Sunday, November 29, 2009

जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली में नकलचेपी रीडर दीपक केम के कारनामे


-सताचक्र गपशप-
जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली के सेंटर फार कल्चर एंड मीडिया गवर्नेस में दीपक केम रीडर हैं। उनके पिता यू.जी.सी. में दो साल पहले तक सेक्रेटरी थे और अभी यू.जी,सी. के ही एक विभाग नाक में कुलपति रैंक के पद पर निदेशक हैं।इस पद पर उनकी नियुक्ति यू.जी.सी. के वर्तमान चेयरमैन थोराट ने की है।कैसे की है इसकी स्टोरी बाद में।इसी तरह बड़े केम ने अपने पुत्र दीपक और उनकी पत्नी को किस तरह आगे बढाया है,दीपक को प्रोफेसर बनवाने के लिए कहां-कहां जुगाड़ भिड़ाया जा रहा है,कैसे यू.जी.सी.आदि का प्रोजेक्ट दिलवाया जा रहा है ,इसके बारे में बाद में। पहले दीपक केम के नकल करके कई किताबें लिखने के कारनामों पर। दीपक केम ने, महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में अपने सजातीय पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय की कृपा से जुलाई09 में प्रोफेसर नियुक्त हुए व हेड बने, अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित के साथ मिलकर PHOTOGRAPHY PRINCIPLES AND PRACTICES नामक 2500 रूपये की किताब लिखी है।जिसे श्रीपब्लिशर व डिस्ट्रीब्यूटर,दरियागंज ,दिल्ली ने छापा है। जिसमें 22 चैप्टर हैं।ये 22 चैप्टर तीन विदेशी पुस्तकों से चैप्टर के चैप्टर हूबहू उतार कर बनाये गये हैं। नकलचेपी दीपक केम और अनिल के. राय अंकित की इस पुस्तक में ढ़ेर सारी फोटो भी हैं। जिसके चयन में भी केम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।नकल करके यह किताब लिखने की बात उजागर होने पर कलाकार केम अब कह रहे हैं “– ये अनिल के. राय कौन है,इसको तो मैं जानता ही नहीं हूं।इस किताब से मेरा कोई लेना –देना नहीं है...।“ जबकि दोनों नकलचेपियो को अच्छी तरह जानने वाले लोग कह रहे हैं कि दोनों एक ही चौर्यकला के चट्टे-बट्टे हैं।दोनो एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं।यह भी कहा जा रहा है कि इसी दीपक केम के मार्फत इनके पिता यानी बड़े केम से जुगाड़ लगाकर अनिल के. राय अंकित ने यू.जी.सी. का एक प्रोजेक्ट लिया है। उसमें भी एक प्रोजेक्ट फेलो को, नियुक्त करने के एक साल बैक डेट से सेलरी दिलाने का आर्डर कराने का धांधली किया है। जिसमें यू.जी.सी. का एक कर्मचारी भी शामिल है। केम और अंकित के नकल करके किताब लिखने के कारनामे जब CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जाने के लिए प्रोमो चलने लगा तो यू.जी.सी. की एक कमेटी में मेम्बर एक व्यक्ति के यहां एक सज्जन का फोन गया। कहे- भाई साहब उस लड़के से गलती तो हो गई है,खबर दिखाने से तो उसका कैरियर खत्म हो जायेगा। जिस व्यक्ति के यहां फोन गया था उन्होने जबाब दिया –एक पिता का अपने पुत्र की भविष्य की चिंता मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं,लेकिन आपका पुत्र कोई दूध पिता बच्चा नहीं है, प्राचार्य है। पुत्र ने नकल करके किताबें लिखी है तो वह कैसे नहीं दिखाया जाय। जब चोरगुरू खबर दिखा दी गयी और दूसरे दिन भी उसे रिपीट करने के लिए वही प्रोमो चल रहा था तो उस व्यक्ति के यहां एक नकलचेपी ने फोन किया और कहा- अंकल उस प्रोमो सें मेरा फोटो तो हटवा दीजिए..।खबर दिखाये जाने के दो दिन बाद फिर एक नकल चेपी के पावरफुल पिता का फोन उस व्यक्ति के यहां गया- भाई साहब जो खबर चैनल पर दिखाई गई, उसकी सी.डी. को जामिया मिलिया के कुलपति के यहां नहीं भेजवाइयेगा,वरना वह कार्रवाई कर सकते हैं। आगे क्या हुआ बाद में पढ़ियेगा।

Saturday, November 28, 2009

पूर्वांचल वि.वि. के डीन रामजी लाल के नकल करके किताबें लिखने के कारनामे CNEB पर

-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम चोर गुरू की छठवीं कड़ी में पिछले रविवार दिनांक 22-11-09 को जौनपुर के वीर बहादुर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर रमेश चंद्र सारस्वत से हुई लंबी बातचीत के कुछ अंश दिखाये गये थे। साथ ही दिखाये थे इसी विश्वविद्यालय के एक चोर गुरू प्रोफ़ेसर रामजी लाल के दो रूप—चोरी पकड़े जाने से पहले का रौद्र रूप.... झूठ से भरा और.... फिर कुलपति द्वारा चोरी पकड़े जाने के बाद का मुरझाया हुआ रूप।
चोरगुरू कार्यक्रम के सातवीं कड़ी में दिखाया जायेगा, रविवार दिनांक 29-11-09 को रात 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में उन्हीं प्रोफ़ेसर रामजी लाल की कारस्तानी । उसके बाद देखियेगा CNEB के जौनपुर संवाददाता सुरेंद्र से हुई रामजी लाल की गरमागरम बातचीत और उसके बाद संजय देव और कृष्णमोहन सिंह की जोड़ी के साथ हुई उनकी नौटंकी के रोचक अंश।
प्रो. रामजी लाल गुरू जी ने विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों आदि की पुस्तकों व शोध-पत्रों आदि से मैटर लगभग हूबहू उतार कर अपने नाम से जो पुस्तकें छपवाई हैं उनमें एक पुस्तक है- इंडस्ट्रियल एंड ऑर्गेनाइज़ेशनल साइकोलॉजी । सन् 2004 में छपी इस किताब में रामजी गुरू जी ने छह-सात जगहों पर 20-20, 30-30 पेज और एक जगह 50 से भी अधिक पेज का मैटर चुराया है। इसके प्रकाशक हैं -श्री पब्लिशर्स, दरियागंज, नई दिल्ली।
285 पेज की इस किताब में रामजीलाल ने 200 पेज के लगभग मैटर छह अलहदा स्रोतों से चुराया है, किताब में बिबलिओग्राफ़ी नहीं होगी, यह अब आप भी जान ही चुके हैं। लाल के कानामो का नमूना देखें रविवार दिनांक 29-11-09 को CNEB पर।

Friday, November 27, 2009

अब चोर गुरू करेंगे प्रभाष जोशी पर कार्यक्रम

-सत्ताचक्र गपशप-
प्रख्यात पत्रकार आलोक तोमर ने ठीक ही लिखा है- प्रभाष जी की आत्मा को शांति नहीं चाहिए..। यदि उनकी आत्मा को शांति मिल गई तो उन सफेदपोश चोरो की चांदी हो जायेगी जिनकी चांदी की चमचमाती पन्नी में काईंयापन से ढ़की सिर तक सराबोर कदाचार की करनी को वह अपनी लेखनी से तार-तार कर दुनिया के सामने उनके असली चेहरे उजागर करते थे। सफेदपोशो के कदाचार,धतकर्मो को तार –तार करने के लिए प्रभाष जी की उस सागर आत्मा को हमारे बीच प्रेरणा श्रोत बने रहना होगा। वरना उनके ही नाम पर कार्यक्रम आयोजित करके चौर्यकला महारथी प्रोफेसर ,रीडर,लेक्चरर इनके संरक्षक कुलपति अपने स्याह कर्म को सफेद करने लगेंगे।
यह शुरू भी हो गया है। महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने देशी-विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,वैज्ञानिको आदि की पुस्तकों,शोधपत्रों से लगभग हूबहू उतार कर एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी व हिन्दी में पुस्तकें ,शोध-पत्र अपने नाम से छपवालेने वाले अनिल के राय अंकित को प्रभाष जी पर कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी दी है।विभूति राय ने ही अनिल कुमार राय को वि.वि. में प्रोफेसर नियुक्त कराया व जनसंचार विभाग का हेड बनाया है।सो अब एक नकलचेपी प्रोफेसर और उसका संरक्षक आयोजित कर रहे हैं प्रभाष जी पर कार्यक्रम।

Thursday, November 26, 2009

क्या कार्रवाई रूकवाने के लिए नकलचेपी गुरू करने लगे तरह-तरह के उपक्रम ?

-सत्ताचक्र गपशप-
पूर्वांचल वि.वि.जौनपुर के फिलहाल तीन नकलचेपी गुरूओं (प्रो.रामजी लाल,लेक्चरर एस.के. सिन्हा,लेक्चरर अवैतनिक अवकाश ,इससमय म.गां.अं.हि.वि.वि. वर्धा में प्रोफेसर, अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित) को वि.वि. प्रशासन ने कारण बताओ नोटिस दिया है। जिसका जबाब एक सप्ताह में देने को कहा गया है।वह समय अब पूरा हो गया ।नोटिस पर वि.वि. के रजिस्ट्रार का हस्ताक्षर है।जिन्होने कुलपति के निर्देश पर यह नोटिस जारी किया है। नकलचेपियों को नोटिस दिये जाने के कुछ दिन बाद ही भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ,जौनपुर के एक पदाधिकारी का पत्र उ.प्र. के राज्यपाल के यहां भेजा जाता है।उसकी प्रति BABAJI PCO OLANDGANJ,JAUNPUR-2 ,FAX NO. 05452-268714 से 20-11-09 को सायं 3 बजकर 46 मिनट पर CNEB न्यूज चैनल के लिए चोर गुरू कार्यक्रम बना रही टीम के यहां भेजा गया। NSUI जौनपुर के जिस पदाधिकारी ने अपने लेटर हेड पर यह पत्र लिखा है उन्होने इस पर अपना दो फोन नम्बर दिया है। एक -9889055407 दूसरा 9415893652 . इसमें पहला मोबाइल आइडिया का है जो आफ है। दूसरा मोबाइल नं. गोरखपुर में एक मोबाइल की दुकान चलाने वाले सब्बीर अहमद का है। आज 11.23 a.m. पर इस नंबर पर बात हुई तो सब्बीर ने बताया कि इस मोबाइल से पैसा ट्रांसफर होता है।
एनएसयूआई के जौनपुर के पदाधिकारी ने प्रदेश के राज्यपाल को डेढ़ पेज का जो पत्र लिखा है उसमें लिखा है-
विषय : बी.बी.एस. पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर में कार्यरत कुलसचिव डा.बीएल.आर्या के कृत्य के सन्दर्भ में ।
यानी पत्र वि.वि. के रजिस्ट्रार के खिलाफ लिखा गया है। जिसको पढ़ने से ऐसा आभास होता है कि वि.वि. में जोभी भ्रष्टाचार है सबकी एक मात्र जड़ रजिस्ट्रार हैं। बाकी सब हरिश्चन्द्र हैं। कुलपति,नकलचेपी अध्यापक,सप्लायर के यहां शादी में दिल्ली जाने वाले वि.वि. के मास्टर,पदाधिकारी ,कैटालागर,पुस्तकालय सहायक,क्लर्क,पी.ए. आदि सब दूध के धूले हैं।
इस पत्र के साथ एक भी प्रमाण नहीं दिया गया है। पत्र पर दिनांक भी नही डाला गया है। इसमे वि.वि. के रजिष्ट्रार के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि उन्होने अपने पुत्र रामसिंह को एम.बी.ए. विभाग में गेस्ट लेक्चरर नियुक्त कर दिया है । लेकिन पत्र में यह कहीं नही लिखा है इसी वि.वि. के DEPARTMENT OF FINANCIAL STUDIES के नकलचेपी लेक्चरर डा.एस.के. सिन्हा के सगे भाई प्रभात सिन्हा,वि.वि.के केन्द्रीय पुस्तकालय में पुस्तकालय सहायक अवधेश प्रताप के रिश्तेदार सहित डेढ़ दर्जन से अधिक गेस्ट लेक्चरर हैं।जिसमें कई तो यहां के मास्टरो,अफसरो,कर्मचारियों के नजदीकी या दूर के रिश्तेदार या खास हैं।
पत्र में लिखा है कि रामसिंह को कापी जांचने का काम भी दिया गया। वि.वि. के नियम के अनुसार तीन साल तक पढ़ाने का अनुभव रखने वाला लेक्चरर कापी जांच सकता है। इस नियम के अनुसार यदि राम सिंह का पढ़ाने का अनुभव तीन साल से अधिक हो गया होगा तो वह कापी जांच सकते हैं। पत्र में पांचवे नम्बर पर लिखा है- शैक्षणिक अनुभाग में थिसिस तथा मैखिक परीक्षा कराने के नाम पर 5 से 10 हजार प्रति छात्र लिया जाता है। पत्र में रजिस्ट्रार पर और भी आरोप लगाये हैं। लेकिन कहीं भी वि.वि. के इन तमाम तथाकथित घोटालों ,गड़बडियों के लिए कुलपति या विभाग के हेड या इन्चार्ज पर आरोप नहीं लगाया गया है।ऐसा लगता है कि इस वि.वि. के रजिस्ट्रार ही कुलपति,विभागाध्यक्ष,सभी विभाग के इन्चार्ज और क्लर्क हैं। इस पत्र में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि नकलकरके किताबें लिखनेवाले वि.वि. के प्रोफेसरो को नौकरी से निकाला जाना चाहिए। नकल करके लिखी उन मास्टरों की पुस्तकें छापने और उनकी सप्लाई इस वि.वि. में लगभग सात साल से करने वाले दिल्ली के इंडिका सप्लायर ,श्री पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर को ब्लैक लिस्ट किया जाय।उसके यहां से कई करोड़ रू. की पुस्तकें खरीदवाने वाले कुलपति,हेड,लेक्चरर,अफसर के खिलाफ सी.बी.आई. जांच कराया जाय।लाइब्रेरी में कई-कई साल तक किताबों को डम्प करने,उनकी इन्ट्री नहीं करने वालो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय।सप्लायर के यहां शादी में क्या इसी-लेन-देन की रिश्तेदारी निभाने के लिए ये सभी गये थे ,इसकी जांच कराया जाय।
इस पत्र को लिखने वाले व्यक्ति के संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारियों का इस बारे में कहना है कि पूर्वांचल वि.वि. में भ्रष्टाचार के लिए वे सब बराबर के जिम्मेदार हैं जो कुर्सी पर बैठे हैं। जांच सबके खिलाफ होनी चाहिए। इस संगठन के कुछ पदाधिकारी जौनपुर के इस पदाधिकारी के पत्र को कांग्रेस अध्यक्ष और एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष के यहां पूर्वांचल वि.वि. के नकलचेपी मास्टरों के कारनामो के सबूत सहित भेज रहे हैं।

Wednesday, November 25, 2009

दैनिक भास्कर के गढ़ में दैनिक जागरण के घुसने की तैयारी

बदले में दैनिक भास्कर भी दैनिक जागरण के गढ़ में घुसेगा
-सत्ताचक्र-
उ.प्र. के कानपुर से शुरू हुआ नरेन्द्रमोहन बंधुओं का अखबार दैनिक जागरण उ.प्र.,उत्तराखंड बिहार ,झारखंड, आदि राज्यों के बाद अब मध्यप्रदेश में पांव फैलाने की तैयारी में जुट गया है। मध्यप्रदेश के भोपाल ,रीवा से जो दैनिक जागरण निकलता है उसके मालिको से कानपुरवालों की कट्टी हो गयी। सूत्रो के का कहना है कि भोपाल वाले अब अपना जन जागरण नाम से अखबार निकालेंगे। दैनिक जागरण की टाइटल म.प्र. में भी कानपुर वालो के पास रहेगी। कानपुरवालो ने म.प्र. के कई प्रमुख शहरो से एक साथ अखबार (दैनिक जागरण) निकालने की योजना बनाई है।अखबार जल्दी निकालना है इसलिए किसी अन्य अखबार के प्रिंटिंग प्रेस से छपाई कराने के लिए बात चल रही है। इसके लिए इस अखबार के मैनेजरों की म.प्र. के कई शहरो से निकलने वाले पीपुल्स ग्रुप से छपाई के लिए कई राउन्ड बात-चीत हुई है। इंदौर में दैनिक जागरण का अपना प्रेस है। भोपाल वालों के साथ भागीदारी में इंदौर में जो अखबार निकला था उसमें लगी छपाई मशीन कानपुर वालों के हिस्से में आ गई है। म.प्र.में कुलमिलाकर भास्कर नं-1 है। दूसरे नंबर पर नई दुनिया है। इन दोनो से दैनिक जागरण की कड़ी टक्कर होगी। नई दुनिया का झुकाव कांग्रेस की तरफ है। भास्कर का व्यवसाय के हिसाब से घालमेल है। ऐसे में भाजपा शासित राज्य म.प्र.,छत्तीसगढ़ में दैनिक जागरण के जल्दी छा जाने की संभावना है। दैनिक जागरण म.प्र. में भास्कर और नई दुनिया के गढ़ में घुसेगा तो उसके गढ़ उ.प्र. में भी भास्कर और नई दुनिया घुसेगें ही। कांग्रेस के कुछ आला नेता भी यह चाहते हैं। देखिए कब उ.प्र. में ये दोनो अखबार जाते हैं। यह होने पर लाइजनर एडवर्टाइजमेंट मैनेजर एडिटरो की डिमांड एक बार और बढ़ जायेगी।

Tuesday, November 24, 2009

फंसने से बचने के लिए पुलिसिया कुलपति ने पातंजलि से किया किनारा,इस्तीफा लिया

-सत्ताचक्र गपशप-

सूत्रो का कहा यदि सही है तो महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के दिल्ली सेंटर में पूर्वांचल वि.वि. के पूर्व कुलपति प्रेम चंद पातंजलि को ओ.एस.डी./सलाहकार पद पर रखा गया था।पुलिस अफसर से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने इनकी नियुक्ति की। पातंजलि पर भी नकल करके किताबें लिखने का आरोप है। विभिन्न विषयों पर एक साल में 14 पुस्तकें लिखें हैं।सभी पुस्तकें SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS , 20 , ANSARI ROAD,DARYA GANJ, NEW DELHI-110002 से प्रकाशित हैं। नकलचेपी विधा में पातंजलि के पटु अनुआई अनिल कुमार राय अंकित को भी विभूति नारायण राय ने वि.वि. में नियुक्त कराया है। दोनो के नकल करके किताबें लिखने का मामला तथ्यों सहित उजागर होने के बाद भी इनके आका तरह-तरह के कुतर्क देकर इनको बचाते रहे हैं। सबूतो सहित जब शिकायत प्रधानमंत्री और शिक्षामंत्री के यहां पहुंची है,CNEB चैनल पर आया है तो वि.वि. ने प्रेमचंद पातंजलि से किनारा कर लिया । सूत्रो का कहना है कि उनसे इस्तीफा ले लिया गया। इसबारे में पातंजलि से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई, पर वह फोन आफ किये हुए हैं।वि.वि. का भी कोई जिम्मेदार कर्मचारी इस पर बोलने को तैयार नहीं है।क्योंकि वहां पुलिसिया राज है।

सूचना- आपके पास किसी कुलपति, प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर के द्वारा नकल करके पुस्तकें, शोध-पत्र लिखने का प्रमाण है तो sattachakra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।

Sunday, November 22, 2009

पूर्वांचल वि.वि.प्रशासन ने नकल करके किताबें लिखने के मामले में डीन रामजी लाल,लेक्चरर एस.के.सिन्हा,लेक्चरर अनिल कुमार राय को दिया नोटिस



-सत्ताचाक्र(sattachakra)-
नईदिल्ली। CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जारहे खोजपरक कार्यक्रम चोर गुरू का असर दिखने लगा। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर प्रशासन ने नकल करके किताबें लिखने के मामले में प्रो. रामजी लाल (डीन सामाजिक विज्ञान संकाय),एस.के.सिन्हा(लेक्चरर फाइनांस कन्ट्रोल डिपार्टमेंट), अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (लेक्चरर,अवैतनिक अवकाश पर, पत्रकारिता विभाग । इस समय महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में प्रोफेसर हैं) को कारण बताओ नोटिस दिया है। बताया जाता है कि वि.वि. प्रशासन ने नोटिस में लिखा है –.....आप लोगो ने जो कर्म किया है उससे विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है....।....देशी –विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,वैज्ञानिको आदि के पुस्तकों,शोध-पत्रो आदि से कापीराइटेड मैटर लगभग हूबहू उतार कर आप लोगो ने जो पुस्तकें लिखी है इस संबंध में CNEB चैनल के राजनीतिक संपादक प्रदीप सिंह का पत्र आया था। इस बारे में एक सप्ताह के भीतर आख्या दें।जिससे CNEB चैनल को अवगत कराया जा सके। इस नोटिस पर वि.वि. के कुल सचिव बी.एल. आर्या का हस्ताक्षर है। सूत्रो के मुताबिक नकल करके किताबें लिखने वाले ये गुरूजी लोग बचने के लिए तरह-तरह की जुगत लगा रहे हैं। इनके संरक्षक व आका भी इन्हे बचाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।देखिये वि.वि. प्रशासन आगे क्या करता है? कुछ कठोर कार्रवाई भी करता है या नोटिस देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल देता है।


सूचना- आपके पास इस तरह की कोई भी खबर हो तो sattachakra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।

चोरगुरूओं,उनके सहयोगियों,संरक्षकों का उजागर होने लगा दोहरा चरित्र

-सत्ताचक्र गपशप-
पूर्वी उ.प्र. के एक वि.वि.के कैटालागर लाइब्रेरियन वि.वि. के अपने कुछ चंपुओं व मातहतो के सामने तो सीना चौड़ाकर उन पत्रकारो के बारे में बहुत अनाप-शनाप बक रहे थे जिनने नकलची प्रोफेसरो,रीडरो,लेक्चररो के नकल करके किताबें लिखने,उन्हे छापने-सप्लाई करने,खरीदने,खरीदवाने वालों के कालेधंधे का भण्डा फोड़ शुरू किया है।लेकिन जब यह सामने आ गया कि 1- वह लाइब्रेरियन महोदय पत्नी व बच्चे सहित पुस्तक सप्लायर के यहां दिल्ली में शादी में गये थे,जिसकी सारी व्यवस्था सप्लायर ने की थी ,2-वह लाइब्रेरियन महोदय उस सप्लायर द्वारा सप्लाई की हुई विभिन्न विषयों की नकलची गुरूओं द्वारा लिखी अति महंगे दामवाली करोड़ो रूपये की इन्साइक्लोपीडिया के वालूम के वालूम को लाइब्रेरी के पहली मंजिल के कमरो में डम्प किये हुए हैं, 3- नकलची गुरूओं की लिखी हर साल मंगाई गई ढ़ेर सारी पुस्तको को बहुत समय तक इन्ट्री,कैटालागिंग न करके वैसे ही डम्प रखा गया है,छात्रो को कई –कई साल तक इसु नहीं किया गया है। यह सब सामने आने के बाद बहुत बढ़-चढ़कर अनाप-शनाप बोल रहे कैटालागर महोदय की धुक-धुकी बढ़ गयी। वह कैटालागर लाइब्रेरियन महाशय म.प्र. के एक विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियन के अंडर में पी.एच.डी.सबमिट किये हैं। अपना कर्म उजागर होने से पुकपुकाये यह साहब जिसके अंडर में पी.एच.डी. सबमिट किये हैं,उससे फोन करवा रहे हैं।यह कि हुजूर बख्श दीजिए। विश्वविद्यालयों में लाइब्रेरियन का प्रभार प्रोफेसरके पास होता है,यहां यह कैटालागर लाइब्रेरी का प्रभारी है।
नकलचेपी प्रोफेसर बाहर बढ़-चढ़कर बोल रहा अंदर सिफारिश लगवा रहा: नकल करके दर्जनो पुस्तकें लिखने वाला एक नकलचेपी महाराष्ट्र के एक नये केन्द्रीय वि.वि. में अपने जाति के कुलपति की कृपा से प्रोफेसर –हेड बना है। उसके नकल करके ढ़ेर सारी पुस्तकें लिखने के कारनामे अखबारो में आ रहे हैं। उस नकलची ने अपने संरक्षको,चंपुओं के सामने तो खबर लिखनेवालों के बारे में बहुत अंड-बंड कहता रहा। उसके बड़बोले आका भी उसी की जुबान बोलते रहे हैं। नकलची ने नकल करके लिखी अपनी एक पुस्तक अपने एक मददगार को समर्पित की है। उनसे वह बहुत बार आरजू किया कि सर जो लोग लिख रहे हैं उनसे कहिए मत लिखें। यह है नकलचेपी का अंदर कुछ और बाहर कुछ और मामला।ऐसे बहुत हैं।उसके आका का भी यही हाल है।

Saturday, November 21, 2009

पूर्व कुलपति व म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में ओ.एस.डी. पातंजलि और पूर्वांचल वि.वि. के डीन रामजी लाल के नकल करके किताबें लिखने के कारनामे CNEB पर



-सत्ताचक्र(sattachakra)-
नयी दिल्ली, 21 नवंबर। सीएनईबी चैनल पर चल रहे चोर गुरू कार्यक्रम की छठी कड़ी कल रविवार 22-11-09 को रात आठ से साढ़े आठ बजे के विशेष कार्यक्रम के तहत दिखाई जायेगी । रविवार रात को दिखाया जाने वाला यह कार्यक्रम सोमवार 23-11-09 को दोपहर साढ़े बारह बजे फिर से दिखाया जायेगा।जिसमें तीन पार्टियों के वरिष्ठ सांसदों की टिप्पणियाँ और वीरबहादुर सिंह विश्वविद्यालय जौनपुर के कुलपति से वहाँ के शिक्षकों द्वारा मैटर चुराकर लिखी गयी किताबों के बारे में कैमरे पर हुई बातचीत दिखाई जायेगी। उल्लेखनीय है कि कई सांसदों ने चोर गुरू कार्यक्रम के माध्यम से उठाये जा रहे इस मुद्दे को संसद के शीतकालीन सत्र में उठाने का आश्वासन दिया है।
नैतिकता की दुहाई देकर सीएनईबी के रिपोर्टरों को डाँटने-हड़काने वाले ये शिक्षक कलई खुलने पर किस तरह रंग बदलते हैं, इसकी कुछ झलक भी इस छठी कड़ी में पेश की जायेगी। पूर्वांचल वि.वि.जौनपुर,भागलपुर वि.वि.भागलपुर के पूर्व कुलपति,व इस समय म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में ओ.एस.डी.प्रेम चंद पातंजलि से लेकर अनिल के. राय अंकित के, मैटर चुराकर किताबें लिखने के कारनामे दिखाने के बाद अब सीएनईबी पर इसी संस्थान के कुछ और वरिष्ठ और वर्तमान शिक्षकों के कारनामे दिखाये जायेंगे। पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर रमेश चंद्र सारस्वत के सामने सीएनईबी की टीम ने जब प्रोफेसरो,रीडरों द्वारा नकलकरके बहुत सी पुस्तकें लिखने का प्रमाण दिखाया तो उन्होंने माथा पकड़ लिया। प्रस्तुत किये गये प्रमाणों को देखकर प्रोफ़ेसर सारस्वत ने कहा कि यह तो कापी राइट उल्लंघन से भी बड़ा और गंभीर मामला है । लेकिन किस तरह की कार्रवाई करेंगे कुलपति, इसका साफ़ संकेत देने से अभी उन्होंने इनकार किया है।
इसके बाद वाराणसी के कुछ नामी-गिरामी संस्थानों के वरिष्ठ शिक्षकों द्वारा की गयी चोरी और उसपर उनके कुलपति की टिप्पणी भी दिखाई जायेगी। दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षकों के कारनामे भी जल्द ही चैनल पर दिखायें जायेंगे।

Friday, November 20, 2009

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तके छापने और सप्लाई करने वालो को क्यों नहीं काली सूची में डाल रहे कुलपति


-सत्ताचक्र गपशप-
पुरानी दिल्ली का दरिया गंज इलाका पुस्तक पब्लिशरों व सप्लायरों की बहुत बड़ी मंडी है। इस मंडी में अब नकल करके लिखी प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों आदि की पुस्तकें खुब बिक रही हैं।यू.जी.सी.अफसरो,विश्विद्यालयों के कुलपतियों,विभागाध्यक्षों,पुस्तकालयाध्यक्षो व पुस्तक पब्लिशरों,सप्लायरो का बहुत बड़ा रैकेट बन गया है ।जिसके माध्यम से, विश्वविद्यालयों में नकल करके लिखी पुस्तकें खुब सप्लाई हो रही हैं।ऐसी पुस्तकों का हर साल 300 से 500 करोड़ रूपये का कारोबार हो रहा है। कोई विश्वविद्यालय यदि एक करोड़ रूपये की पुस्तकें खरीद रहा है तो उसमें लगभग 40 से 50 लाख रूपये चढ़ावा के तौर पर बंटता है।ज्यादेतर ऐसी पुस्तकों की खरीद हो रही है जो कई खण्डो वाली इन्साइक्लोपीडिया हैं और उनके दाम 5000 रूपये से लेकर 30 हजार तक हैं। प्रोफेसरो आदि ने ज्यादेतर इन्साइक्लोपीडिया नकल करके लिखी हैं।इसी तरह अन्य पुस्तकें भी नकल करके लिखी गई हैं और उनके दाम बहुत मंहगा रखकर पुस्तकालयों में खरीदवाने और माल कमाने का धंधा खूब परवान चढ़ा हुआ है। इसकाले धंधे का तंत्र कितना मजबूत है इसका प्रमाण 13 नवम्बर 09 को दिल्ली के करनाल रोड पर हुई एक पब्लिशर,सप्लायर के यहां शादी में देखने को मिला। वह पब्लिशर,सप्लायर जिन विश्वविद्यालयों में पुस्तकें सप्लाई करता है,जिन विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररो की नकल करके लिखी पुस्तकें छापता,बेचता है,जिन विभागाध्यक्षो के जर्नल मुफ्त में छापता है ,उनमें से ज्यादेतर उस सप्लायर के यहां शादी में गये थे।कई विश्वविद्यालयों के कुलपति,प्रोफेसर,रीडर ,लेक्चरर,विभागाध्यक्ष,लाइब्रेरियन,पूर्वलाइब्रेरियन,लेखा क्लर्क,कुलपति के पी.ए.,लाइब्रेरी सहायक आदि तक गये थे।इन सबसे पूछा जाना चाहिए कि इन सबकी उस सप्लायर से कौन सी रिश्तेदारी है। इस एक प्रमाण से साबित होता है कि रैकेट कितना मजबूत है और इनका आपसी नेटर्क कितना तगड़ा है। यही वजह है कि जब भी किसी प्रोफेसर,रीडर व लेक्चरर के नकल करके किताबें लिखने का कारनामा उजागर हो रहा है तो सब मिलकर उसे दबाने और नकलची प्रोफेसर,उसकी पुस्तकें छापने,सप्लाई करने वाले को बचाने में लग जा रहे हैं। उनके खिलाफ कम्प्लेन को दबाकर चोर को बचाने के लिए पूरा जोर लगा दे रहे हैं। जिसका फिलहाल उदाहरण नागपुर के पास का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,दिल्ली का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,पूर्वी उ.प्र. के दो वि.वि.हैं।यही वजह है कि नकलची प्रोफेसरो की पुस्तकें छापने और सप्लाई करने वालो को काली सूची में नहीं डाल रहे कुलपति ।

नकलची टीचर उनकी पुस्तकों के प्रकाशक, लगा रहे तरह – तरह का जुगाड़ : एक नकलची पूर्व कुलपति और उसके नकलची चेलों,नकलची मित्र प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों की पुस्तकें छापने और उनके सहयोग से विश्वविद्यालयों में सप्लाई करने वाली कई कम्पनियों के एक मालिक की मंडली पहले तो बहुत लंबी-लंबी हांक रही थी । लेकिन जब उनके इस नकल के किताबों को लिखने,छापने और उनके सप्लाई के कारनामों का खुलासा कुछ अखबारों और CNEB न्यूज चैनल पर होने लगा तो वह और उनके इस काले धंधे के यार कुलपति,प्रोफेसर ,उनके संरक्षक कुछ पालिटिशियन ,कुछ विज्ञापन एजेंसी वाले, खबर रूकवाने के लिए तरह –तरह का उपक्रम कर रहे हैं।साम-दाम-दंड-भेद हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। किस –किस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं,किससे-किससे क्या कहलवा रहे हैं ,पढ़ने के लिए करें इंतजार।

Wednesday, November 18, 2009

नकलचेपी अंकित ने महानकलचेपी पातंजलि को समर्पित की नकलकर लिखी पुस्तक


स्वदेश इंदौर में छपी यह खबर पहले पन्ने की बाटम स्टोरी थी

म.अं.वि.वि.वर्धा के नकलचीगुरू अंकित का एक और काला कारनामा
नकल करके लिखी इस पुस्तक को प्रश्रयदाता पतंजलि को समर्पित किया है

-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली।महात्मागांधी जब स्कूल में पढ़ते थे तो एकबार उनका अध्यापक इमला बोलकर लिखारहा था। जिसमें एक शब्द केतली आया।गांधी उसे कतली लिख रहे थे।जिस पर अध्यापक ने गांधी को धीरे से इशारा किया कि तुम केतली गलत लिख रहे हो,बगल के लड़के में से देख कर सही लिख लो। लेकिन गांधी ने कहा-आप ने ही तो कहा है नकल नहीं करना चाहिए।यह चोरी है।मैं नकल नहीं करूंगा।जो आता है वही लिखूंगा। उसी गांधी की कर्मभूमि वर्धा में उसी गांधी के नाम पर बने अंतरराष्ट्रीय वि.वि. में नकल करके अंग्रेजी और हिन्दी की लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तके लिखने वाले महाचोर अनिल कुमार राय अंकित को पत्रकारिता का प्रोफेसर व हेड बना दिया गया। पुलिस से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने यह कराया-किया।उस अनिल कुमार राय अंकित(Dr. ANIL K. RAI ANKIT) के चौर्य प्रवीणता का पेश है एक और सबूत।नकल करके लिखी इस पुस्तक का नाम है-
COMMUNICATION
PRINCIPLES AND PRACTICE

लेखक- डा.अनिल के. राय अंकित
इस पुस्तक का भी पब्लिशर व डिस्ट्रीब्यूटर है-
SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS
20,Ansari Road,Daryaganj, New Delhi-110002

यह पुस्तक 2006 में प्रकाशित हुई है। 231 पेज की इस पुस्तक का मूल्य रू.700 है।अनिल कुमार राय अंकित ने इस पुस्तक को प्रश्रयदाता पूर्व कुलपति प्रेम चंद पतंजलि को समर्पित किया है। पुस्तक में कुल आठ अध्याय हैं।
अध्याय-1

पेज नं 1 से 6 :

अंकित ने अपनी इस पुस्तक का 1 से 6 पेज University of California San Francisco, की वेवसाइट http://ucsfhr.ucsf.edu/index.php/pubs/hrguidearticle/chapter-13-communication/ पर उपलब्ध सामग्री गाइड टू मैनेजिंग ह्यूमन रिसोर्सेज के अध्याय 13 कम्यूनिकेशन से चुराया है।इसकी हेडिंग कम्यूनिकेशन को बदलकर कम्यूनिकेशन कान्सेप्ट कर दिया है।
पेज नं 6 से 22 :
पेज नं 6 से 22 की सामग्री वेवसाइट http://www.gettoefl.com/download/study_skills/study_skills_sample.htm%206-22 पर अंग्रेजी की तैयारी के लिए बनाये पाठ्यसामग्री के Chapter 7: Expanding your mind through the power of words से कापी किया है।अंकित ने इसअध्याय के शुरूआत के 5 शब्द को हटा दिया है और कई जगह पर हेडिंग बदलकर बाकी मैटर हूबहू उतार लिया है।
पेज नं 22 से40
पेज नं 22 से 40 तक की सामग्री वेवसाइट http://www.statemaster.com/encyclopedia/Part-of-speech पर उपलब्ध इन्साइक्लोपीडिया के पार्ट आफ स्पीच से लिया है।कुछ जगह पर हेडिंग हटा दिया है।जैसे एडजेक्टिव के बारे में लिखा है और उसकी हेडिंग हटा दिया है।
पेज नं40 से 46
पेज नं40 से 46की सामग्री वेवसाइट http://www.spiritus-temporis.com/ के अध्याय grammatical-mood से चुराया है।केवल शीर्षक को हटा दिया है।
पेज नं 52 से 6 4
पेज नं 52 से 64 की सामग्री वेवसाइट http://www.en.wikipedia.org/ पर उपल्ब्ध सामग्री के अध्याय Writing better articles से चुराया है। अनिल कुमार राय अंकित ने अपनी पुस्तक में इसका शीर्षक बदलकर STRUCTURE OF THE ARTICLE कर दिया है।
अध्याय-2
पेज नं 69 से 115
अर्लीइन्टरवेंसन प्रोग्राम डिपार्टमेंट आफ हेल्थ न्यूयार्क ने विभिन्न क्षेत्र के 14 विशेषज्ञो से एक रिपोर्ट- Practice Guideline: Report of the Recommendations, Communication Disorders, Assessment and Intervention for Young Children तैयार कराई थी। अंकित ने इस रिपोर्ट के अध्याय दो Communication disorder in young children और अध्याय चार Intervention Methods को मिलाकर अपनी पुस्तक COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE का पूरा अध्याय 2 पेज 69 से 115 बना लिया है।रिपोर्ट के अध्याय 4 के शुरू के 3 पैरा को हटाकर अपने अध्याय 2 की शुरूआत की है।
अध्याय-3
पेज नं116 से 134
अंकित ने अपने किताब की पेज नं116 से 134 तक की सामग्री USA की सरकारी वेवसाइट http://www.au.af.mil/ पर उपल्ब्ध सामग्री के अध्याय 3 का पूरा 26 पेज कापी करके लगाया है।इसे अपनी पुस्तक का अध्याय 3 बना लिया है।इसके पहले पैरा व दूसरे पैरा की पहली लाइन हटा दी है। इसी तरह interviewing goal हेडिंग की जगह अपनी पुस्तक में goals of interviewing कर दिया है।

अध्याय-4
पेज नं 135 से 154 :
वाशिंगटन डी.सी.AAAS,प्रोजेक्ट 2061 की वेवसाइट WWW.project.org पर उपलब्ध साइंस फार आल अमेरिकन्स पुस्तक के अध्याय-11 COMMON THEMS को अपनी पुस्तक का अध्याय 4 इसी शीर्षक से बना लिया है। पहली लाइन का एक शब्द SOME हटा दिया है।दूसरे पैरा के शुरू के तीन शब्द को भी हटा दिया है।
अध्याय-5
पेज नं 155-164
वाशिंगटन डी.सी.AAAS,प्रोजेक्ट 2061 की वेवसाइट WWW.project.org पर उपलब्ध साइंस फार आल अमेरिकन्स पुस्तक के अध्याय-12 , Habits of Mind को अपनी पुस्तक का अध्याय -5, Role of Mind and Habits बनाया है।इस अध्याय के शुरू के दो शब्द को हटाया है।हेडिंग को इधर-उधर कर दिया है।हेडिंग कुछ मैटर कुछ हो गया है।
अध्याय-6
पेज 169 से 198
अंकित ने अपनी पुस्तक के पेज नं 169 से 178 की सामग्री Tom Hanlon की लिखी पुस्तक Absolute Beginner's Guide to Coaching Youth Baseball से उतार लिया है।
उसने पेज नं 178 से 198 की सामग्री
Guide to health Informatics
2nd Edition
लेखक-Enrico Coiera,
के Chapter 25 - Clinical Decision Support Systems को हूबहू उतारकर पैराग्राफ इधर-उधर करके छाप लिया है।
अध्याय-7
पेज नं 198 से 208
नकलची अनिल कुमार राय अंकित ने एक पुस्तक Developing Research & Communication Skills
Guidelines for Information Literacy in the Curriculum की समरी को हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE का अध्याय -7 बना लिया है। यह पुस्तक मीडल स्टेट आफ हायर एजूकेशन ने प्रकाशित की थी। उसने पुस्तक के प्रचार –प्रसार के लिए समरी जारी की थी। नकलची अंकित ने उसको भी नही छोड़ा।उसके शुरू के केवल दो पैरा को छोड़कर बाकी सामग्री कापीकर छाप लिया है।
अध्याय-8
पेज 209 से 213
अंकित ने अपनी पुस्तक के पेज 209 से 213 तक का मैटर ,लेखक- David G. Jensen की पुस्तक Street Savvy ScienceTM Leadership ,http://www.todroberts.com/
के Chapter 5: Communication Skills for Scientist Leaders (Part Two) से नकल कर लिखा है।
उसने United Nations Population Fund की वेवसाइट http://www.unfpa.org/public/ पर उपल्ब्ध
Information, Education and Communication (IEC) Programmes के फील्ड मैनुअल को ही हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक का पेज नं 220 से 231 बना लिया है।
उसने अपनी इस पुस्तक में भी कोई संदर्भ सूची नहीं दिया है।
अंकित ने अपनी इस पुस्तक को वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. ,जौनपुर के पूर्व कुलपति पी.सी.पतंजलि को समर्पित किया है। पतंजलि जब दिल्ली के अंबेडकर कालेज में हिन्दी के हेड थे तो वहां अंकित हिन्दी का अस्थाई अध्यापक था।पतंजलि जब जौनपुर में कुलपति बने तो अनिल कुमार राय अंकित को वहां पहले कान्ट्रेक्ट पर ले जाकर पत्रकारिता का लेक्चरर व हेड बनाया ,फिर जब स्थाई जगह निकली तो इसे परमानेन्ट कर दिया। तब अंकित के पास पत्रकारिता की कोई डिग्री नही थी। बाद में वहां पढ़ाते हुए ही इसने रीवां से पत्रकारिता का पत्राचार कोर्स किया,फिर सागर वि.वि. से पत्राचार से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री लिया। इस समय बहरामपुर में एस. के. बेहरा के अंडर में पत्रकारिता में पी.एच.डी. कर रहा है। इस संवाददाता ने पी.सी.पतंजलि से पूछा - अनिल कुमार राय अंकित ने एक किताब लिखी है COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE , यह पूरी पुस्तक विदेशी लेखको के पुस्तको,शोधपत्रो से नकल करके लिखी गयी है । नकल करके लिखी पुस्तक आपको समर्पित की गयी है,इसपर आपका क्या कहना है ?पतंजलि का जवाब था-हो सकता है उनके विभाग से फोन आया हो कहा गया हो पुस्तक आपको समर्पित की जा रही है। सवाल-अंकित ने यह पूरी पुस्तक नकल करके लिखी है , क्या उनके विरूद्ध कापी राइट एक्ट के तहत कार्रवाई होनी चाहिए?जवाब- मैंने तो देखा नही है कि अंकित ने कहां से मैटर चुराकर यह पुस्तक लिखी है।सवाल-क्या हिन्दी वि.वि. वर्धा के कुलपति को नकल करके एक दर्जन पुस्तकें लिखकर प्रोफेसर बन गये अंकित के खिलाफ कापी राइट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराना चाहिए ?मैने तो देखा नहीं कि अंकित ने मैटर कहां से चुराया है।सवाल-यदि कोई भी व्यक्ति दूसरे लेखको की पुस्तको से चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अपने नाम से पुस्तक छपवा लेता है तो उसके विरूद्ध कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?जबाब-मैं जब देखूंगा तब कुछ कहूंगा।सवाल- अंकित को आप जौनपुर ले गये,लेक्चरर व हेड बनाये।उसके साथ मिलकर एक पुस्तक – संचार क्रांति व विश्व जन माध्यम भी आपने लिखा है(बाद में अनिल अंकित ने इस किताब से भी कुछ मैटर लगभग हूबहू उतार कर अपनी पुस्तक संचार के सात सोपान का कुछ पेज बनाया है) । इस सबसे तो यही लगता है कि अंकित के काले कारनामो में आपका भी जाने-अनजाने योगदान रहा है, और आज इस महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. बर्धा के दिल्ली सेंटर का ओ.एस.डी. होते हुए उसके काले कारनामो को तोपने –ढ़पने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं । जबाब- (चुप्पी )।#

















क्या म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के कुलपति वी.एन.राय सी.बी.आई. जांच से बचने की जुगत लगा रहे हैं?

सत्ताचक्र प्रतिक्रिया
B N said...
Aaj hi university me meri kisi senior purane officer se charcha hui. CBI enquiry se bachne ke liye VC apne Registrar ke sath desh ke kisi khash vyakti aur state minister of HRD se milne AMRAVATI gaye the. AMRAVATHI GHARANA se Registrar ki nazdikiyan hai. Vo abhi VC and AMRAVATHI GHARANA ke bich dalal ka kaam kar rehe hai. Dono abhi setting me dilli gaye hain.
November 17, 2009 8:07 PM

Tuesday, November 17, 2009

किताबें गायब करा रहे हैं नकलचेपी प्रोफेसर

सत्ताचक्र गपशप
किताबें गायब करा रहे हैं नकलची प्रोफेसर(चोर गुरू) : देशी –विदेशी लेखको की पुस्तको ,शोध-पत्रो से मैटर हूबहू उतारकर अपने नाम दो –चार से लेकर कई दर्जन तक पुस्तके छपवा लेने वाले चोर प्रोफेसरो,रीडरो व लेक्चररो ने पुस्तके लाइब्रेरी से गायब करानी शुरू कर दी हैं। CNEB न्यूज चैनल पर नाम आने या आगे के एपीसोड में नाम आने की संभावना से भयभीत ये चोर गुरू लोग अपनी लिखी किताब गायब कराकर सोचते हैं कि बच जायेंगे। पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर ,महात्मागांधी काशीविद्यापीठ वाराणसी,जामिया मिलिया दिल्ली,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के कई चोर गुरूओं ने लाइब्रेरी से अपनी लिखी पुस्तकें छात्रो के नाम इसु कराकर पुस्तक खो जाने की बात कह उसका पैसा जमा कराने लगे हैं। पब्लिशरों से उसको आगे नही छापने के लिए कह दिये हैं।जो छपी कापी बची हैं उन्हे डम्प करने को कह रहे हैं।चोर गुरूओं की किताबें छापने ,उनके सहयोग से अति मंहगा दाम रख विश्वविद्यालयों,महाविद्यालयों में 50 प्रतिशत तक चढ़ावा चढ़ाकर खपाने का प्रकाशको का काला धंधा जोरो पर है। इस काले धंधे की पहली बार इतने बड़े स्तर पर खुलासे से इन सब चोर गुरूओं और चोर प्रकाशकों की धुकधुकी बढ़ गई है।क्योंकि इन शिक्षकों ,प्रकाशकों का असली चेहरा सबके सामने आने लगा है।
काशी विद्यापीठ – यहां के एक चोर गुरू प्रोफेसर ने एक पुराने हिन्दी अखबार के प्रकाशन संस्थान से अपनी पत्रकारिता की पुस्तक छपवाया था।यह किताब उसने नकल करके लिखी है। जब उसको पता चला कि एक चैनल उसके नकल करके लिखी पुस्तको के बारे में व्यौरा जुटा रहा है तो उसने उस प्रकाशन संस्थान में बची अपनी पुस्तक की 20 प्रति खरीद कर घर पर डंप कर दिया। हिन्दी से एम.ए. किये इस प्रोफेसर ने इलेक्ट्रानिक मीडिया पर भी पुस्तक लिखा है। उसकी कुछ प्रति काशी विद्यापीठ के केन्द्रीय लाइब्रेरी में थी। जिसमें से उसने कुछ प्रति कहीं गायब करा दिया ,बची कुछ प्रति अपने चहेते छात्रो के नाम इसु कराकर उसमें से कुछ से पुस्तक का पैसा जमा करा दिया। वह प्रोफेसर खुद भी पुस्तकालय प्रभारी रह चुका है और उस दौरान 300 रूपये की पुस्तकें 1300 रूपये में खरीदवाया था। उसके इस घपले पर जांच बैठी थी । जिसने जांच में घपला सही पाया था ।चर्चा है कि उस प्रोफेसर ने वह जांच रिपोर्ट ही गायब करा दिया है। और लखनऊ तक जुगाड़ लगाकर अपने खिलाफ कार्रवाई वाली फाइल दबवा दिया है। इस विश्वविद्यालय में ऐसे कई और चोर गुरू हैं ।जिनके बारे में कुछ दिन बाद।

Saturday, November 14, 2009

पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का प्रशासनिक अमला सप्लायर के यहां शादी में ?

-सत्ताचक्र संवाददाता
नईदिल्ली। क्या वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय का लगभग पूरा प्रशासनिक अमला, नकलची प्रोफेसरो की पुस्तकों को छापकर कुलपतियों,प्रोफेसरो,विभागाध्यक्षो,लाइब्रेरियनो व वित्तीय अधिकारियों ,कर्मचारियों के सहयोग से विश्वविद्यालयों ,विभागों की लाइब्रेरियों में सप्लाई करने वाले के यहां, शादी में गया था ? पूर्वांचल विश्वविद्यालय में और दिल्ली के पुस्तक प्रकाशको व सप्लायरों में इसकी खूब चर्चा है। shree publication और university publication प्रशांत जैन के परिवार का है। दरियागंज ,नई दिल्ली में इसका कार्यालय है। इस जैन साहब के परिवार का indica नामक एक पुस्तको की सप्लाई की फर्म है। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर में यह फर्म सालाना लगभग 50 लाख से एक करोड़ रूपये तक की पुस्तको की सप्लाई करती है। कुलपति रहने के दौरान प्रेम चंद पातंजलि ने इस फर्म के मालिकानो को पूर्वांचल विश्वविद्यालय में बडा़ सप्लाई दिलाने का काम शुरू कराया । पातंजलि दिल्ली से गये थे। वो जिसको –जिसको पूर्वांचल में ले जाकर भरे उनमें से ज्यादेतर पर आज उस विश्वविद्यालय पर धब्बा लगाने का आरोप लग रहा है। हालत यह हो गयी है कि पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर पर नकलची शिक्षको की जननी का आरोप लगने लगा है। पातंजलि पर उनका जनक होने का आरोप लग रहा है। पातंजलि ही वह जड़ हैं जो इंडिका,श्री पब्लिकेशन,यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन का नाम अपने लाये व नियुक्त किये शिक्षको के मन -मानस में डाले। पातंजलि ने खुद इस पब्लिशर के यहां एक साल में 14 किताबें अपने नाम की छपवाईं। जिनमें से ज्यादेतर में मैटर देशी-विदेशी किताबों आदि से लगभग हूबहू उतार कर छापी गय़ी हैं। अपने आका व पथदर्शक के बताये- दिखाये रास्ते पर चलते हुए डा.अनिल के.राय अंकित, प्रोफेसर रामजी लाल, डा.एस.के.सिन्हा, व 4 अन्य लेक्चररों ने नकल करके कई पुस्तकें उसी प्रशांत जैन की कम्पनी में अपने नाम से छपवा कर ,उसका दाम 600 से सेकर 5000 रूपये रखवाकर पुस्तकालयों में सप्लाई का धंधा शुरू करा दिया। इस पब्लिशर के यहां दरिया गंज कार्यालय से पुस्तक 60 प्रतिशत छूट पर लिया जा सकता है। जिसका प्रमाण है। जबकि यही पब्लिशर विश्वविद्यालयों में मात्र 10 से 20 प्रतिशत की छूट पर पुस्तकें सप्लाई करता है। यानी बीच की 40 से 50 प्रतिशत रकम विश्वविद्यालयों के कुलपतियों,प्रोफेसरो,विभागाध्यक्षो,अफसरो,लाइब्रेरियनो ,लेखा क्लर्को आदि के बीच चढ़ावा चढ़ जाता होगा । पूर्वांचल विश्वविद्यालय में बीते कुछ साल में पुस्तको की खरीद का रिकार्ड देखा जाय तो सब कुछ साफ हो जायेगा। जैन की कम्पनी ने वहां खूब पुस्तकें सप्लाई की हैं। श्रीपब्लिकेशन,अनमोल पब्लिकेशन में छपी कई विषयों की तमाम महंगी इन्साइक्लोपीडिया खरीदी गईं हैं ,जिनमें कई तो नकल करके लिखी गईं हैं। कहा जा रहा है कि मोटे कमीशन के चक्कर में इन्हे खरीदा गया। क्योंकि इनकी खरीद के समय से अब तक यदि इनकी इन्ट्री देखी जाय तो पता चलेगा कि इनमें बहुत को तो कोई आज तक इसु ही नहीं कराया है ,नहीं पलटा है। ये मंहगी पुस्तकें केवल लाइब्रेरी के बजट को खपाने और ऊपरी के चक्कर में खरीदी गयीं हैं।बताया जाता है कि इस विश्वविद्यालय में इस साल अभी तक 40 लाख रूपये की पुस्तकें खरीदी जा चुकी हैं।जिसमें ज्यादेतर की सप्लाई प्रशांत जैन की परिवारी कंपनी ने की है। वह सप्लायर फर्म और उसकी सप्लाई की हुई श्रीपब्लिकेशन,अनमोल पब्लिकेशन आदि की ज्यादेतर पुस्तकें नकल करके लिखी गईं हैं। इस संबंध में बाकायदा लिखित शिकायत और आर.टी.आई पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति के यहां डेढ़ माह पहले गया है। अखबार व टी.वी. पर भी बहुत कुछ आ चुका है ।उसके बावजूद यदि पूर्वांचल विश्वविद्यालय के ज्यादेतर महानुभाव उस आरोपी पुस्तक पब्लिशर व सप्लायर के यहां शादी में दिल्ली आये थे तो यह एक बड़े रैकेट का संकेत करता है। कहा जा रहा है कि विश्वविद्यालय के कुलपति आर.सी सारस्वत ,उनके निजी सचिव के. एस. तोमर 11 -11-09 को दिल्ली के लिए उड़े। तोमर 14 की सुबह दिल्ली के नजदीक अपने घर चले गये। लेक्चरर व हेड एस .के. सिन्हा 11-11-09 को ट्रेन से दिल्ली के लिए चले। विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी के कैटालागर व लाइब्रेरी प्रभारी विद्युत कुमार मल्ल ,उनकी पत्नी , पुस्तकालय सहायक अवधेश प्रताप 12-11-09 को वाराणसी से ट्रेन से दिल्ली के लिए चले।इनका आरक्षण नम्बर भी जानकारी में है। पूर्व कुलपति पी.सी.पातंजलि,पूर्व कुलपति नरेश चंद्र गौतम के स्टेनो रहे और इस समय वित्त अधिकारी ओमप्रकाश पिपिल के स्टेनो सुबोध पांडेय,, विश्वविद्यालय के एकाउंट विभाग में एकाउंटेंट जैन भी दिल्ली पहुंचे।विश्वविद्यालय के कुछ और भी महानुभाव पधारे थे। इस बारे में बात करने पर कुछ ने सच-सच बता दिया ,यह भी बता दिया कि और कौन-कौन लोग आये हैं ,कहां रूके हैं। जबकि कुछ तो साफ मुकर गये कि सप्लायर की शादी में नही आये हैं। कहा जा रहा है कि प्रशांत जैन के यहां काम करने वाला और पूर्वांचल विश्वविद्यालय में लगातार आकर आर्डर का कागज ले जाने वाला योगेश नामक व्यक्ति ने कुछ का टिकट आदि कराया था। शादी जी.टी. करनाल रोड पर YADU GREEN के वी.आई.पी लान में 13-11-09 को शाम 7 बजे थी। यदि सप्लायर और पूर्वांचल विश्वविद्यालय के महानुभावों का यह संबंध है तो नकल करके किताब लिखने वाले इस विश्वविद्यालय के शिक्षको और उन किताबो को छापकर सप्लाई करने वाले इस प्रकाशक के खिलाफ कुलपति क्या कार्रवाई करेंगे ? क्या कुलपति सारस्वत नकल करके किताब अपने नाम छपवा लेने वाले शिक्षकों को लेक्चरर से रीडर बनाने के लिए जो साक्षात्कार कराये थे और उसमें सिन्हा से लगायत अन्य सबको रीडर बनाने की मुहर लगा दी गई है,उसे निरस्त करेंगें ? इनके खिलाफ नकल करके किताब लिखने के मामले में कड़ी कार्रवाई करेंगे ? प्रशांत जैन व उनकी पारिवारी कम्पनी द्वारा प्रकाशित और सप्लाई की गई पुस्तको का भुगतान रोकेंगे ? उन फर्म / कम्पनी को ब्लैकलिस्टेड करेंगे ?

Friday, November 13, 2009

CNEB चैनल पर पूर्व कुलपति प्रेमचंद पातंजलि के नकल करके किताबें लिखने के कारनामों का होगा खुलासा


13 नवंबर, नयी दिल्ली। विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ-कनिष्ठ शिक्षकों द्वारा बेशर्मी से मैटर चुराकर अपने नाम से दर्जन के हिसाब से किताब लिखने के हाल के वर्षों में उभरे चलन का भण्डाफ़ोड़ करने वाला सीएनईबी समाचार चैनल पर दिखाया जा रहा कार्यक्रम चोर गुरू अपना असर कई प्रदेशों में दर्ज़ करने लगा है। आगामी रविवार 15 नवंबर को रात 8 बजे से 9 बजे के स्लाट में दिखाये जाने वाले कार्यक्रम में दो विश्वविद्यालयों (वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. ,जौनपुर और भागलपुर वि.वि) के कुलपति रह चुके और इस समय महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के दिल्ली सेंटर में 60 हजार रूपये महीने पर ओ.एस.डी., डॉ. प्रेम चंद पातंजलि के ,नकल करके किताबें लिखने के कारनामों का खुलासा किया जायेगा।
उल्लेखनीय है कि कांग्रेस, भाजपा, सीपीआई और एनसीपी के अनेक वरिष्ठ सांसदों और एक पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने भी चोरी के इस धंधे और इसमें छुटभइये प्रकाशकों की मिलीभगत से हर वर्ष हो रही अरबों रुपये की धाँधली के मुद्दे को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में उठाने का आश्वासन दिया है।
कार्यक्रम का असर अब अनेक कुलपतियों पर भी पड़ने लगा है। रीवा, मध्य प्रदेश के अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय के कुलपति शिव नारायण यादव ने चैनल से कहा है कि वे अपने यहाँ के स्टडी मैटेरियल की अनिल अंकित द्वारा की गयी अंधाधुंध चोरी के खिलाफ़ अदालत का दरवाज़ा खटखटाने वाले हैं। उल्लेखनीय है कि अनिल अंकित इस समय वर्धा के अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष हैं। जौनपुर के वीरबहादुर सिंह विवि के कुलपति आर. एस. सारस्वत ने भी अपने यहाँ के दोषी शिक्षकों के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई करने के संकेत दिये हैं। इंदिरा गाँधी मुक्त विवि के कुलपति वी एन राजशेखरन पिल्लई ने अपने यहाँ के स्टडी मैटेरियल की बेहिसाब चोरी पर कड़ाई से रोक लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की बात सीएनईबी की टीम से कही है। वाराणसी में जहाँ महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रोफ़ेसर अवध राम ने अपने यहाँ के दोषी शिक्षकों के खिलाफ़ कार्रवाई करने की बात स्वीकारी, वहीं काशी हिंदू विवि के कुलपति प्रोफ़ेसर डी पी सिंह ने इस मुहिम को व्यापक समाज के बीच ले जाने की ज़रूरत पर बल दिया है।
कार्यक्रम की अब तक दिखायी गयी चार कड़ियों में दिल्ली के जामिया मिलिया, वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, झाँसी के बुंदेलखण्ड वि.वि. समेत दिल्ली वि.वि. से जुड़े रहे वरिष्ठ शिक्षकों के चोरी के सच को उजागर किया गया है और प्रोफ़ेसर बिपिन चंद्रा, प्रोफ़ेसर यशपाल, प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन सरीखे देश के शीर्षस्थ अकेडमीशियनों की कड़ी टिप्पणियाँ प्रस्तुत की गयी हैं। आगे प्रसारित होने वाली कड़ियों में काशी विद्यापीठ, दिल्ली विश्वविद्यालय, पूर्वांचल विवि, इंदिरा गाँधी मुक्त विवि, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विवि समेत अनेक अन्य विश्वविद्यालयों में फल-फूल रहे चोरी के इस धंधे का अंदरूनी सच उजागर किया जायेगा।

Wednesday, November 11, 2009

कुलपति वी.एन.राय, ओ.एस.डी व पूर्व कुलपति पी.सी पातंजलि व नकलची प्रो.अनिल राय के खिलाफ सी.बी.आई. जांच की मांग


यह खबर "स्वदेश" इंदौर में 6-11-09 को छपी है-

-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। दिल्ली की एक सामाजिक संस्था संपूर्ण परिवर्तन ने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री और सचिव उच्चशिक्षा को सप्रमाण पत्र देकर ,म.गां.अं.हि.वि.वि. वर्धा के कुलपति वी.एन.राय, ओ.एस.डी व पूर्व कुलपति पी.सी पातंजलि व नकलची प्रो.अनिल राय के खिलाफ सी.बी.आई. जांच की मांग की है। 4 नवम्बर 2009 को रीसीव कराये इस पत्र का मजमून निम्न है-
विषय- देशी-विदेशी लेखको की पुस्तको आदि से नकल करके लगभग एक दर्जन किताब अपने नाम छपवा लेने वाले डा.अनिल के. राय अंकित (महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा, महाराष्ट्र में पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर व हेड) और उनको नियुक्त करने व संरक्षण देने वाले वाले कुलपति विभूति नारायण राय के खिलाफ कार्रवाई की मांग।

महोदय,
देशी-विदेशी लेखको की पुस्तको, शोध-पत्रो,विश्वविद्यालयो के पाठ्यसामग्री से नकल करके लगभग एक दर्जन किताब अपने नाम छपवालेने वाले डा.अनिल के. राय अंकित को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा, महाराष्ट्र में पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर नियुक्त करके हेड बना दिया गया है। अनिल के. राय अंकित के नकल के कारनामे सबूत सहित कई अखबार में छपा है। वि.वि. के कुलपति अपने जाति के उस प्रोफेसर के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय उसे बचाने में लगे हुए हैं,क्योंकि उसकी नियुक्ति उन्होने ही कराई है।
अनिल के.राय अंकित ने अन्य पुस्तको से सामग्री लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम जो लगभग एक दर्जन पुस्तके छपवा ली हैं उनमें से हिन्दी में लिखी एक पुस्तक संचार के सात सोपान और अग्रेजी की एक पुस्तक Communication Management: Listening Versus Hearing के कुछ पेज के नकल के सबूत संलग्न हैं-
1- संचार के सात सोपान के अध्याय-7,फिल्मो की दुनिया के पेज नं 461 से 519 में ,अवधेश प्रताप सिंह वि.वि.,रीवा के दूरवर्ती शिक्षा केन्द्र की अध्ययन सामग्री बी.जे.एम.सी.-600,प्रेस विधि,संविधान तथा संचार माध्यम तथा करेन्ट अफेयर्स के पेज नं 108 से 166 की सामग्री को लगभग हूबहू उतार लिया है। जिसमें से संचार के सात सोपान का पेज नं462 से 465 तथा रीवा के दूरवर्ती शिक्षा केन्द्र की अध्ययन सामग्री बी.जे.एम.सी.-600,प्रेस विधि,संविधान तथा संचार माध्यम तथा करेन्ट अफेयर्स के प्रश्न –पत्र -400 के पेज नं 108 से111 संलग्न है।
2- Communication Management: Listening Versus Hearing पुस्तक का पूरा चैप्टर -5, सुसान एम.मिलर के शोध- पत्र को हूबहू उतारकर बना लिया है। इस पुस्तक का पेज 230 से235 और सुसान एम.मिलर के शोध- पत्र का कवर पेज सहित 5 पेज संलग्न है।
3- कुलपति विभूति नारायण राय ने पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर(उ.प्र.) के पूर्व
कुलपति प्रेमचंद पातंजलि को अपने विश्वविद्यालय में मोटे पगार पर ओ.एस.डी. नियुक्त किया है। पातंजलि ने भी नकल करके पुस्तकें लिखी हैं। उनकी लिखी पुस्तक DEVELOPMENT OF ADULT EDUCATION IN INDIA इसका प्रमाण है।
आपसे निवेदन है कि उक्त नकलची प्रोफेसरों व उनके संरक्षक विभूति नारायण को सभी प्रशासनिक पदो से हटाकर, पूरे मामले की सीबीआई.से जांच करा कर,उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की कृपा करें ।

Thursday, November 5, 2009

कुलपति वी.एन.राय का चहेता नकलची प्रोफेसर अनिल कुमार राय ने शोध–पत्र भी नकल करके लिखा












यह खबर स्वदेश- इंदौर में दिनांक 4-11-09 के पहले पेज पर छपी है।










कुलपति वी.एन.राय का चहेता नकलची प्रोफेसर अनिल कुमार राय ने शोध–पत्र भी नकल करके लिखा
-कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने अपने विरादर जिस नकलची अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के.राय अंकित को विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग का प्रोफेसर और हेड नियुक्त किया, कराया है,और उसके नकल के कारनामे अखबार व टी.वी. में उजागर होने के बाद भी उसे लगातार बचा रहे हैं।खबर लिखनेवाले पत्रकारो और छापने वाले अखबरो को ब्लैकमेलर कह रहे हैं। उस विभूति नारायण राय के चहेते नकलची अनिल के.राय अंकित ने देशी ,विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,वैज्ञानिको आदि के पुस्तको,शोध-पत्रो से सामग्री हूबहू उतारकर अपने नाम से अंग्रेजी व हिन्दी में लगभग एक दर्जन किताबें तो छपवाई ही हैं, नकल करके अंग्रेजी में शोध-पत्र भी अपने नाम छाप लिया है। जिसका एक उदाहरण है- “PERFORMANCE EVALUATION OF LEADING TELEVISION NEWS CHANNELS” (A Study of Eastern Uttar Pradesh) नामक शोध-पत्र। अनिल के. राय ने अपने इस शोध पत्र के शुरूआत से ही यानी पहली पंक्ति- In India,the hotel industry, public and private sector companies housing, colonies,high-rise ……से लेकर 20 वीं लाइन के …hundred subscription channels. तक का मैटर “MASS COMMUNICATION IN INDIA” नामक पुस्तक के पेज222 के पहले पैरा से लगायत पेज 223 के चौथी लाइन तक से हूबहू उतार लिया है। इस पुस्तक के लेखक हैं- केवल जे. कुमार । पुस्तक कापी राइट वाली है और जैको पब्लिशर द्वारा 1994 में प्रकाशित है। अनिल के. राय ने इस पुस्तक से चुराकर लिखे अपने इस शोध-पत्र को 24 दिसम्बर 2007 को अपने ब्लाग raianilankit.blogspot.com पर लगाया है। जो प्रिन्ट करने पर पेज 20 पर आ रहा है। अनिल के. राय ने अपने इस शोध पत्र में जो 11 रिफरेन्स दिया है उसमें कहीं भी केवल जे. कुमार, उनकी पुस्तक व पेज नम्बर नहीं दिया है।


















Tuesday, November 3, 2009

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तको का सालाना 300 करोड रू.का कारोबार

यह खबर 03-11-09 के पंजाब केसरी, दिल्ली के पेज 5 की बाटम स्टोरी है-

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तको का सालाना 300 करोड रू.का कारोबार
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। देशी-विदेशी पुस्तको ,शोध पत्रो से मैटर लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम एक साल में एक से लगायत 29 तक पुस्तके छपवाने और उसे मंहगे दाम पर विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों में खरीदवाने का सालाना लगभग 300 से करोड़ रूपये से अधिक का करोबार चल रहा है। यानी नकल करके लिखी किताबों का सालाना 300 करोड़ रूपये से अधिक का कारोबार। जिसमें यू.जी.सी के कुछ भ्रष्ट आला अफसरो,विश्वविद्यालयों के कुछ भ्रष्ट कुलपतियों, प्रोफेसरो, रीडरो, लेक्चररो, रजिस्ट्रारो, लाइब्रेरियनो, पुस्तक प्रकाशकों, सप्लायरों का एक रैकेट बन गया है। जो एक –दूसरे को मदद करके देश को प्रति वर्ष 300 से 500 करोड़ रूपये की चपत लगा रहे हैं। और युवा मेधा को कुंद कर रहे हैं। यह रैकेट किस तरह काम कर रहा है इसको इस तरह आसानी से समझा जा सकता है। दिल्ली के एक कालेज का एक प्रोफेसर कुलपति होकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक नये खुले विश्वविद्यालय में जाता है।वह अपने कालेज के कुछ अस्थाई अध्यापको को बुलाकर विश्वविद्यालय में पहले अस्थाई अध्यापक के तौर पर रखता है।फिर उनसे संबंधित विषय के लेक्चरर की पोस्ट पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकलवाता है, और उनकी नियुक्ति कर देता है। उन्हे लेक्चरर व हेड बना देता है।वह दिल्ली में कालेज में पढ़ाते समय हिन्दी में एक किताब लिखा था ,जिसे तैयार कराने में एक अस्थाई अध्यापक ने मदद की थी। जिसे ले जाकर उसने पत्रकारिता विभाग खोला और उसका लेक्चरर व हेड बना दिया। कुलपति बना वह व्यक्ति दिल्ली के अपने एक चहेते पुस्तक सप्लायर को विश्वविद्यालय में पुस्तक सप्लाई का ठेका देने लगा।उस सप्लायर के परिजनो के अलग –अलग नाम से कई पब्लिशिंग कम्पनी हैं। जिसमें वह उस कुलपति और उसके लाये –बनाये लेक्चररो की हिन्दी और अंग्रेजी में पुस्तकें छापने लगा।उन किताबों को वे कुलपति,लेक्चरर व हेड अपने विभाग और विश्वविद्यालयो में खरीदवाने लगे। एक -एक किताब 600 रूपये से 2500 रूपये तक की। एक साल में 5 से 10 वालूम वाली दो से तीन विषयों तक की यानी 20 से30 वालूम तक पुस्तकें एक अध्यापक के नाम छपीं। इनमें एक पूरे सेट का दाम 5 से 10 हजार रूपये तक है।ये पुस्तकें केवल लाइब्रेरी में बेचने के लिए हैं, रैकेट के मार्फत सप्लाई होती हैं। वि.वि. के लिए किताब सप्लाई के कोटेशन में 10 से 20 प्रतिशत तक छूट दिखा सालाना 50 लाख से लगायत लगभग एक करोड़ रूपये तक की पुस्तको की खरीद होने लगी।इसमें पुस्तकों के मूल्य का 30 से 50 प्रतिशत तक कमीशन अफसरो, कुलपति, रजिस्ट्रार, लेक्चरर-हेड, पुस्तकालय प्रमुख के बीच बंटने लगा।पुस्तको की खरीद का लगभग95 प्रतिशत बजट यू.जी.सी. से जाता है,इसलिए इस मामले में इनके अफसरो की भूमिका भी संदेह के दायरे में है। यू.जी.सी. के नियम के अनुसार लेक्चर को रीडर और रीडर को प्रोफेसर बनने के लिए उम्दा शोध-पत्र और 3किताबें लिखा होना चाहिए। कुलपति बनने के लिए तो और भी उम्दा किताबें,शोध-पत्र लिखा होना चाहिए। यह कोटा पूरा करने के लिए पूर्वी उ.प्र. के उस वि.वि. के लेक्चरर , रीडर व प्रोफेसर लोग विदेशी विश्वविद्यालयो के प्रोफेसरो, विशेषज्ञो, वैज्ञानिको के लिखे पुस्तको, शोध-पत्रो को लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम से अंग्रेजी में दर्जनों पुस्तकें छपवा लीं। पत्रकारिता विभाग के लेक्चर हेड ने हिन्दी में एम.ए. किया है,अंग्रेजी न तो ठीक से बोल सकते हैं नहीं लिख सकते हैं। लेकिन उन्होने सेटेलाइट और कम्प्यूटर आदि पर इस तरह इंटर नेट से कट-पेस्ट करके या हार्ड कापी से नकल कर,मैटर हूबहू उतारकर, कैम्ब्रिज और आक्सफोर्ड की अंग्रेजी में किताब अपने नाम छपवा लिया।इस तरह उस कुलपति और उसके लाये बनाये लेक्चररो ने उस बुक पब्लिशर,सप्लायर के सहयोग से दर्जनो पुस्तकें अपने नाम छपवाकर स्वंभू विद्वान बन गये। पत्रकारिता वाले लेक्चरर –हेड तो फिर छत्तीस गढ़ में एक भ्रष्ट अफसर से कुलपति बने व्यक्ति के यहां जुगाड़ लगाकर रीडर हेड बन गये । उसके कुछ माह बाद वह महाराष्ट्र में एक सजातीय पुलिसिया कुलपति की कृपा से प्रोफेसर व हेड बन गये। छत्तीसगढ़ में जहां वह गये उस वि.वि. में भी पुस्तको की मोटी खरीद हुई। पूर्वी उ.प्र. के नये वि.वि. में जो कुलपति बने थे वह भी अब उसी जुगाड़ से महाराष्ट्र के वि.वि. में मोटे पगार पर आफिसर आन स्पेशल ड्यूटी बन गये हैं।इस कुलपति ने पूर्वी उ.प्र.के नये वि.वि. में जिनको ले जाकर लेक्चरर बनाया उसमें से कई अब नकल करके कई किताब अपने नाम छपवा रीडर व प्रोफेसर बन गये हैं।यह नकल करके किताब लिखने ,उसे मंहगे दाम पर पुस्तकालयों में खरीदवाने और उन नकल करके लिखी किताबों के आधार पर लेक्चरर ,रीडर, प्रोफेसर, कुलपति बनने वालो के रैकेट का एक छोटा सा उदाहरण। इससे और बड़े रैकेट के सप्रमाण उदाहरण भी हैं। जो देशी-विदेशी पुस्तको, शोध-पत्रों के कापी राइटेड मैटर, हूबहू कापी करके बनाई जा रही पुस्तको के कई अरब रूपये के सालाना कारोबार को और बढ़ाने में लगे हैं। #

Sunday, November 1, 2009

केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के नकलची प्रोफेसरों के काले कारनामे उजागर होने से हड़कंप


यह खबर 1 नवम्बर 2009 को पंजाब केसरी, दिल्ली के पेज-2 की लीड स्टोरी थी। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के नकलची प्रोफेसरों के काले कारनामे उजागर होने से हड़कंप
-कृष्णमोहन सिंह
नई
दिल्ली। पंजाब केसरी ने सबसे पहले देशी -विदेशी प्रोफेसरो,वैज्ञानिको,विशेषज्ञो के पुस्तकों,शोध-पत्रों से मैटर लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम से किताब छपवा लेने वाले,शोध-पत्र बना लेने वाले नकलची अध्यापको के काले कारनामों को उजागर किया था। सी.एन.ई.बी. चैननल ने उसपर और गहन काम करके उसे और आगे बढ़ाते हुए कई एपिसोड वाली खोजपरक रिपोर्ट की श्रृखला तैयार की है । मैटर चुराकर धड़ाधड़ किताबें लिखने वाले यूनिवर्सिटी लेक्चरर-प्रोफ़ेसरों को बेनकाब करने वाली इस खोजपरक टीवी रिपोर्ट श्रृंखला की शुरुआत इसी रविवार पहली नवंबर से कर रहा है सीएनईबी न्यूज़ चैनल। इस खोज परक रिपोर्ट को तैयार करने में मूल भूमिका पत्रकारद्वय कृष्णमोहन सिंह और संजयदेव की है। श्रृंखला के पहले एपिसोड में वर्धा के अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के प्रमुख अनिल के राय अंकित और दिल्ली के जामिया मिलिया के रीडर दीपक केम के कारनामों का भण्डाफ़ोड़ किया गया है।
एपिसोड में देश की प्रसिद्ध अकादमिक हस्तियों प्रोफ़ेसर बिपिन चंद्रा और प्रोफ़ेसर यशपाल की तीखी टिप्पणियाँ भी हैं जिसमें दोनों ने दोषियों के खिलाफ़ तत्काल कड़ी कार्रवाई करने और उन्हें बर्खास्त करने की सिफ़ारिश की है। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि ऐसे लोगों तत्काल उनकी सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया जाना चाहिए।इस पहले एपिसोड में यह भी दावा किया गया है कि प्रति वर्ष कई सौ करोड़ रुपये के इस धंधे में प्रकाशक और लेखक दोनों की मिलीभगत होती है और इस तरह की किताबें अधिकतर केवल विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों की अल्मारियों में कैद होने के लिए ही लिखी-छापी जाती हैं। इंटरनेट के उभार ने चोरी के इस धंधे को अधिक आसान बना दिया है और लोग एक-एक साल में पाँच-दस नहीं, दो दर्ज़न से भी ज़्यादा किताबें लिख रहे हैं। 28 की शाम से "चोर गुरू" शीर्षक से उसका प्रोमो एक-एक घंटे के अंतराल पर दिखाया जाने लगा है।खबर रविवार शाम 8 बजे से दिखाई जायेगी। प्रोमो में है – जो जेब काटे वो जेबकतरा ,जो डाका डाले वो डकैत और जो ज्ञान चुराकर शिक्षक बन जाये.. उसे क्या कहेंगे? होंगे बेनकाब चोर गुरू CNEB पर । इधर यह भी चर्चा है कि एक नकलची प्रोफेसर ने अपनी प्रशंसावाली एक स्टोरी बनवाकर दिल्ली भेजवाई और उसे भाजपा के एक राज्य सभा सांसद रहे डाक्टर के टी.वी. चैनल पर आज चलवाने की पूरी कोशिश की। उस चैनल में कोई उसका विरादर है ,उसी के मार्फत स्टोरी चलवाने की योजना बनी थी। लेकिन मालिको को असलियत का पता चलजाने के कारण फिलहाल तो स्टोरी नहीं चली,रोक दी गयी।बताया जाता है कि इसमें एक लाइब्रेरी के लिए पुस्तक खरीद घोटाला किया प्रोफेसर ,एक नकलची पूर्व कुलपति और एक विवादास्पद कुलपति की नकलची की प्रशंसा वाली बाइट थी।
CNEB में यह प्रोमो चलने से ही दोनो केन्द्रीय विश्विद्यालयों व यूजीसी के अध्यापको,अफसरो में हड़कंप मचा हुआ है। सभी नकलची अध्यापकों और उनके आका अफसरो को आगे खुदकी असलियत उजागर होने का डर हो गया है । सूत्रो के मुताबिक दोनो विश्वविद्यालयो के कई प्रोफेसरो,रीडरो,लेक्चररो के, देशी-विदेशी विश्वविद्यालयो के प्रोफेसरो आदि की पुस्तको आदि से मैटर लगभग हूबहू उतारकर एक साल में एकसे लेकर 29 तक किताबें अपने नाम छपवाने के कारनामे उजागर होने हैं।जिसके चलते इन वि.वि. के जुगाड़ी आकाओं की धुकधुकी बढ़ गयी है।