Sunday, August 3, 2014

HINDI WRITERS AGAINST CSAT



सी-सैट खत्म करने की मांग को लेकर हिन्दी साहित्यकार भी होने लगे एकजुट
- कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। लोकसेवा आयोग की परीक्षा से सिविल सर्विसेज एप्टीट्यूड टेस्ट (सी-सैट) हटाये जाने की मांग के मामले में बहुत दिनों तक मुंह बंद किये रहने के बाद अब हिन्दी के प्रख्यात साहित्यकारों में भी गुस्सा बढ़ने लगा है। साहित्यकारों में इस मुद्दे पर दलगत राजनीति के झगड़े में पड़े बिना, सी-सैट को  खत्म किये जाने की मांग को लेकर सहमति बनने लगी है। इसके लिए केन्द्र सरकार को पत्र  लिखने, सी-सैट को खत्म करने की अपील करने के लिए विचार-विमर्श शुरू हो गया है। और यदि  24 अगस्त को होने वाली सिविल प्रीलीम परीक्षा हो जाने पर उसे आधार बनाकर सी-सैट पैटर्न पर ही इस साल परीक्षा कराने की शातिर चाल चलने की कोशिश यूपीएससी कर रहा है तो 24 वाली परीक्षा रद्द करने या सी-सैट खत्म किये जाने तक आगे  टालने की मांग पर भी विचार हो रहा है। ताकि इस साल की परीक्षा सी-सैट लागू होने से पहले वाले पैटर्न पर हो सके। देश के मूर्धन्य हिन्दी साहित्कारों का मानना है कि यूपीएससी आटोनामी के नाम पर पर मनमानी कर रहा है। वह कैसे और किसकी शह पर बयान दे रहा है कि ना तो सी-सैट का पैटर्न बदलेगा नाही 24 अगस्त को होने वाली परीक्षा टलेगी। कई साहित्यकारों ने तो आपसी बातचीत में यूपीएससी के पदाधिकारियों व सदस्यों की नियुक्तियों पर भी उंगली उठाई और कहा कि इनमें ज्यादेतर  सेटिंग व जुगाड़ और राजनीतिक नियुक्ति वाले बैठे हैं। सोनिया मनमोहन सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय में काबिज मलयाली लाबी ने सोनिया मनमोहन जैसे अंग्रेजी प्रेमियों को खुश करने और दक्षिणभारत के छात्रों पर भारी पड़ने लगे  हिन्दी भाषी राज्यों के छात्रों को शातिर तरीके से सिविल सेवा परीक्षा में सफल नहीं होने देने के लिए सी-सैट पैटर्न लागू कराया। इसे लागू होने पर जब परिणाम आया तो हिन्दी भाषी राज्यों के छात्रों का काफी हद तक सफाये का प्रमाण , इसके विरोध का कारण बना । इससे यह साबित हो गया कि सोनिया मनमोहन और उनके अंग्रेजीदा अफसरों व यूपीएससी के बाबूओं द्वारा साजिशन लागू कराया  गया सी-सैटी हथियार हिन्दी भाषी छात्रों के विरूद्ध बहुत ही कारगर साबित हो रहा है। रही सही कसर सिविल परीक्षा में अंग्रेजी का बहुत ही गलत और उल्टा पुल्टा हिन्दी अनुवाद कराकर पूरा कर दिया जा रहा है। लेकिन यह कराने वाले यूपीएससी चैयरमैन व अन्य अफसरों सदस्यों को अब तक हटाया नहीं गया। जबकि इसके चलते सैकड़ों परीक्षार्थियों का जीवन बर्बाद हो गया।
अचरज यह है कि जिस कांग्रेसी सरकार के समय यह सी-सैट लागू हुआ आज सत्ता से बाहर होने पर वही कांग्रेस और उसका छात्र संगठन इस सी-सैट के विरोध में अपने नेताओं के घर के सामने नहीं , भाजपा के सत्ताधारी नेताओं के घर के सामने धरना प्रदर्शन कर रहे हैं।
और जिस भाजपा की केन्द्र में सरकार है उसका छात्र संगठन - अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भी सी-सैट को खत्म करने के लिए धरना दे रही है। इस तरह गजब तमाशा हो रहा है। संसद के दोनों सदनों में इसे सपा,राजद,जदयू वाले जोर-शोर से उठा रहे हैं। इस मामले अभी तक हिन्दी के नामी लोग इस उम्मीद में चुप्पी साधे हुए थे कि नरेन्द्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान  और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी हिन्दी को बढ़ावा देने की बात कही थी, सो वह अपने बचन का पालन जरूर करेंगे ।और त्वरित गति से करेंगे। लेकिन इतने दिन तक इस मामले को वर्मा कमिशन की रिपोर्ट आने के नाम पर टाला गया और जब सोनिया-मनमोहन सरकार द्वारा नियुक्त वर्मा समिति की सी-सैट की तरफदारी वाली तथाकथित रिपोर्ट की बात सामने आई तब साहित्यकारों में इस पर आवाज उठाने की बात होने लगी है। इनमें से कईयों का कहना है कि जिस यूपीए सरकार ने सी-सैट लागू किया उसके द्वारा अपने जीहजूर पूर्व अफसरों वाली समिति बनाई गई, ऐसे में वह वर्मा समिति कैसे यूपीए सरकार के समय लागू सी-सैट के विरूद्ध रिपोर्ट देती। या तो उस 3  सदस्यीय वर्मा समिति में  मोदी सरकार अपने 4 लोगों को रखकर उसे 7 सदस्यीय बना दी होती और एक हप्ते में रिपोर्ट मांग लेती , देखते वह रिपोर्ट सी-सैट को खत्म करने वाली आ जाती। लेकिन लगता है इस सरकार के प्रधानमंत्री कार्यालय में काबिज यूपीए सरकार के समय के अफसर ऐसा चाहते नहीं थे। इन सब वजह से हिन्दी साहित्यकारों में  अब केन्द्र सरकार को पत्र लिख, जनता से  अपील कर,  सी-सैट को जल्दी खत्म करने की मांग पर सहमति बनने लगी है। इस बारे में प्रसिद्ध कहानीकार काशी नाथ सिंह का कहना है कि इसके लिए वह कुछ साहित्यकारों से  बात कर रहे हैं। 
*यह खबर हिन्दी दैनिक "पंजाब केसरी" दिल्ली में 03-08-2014 को पेज 7 पर व अन्य कई राज्यों के समाचार पत्रों में छपी है।