईशा प्रकाशन से जुड़े गर्ग के यहां दरिया गंज ,नई दिल्ली। उनको जब, रमेश चन्द्रा ने जो कहा था वह बताया गया तो उन्होने कहा- क्या पब्लिशर पागल है जो अपने मन से किसी की किताबें छापेगा या किसी के नाम पर किताबें छाप कर बेचेगा।उसे मरना है क्या? गर्ग ने प्रमाण सहित बताया कि जितनी भी ,जो भी पुस्तकें, वालूम की वालूम इनसाइक्लोपीडिया प्रो. रमेश चन्द्रा के नाम से छपी हैं सबका मैटर वही दिये हैं। उन्होने लिखित दिया है कि ये उनकी मौलिक कृति हैं। गर्ग ने जिसकी छायाप्रति आन कैमरा दिया है। चोरगुरू के इसके पहले के एपीसोड में दिखाया जा चुका है कि बुंदेलखंड वि.वि. के एक प्रो. डी.एस.श्रीवास्तव ने कैमरे के सामने कहा है कि रमेश चन्द्रा मैटर लाकर उनको देते थे, कहते थे कि इसमें से मैटर छांट कर उनके ( प्रो. रमेश चन्द्रा) नाम से किताब बना दो, जो मैटर बचे उससे अपने (डी.एस.श्रीवास्तव )और सरिता कुमारी ( प्रो.रमेश चन्द्रा की चचेरी बहन जो इस समय जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली में लेक्चरर हैं) के नाम से पुस्तकें बना लो। इस तरह नकल करके पुस्तकें लिखने ,लिखवाने,छपवाने, उन्हे बिकवाने,एक दूसरे को मदद पहुंचाने, नौकरी –संरक्षण देने-दिलानेवाले कुलपतियों, मैटरचोर मौसेरे प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर भाइयों का विश्वविद्यालयों में बड़ा रैकेट बन गया है। जिसका भंडापोड़ CNEB न्यूज चैनेल पर “चोरगुरू” कार्यक्रम में हो रहा है। यह कार्यक्रम रविवार 13 -12-09 को रात्रि 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा।

Thursday, December 10, 2009

नकलची अनिल के बचाव में जुटे उसे प्रोफेसर नियुक्त करने वाले

यह खबर 24 अगस्त 09 को स्वदेश इंदौर में बाटम स्टोरी थी।
-कृष्णमोहन सिंह
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के साक्षात्कार बोर्ड में वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय(vibhuti narayan rai, v.n. rai),प्रोवीसी नदीम हसनैन, दैनिक भास्कर-नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे,आज तक टीवी चैनल में सम्पादक कमर वहीद नकवी,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ-वाराणसी के कई घोटालो के आरोपी प्रो.राममोहन पाठक, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल,लखनऊ वि.वि.हिन्दी विभाग के प्रो.काली चरण स्नेही और म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के संस्कृत विद्यापीठ की तब डीन रही इलीना सेन थे। इनने अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (Dr. anil k. rai ankit ) से साक्षात्कार लिया ।इनमें इलीना सेन ने अनिल राय की क्षमता और पुस्तको पर सवालिया निशान लगाकर उनकी नियुक्ति का विरोध जताया था।कहा जाता है कि उन्होने तो साक्षात्कार वाले कागज पर पहले हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।मदन गोपाल ने भी विरोध जताया था।बाकी सबने वी.एन.राय के चश्मे से अनिल के.राय अंकित को देखा।जिसके चलते यह नहीं देख पाये कि हिन्दी में एम.ए.,पी.एच.डी. किया व्यक्ति कम्यूनिकेशन मैनेजमेंट,सेटेलाइट मीडिया,डिजिटल मीडिया,फोटोग्राफी आदि की मात्र सन 2006 से 2008 के दैरान एक दर्जन से अधिक पुस्तके कैसे लिख दिया।यदि ये महानुभाव लोग उन पुस्तको को ठीक से पलटे होते और इन विषयों का थोड़ा भी जानकार होते तो तुरंत पकड़ लेते कि पुस्तके नकल करके लिखी गई हैं।अंग्रेजी में लिखी इन पुस्तको की अंग्रेजी देखकर भी पकड़ा जा सकता है।क्योंकि ज्यादेतर में यूरोप व अमेरिका के शिक्षण संस्थानो में प्रचलित अंग्रेजी लिखी है।दिल्ली में तो दो साक्षात्कार में ही अनिल राय की नकल की पोल खुल गयी थी। तब प्रो.के.के.अग्रवाल और प्रो.सुधीर शर्मा ने पुस्तके पलटते ही पकड़ लिया था। वर्धा में साक्षात्कार लेनेवालो में जिनने भी अनिल कुमार राय को प्रोफेसर बनाये जाने के पक्ष में मत दिया उनमें से कोई भी उन विषयो के जानकार नही थे जिनपर अंकित ने नकल करके पुस्तके लिखी है। जो साक्षात्कार बोर्ड में थे उनमें से कुछ माननीयो से इस बारे में बातचीत हुई। जिनमें ज्यादेतर ने सवाल का सीधा जवाब देने से कन्नी काटी। कुछ तो बेशरम की तरह कुतर्क करने लगे।प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
* दैनिक भास्कर,नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे
सवाल : क्या यदि कोई व्यक्ति नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखकर प्रोफेसर बन गया हो तो उसके विरूद्ध कोई कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब : आप तो खुद पढ़े- लिखे समझदार व्यक्ति हैं आप तो जानते ही हैं कि ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही।
सवाल : और यदि नकल करके पुस्तके लिखने वाले व्यक्ति को प्रोफेसर बनाने वालो में से आप भी हों तो?
जबाब: साक्षात्कार के समय कोई कैसे जान पायेगा कि साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति नकल करके किताब लिखा है।
सवाल : कोई हिन्दी में एम.ए. किया व्यक्ति कम्प्यूटर साइंस ,सेटेलाइट मीडिया जैसे विषय पर किताबे लिखा हो और वे साक्षात्कार के समय आपके सामने रखी हों तो आपको आशंका नही हुई कि हिन्दी का आदमी इन विषयो का विद्वान कैसे बन गया?
जबाब : यदि आपके पास प्रमाण हो कि उसने नकल करके किताब लिखा है तो लिखकर वि.वि. प्रशासन को कम्प्लेन करें । वह जो उचित होगा करेगा।
सवाल : प्रकाश जी आपसे सीधा सवाल पूछ रहा हूं। आपने जिस व्यक्ति अनिल के.राय अंकित को वर्धा में प्रोफेसर बनाया है उन्होने एक दर्जन से अधिक पुस्तके नकल करके लिखा है। उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?
जबाब :मेरे सामने तो नकल करके लिखने का कोई प्रूफ आया नही।
सवाल :अकित ने नकल करके जो पुस्तके लिखा है उनमें से कुछ तथ्यो सहित छपा है। जिसे आपने मंगाकर पढ़ा है।अब इससे बड़ा प्रमाण आपको क्या चाहिए? जब तथ्य सामने आ गया है तब आप अंकित के खिलाफ कार्रवाई के बारे में क्या कह रहे हैं?
जबाब: वो तो वि.वि. प्रशासन पर है कार्रवाई करे या नही करे।
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* कमर वहीद नकवी,संपादक,आज तक
नकवी जी से इस बारे में बाते तो बहुत हुई लेकिन उन्होने तीन-चार बार दुहराया कि आप यही लिखिएगा।-
1-साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य के पास यह जांचने का कोई साधन नही होता कि जो व्यक्ति साक्षात्कार देने आया है वह किताब नकल करके लिखा है।
2-आपका जो आरोप है उसको भी जांचने का मेरे पास कोई साधन नही है।
3-अगर ये आरोप सच है तो निन्दनीय है।

सवाल :लेकिन यदि यह साबित हो जाय कि जो व्यक्ति प्रोफेसर नियुक्त हुआ है वह विदेशी पुस्तको,शोध-पत्रो से नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखा है तब ?
जबाब :यह तो उस वि.वि. प्रशासन पर है कि वह उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।

* राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल

इस बारे में मदन गोपाल का कहना है कि ऐसे मामलो में जांच समिति बनती है।नकल करके किताब लिखने के आरोपी व्यक्ति से भी पूछा जाता है।यदि यह साबित हो जाता है कि व्यक्ति नकल करके लिखा है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होती है।उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है। 420 आदि का केस दर्ज होता है।विदेश में तो इसके लिए बहुत ही कड़ा कानून है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में पत्रकारिता के प्रोफेसर राममोहन पाठक से जब इसबारे में सवाल पूछा तो वह मौसेरे भाई के तर्ज पर नकलची अनिल के. राय अंकित के बचाव में ही उतर आये।प्रस्तुत है उनसे बातचीत का प्रमुख अंश-
सवाल :वर्धा में आपलोग जिस अनिल के. राय अंकित को प्रोफेसर बनाये हैं उन्होने नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी है।नकल करके इतनी पुस्तके लिखने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए या नही ?
जबाब: नियुक्ति के बाद हमलोगो का काम खत्म हो गया।अब जिसको जो करना हो करे।
सवाल::लेकिन नकल का मामला तो उजागर हो गया है।ऐसे में क्या कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब: मैं तो नही जानता कि अंकित ने क्या किया है।आपके बारे में भी वह बहुत कुछ कह रहे हैं.कि..तो खबर लिख रहे हैं?
सवाल: राम मोहन पाठक जी, यहां मैं आपसे जो कुछ पूछ रहा हूं, प्रमाण सहित लिखने के बाद पूछ रहा हूं।आप जो कुछ कह रहे हैं उसको लिखित में दीजिए ,फिर मैं उसका जबाब देता हूं।
जबाब : आप अपनी पत्रकारिता कीजिए।मुझसे आप बहुत जूनियर हैं।
सवाल :आप से सीधा सवाल कर रहा हूं तो आप इधर-उधर की बात कर रहे हैं।आप उस साक्षात्कार बोर्ड में थे जिसमें अंकित की नियुक्ति हुई। ऐसे में नकलची को नियुक्त करने के जिम्मेदार आप भी हैं।नकलची प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं?
जबाब :देखिए ,ऐसी बातो का कोई मतलब नहीं है।आप अपनी पत्रकारिता कर रहे हैं,करिए। जो लिखना हो लिखिए।
सवाल:: राम मोहन पाठक , नकल करके किताबे लिखनेवाले को प्रोफेसर बनाने वाले और अब बेशर्मी से बचाने वालों को क्या कहना चाहिए ? क्या उन्हे चोरगुरू का गुरू कहना चाहिए ?
जबाब:..... चुप्प ।

* इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व अंतरराष्ट्रीय भाषा व संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष एस.एन.विनोद का कहना है कि म.अं.हि.वि.वि.वर्धा स्थापना के समय से ही विवादो के घेरे में रहा है। विभूति नारायण राय की नियुक्ति के बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी कि यह सुधरेगा।लेकिन उनके आने के बाद जो बाते तथ्यो सहित सामने आयी हैं उससे तो और निराशा हुई है।नकल करके एक दर्जन के लगभग पुस्तके लिखनेवाले को प्रोफेसर-हेड बना दिया गया,ऐसी खबर छपी हैं।प्रकाशित खबर में प्रमाण सामने है,इसलिए जांच में आसानी होगी।इस मामले की जांच कराया जाये। और आरोप सही पाया जाता है तो उसके (अनिल के. राय अंकित) खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाय।

Monday, December 7, 2009

मारिशस के राष्ट्रपति को डि.लिट. देने की मंजूरी के लिए कैसे बाध्य किया गया भारतीय राष्ट्रपति को


-कृष्णमोहनसिंह
नईदिल्ली। महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय जाते हैं मारिशस। वहां वह राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ से मुलाकात करते हैं। जहां पता चलता है कि जगन्नाथ दिसम्बर का पहला डेढ़ हप्ता भारत में बितायेंगे। लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल से लगायत अन्य तमाम जगह जायेंगे। सो सम्पर्क बढ़ाने , चमचागिरी चमकाने का उत्तम अवसर देख विभूति नारायण ने इस भारत यात्रा के दौरान ही उनको डी.लिट.उपाधि देने की बात कर ली। मारिशस से वापस आने के बाद पुलिसिया कुलपति ने वि.वि. के एके़डमिक कौंसिल की आपात बैठक बुलाई।वि.वि में अभी तक एक्जक्यूटिव कौंसिल नही होने के कारण पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण अपने इमरजेंसी पावर का इस्तेमाल करके नकलची को प्रोफेसर –हेड बनवाने से लगायत अपनी मंडली के तरह-तरह के लोगो को तरह-तरह से लाभान्वित करने का उपक्रम कर रहे हैं। तो उस एकेडमिक कौंसिल की आपात बैठक में आपात निर्णय मारिशस के राष्ट्रपति अनिरूद्द जगन्नाथ को डी.लिट. देने का हुआ।उस फाइल को मंजूरी के लिए वाया केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ,वि.वि. के विजिटर भारत के राष्ट्रपति के यहां भेज दिया गया। म.अं.हि.वि.वि. के पुलिसिया कुलपति ने जब मारिशस के राष्ट्रपति से मुलाकात करके और अपने यहां एकेडमिक कौंसिल की आपात बैठक कर डी.लिट. देने का आपात निर्णय कर ही लिया है तो केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन उस फाइल पर अपनी मंजूरी मजबूरी में देगा ही। क्योंकि यदि फाइल रोक दी जायेगी तो भद्द होगी।तो इस तरह विभूति ने अपने निर्णय पर मंजूरी देने के लिए केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन को मजबूर किया।जिसको शिक्षा मंत्रालय ने तो ठीक से नोट कर ही लिया है।

पुलिसिया कुलपति ने नकलची को बनाया मारिशस के राष्ट्रपति के कार्यक्रम / दीक्षान्त समारोह का प्रचार प्रभारी


-सत्ताचक्र गपशप-


महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा,महाराष्ट्र के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने अपने विरादर , जनसंचार विभाग के नकलचेपी प्रोफेसर व हेड अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के.राय अंकित को मारिशस के राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ के कार्यक्रम/ दीक्षांत समारोह का प्रचार प्रभारी बनाया है। अनिरूद्ध जगन्नाथ 9 दिसम्बर 09 को वर्धा जा रहे हैं। दीक्षान्त समारोह में उनको डि.लिट. की उपाधि दी जायेगी। उस दिन म.अं.हि.वि.वि. में इसके लिए जो कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है उसका मीडिया के मार्फत प्रचार का जिम्मा नकलची प्रोफेसर अनिल के. राय अंकित को सौंपा गया है।

Saturday, December 5, 2009

पूर्वांचल वि.वि. के शिक्षक एस.के.सिन्हा के नकलचेपी कारनामे CNEB पर


-सत्ताचक्र-
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर के डिपार्टमेंट आफ फाइनांसियल स्टडीज में वरिष्ठ शिक्षक डा..के.सिन्हा ( जिनका इसी वि.वि. में रीडर पद पर सेलेक्शन हो गया है,लिफाफा खुलने की देरी है। इन नकलचेपी प्रोफेसरो ,रीडरो,लेक्चररो को बचाने का ,मामला दबाने का तरह-तरह से उपक्रम शुरू हो गया है। ये नकलची प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर और इनकी पुस्तकें छापकर इसी वि.वि. की पुस्तकालयों में,इन्ही नकलची आध्यापकों और वि.वि. के कुछ अफसरो के सहयोग से बीते 6-7 साल से प्रति वर्ष 70-80 लाख रूपये की पुस्तकें सप्लाई करने वाले प्रकाशक,सप्लायर का रैकेट राज्य के कुछ तथाकथित घूसखोर नेताओं,अफसरों के मार्फत मामला दबाने में लग गया है) के नकल करके किताबें लिखने का कारनामा CNEB न्यूज चैनल के खोज परक कार्यक्रम “चोरगुरू” के अगले एपीसोड में दिखाया जायेगा। जो कि रविवार दिनांक 06 दिसम्बर 2009 को रात्रि 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा। डा.एस.के.सिन्हा ने नकल करके जो किताब लिखा है उसका नाम है – LOGISTICS AND SUPPLY CHAIN MANAGEMENT . इस पुस्तक को SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS , ANSARI ROAD, DARAYA GANJ , NEW DELHI -110002 . ने छापा है। पुस्तक 2007 में छपी है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय,जौनपुर नकलचेपी शिक्षकों का गढ़ हो गया है। यहां के पूर्व कुलपति प्रेम चंद पातंजलि, डीन रामजी लाल, लेक्चरर एस.के. सिन्हा, लेक्चरर अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (अवैतनिक अवकाश पर , इस समय म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में सजातीय पुलिसिया कुलपति की कृपा व संरक्षण से जनसंचार विभाग के प्रोफेसर व हेड ) के नकल करके एक साल में एक दर्जन तक किताबें लिखने का मामला सामने आया है। इन सब नकलचेपियों की पुस्तकें SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS ने छापा है। इन सबके नकलचेपी कारनामों को CNEB न्यूज चैनल पर चल रहे चोर गुरू कार्यक्रम में दिखाया जा चुका है। चोर गुरू कार्यक्रम की आठवीं कड़ी में रविवार दिनांक 06-12-09 को रात 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में एस.के. सिन्हा के बारे में दिखाया जायेगा कि किस तरह उन्होने विदेशी लेखक विलियम सी कोपैसिनो की किताब SUPPLY CHAIN MANAGEMENT से लगग हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक का 21 से 42 तक का पेज बना लिया है। CNEB न्यूज चैनल की टीम ने पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति और रजिस्टार के सामने जब पूछताछ की तो उसमें सिन्हा ने स्वीकारा है। कैमरा के सामने आने के पहले सिन्हा को कुलपति और रजिस्टार ने अलग कमरे में ले जाकर कुछ पूछा,समझाया कि क्या कहना है।लेकिन कैमरे के सामने सिन्हा ने काफी कुछ बता दिया ।सिन्हा ने साफगोई से सबकुछ बताना शुरू किया तो कुलपति और रजिस्टार थोड़ा असहज हो गये और सिन्हा को आगाह करते हुए कम बोलने का संकेत किया। फिर भी सिन्हा ने बहुत कुछ बताया। उन्होने तो यह भी बताया कि जिस प्रशांत जैन की कम्पनी SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS के यहां से किताबें छपवाई हैं उसी के यहां से मुफ्त में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर के डिपार्टमेंट आफ फाइनांसियल स्टडीज का एक जर्नल भी छपता है। इस बारे में पूछने पर प्रशांत जैन ने कैमरे के सामने स्वीकार किया की वह यह बिजनेस प्रमोशन के लिए करते हैं। यानी सप्लायर,पब्लिशर,वि.वि. के अधिकारी व शिक्षक सब इस बिजनेस प्रमोशन की एक लाभवाली कड़ी के अंग बन गये हैं। ईमानदार शिक्षाविद इसे रैकेट कहने लगे हैं। जिसके मार्फत भारत में प्रेफेसरो,रीडरो,लेक्चररों द्वारा नकल करके लिखी पुस्तकों का सालाना लगभग 500 करोड़ रूपये का कारोबार हो रहा है। ये किताबें विश्वविद्यालयों के लाइब्रेरियों में रैकेट के मार्फत बिक रही हैं। जिनपर आन रिकार्ड केवल 10 से 20 प्रतिशत छूट दिखाया जाता है। किताबों के छपे दाम का बाकी 40 से 50 प्रतिशत रैकेट में शामिल अफसरो,मास्टरों,लाइब्रेरियनों,क्लर्कों के बीच चढ़ावा चढ़ जाता है। CNEB के इस एपीसोड में आप यह भी देखेंगे कि किस तरह नकलचेपी शिक्षकों की लाखो-लाखो- रूपये की ढ़ेर सारी पुस्तकें,इनसाइक्लोपीडिया मंगाकर लाइब्रेरी में रखा जाता है। इस तरह की पुस्तकें सप्लाई करने वाली कम्पनियों में से एक इंडिका और छापने वाली कम्पनी श्री पब्लिशर के मालिक प्रशांत जैन के मजेदार तर्क भी इस एपीसोड में देखने को मिलेगा।