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date26-09-2013,09.55A.M.
यह खबर " लोकमत"लखनऊ में 25-09-2013 को पहले पन्ने पर छपी है।
RESITRAR S.L.MAURYA LETTER P-1 |
RESITRAR S.L.MAURYA LETTER P-2 |
ENQUIRY REPORT P-1 |
ENQUIRY REPOT P-2 |
CASE PENDING,DATE 26.09.2013 |
CM,UGC,ORDER |
ANIL KUMAR UPADHYAY |
PRITHVISH NAG |
SAHAB LAL MAURYA |
OM PRAKASH SINGH |
राज्यपाल के चहेते नाग का कारनामा
हाईकोर्ट में फैसला हुआ नहीं,समझौता दिखा
चोरगुरू को प्रोफेसर बनाया
यूजीसी अध्यक्ष ने शैक्षणिक कदाचार पर
स्पष्टीकरण मांगा
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली।उ.प्र. के राज्यपाल बी.एल.जोशी
के चहेते कुलपति पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने नकल करके डी.लिट. और
किताब लिखने वाले डा.अनिल कुमार उपाध्याय को मनमाने तरीके से प्रोफेसर बना दिया।
इसके लिए इलाहाबाद हाइकोर्ट का फैसला आये बिना ही( कोर्ट नं. 44 में अगली
तारीख(संभावित) 26-09-2013 है),उसके
मेडिएशन सेंटर में 06-04-13 को दो व्यक्तियों(डा.ओम प्रकाश सिंह और डा.
अनिल कुमार उपाध्याय) के आपसी समझौते(चर्चा है कि वह भी अभी फुलफिल नहीं हुआ है)
को आधार बनाया है।और उसके आधार पर डा.अनिल कुमार उपाध्याय को विश्वविद्यालय के
अध्यापक के रूप में किये शैक्षणिक कदाचार,शिक्षक आचार संहिता का उल्लंघन,धोखाधड़ी आदि
से क्लीनचिट दे दिया है। जबकि दो व्यक्तियों के आपसी समझौते का इस मामले में कोई
लीगल वैल्यू नहीं है। और इस समझौते से डा. अनिल उपाध्याय का शैक्षणिक कदाचार
(एजुकेशनल मिसकंडक्ट),शिक्षक आचार संहिता का उल्लंघन,धोखाधड़ी आदि का अपराध खत्म
नहीं हो जाता है। वह भी इस हालत में जबकि चर्चा है कि उस समझौते में अनिल कुमार
उपाध्याय ने लिखित में स्वीकार किया है कि ओम प्रकाश सिंह के पुस्तक से सामग्री
हूबहू उतारी है।
मालूम हो कि डा.अनिल कुमार उपाध्याय ने
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में अध्यापक के पद पर रहते हुए ओम प्रकाश सिंह के
पी.एचडी. थीसिस से सामग्री हूबहू उतारकर अपनी डी.लिट. की थीसिस लिखा है । जिसको
पुस्तक के रूप में भी छपवाया है।डा. ओम प्रकाश सिंह भी इसी विश्वविद्यालय में
प्रोफेसर हैं। यानी एक ही विश्वविद्यालय के एक अध्यापक के पी.एचडी. थीसिस से सामग्री
हूबहू उतारकर दूसरे अध्यापक ने डी.लिट.थीसिस लिख लिया , किताब लिख लिया, और उसी
विश्वविद्यालय से डी.लिट. की उपाधि ले लिया। उसके इस नकलचेपी कारनामे को प्रमाण सहित एक टीवी
चैनेल में “चोरगुरू” कार्यक्रम में दिखाया गया।जिस पर सांसद
राजेन्द्रसिंह राणा,हर्षवर्धन सहित कई सांसद व सामाजिक कार्यकर्ता आदि ने राष्ट्रपति,
राज्यपाल ,प्रधानमंत्री,यूजीसी चेयरमैन,कुलपति ,कुलसचिव को 2009 से लगातार प्रमाण
सहित पत्र लिखकर अनिल कुमार उपाध्याय व अन्य चोरगुरूओं को अध्यापक के पद से बर्खास्त करने की मांग करते
रहे हैं। इसके बावजूद काशी विद्यापीठ के कुलपति व कुलसचिव ने बेशर्मी व मनमाने
तरीके से चोरगुरू डा.अनिल कुमार उपाध्याय को बचाते हुए प्रोफेसर बना दिया। इस बारे
में 2009 से पत्र लिखते रहे सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश गोदुका ने यूजीसी
अध्यक्ष,राज्यपाल,कुलपति,कुलसचिव को पत्र लिखा था कि चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय
को प्रोफेसर बनाने के लिए किया जा रहा साक्षात्कार स्थगित कराया जाय और उनके
शैक्षणिक कदाचार पर कार्रवाई करते हुए उनकी डी.लिट. की डिग्री रद्द की जाय,नौकरी
से बर्खास्त किया जाय । लेकिन अनिल कुमार उपाध्याय को संरक्षण देकर शैक्षणिक कदाचार को बढावा देने में लगे
कुलपति नाग और कुलसचिव साहब लाल ने उनको प्रोफेसर बना दिया। यूजीसी ने 18-07-2013
को पत्र संख्या F-54-4/2010(SU-II)
के
मार्फत कैलाश गोदुका के कई पत्रों में से 20-06-2013 वाले पत्र पर महात्मा गांधी
काशी विद्यापीठ,वाराणसी से जवाब मांगा तो कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने यूजीसी के अनु
सचिव को दिनांक 12-08-2013 का लिखा दो पृष्ठ का पत्र (पत्रांक – कु.स./8457/ 2A साप्र 1(जांच)/ 2013 भेजा।इसके साथ 4 पृष्ठ दस्तावेज भी भेजा। यूजीसी के अनुसचिव
श्रीमति परमजीत ने एक पृष्ठ के कवरिंग लेटर के साथ उसकी प्रति दिनांक 6-09-2013 को
कैलाश गोदुका के यहां भेज दिया।उसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट के मेडिएशन और कानसिलिएशन
सेंटर में किये सेटलमेंट एग्रीमेंट का मात्र एक पृष्ठ लगाया गया है,बाकी पृष्ठ
नहीं जिससे कि अनिल कुमार उपाध्याय ने
क्या क्या कबूला है ,खुलासा नहीं हो सके। साहब लाल के पत्र के साथ अनिल
उपाध्याय के शैक्षणिक कदाचार की जांच की 2 पृष्ठ की रिपोर्ट भी है। चोरगुरू अनिल उपाध्याय
के शैक्षणिक कदाचार का लिखित शिकायत देने और आन कैमरा प्रमाण दिखाने के कई माह बाद
तबके कुलपति अवध राम के आदेश पर 7 अप्रैल 2010 को प्रो.टी.सिंह(त्रिलोकी सिंह) की
अध्यक्षता में 4 सदस्यों वाली जांच समिति गठित की गई। जिसमें प्रो.शिशिर
बसु,प्रो.आरपी सेन और प्रो. नन्दलाल को सदस्य बनाया गया। प्रो.बसु ने मना कर दिया
तो अलीगढ़ मुस्लिम वि.वि. के प्रो. सफी
किदवई को उनकी जगह सदस्य बनाया गया। इसकी पहली बैठक 19-01-2011 को हुई, जिसमें
टी.सिंह,किदवई,नन्दलाल शामिल हुए। किदवई की अनुपस्थिति में दूसरी व अंतिम बैठक
23-07-2013 को हुई जिसमें अध्यक्ष टी.सिंह,और संयोजक नन्द लाल (दोनों कुरमी हैं और
नंद लाल के विरूद्ध झारखंड पीसीएस की कापी में नम्बर बढाने के मामले में सीबीआई
जांच चल रही है) शामिल हुए ।और दोनों ने 15-08-2013 को अंतिम रिपोर्ट लगा दी। जिसका शीर्षक है- डा. अनिल कुमार
उपाध्याय,रीडर,पत्रकारिता विभाग के शैक्षणिक कदाचार (विवादित – डी.लिट. थीसिस) की
जांच हेतु गठित समिति की रिपोर्ट
इसमें है कि अध्यक्ष और संयोजक की उपस्थिति में समिति ने अंतिम रूप से
निम्नांकित निर्णय लिए-
1-
विधिक राय पर विचार करते हुए समिति ने यह निर्णय लिया कि शिकायत कर्ता
अपनी पुस्तक से संबंधित शिकायत का निस्तारण इंडियन कापी राइट एक्ट के तहत यथोचित
प्राधिकरण से कर सकता है, तथा
2-
डा. अनिल उपाध्याय की डी.लिट. थीसिस तीन विषय विशेषज्ञों की संस्तुति
पर पहले ही एवार्ड की जा चुकी है । यह विश्वविद्यालय की सर्वोच्च उपाधि है। समिति
का यह मानना है कि इस शोध – प्रबंध से संबंधित कोई भी प्रकरण / बिन्दु विषय विशेषज्ञों को ही संदर्भित
किया जाना चाहिए।
इस तरह अपने दोनों विरादर के मार्फत कुलपति अवध राम ने शैक्षणिक कदाचारी
डा.अनिल कुमार उपाध्याय के जांच की लीपापोती करवा दी।
और इस जांच रिपोर्ट को संतोषजनक नहीं
मानते हुए विश्वविद्यालय ने कार्यपरिषद के सदस्य प्रभाकर झा की अध्यक्षता में एक
दूसरी जांच समिति भी गठित करवा दी,जिसकी रिपोर्ट अभी भी प्रतीक्षित है। जिसका
जिक्र कुलसचिव साहब लाल के पत्र के पैरा 2 के अंत में है।
अपने पत्र के पृष्ठ 1 के पैरा 3 में साहब
लाल क्या लिखते हैं देखिये – “.. यह भी कि इसी मध्य प्रो. ओम
प्रकाश सिंह के अभिलेखों की चोरी कर अपने
नाम से प्रकाशित करने के तथाकथित प्रकरण
पर माननीय उच्च न्यायालय में डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा वाद में प्रो. ओम प्रकाश सिंह एवं डा. अनिल कुमार
उपाध्याय के बीच सुलह/
समझौता हो चुका है जो संलग्न 2 पर अवलोकनीय है जिससे स्पष्ट है कि प्रो. ओमप्रकाश
सिंह का डा. अनिल कुमार उपाध्याय पर अब अभिलेखों
के चोरी का कोई विवाद नहीं है। अब
जबकि प्रो. ओम प्रकाश सिंह का अपने
अभिलेखों से चोरी का अब कोई विवाद नहीं है तो अन्य कोई यह आरोप कैसे लगा सकता है।
प्रत्यावेदन की प्रस्तरवार आख्या अधोलिखित
प्रकार है :
उपर्युक्त सम्पूर्ण वस्तुस्थिति से स्पष्ट
है कि प्रत्यावेदक द्वारा डा. उपाध्याय की प्रोन्नति को रोकने के उद्देश्य से
समस्त कार्वाही की गई है जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि डा. उपाध्याय के साथ
प्रत्यावेदक का कोई व्यक्तिगत रंजिश या प्रतिद्वंदिता है। अत: प्रशनगत शिकायत विचारणीय न होकर निरस्त
करने योग्य है। भवदीय –डा.(साहब लाल मौर्य),कुलसचिव । ”
विश्वविद्यालय के कुलपति नाग ,कुलसचिव
साहब लाल द्वारा शैक्षणिक कदाचारी को इस तरह से मनमाने तरीके से संरक्षण व प्रोन्नति देते हुए बेशर्म तर्क देने
वाला पत्र वाया अंडर सेक्रेटरी यूजीसी, दिनांक 12-09-2013 को पाने के बाद कैलाश
गोदुका ने उनके इस कारनामे के विरूद्ध 15-09-2013 को अध्यक्ष,यूजीसी,कुलपति
पृथ्वीश नाग,कुलसचिव साहब लाल मौर्य ,राज्यपाल और मुख्यमंत्री उ.प्र. को 5 पृष्ठ
का पत्र लिखा और उसके साथ साहब लाल का पत्र व संलग्न दस्तावेज 7 पृष्ठ लगाकर पहले
ई-मेल उसके बाद रजिस्ट्री करके कार्रवाई
करने की मांग की। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष ने उस पर दिनांक
20-09-2013 को ज्वाइंट सेक्रेटरी ( स्टेट यूनिवर्सिटी) को निम्न आदेश दे दिया – “ प्लीज सीक द क्लीयरिफिकेशन फ्राम द
यूनिवर्सिटी एबाउट (I)एजुकेशनल करप्शन, एंड (II) प्लेगरिज्म।” देखिए आगे क्या होता है।
DATE26.09.2013,09.55A.M.
DATE26.09.2013,09.55A.M.