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हाईकोर्ट के अंतिम
आदेश के पहले ही मेडिएशन सेन्टर के दस्तावेज का चोरगुरू व कुलसचिव ने किया
दुरूपयोग
चोरगुरू को
बचाने ,प्रोफेसर बनाने के लिए कुलपति नाग,कुलसचिव साहब लाल ने किया यह कारनामा
क्या डा.
अनिल कुमार उपाध्याय ने 20 हजार रूपया देकर नकलचेपी होना स्वीकार किया ?
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली। इलाहाबाद
हाईकोर्ट के अंतिम आदेश के पहले ही
मेडिएशन सेन्टर का दस्तावेज का महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के चोरगुरू
डा. अनिल कुमार उपाध्याय और कुलसचिव साहब लाल वर्मा ने दुरूपयोग किया। कहा जाता है कि कुलपति पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्य
ने शैक्षणिक कदाचारी,चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय
को बचाने ,प्रोफेसर बनाने के लिए यह कारनामा किया। चर्चा यह भी है कि डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने 20 हजार
रूपया भी देने और नकलचेपी होना भी स्वीकारने वाला करार किया है।
इलाहाबाद हाई
कोर्ट के मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर
में डा.अनिल उपाध्याय(नकलकरके डी.लिट./पुस्तक लिखने वाले)
और डा. ओमप्रकाश सिंह (जिनकी पी.एचडी.थीसिस / पुस्तक से
नकल किया है ) के बीच दिनांक 06-04-2013 को समझौते पर हस्ताक्षर हुआ।
दोनों पक्षों के बीच विवाद के चलते उच्च
न्यायालय में Crl.Mise Application No.9568 of 2012
फाइल
हुआ। माननीय न्यायाधीश बाला कृष्ण नारायण के 22-05-2012 के आदेश पर मामला मेडिएशन
और कान्सिलिएशन सेन्टर में भेज दिया गया। जहां मेडिएटर/कांसिलेटर
वकीलों के मार्फत दोनों पक्षों में विवाद सुलह के लिए
21-06-2012,21-07-2012,25-08-2012,06-10-2012,15-12-2012,05-01-2013,02-03-2013 और
06-04-2013 को संयुक्त रूप से व अलग-अलग
बैठक हुई। दोनों पक्षों ( अनिल कुमार उपाध्याय और ओम प्रकाश सिंह) ने मेडिएटर/कांसिलेटर
वकीलों की उपस्थिति समझौते पर हस्ताक्षर किया।उस पर मेडिएटर/कांसिलेटर
वकीलों व दोनों के वकीलों ने भी हस्ताक्षर किया।अभी केस पर उच्च न्यायालय का अंतिम आदेश नहीं आया है। 06.04.2013 के बाद भी लगातार तारीख पड़ रही है। दिनांक 26.09.2013 को सुनवाई संभावित रही।
CASE PENDING,DATE 26.09.2013 |
समझौते के अनुसार माननीय
न्यायालय के समक्ष डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा डा. ओम प्रकाश सिंह को रू.20,000 /-
दिया जायेगा। अनिल उपाध्याय ने ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट III, वाराणसी
में राहुल देव( तत्कालीन एडीटर इन चीफ सीएनईबी न्यूज चैनल) के विरूद्ध जो मुकदमा
किया है और जिसके तलबी आदेश के विरूद्ध
राहुल देव ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किया है और दोनों ही याचिकाएं लंबित हैं,उस मामले में अनिल उपाध्याय
वाराणसी के न्यायालय से मुकदमा वापस लेंगे । अनिल उपाध्याय और ओम प्रकाश सिंह एक
दूसरे से और कोई दावा,मांग नहीं करेंगे।
यह है इलाहाबाद
हाईकोर्ट के मेडिएशन और कान्सिलिएशन
सेन्टर में डा.अनिल उपाध्याय(नकलकरके पुस्तक लिखने वाले) और डा. ओमप्रकाश सिंह
(जिनकी पी.एचडी.थीसिस ,पुस्तक से नकल किया है ) के बीच 06-04-2013 को समझौता का सारांश । चर्चा है कि अनिल कुमार
उपाध्याय और ओमप्रकाश सिंह ने इस समझौते को विस्तार से अलग से कई पृष्ठ में हिन्दी
में लिखित समझौता किया है ।
अब इस समझौते पर कई सवाल खड़े होते हैं।
विद्वान वकीलों का कहना है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट
के मेडिएशन सेन्टर में जब तक केस का फैसला नहीं हो जाता , जबतक उस पर हाई
कोर्ट का अंतिम आदेश पारित नहीं हो जाता ,
तबतक इस मुकदमे के किसी भी दस्तावेज को सार्वजनिक व उसका इस्तेमाल नहीं किया जाना
चाहिए । ऐसे में डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट के मेडिएशन और कान्सिलिएशन सेन्टर के 06-04-2013
के इस समझौता दस्तावेज को , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में प्रोफेसर पद
पर प्रमोशन के लिए लगाना,उसके आधार पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा.पृथ्वीश नाग और
कुलसचिव साहब लाल मौर्य का उनको मनमाने तरीके से प्रोफेसर पद पर पदोन्नति करा देना
, यूजीसी द्वारा इस मामले में कैलाश गोदुका के 20-06-2013 के पत्र पर जवाब देने का
आदेश दिये जाने के बाद कुलसचिव साहब लाल मौर्य ने शैक्षणिक कदाचारी , चोरगुरू अनिल
उपाध्याय को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नत किये जाने के कुलपति नाग व अपने किये को जायज
ठहराने के लिए अन्य 3 पृष्ठ दस्तावेज के
साथ इस 1 पृष्ठ दस्तावेज को भी यूजीसी को दिनांक 12-08-2013 को भेज दिया जाना ,
दस्तावेज का सरासर दुरूपयोग है।
डा.अनिल उपाध्याय , महात्मा गांधी काशी
विद्यापीठ,वाराणसी में अध्यापक पद पर रहते
हुए,जनता के टैक्स के पैसे से मोटी सेलरी लेते हुए ,नकल करके ( डा. ओम प्रकाश सिंह
की पी.एचडी. थीसिस/पुस्तक से
)उसी विश्वविद्यालय से डी.लिट. की डिग्री लेते हैं,किताब लिखते हैं,यूजीसी
के नार्म के अनुसार उस डी.लिट.,किताब पर अंक पाकर रीडर और अब प्रोफेसर बना दिये
जाते हैं। क्या यह शैक्षणिक कदाचार का मामला नहीं है?क्या यह
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिनियम – विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा
शर्तें 14.02 का उल्लंघन नहीं है ? क्या यह नियुक्ति के समय अध्यापक द्वारा
हस्ताक्षर किये जाने वाले करार का उल्लंघन नहीं है ? क्या यह
विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा शर्तें 14.04 का (ख) दुराचरण (ग)
विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के संबंध में बेईमानी , नहीं है ? सब है।इसके सबूत हैं। उसके बाद भी कुलपति
नाग,कुलसचिव साहब लाल विश्वविद्यालय के अध्यापकों की सेवा शर्तें 14.04 के तहत शैक्षणिक कदाचारी डा. अनिल कुमार
उपाध्याय की डी.लिट. की डिग्री वापस ले ,नौकरी से बर्खास्त क्यों नहीं कर रहे हैं?
इसे केवल कापी राइट का मामला बताकर, जिसके थीसिस या किताब से सामग्री चुराकर थीसिस
या किताब लिखा उससे समझौता , सुलह हो जाने का मामला बताकर शैक्षणिक कदाचारी ,
चोरगुरू आरोपी डा. अनिल कुमार उपाध्याय को
बचाने का काम क्यों कर रहे हैं? जबकि इसी तरह के चोर गुरू मामले में जामिया
मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय ,दिल्ली के रीडर डा. दीपक केम को बर्खास्त किया जा
चुका है और उनकी बर्खास्तगी को दिल्ली हाइकोर्ट के डबल बेंच ने भी जायज ठहराया है।
डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने 2009 और
2010 में CNEB
न्यूज चैनल के “चोरगुरू” कार्यक्रम में
शैक्षणिक कदाचार , नकलचेपी कारनामा प्रमाण सहित दिखाये जाने के बाद अपने को मौलिक लेखक होने का दावा करते हुए
ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट III, वाराणसी में राहुल देव ( तब CNEB
न्यूज चैनल में थे) के विरूद्ध जो आपराधिक आदि मुकदमा किया है और जिसके तलबी आदेश के विरूद्ध राहुल देव ने इलाहाबाद
उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल किया है और दोनों ही याचिकाएं लंबित हैं।उस मामले में अनिल उपाध्याय
वाराणसी के न्यायालय से मुकदमा वापस करने का करार इस समझौता शर्त में क्यों किये
? इससे
तो यही साबित होता है कि डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने स्वीकार कर लिया है कि वह “चोरगुरू”
हैं ,शैक्षणिक कदाचारी हैं, नकल करके डी.लिट थीसिस व पुस्तक लिखे हैं। और जब यह
स्वीकार कर लिए हैं तब तो उनको बर्खास्त किया जाना चाहिए।
A.H.C.medation center agreement,06.04.13 |
ANIL KUMAR UPADHYAY |
OM PRAKASH SINGH |