-सत्ताचक्र SATTACHAKRA-
लगभग 60 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की 23 जुलाई 2010 से दो दिवसीय बैठक वाराणसी के महात्मा गांधी काशीविद्यापीठ में हो रही है। जिसका घोषित एजेंडा है- हायर एजुकेशन न्यू चैलेन्जेज एंड इमर्जिंग रोल ।दो दिनी बैठक में विमर्श के दो मुद्दे हैं - (1) हायर एजुकेशन बिल (2) फारेन यूनिवर्सिटी ड्राफ्ट । अघोषित एजेंडा है – जिन विश्वविद्यालयों में कुलपतियों का कार्यकाल 3 साल है उसे बढ़ाकर 5 साल किया जाय । यानी मलाई काटने के लिए और 2 साल का समय। इस एजेंडा या विमर्श के मुद्दे में नकल करके पुस्तकें लिखने वाले लेक्चररों,रीडरों,प्रोफेसरों, इनकी नकल करके लिखी पुस्तकों को छापने और महाविद्यालयों ,विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में सप्लाई करने वाले प्रकाशकों-सप्लायरों, इनको बचाने वाले कुलपतियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने ,नौकरी से निकालने,ब्लैक लिस्टेड करने के बारे में कोई जिक्र नहीं है। जबकि नकल करके पुस्तकें अपने नाम छपवाने,उसके बदौलत रीडर प्रोफेसर बनने ,उन पुस्तकों को प्रकाशकों-सप्लायरों की मिलिभगत से शिक्षण संस्थानों के पुस्तकालयों में खरीदवाने और उनका बिल झटपट पास कराने का विश्वविद्यालयों में एक बड़ा रैकेट बन गया है। अध्यापकों द्वारा ऐसे नकल करके लिखी गई हजारो करोड़ रूपये की पुस्तकें हर साल विश्वविद्यालयों ,महाविद्यालयों की पुस्तकालयों में खरीदी जाती हैं।ऐसी पुस्तकों पर प्रकाशक -सप्लायर 60 प्रतिशत तक की छूट देता है। जबकि वि.वि.,महाविद्यालयों में 10 से 20 प्रतिशत की छूट दिखा खरीद होती है। इस तरह एक करोड़ ऱूपये की पुस्तकों की खरीद पर लगभग 40 लाख रूपये से अधिक रकम पुस्तक खरीद का रिकमेंडेशन करने वाले अध्यापकों, कुलपति,लेखाअधिकारी,पुस्तकालयअध्यक्ष,रजिस्ट्रार आदि के बीच चढ़ावे के रूप चढ़ जाती है। इसमें हर साल लगभग 500 करोड़ रूपये का घोटाला हो रहा है।इसी तरह नकल करके पी-एच.डी.,डि.लिट.करने वाले, रिसर्च पेपर लिखने वालों का भी मामला है । लेकिन कोई भी कुलपति इस बारे में प्रमाण सहित कम्प्लेन करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।मामला दबाने के लिए हर संभव उपक्रम कर रहा है।जिस महात्मागांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी में 60 विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक हो रही है उसी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डीन राममोहन पाठक ने नकल करके पी-एच.डी. किया उसे पुस्तक के रूप में छपवाया है, रीडर –हेड अनिल उपाध्याय ने नकल करके पुस्तक लिखा है, इन पुस्तकों के बदौलत दोनो ने प्रोमोशन पाया है, इन दोनो अध्यापकों के नकल करके किताब लिखने के कारनामों के बारे में सीएनईबी न्यूज चैनल में प्रमाण सहित कई एपीसोड में दिखाया गया, उनकी सी.डी. व दस्तावेज सहित लिखित में इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए कम्प्लेन विश्वविद्यालय के कुलपति अवध राम (AVADH RAM) और कुलाधिपति राज्यपाल बी.एल.जोशी (B.L.JOSHI) को दिया गया । कई माह बीत गया अब तक कोई कार्रवाई तो हुई नहीं, इस बीच राममोहन पाठक को इसी अवध राम ने डीन भी बना दिया।
वाराणसी से सटे ही जौनपुर है। वहां का बीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय तो नकलकरके पुस्तकें ,शोध-पत्र लिखने वालों का सिरमौर है। वहां का कुलपति रहे पी.सी.पातंजलि( P.C. PATANJALI),वर्तमान डीन रामजी लाल( RAMJI LAL), रीडर एस.के.सिन्हा( S.K.SINHA),लेक्चरर अनिल कुमार राय अंकित(ANIL KUMAR RAI ANKIT यहां अवैतनिक अवकाश पर है, वर्धा के म.अं.हि.वि.वि.में अपने सजातीय पुलिस से कुलपति बने विभूतिनारायण राय (VIBHUTI NARAYAN RAI) की कृपा से प्रोफेसर –हेड बन गया है)ने नकल करके किताबें लिखी है,इनके बारे में भी कई एपीसोड में सीएनईबी न्यूज चैनल ने दिखाया और सप्रमाण कम्प्लेन इसी राज्यपाल महोदय के अलावा पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति सारस्वत को किया है। कुलपति सारस्वत ने दिखाने के लिए जौनपुर वासी विनय कुमार सिंह की एक सदस्यी जांच कमेटी बना दिया है, जिसको उन्होने वह दस्तावेज अबी तक प्रमाण दिया ही नहीं है जिसे सीएनईबी टीम ने आन कैमरा इसी कुलपति सारस्वत और कुल सचिव को दिया था। सीएनईबी ने विनय कुमार सिंह के हाथ में उन एपीसोड की सीडी देकर रिसीविंग का हस्ताक्षर करा लिया है, जिसमें चोरगुरू रामजी लाल,एस.के.सिन्हा और अनिल के. राय दिखाये गये थे। विनय कुमार सिंह से सीएनईबी रिपोर्टर ने पूछा था कि आपने रामजी लाल,एस.के.सिन्हा और अनिल राय अंकित को नोटिस दिया है या नहीं ,उनके उनकी नकल करके लिखी पुस्तकें मांगी है या नहीं तो विनय सिंह बताया कि अनिल राय तो अब यहां है नहीं और बाकी लोगों को भी नोटिस नहीं दिया गया है। जबकि कुलपति सारस्वत ने चोरगुरू कार्यक्रम बनाने वाली सीएनईबी टीम के सवाल पर आन रिकार्ड कहा है कि अनिल कुमार राय ने पूर्वांचल वि.वि. में नौकरी करते हुए ये पुस्तकें लिखा है ,सो उसके इन पुस्तकों की नकल की जांच यहां से भी कराई जायेगी, जिस समय सारस्वत ने यह बात कही थी उसके पहले उनके साथ बैठे कुल सचिव (रजिस्ट्रार) आर्या ने कहा था कि अनिल राय तो यहां से चला गया है । जब रजिस्ट्रार से यह पूछा गया कि आप कह रहे हैं चला गया है लेकिन आपके वि.वि. के साइट पर पत्रकारिता विभाग वाले सेगमेंट में तो अनिल कुमार राय ,लेक्चरर ,अवैतनिक अवकाश दिया है, इस पर रजिस्ट्रार आर्या का जबाब था- उसने अवकाश के लिए आवेदन नहीं दिया है इसलिए एक साल पूरा होने पर आटोमेटिकली वह अब यहां का इम्प्लाई नहीं रहा,उसकी छुट्टी नहीं रही। यह है उस आर्या का तर्क जो उ.प्. के ही एक अन्य वि.वि. में रजिस्ट्रार रहते भ्रष्टाचार के आरोप में कई माह जेल में रह चुके हैं।कहा जाता है कि इनकी चोरगुरू अनिल कुमार राय से बहुत ही घनिष्ठता है और उसको व पूर्वांचल वि.वि. के अन्य चोरगुरूओं का बचाव करने में इसका भी बहुत बड़ा हाथ है। ये जो सज्जन विनय कुमार सिंह जांच कमेटी के चेयर मैन बनाये गये हैं वह चोरगुरू रामजी लाल के सेमिनार में गेस्ट थे।उन्होने रामजी लाल, एस.के.सिन्हा,अनिल के.राय अंकित और इनकी नकलचेपी पुस्तकों को छापने व इसी विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले सप्लायर प्रदीप जैन को अब तक कोई नोटिस नहीं दिया है।नहीं इनसे इनकी नकल करके लिखी व छापी गई पुस्तकें ही मांगी है। कुछ दिन पहले इसी कुलपति सारस्वत ने प्रदीप माथुर (PRADIP MATHUR) को अपना एकेडमिक एडवाइजर बनाकर मोटी सेलरी पर वि.वि. में रख लिया है। यह प्रदीप माथुर वही हैं जिनकी चोरुगुरू पातंजलि ,रामजी लाल,अनिल कुमार राय अंकित से खूब घनिष्ठता है।यह अनिल राय के अंडर में पी-एच.डी.कर रहे एक छात्र का वाइवा लेने भी फरवरी 10 में इसी वि.वि. में आये थे। अनिल कुमार राय अंकित ने नकल करके लिखी एक दर्जन पुस्तकों में से एक पुस्तक “कम्युनिकेशन मैनेजमेंट लिसनिंग वर्सेस हियरिंग” इसी प्रदीप माथुर को समर्पित किया है। बताया जाता है कि इस प्रदीप माथुर को रजिस्ट्रार आर्या ने कुलपति का एकेडमिक एडवाइजर बनवाने में मुख्य भूमिका निभाई है।कहा जाता है कि इसके पीछे चोरगुरू अनिल राय और रामजी लाल का भी हाथ है । रामजी लाल , एस.के. सिन्हा और प्रदीप माथुर की जाति एक ही है। पूर्वांचल वि.वि. में चर्चा है कि प्रदीप माथुर को चोरगुरूओं –रामजी लाल,एस.के.सिन्हा,अनिल के. राय अंकित का मामला रफा-दफा कराने ,दबवाने के लिए लाया गया है। लेकिन पूर्वांचल वि.वि. में जितने भी अध्यापकों की किताबें दरियागंज ,दिल्ली के प्रकाशक,सप्लायर प्रदीप जैन ने छापा है उसमें से ज्यादेतर के बारे में नकल करके लिखी होने की प्रबल संभावना है, जिसका प्रमाण जल्दी ही सबके सामने आ जायेगा। ऐसे में चोरगुरूओं को अघोषित रूप से बचाने के लिए लाये गये प्रदीप माथुर क्या कर पायेंगे यह आगे पता चलेगा, वैसे भी जब प्रदीप माथुर को 9 माह पहले पता चल गया कि अनिल राय अंकित ने उनको जो पुस्तक समर्पित किया है वह नकल करके लिखा है,यह जानने के बाद भी यदि वह अघोषित रूप से उसका बचाव कर रहे हैं तो यह उनका जमीर है, जो बाहर कुछ और व अन्दर कुछ और के तथाकथित दोहरे चरित्र का द्योतक हो सकता है। इस सबसे साफ जाहिर होता है कि कुलपति सारस्वत किस तरह चोरगुरूओं व उनके संरक्षकों को संरक्षण दे रहे हैं।अलग-अलग कम्पनी बनाकर इन चोरगुरूओं की पुस्तकें छापने व सप्लाई करने वाले प्रदीप जैन ने बीते 5 साल में होल-सोल सप्लायर के तौर पर पूर्वांचल वि.वि. में जो पुस्तकें सप्लाई किया है उसमें लगभग 5 करोड़ रूपये से अधिक का घोटाला का आरोप है। इसमें कुलपति,डीन,अध्यापकों,रजिस्ट्रार,लेखाअधिकारी,पुस्तकालयाध्यक्ष सबपर लेन-देन का आरोप है।इस लिए भी कुलपति सारस्वत अब तक जांच को टालते रहे हैं और इस बाबत किसी भी आरटीआई का जबाब नहीं दिया हैं।इस दौरान चोरगुरू एस.के.सिन्हा को लेक्चरर से रीडर भी बना दिये। अनिल कुमार राय अंकित ने नकल करके लिखी अपनी एक पुस्तक-संचार के सात सोपान का सिनेमा वाला पूरा का पूरा चैप्टर ही अवधेश प्रताप सिंह वि.वि. रीवा के पत्रकारिता के स्टडी मैटेरियल से हुबूह उतारकर छाप लिया है(बिना कोई रिफरेंस दिये, सभी चोर गुरूओं ने यही किया है, यदि नकल करके लिखी अपनी किसी किताब में रिफरेंस भी दिया है तो गलत दिया है,जिन कितबों से मैटर चुराया है उनका नाम ही नहीं दिया है)।इस बारे में प्रमाण सहित कम्प्लेन रीवा वि.वि. के कुलपति यादव को किया गया।उन्होने अनिल अंकित को नोटिस दिलवाकर चुप्पी साध ली, 9 माह बीत जाने पर भी अब तक केस दायर नहीं किया है।अनिल राय ने जौनपुर में पढ़ाते हुए रीवा से पत्रकारिता किया और वहां के स्टडी मैटेरियल को हूबहू अपने नाम से किताब में छाप लिया।
जौनपुर के अलावा बुंदेलखंड वि.वि. के पूर्व कुलपति रमेश चन्द्रा, उनकी रिश्तेदार लेक्चरर सविता कुमारी (अब जामिया,दिल्ली में रीडर हैं), पूर्व डीन डीएस श्रीवास्तव ( जो अब अतर्रा कालेज,उ.प्र. में हैं ) के नकल करके किताबें लिखने के कारनामें प्रमाण सहित राज्यपाल बी.एल. जोशी को दिया गया है।जिस सीएनईबी न्यूज चैनेल ने इन चोरगुरूओं के बारे में दिखाया उसने तो प्रमाण सहित कम्प्लेन किया ही है, कई सांसदों ने भी राष्ट्रपति,राज्यपाल,प्रधानमंत्री ,शिक्षामंत्री को पत्र लिख ऐसे चोरगुरूओं को नौकरी से निकालने,इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए लिखा है ।ऐसे नकलचेपी कुलपतियों,प्रफेसरों,रीडरों,लेक्चररों,इनको बचारहे कुलपतियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के बारे में विद्यापीठ में जुटे 60 कुलपति क्यों नहीं विमर्श व निर्णय कर रहे हैं ? जितने भी कुलपतियों से नकल करके पस्तकें लिखने,इन पुस्तकों को शैक्षणिक संस्थानों के पुस्तकालयों में सप्लाई कराने के लगभग 500 करोड़ रूपये के इस भ्रष्टाचार,शैक्षणिक कदाचार के बारे में प्रमाण दिखाकर बात किया गया तो सबने कहा कि यह तो बहुत ही गलत है,ऐसे अध्यापको को शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में रहने का कोई अधिकार ही नहीं है,उनको तो बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए,लेकिन जब सबूत देकर यह करने के लिए कहा जाता है तो यही कुलपति ,कुलाधिपति कन्नी काटने लगते हैं । क्यों नहीं ये कुलपति निम्न नियम बनवाते हैं-
1- शोध छात्रो को पी-एच.डी. एवार्ड करने के पहले उनके शोध- प्रबंध की जांच कराई जायेगी ।कहिं से मैटर चुराकर शोध-प्रबंध लिखा होने पर उसे रद्द कर छात्र को 10 साल तक के लिए पी-एच.डी. करने पर रोक लगा दिया जाय।
2- हर शोध –छात्र से पी-एच.डी. का शोध-प्रबंध जमा करते समय शपथ पत्र भरवा लिया जाय । यह कि उसके शोध-प्रबंध में कहीं से मैटर चुरा कर नहीं लिखा गया है। यदि यह पाया गया तो उसका पी-एच.डी.रद्दकर दिया जाये,यदि वह कहीं शिक्षण कार्य करता है तो उसे शैक्षणिक कार्य से निकाल बाहर किया जाये।
3- जिन अध्यापकों के अधिन शोध करने वाले छात्र का शोध-प्रबंध का मैटर चोरी का पाया जाय उस अध्यापक को डिमोट कर दिया जाय, उसके तीन शोध छात्रों का ऐसा मामला आने पर उस अध्यापक को नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाय।
4- छात्र , लेक्चरर,रीडर,प्रोफेसर शोत्र-पत्र लिखकर किसी सेमिनार में पढ़ते हैं ,किसी जर्नल में छपवाते हैं। इन सबसे भी एक शपथ –पत्र भरवाना चाहिए कि उसने जो यह शोध-पत्र लिखा है उसमें यदि कोई मैटर चोरी का पाया गया तो उसको नौकरी से निकाल दिया जाये। ऐसे शोध –पत्रों को भी पहले विभाग की एक कमेटी बनवाकर जांच करा लिया जाय कि इसमें मैटर चोरी का तो नहीं है।
5- लेक्चरर,रीडर,प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार के समय साक्षात्कार देने वाले के आवेदन सहित बायोडाटा में दिये हर किताब ,शोध-पत्र का जांच कराया जाय कि मैटर चोरी करके लिखा गया है या नहीं। यदि उस साक्षात्कार देने वाले ने मैटर चोरी करके शोध-पत्र या किताब लिखा है तो उसको वहीं पुलिस के हवाले कर दिया जाय।उसका नाम वि.वि. के वेवसाइट पर प्रमाण सहित दे दिया जाय ताकि सब उसके बारे में जान जायें व सावधान हो जायें।
6- हर विश्वविद्यालय में पुस्तकालयों के लिए खरीदी जाने वाली पुस्तकों की जांच के लिए कि क्या यह किताब कहीं से मैटर चुराकर लिखी गई है, एक टेक्निकल एक्सपर्ट कमेटी बना दिया जाय। उसके जांचने के बाद पुस्तकें खरीदी जाय।
7- जो अध्यापक किसी नकल करके लिखी कई किताब की खरीद की अनुशंसा करता है उस अध्यापक को डिमोट कर दिया जाय।
8- जो प्रकाशक –सप्लायर मैटर चोरी कर बनाई गई पुस्तकों को छापता-सप्लाई करता है उसका पेमेंट रोक दिया जाय,उसको ब्लैकलिस्टेड कर दिया जाय,उसके खिलाफ केस किया जाय।
9- जो कुलपति,कुलसचिव,डीन,विभागाध्यक्ष,पुस्तकालयाध्यक्ष किसी सप्लायर से अंदर-अंदर सांठ-गांठ करके नकल करके लिखी गई पुस्तकों की खरीद विश्वविद्यालय के लिए करवाता है उनके इस शैक्षणिक कदाचार व भ्रष्टाचार का एक मांह में जांच कराकर उनको बर्खास्त कर दिया जाय।
10- हर विश्वविद्यालय में शोध-पत्र व पुस्तक जांच सेल बनाया जाय। जो विश्वविद्यालय के सभी अध्यापकों के पी-एच.डी.,पुस्तकों की जांच करे । यदि पाया जाय कि गरूजी ने मैटर चोरी करके शोध-प्रबंध या पुस्तकें लिखी है तो उनको पुलिस के हवाले करके शैक्षणिक कदाचार के मामले में बर्खास्त कर दिया जाय।