Thursday, June 26, 2014

MHRD KE AFASARON KI SHAH PAR AKARE HUYE HAIN D.U. KE V.C. DINESH




दिल्ली वि.वि. का 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम , पूरे देश में थी लागू करने की योजना

मंत्रालय के कुछ अफसरों की शह पर अकड़े व अड़े रहे हैं दिनेश सिंह
 - कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय के 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को खत्म करके फिर से 3 वर्षीय करने में  कुलपति  दिनेश सिंह यूं ही नहीं हिला - हवाली कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उच्चशिक्षा सचिव अशोक ठाकुर , उच्च शिक्षा संयुक्त सचिव आरपी सिसोदिया की शह के चलते दिनेश सिंह इतने दिन तक अड़े व अकड़े रहे हैं। इसमें पूर्व यूजीसी अध्यक्ष व आईसीएसएसआर के अध्यक्ष सुखदेव थोराट ,हैदराबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सैयद ई हसनैन जैसों की भी भूमिका रही। सूत्रों के मुताबिक ये अफसर व मास्टर यूपीए -2 सरकार के प्यारे रहे हैं। इनका आपसी लाभालाभ वाला एक अघोषित गुट बन गया है। जो एक  विचाराधारा विशेष को पोषित करने ,तरफदारी करने , बढ़ाने और उसके बदौलत खुद अपनी गोटी  सेट करता रहा है।

 
 कई पूर्व कुलपतियों व आचार्यों का कहना है कि प्रो. दिनेश सिंह ने दिल्ली वि.वि. का कुलपति पद पर रहते हुए कोई अपने मन से 4 वर्षीय स्नातक कोर्स तो लागू  किया नहीं, वह तो वही किये जो उनके आका कहे। हां उस समय उनके आका सोनिया गांधी ,मनमोहन सिंह , कपिल सिब्बल और उसके बाद पल्लम राजू थे ,अब उनके आका नरेन्द्र मोदी , स्मृति जुबिन ईरानी हो गये हैं। दिनेश सिंह इतने तो समझदार हैं ही । उनको अच्छी तरह मालूम है कि किसी भी केन्द्रीय वि.वि. का कुलपति बनने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। जब पद पाने के लिए चरणवंदना किया जाता है ,सिफारिश लगवाया जाता है , तब तो आटोनामी नहीं याद रहती है। और जब निजाम बदल जाता है तब संविधान व आटोनामी की दुहाई देकर मनमानी करने की कोशिश होती है।
दिनेश सिंह जब उस समय अपने आकाओं के इशारे पर 4 साल का स्नात्तक कोर्स शुरू कराये थे तो अब उसे वापस 3 साल करने में क्या हो जा रहा था। उनसे नहीं हो पा रहा था तो पहले ही कुलपति पद छोड़ दिये होते। लेकिन ऐसा वह इसलिए नहीं किये क्योंकि उनको लगता था कि आटोनामी की आड़ में देशी विदेशी शिक्षा धंधेबाजों को लाभ पहुंचाने वाली 4 वर्षीय स्नातक योजना चला ले जायेंगे। जिसमें मंत्रालय के अफसरों, विभिन्न कमेटियों में कुंडली मारे बैठे रैकेटियर कुछ प्रोफेसरों,संगठनों का भी सक्रिय सहयोग मिल रहा था। कुछ संगठनों ने कहा था कि इस मुद्दे को सर्वोच्चन्यायालय में ले जाकर स्टे ले लिया जाये तो यह सरकार कुछ कर ही नहीं पायेगी । 4 साल का कोर्स जारी रहेगा। पल्लम राजू व शशि थरूर ने मंत्री रहते और उनके अफसरों ने इसी तरह का खेल नेट के पासिंग मार्क कम करने का दबाव बनाने के लिए किया था। एक तरफ कहा जा रहा था कि विश्वविद्यालयों व शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए जरूरी है कि जो लोग पीएचड़ी करें ,शिक्षण में जायें वे प्रतिभाशाली हों। इसके लिए नेट के पासिंग का मार्क अधिक रखा गया था। जिसके कारण बीते वर्ष बहुत से परीक्षार्थी फेल हो गये। उनमें से कुछ ने कई हाईकोर्ट में केस जीत लिया । जिसपर तबके मंत्री थरूर व उच्चशिक्षा अफसरों ने नेट का पासिंग मार्क कम करके परिणाम घोषित करने का दबाव बनाया। लेकिन यूजीसी ने कहा कि हाइकोर्ट के फैसलों के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में जायेंगे। वहां यह मामला गया और यूजीसी ने केस जीत लिया। अब यूपीए सरकार के जाने के बाद से उन अफसरों की लाबी ने खबरें प्लांट कराना शुरू किया कि यूजीसी ने सर्वोच्च न्यायालय में केस लड़ने में इतने लाख रूपये बर्बाद कर दिया। कई लाख रूपये देकर मंहगे वकील किये थे। सवाल यह है कि जब मंहगा वकील नहीं करेंगे तो सर्वोच्च न्यायालय में केस जीतेंगे कैसे। और केस जीतने के लिए बड़ा वकील करना ही पड़ेगा। और  मंत्रालय व यूजीसी ने जो नियम बनाया है उसे लागू कराने,बचाने के लिए केस जीतना ही पड़ेगा। फंड इसके लिए भी तो होता है। अब दिल्ली विश्वविद्यालय के कुछ अध्यापक या उनके संगठन 4 वर्षीय स्नातक कोर्स मामले में सर्वोच्च न्यायालय गये थे स्टे के लिए। सर्वोच्च न्यायालय ने स्टे नहीं देकर कहा कि हाइकोर्ट में जाओ। तो हाइकोर्ट में केस .यदि दायर  हुआ तो सुनवाई होगी तो यूजीसी को पैरवी के लिए बड़े वकील करना ही पड़ेगा। उसमें रकम खर्च होगी ही। यदि अच्छा वकील नहीं किया जायेगा तो मंत्रालय व यूजीसी केस हार जायेगा । केस हार जायेगा तो भारत के कई लाख करोड़ रूपये के शिक्षा बाजार पर गिद्ध दृष्टि लगाये अमेरिकी व भारतीय शिक्षा धंधेबाजों व उनके एजेंटों की चांदी हो जायेगी। जिनने लाबिंग करके सोनिया,मनमोहन,मोंटेक व कपिल सिब्बल से पहले दिल्ली वि.वि. में यह 4 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम शुरू कराया, जिसे बाद में पूरे भारत के विश्वविद्यालयों में लागू कराने की योजना थी।. ज्यादेतर छात्रों व लोगों का कहना है कि ऐसा न होने पाये इसके लिए भारत सरकार को हर हिकमत लगानी पड़ेगी। दिल्ली वि.वि. में शुरू किया गया 4 वर्षीय स्नातक कोर्स चाहे जैसे भी हो खत्म करना ही पड़ेगा और ऐसा कोर्स भारत के किसी अन्य वि.वि. में लागू नहीं हो इसका भी नियम बनाना पड़ेगा। इसके विरोध को हवा दे रहे मंत्रालय के अफसरों,पदाधिकारियों,कमेटियों के अध्यक्षों ,सदस्यों को भी बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए। 
* यह खबर कई समाचार पत्र में छपी है।