Sunday, May 5, 2013

IAS, DUSARE PRAYAS ME top 10 me


IAS , दूसरे प्रयास में 9वां स्थान
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नवभारत टाइम्स | May 5, 2013, 08.00AM IST
विनोद शर्मा ॥ नोएडा
यूं तो वह गरीब नहीं हैं, लेकिन गरीबी से उनका खास रिश्ता है। कामयाबी के जिस राह पर आज वह चांदनी की तरह चमक रही हैं, उस पर चलने के लिए गरीबी ने ही उन्हें प्रेरित किया था। जी हां हम बात कर रहे हैं, सिविल सर्विस एग्जाम में 9वां रैंक हासिल करने वाली चांदनी सिंह की। चांदनी कहती हैं कि गरीब बच्चों के बीच जाकर जब उनके सुख-दुख का अहसास उन्हें हुआ, तो उनकी जिंदगी का मकसद ही बदल गया। ऐसे लोगों की मदद के लिए मैंने सिविल सर्विस को अपने करियर के रूप में अपनाने का फैसला किया। इस क्रम में सेक्टर-16ए स्थित ग्रीन बेल्ट में चलने वाले स्लम बच्चों के स्कूल में जाकर पढ़ाया। यही नहीं आसपास के बच्चों को अपने घर में बैठाकर पढ़ना-लिखना सिखाया। इसके साथ ही चांदनी की सिविल सर्विस की तैयारियां भी चलती रहीं।

था दूसरा प्रयास
सेक्टर-27 में रहने वाली चांदनी सिंह ने बताया कि वह समरविले स्कूल में आठवीं क्लास तक पढ़ी हैं। स्कूल में वह ज्यादा शर्मीली थीं। पूर्व प्रिंसिपल ट्रैसलर से वह ज्यादा प्रभावित रहीं। चांदनी ने 10वीं और 12वीं सरदार पटेल स्कूल से की, जबकि लेडी श्रीराम कॉलेज से उन्होंने इंग्लिश ऑनर्स में ग्रैजुएशन कंप्लीट की। चांदनी का कहना है कि सिविल सर्विस का का एग्जाम उन्होंने पिछले साल भी दिया था। पर लिखित एग्जाम के बाद वह मेन में सफल नहीं हो पाईं। वह कहती हैं कि यकीन नहीं था कि ऑल इंडिया में नौंवा रैंक आएगा। अब वह सिर्फ आईएएस कैडर ही चुनेंगी। दूसरा ऑप्शन इंडियन फॉरेन सर्विस का रहेगा।
सफलता में 70 पर्सेंट रोल न्यूज पेपर का
चांदनी सिंह ने बताया कि उन्होंने कोचिंग तो ली, लेकिन घर से मिली गाइडेंस ने मंजिल तक पहुंचाने में ज्यादा मदद की। रोजाना 5 घंटे तक पढ़ाई करती थी। कुछ चुनिंदा सब्जेक्ट से जुड़ी किताबें खरीदी और उन्हें ही कायदे से याद किया। चांदनी कहती हैं कि न्यूज पेपर ने यहां तक पहुंचाने में काफी मदद की है। सब्जेक्ट के रूप में ज्योग्राफी ली।

मां-बाप हैं रोल मॉडल
चांदनी सिंह का कहना है कि मेरी सफलता में मेरे फादर अमर चंद सिंह व मदर विभा सिंह का अहम रोल है। भाई सागर ने भी काफी सपोर्ट किया है। फैमिली की सपोर्ट के बिना आगे बढ़ना मुश्किल काम था। मेरे पिता इस समय मथुरा में तैनात हैं। वह पहले नोएडा अथॉरिटी में फाइनैंस कंट्रोलर के पद पर तैनात थे।

यूथ के लिए टिप्स
चांदनी सिंह यूथ को टिप्स देते हुए कहती हैं कि इस करियर में आने वालों के लिए रिविजन बहुत जरूरी है। यदि आप इसमें अपना करियर बनाना चाहते हैं तो लक्ष्य तय करके तैयारियों में जुट जाएं। सिविल सर्विस में प्रारंभिक एग्जाम , मेन एग्जाम समेत कई प्रोसेस हैं। इंटरव्यू के लिए न्यूज पेपर की रीडिंग जरूरी है।

पूछा गया था अहम सवाल
इंटरव्यू के दौरान चांदनी सिंह से पूछा गया था कि जब वोट डालने की उम्र 18 वर्ष है तो शादी की उम्र 21 साल क्यों है। इस पर चांदनी ने कहा था कि 18 वर्ष की उम्र कानूनी तौर पर बालिग है तो जाहिर सी बात है कि शादी की उम्र भी 18 ही करनी चाहिए। उनका इन्टरव्यू भी विमिन डे यानी 8 मार्च को हुआ था।
अरुण पी. मैथ्यू
कोयंबटूर/नई दिल्ली।। इस साल सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने वाले छात्रों में कई ऐसे भी हैं, जिन्होंने तमाम अभावों के बावजूद सच्ची लगन और मेहनत के बल पर सफलता हासिल की है। ऐसे ही एक छात्र हैं 343वां रैंक पाने वाले कोयंबटूर के एस. सुरेश कुमार, जिनके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं। वहीं, 270वां रैंक हासिल वाले बीकानेर के चूनाराम जाट हैं, जिन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए खुद दिहाड़ी मजदूरी तक की। बिहार के एक गांव के एक छोटे दुकानदार के बेटे सुब्रत कुमार सेन ने 93वां स्थान हासिल किया है।
सुरेश कुमार ने यह परीक्षा तीसरी कोशिश में पास की और उनका रैंक 343वां है। सुरेश के पिता एक गार्मेंट फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर हैं और उनकी मां स्टूडेंट्स के लिए खाना बनाने का काम करती हैं। बहुत गरीब परिवार में पले सुरेश ने ग्रैजुएशन बीएससी प्लांट बायॉलजी और डिफेंस स्टडीज में पोस्ट ग्रैजुएशन की डिग्री हासिल की है।
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साल के सुरेश कुमार ने सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी पोस्ट ग्रैजुएशन करते हुए ही शुरू कर दी थी और उन्होंने परीक्षा में पॉलिटिकल साइंस और तमिल लिटरेचर को बतौर ऑप्शनल पेपर चुना था। परीक्षा की तैयारी के लिए उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की। यही नहीं, इसके साथ-साथ उन्होंने अपने गुजारे के लिए काम भी किया। वह ट्यूशन पढ़ाते थे और स्टूडेंट रिपोर्टर के तौर पर एक मैगज़ीन में भी काम कर रहे थे। उन्होंने बताया, 'मेरे पैरंट्स कभी नहीं चाहते थे कि मैं काम करूं। मेरी मां खाना बनाने का काम करने लगीं, ताकि मुझे पढ़ा सकें।' सुरेश फिलहाल दिल्ली की एक यूनिवर्सिटी से एम.फिल कर रहे हैं।
सुरेश के पिता एम. सुब्बुराज एक गार्मेंट कंपनी में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते हैं। उनकी कमाई से घर की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं, इसलिए उनकी मां ने खाना बनाने का काम शुरू कर दिया। सुरेश का छोटा भाई कोयंबटूर के कॉलेज में ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रहा है।
सिविल सर्विसेज परीक्षा पास करने पर सुरेश और उनका परिवार काफी खुश है। सुरेश की इच्छा IAS या IFS में जाने की है। उन्होंने अपने जैसे छात्रों को सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी के टिप्स देते हुए कहा, 'असफलता से घबराने की जरूरत नहीं है। कठोर परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता। कभी निराश न हों और मेहनत करते रहें।'

सुरेश कुमार की तरह ही बीकानेर के छोटे से गांव केसर देसर में रहने वाले चूनाराम जाट ने सिविल सर्विसज परीक्षा में 270वां रैंक हासिल किया है। वहीं, बिहार में सुपौल के सुब्रत कुमार सेन को 93वां रैंक मिला है।
चूनाराम जाट आर्थिक अभावों में पले-बढ़े हैं और उन्होंने खुद 50 रुपये रोज की दिहाड़ी मजदूरी करके अपनी पढ़ाई पूरी की। बीकानेर के किसान उदाराम के बेटे चूनाराम ने आर्थिक तंगी के चलते स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड दी थी। किसी तरह उन्होंने 10वीं और 12वीं की प्राइवेट परीक्षा दी। उनके जज्बे को देखते हुए गांववाले मदद के लिए आगे आए, जिसकी बदौलत वह यहां तक पहुंचे। तीसरी बार की कोशिश में चूनाराम को अपनी मेहनत का फल मिला।
वहीं, बिहार में सुपौल के सुब्रत कुमार सेन ने 93वां स्थान हासिल किया है। सुब्रत के पिता की सुपौल के एक गांव में साइकल मरम्मत करने की दुकान है। सुब्रत ने दिल्ली के भीमराव आम्बेडकर कॉलेज से ग्रैजुएशन किया है और फिलहाल वह मध्य प्रदेश में बैंक ऑफ इंडिया में पीओ हैं।