देशी-विदेशी शिक्षा माफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए
शुरू किया गया4 वर्षीय ग्रेजुएशन कोर्स
इसे बंद करके 2 वर्ष का किया जाना चाहिए ग्रेजुएशन
- कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में 4 साल का ग्रेजुएशन कोर्स अमेरिका
व भारत की प्राइवेट शिक्षा लाबी को लाभ
पहुंचाने के लिए यूपीए 2 में मनमोहन सिंह,मोंटेक सिंह,कपिल सिब्बल,पल्लम राजू ने
लागू करवाया था । इसे दिल्ली
विश्वविद्यालय में लागू कराने के कुछ साल बाद
पूरे भारत के विश्वविद्यालयों में लागू कराने की योजना थी। ताकि छात्र जो स्नातक डिग्री 3 साल में लेते थे वह 4
साल पढ़कर लें। यानी एक साल और समय
लगावें। एकसाल और मोटी फीस दें। नौकरी पाने , नौकरी के लिए परीक्षा देने में में
एक साल और गंवावें। यानी इस तरह यह 4 वर्षीय स्नातक योजना छात्रों की डिग्री लेने
की लाइन और लम्बी करने ,उनको एक साल और उलझाए रखने,एक साल और बर्बाद करने तथा शिक्षा को कमाई का बड़ा धंधा
बना लिये देशी – विदेशी शिक्षा
माफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए शुरू किया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय ने जब यह 4
वर्षीय स्नातक कोर्स शुरू किया था ,उस समय इसका बहुत विरोध हुआ था। लेकिन कुलपति
दिनेश ने यूपीए 2 के अपने आकाओं को खुश
करने के लिए बहुत बढ़चढ़ कर इसे लागू किया ।
कई पूर्व अर्थशास्त्री व पूर्व कुलपति जो किसी खेमे से नहीं जुड़े हैं उनका
साफ शब्दों में कहना है कि शिक्षा पैसा कमाने का एक बहुत बड़ा धंधा बन गया है ।
भारत में यह कई लाख करोड़ रूपये का कारोबार होने वाला है। भारत में पहले से ही बेरोजगारी बहुत ज्यादा है
, गरीबी है वहां स्नातक का कोर्स तो 3 साल से बढ़ाकर 4 साल करने के बजाय घटाकर 2
साल करना चाहिए। अमेरिका के कई नामी विश्वविद्यालयों
ने कई विषयों की पढ़ाई के लिए तो फीस और
कोर्स का वर्ष ही घटा दिया है।
जैसे ला का कोर्स 3 साल से घटाकर 2 साल का कर दिया। ऐसे में जब अमेरिका यह कर रहा
है तो भारत में क्यों इससे उल्टा किया जा रहा है। क्यों नहीं यहां भी ग्रेजुएशन 3
साल की जगह 2 साल का किया जा रहा है। क्यों यहां 3 साल से बढ़ाकर 4 साल किया जा
रहा है । इससे साबित होता है कि यह केवल देशी विदेशी शिक्षा माफियाओं की दुकान
चलाने के लिए किया जा रहा है।
विश्व की सबसे अधिक युवा जनसंख्या भारत की है। यहां शिक्षा का बहुत बड़ा
बाजार विकसित हो रहा है और अगले 50 साल तक तो रहेगा ही। ऐसे में विकसित देशों व
अपने देश के शिक्षा के धंधें में लगे उद्योगपतियों,बिल्डरों,नेताओं,अफसरों की
गिद्ध दृष्टि यहां पर लगी हुई है। जब विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपना
कैम्पस खोलने या किसी विश्वविद्यालय के साथ मिलकर कैम्पस शुरू करने के मामले में
यूजीसी ने नियम बनाया कि विश्व के टाप200 विश्वविद्यालय ही भारत में अपना कैम्पस
खोल सकते हैं या भागीदारी में संस्था शुरू कर सकते हैं, तो इस पर अमेरिकी शिक्षा
लाबी ने तबके शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल पर दबाव बनाकर यह नियम बदलवा दिया । क्योंकि
इस नियम के कारण अमेरिका के बहुत से विश्वविद्यालय छंट जा रहे थे। जिसके बाद
सिब्बल ने 200 की जगह 500 करा दिया।
इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि खेल मात्र 3 साल के ग्रेजुएशन कोर्स को 4
साल करने का नहीं है। इसके पीछे अमेरिकी व भारतीय शिक्षा लाबी के बड़े धंधे का खेल
है।
और जो शिक्षक या शैक्षणिक संस्थाओं में लाबिंग करके मठाधीश बने बैठे लोग
कह रहे हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय आटोनोमस बाडी है, वह जो चाहे निर्णय कर सकती
है, यूजीसी या मानव संसाधन विकास मंत्रालय उसे डिक्टेट नहीं कर सकते हैं ,ऐसे
महानुभाव केवल व केवल कुतर्क कर रहे हैं। ऐसे लोग आईआईटी खड़गपुर के एक मामले में
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को देख लें। जिसमें साफ लिखा है कि फंडिग अथारिटी
मानव संसाधन मंत्रालय है। वह हर काम की मानिटरिंग कर सकता है,आदेश दे सकता है।
आटोनामी का मतलब मनमानी या दादागिरी कत्तई नहीं है।
इसी वजह से अब मांग होने लगी है कि कालेजों, विश्वविद्यालयों में
अध्यापकों के सेवानिवृति की उम्र 58 वर्ष किया जाय। शिक्षकों का 10 बजे इंट्री और
5 बजे जाते समय रेटिना अटेंडेंस कम्पल्सरी किया जाये। जो अध्यापक नकल करके शोध
पत्र लिखे हैं, पीएचडी थिसिस लिखे हैं , किताबें लिखें हैं ,उसके आधार पर नौकरी या
प्रोमोशन पाये हैं उनको तुरंत बर्खास्त किया जाये। जिन कुलपतियों पर कैग ने
भ्रष्टाचार का प्रमाण सहित आरोप लगाया है उनके विरूद्ध सीबीआई जांच कराकर घोटाले
की रकम बसूला जाये,उन्हें जेल भेजा जाये। अध्यापकों को जब 58 वर्ष की उम्र में
सेवानिवृत किया जायेगा तो जगह खाली होगी इससे उन तमाम प्रतिभाशाली छात्रों को जो
पीएचडी करके बेरोजगार घूम रहे हैं , नौकरी
मिलेगी। उन पर ऐसे युवकों को नियुक्ति मिलेगी। इस तरह बेरोजगारी भी दूर होगी। कुलपतियों
को 60 साल की उम्र में सेवानिवृति देदी जाये। किसी भी डिग्री के लिए समय 4 साल (
टेकिनकल को छोड़कर,उनको भी कम करने का उपाय किया जाये) कत्तई नहीं किया जाय। जो कोर्स चल रहा है उसे
आधा प्रैक्टिकल कर दिया जाय , रोजगार से जोड़ दिया जा। दशकों से जो कुछ मुट्ठीभर
मठाधीश बने तथाकथित शिक्षा शास्त्री तमाम कमेटियों पर कब्जा जमाये बैठे हैं उनको
हटाकर आगे से किसी कमेटी में नहीं रखा जाये , क्योंकि यह एक बहुत बड़ा रैकेट बन
गया है। हर विश्वविद्यालय व कालेज में सीटें दोगुनी किया जाये, इवनिंग क्लास
चलाया जाये, ताकि अधिक से अधिक छात्र पढ़ सकें । 30 छात्र पर एक अध्यापक जैसे
फार्मुले केवल धंधा के लिहाज से हैं।
कोचिंग संस्थानों में 500 तक के छात्रों का बैच चलता है । उनमें जो बच्चे
पढ़ते हैं उनको जब समझ में विषय आ जाता है तो कालेजों व विश्वविद्यालयों में इतने
बड़े क्लास में क्यों नहीं समझ में आयेगा।
.इन वजहों से ही लोग कहने लगे हैं कि
इस लम्बी क्यू वाली 4 साला ग्रेजुएशन कोर्स को तो तुरंत खत्म करके इसे वापस
3 नहीं बल्कि 2 साल का किया जाना चाहिए। और जो अध्यापक इसका विरोध कर रहे हैं उन
पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। उनसे कह देना
चाहिए कि अपने पैसे से कालेज खोलिए, वहां 4 साल के बजाय 5 साल का ग्रेजुएशन
कोर्स चलाइये।
.# यह खबर कई राज्यों में कई समाचार पत्रों में छपी है।
.# यह खबर कई राज्यों में कई समाचार पत्रों में छपी है।