Thursday, April 28, 2011

दिग्विजय बनवायेंगे चोरगुरू राममोहन को कुलपति ?

भोज विवि,विक्रम विवि,हिमाचल राज्य विवि पर निगाह

नई दिल्ली।फर्जी कागजात के आधार पर काशी में मंदिर पर कब्जा करने के आरोपी,वाराणसी विकास प्राधिकरण से अनैतिक तरीके से पत्रकार कोटे में अपने नाम पहले दुकान फिर मकान उसके बाद अपनी सगी पत्नी के नाम जमीन लेने के आरोपी,काशी हिन्दू विश्वविद्यालय(BHU) हिन्दी विभाग में पूर्णकालीक पीएचडी करने के दौरान आज अखबार में फुलटाइमर उपसम्पादक होने और उसी अनुभव के आधार पर महात्मा गांधी काशीविद्यापीठ में जुगाड़ से रीडर फिर प्रोफेसर बनने के आरोपी, काशी विद्यापीठ में पुस्तकालय का प्रभारी होने के दौरान पुस्तकों की खरीद में घोटाला करने के आरोपी ,नकल करके पीएचडी थिसिस लिखने के आरोपी तथाकथित चोरगुरू राममोहन पाठक इन दिनों कुलपति बनने के लिए दिग्विजय सिंह(DIGVIJAY SINGH) से लगायत राजनाथ सिंह(RAJNATH SINGH) ,कलराज मिश्रा (KALARAJ MISHRA) तक के यहां मत्था टेक जुगाड़ लगा रहे हैं।सूत्रों के मुताबिक तथाकथित चोर गुरू राममोहन पाठक अपने चर्चित पुत्र के साथ कांग्रेस नेता व उ.प्र. के प्रभारी दिग्विजय सिंह का कीर्तन व गणेशपरिक्रमा कर रहे हैं ।ताकि प्रसन्न होकर दिग्विजय इस तमाम मामलो के आरोपी राममोहन पाठक को मध्यप्रदेश भोज खुला विश्वविद्यालय,भोपाल(MPBOU,BHOPAL) या विक्रम विश्वविद्यालय,उज्जैन ( VIKRAM UNIVERSITY,UJJAIN)या हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय,शिमला ( HIMACHAL PRDESH UNIVERSITY,SHIMLA)में से किसी का भी कुलपति बनवा दें। वह इसके लिए मध्य प्रदेश और हिमाचल के राज्यपालों पर दबाव बनावें। मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामेश्वर ठाकुर(RAMESHWAR THAKUR) कुछ माह पहले वाराणसी गये थे तो राममोहन ने उनकी खुब गणेशपरिक्रमा की थी। येन-केन- प्रकारेण कुलपति बनने के लिए जुगाड़रत राममोहन पिता -पुत्र इन दिनो लगातार दिल्ली का दौरा कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक तथाकथित चोर गुरू राममोहन पाठक ने वाराणसी से सटे गाजीपुर (उ प्र)जिले के बहरियाबाद गांव के प्रो फुरकन कमर को भी पटाने का जुगाड़ बैठाना शुरू कर दिया है। प्रो.फुरकन कमर ( PRO F KAMAR) हिमाचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति हैं ,और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का कुलपति लायक व्यक्ति खोजने के लिए बनी सर्च कमेटी के अध्यक्ष हैं। कहा जाता है कि इस सर्च कमेटी की बैठक 29 अप्रैल 2011 को है।

राममोहन पाठक( PRO. RAM MOHAN PATHAK) इस समय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी (MAHATMA GANDHI KASHI VIDYAPEETH ,VARANASI) के दो पत्रकारिता विभाग में से एक महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान में सेवारत हैं। नकल करके पीएचडी करने और उस पीएचडी थिसिस को बाद में पुस्तक के रूप में छपवाने फिर उन दोनो के आधार पर नौकरी ,प्रमोशन पाने के राममोहन पाठक के कारनामे के खिलाफ उ प्र के राज्यपाल और काशीविद्यापीठ के कुलपति के यहां सप्रमाण शिकायत की गई है, जिस पर जांच चल रही है। उसके बावजूद तथाकथित चोरगुरू राममोहन कुलपति बनने के लिए कांग्रेसियों से लगायत भाजपाई नेताओं तक के यहां कीर्तन,गणेश परिक्रमा कर रहे हैं। मध्यप्रदेश और हिमाचल में भाजपा की सरकार हैं,इसलिए भाजपा के नेताओं के मार्फत दोनो राज्यों के शिक्षा मंत्रालयों को अपने पक्ष में करने का उपक्रम कर रहे हैं। दोनो राज्यों के राज्यपाल केन्द्र की कांग्रेस सरकार के बनाये हुए हैं तो दोनो राज्यपालों के यहां दिग्विजय के मार्फत सिफारिश लगाने या दबाव बनाकर नियुक्ति कराने का उपक्रम कर रहे हैं। उनके करीबीजनो का कहना है जब भ्रष्टाचार के आरोपी थामस सीवीसी ( THOMAS,CVC) बन सकते हैं,नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले अनिल के राय अंकित(Dr ANIL K RAI ANKIT) प्रोफेसर हेड बन सकते हैं, तो भ्रष्टाचार से लगायत नकल करके पीएचडी थिसिस लिखने तक के आरोपी गुरू राममोहन पाठक कुलपति क्यों नहीं बन सकते।

महामहिम मुझको कुलपति बनवा दो


त्वमेव सर्वमम् देव देव:
-SATTACHAKRA सत्ताचक्र-
बिहार के रहने वाले बुजुर्ग कांग्रेसी नेता रामेश्वर ठाकुर मध्य प्रदेश के राज्यपाल( RAMESHWAR THAKUR, GOVEROR, MADHYA PRADESH) हैं। तमाम भ्रष्टाचार व नकल करके पीएचडी थिसिस लिखने के आरोपी राममोहन पाठक (Pro RAM MOHAN PATHAK , MAHATMA GANDHI KASHI VIDYAPEETH , VARANASI)की हार्दिक इच्छा जोड़ जुगाड़ से कुलपति पद पाने की है।इसी को ध्यान में रख रामेश्वर ठाकुर को त्वमेव सर्वमम् देव देव: कह रहे राम मोहन पाठक ।

Wednesday, April 20, 2011

केन्द्रीय विवि के कुलपति पद पर नियुक्ति में किस तरह हो रही धांधली




जुगाड़ी की नियुक्ति पर मुहर लगायेंगी प्रतिभा पाटिल?

तथाकथित शिक्षा माफिया कैसे कर-करा रहे काम

-कृष्णमोहन सिंह

नई दिल्ली। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति में किस तरह धांधली हो रही है इसका ताजा उदाहरण है मिजोरम विवि। मिजोरम विश्वविद्यालय,आईजल (MIZORAM UNIVERSITY,AIZAWL) के कुलपति पद के लायक नाम तलाशने के लिए बनने वाली तलाशी समिति (SEARCH COMMITTEE) के दो सदस्यों का नाम तय करने के लिए तत्कालीन कुलपति एएन राय (A N RAI ) की अध्यक्षता में विश्विद्यालय की कार्यकारिणी समिति (EXECUTIVE COMMITTEE) की 5 अक्टूबर 2010 को ऐजल में बैठक हुई। कहा जाता है कि एएन राय ने अपने सजातीय आनन्द मोहन (BHU में भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं)से पहले ही कह रखा था कि बैठक में आप प्रो एसजी ढांडे (Prof. Sanjay Govind Dhande Director IITK Prof. of Mechanical Engineering and Computer Science & Engineering) के नाम का प्रस्ताव कीजिएगा। वही हुआ। मिजोरम विवि के अधिनियम के अनुसार कार्यकारिणी समिति दो नाम देती है। कुलपति एएन राय ने अपने अंतरंग 4 महानुभावों के नाम, एक पैनल में दो के नाम देकर , दो पैनल बनाकर ,सर्च कमेटी का सदस्य बनाने के लिए केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में भेज दिया । पहले पैनल में नाम था- 1-प्रो.अतुल शर्मा 2-प्रो.एस जी ढांडे। दूसरे पैनल में नाम था- 1-रोहमिंग थंगप्पा 2-डा एसके राव । दो पैनल इसलिये भेजा जाता है कि पहले पैनल के किसी या दोनो व्यक्ति ने मना कर दिया तो दूसरे पैनल से बुला लिया जायेगा। जैसा कि होना ही था,पहले पैनल के दोनो महानुभावों ने सर्च कमेटी का सदस्य बनने के लिए अपनी मंजूरी दे दी।

इधर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी मलयाली सुनील कुमार (SUNIL KUMAR) ने इस सर्च कमेटी का अध्यक्ष अपने ही एक मलयाली माधव मेनन (MADHAV MENAN) को बनवा दिया। जिनका पता है- देवी प्रिया, टी सी-17/2186, साईंराम रोड,परीक्षा भवन ,त्रिवेंद्रम,केरल। सुनील कुमार को एएन राय ने कैसे पटा रखा है और दोनो मिलकर क्या गुल खिला रहे हैं यह अलग कहानी है। मंत्रालय में चर्चा है कि सुनील कुमार ने ही एएन राय का मिजोरम विवि में टर्म खत्म होने के कुछ माह पहले ही नेहू विवि का कुलपति बनवा दिया ।जबकि एएन राय पर मिजोरम विवि का कुलपति रहते भ्रष्टाचार के बहुत आरोप लगे हैं। एएन राय का मिजोरम विवि में 16-04-11 को टर्म पूरा हो रहा था । लेकिन जुगाड़ और सुनील कुमार की लाभालाभी जोड़ से एएन राय बन गये एक और नेहू (North-Eastern Hill University,Shillong)के कुलपति। तो इस तरह वह सर्च कमेटी के काम शुरू करने के दौरान चले गये नेहू । इधर सर्च कमेटी ने मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए 7 नाम की संस्तुति की । जो थे-

1- प्रो एके अग्रवाल (मिजोरम विवि के कार्यकारी कुलपति) प्रोफेसर पद पर अनुभव 13साल।

2- प्रो आरपी तिवारी (मिजोरम विवि) प्रोफेसर पद पर 9 साल का अनुभव।

3- प्रो.लियान जेला(मिजोरम विवि में हैं) मिजोआदिवासी हैं,प्रोफेसर पद पर 9 साल का अनुभव ।

4-डा ट्लूंगा( नेहू के प्रोवीसी रह चुके हैं) मिजोआदिवासी हैं, प्रोफेसर पद पर अनुभव 25 साल।

5- प्रो एसडी शर्मा (प्रो वीसी ,असम विवि) इन पर तमाम आरोप हैं।

6- प्रो डेविड सिमली (नेहू में प्रोवीसी ) प्रोफेसर पद पर अनुभव 13 साल।

7- प्रो अब्दुल कलाम (सोशलअंथ्रोपोलाजिस्ट,चेन्नई) प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव ।

इसके बाद मेनन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय सर्च कमेटी 12 मार्च 2011 शनिवार को मिजोरम विवि, आईजल पहुंची। 13 मार्च 11 रविवार को कुलपति पद के उक्त उम्मीदवारो से मुलाकात किया । 14 मार्च 11 सोमवार को सुबह सिविल सोसाइटी ,आईजल के स्थानीय संस्थाओं से मिली । उनसे पूछा कि आप लोग कैसा कुलपति चाहते हैं। विवि के लोकल( मिजो )कर्मचारियों और अध्यापकों ने कुछ लोगों और स्थानीय सिविल सोसाइटी वालों को इनसे मिलवाने ,दबाव बनाने के लिए जमा कर लिया। सो लोकल लोग कहे कि लोकल कुलपति चाहिए। कहा जाता है कि सर्च कमेटी को दिल्ली से ही मंत्री कपिल सिब्बल का निर्देश था कि वहां लोकल लोगो की राय लेकर आइये कि कैसा कुलपति चाहते हैं।तो स्वाभाविक तौर पर लोकल लोग लोकल (मिजो) कुलपति चाहे। इसके बाद सर्च कमेटी के सदस्य 14 मार्च 11को वापस चले आये। मिजोरम से लौटने के बाद सर्च कमेटी ने कुलपति पद के उन सातो उम्मीदवारो को 22 मार्च 11 को दिल्ली में साक्षात्कार के लिए बुलाया। जिसमें प्रो डेविड सिमली नहीं आये, बाकी 6 आये ।

यह करने के बाद सर्च कमेटी ने मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए तीन नाम की सूची मानव संसाधन विकास मंत्रालय में भेज दिया। कहा जाता है कि इसमें पहला नाम है प्रो.लियांग जेला,दूसरा नाम है-डा ट्लूंगा, तीसरा नाम प्रो अब्दुल कलाम या प्रो एचडी शर्मा में से किसी का है। बताया जाता है कि इस सूची पर अपनी प्राथमिकता की संस्तुति दे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति भवन भेज दिया है। क्या राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ऐसे हो रही नियुक्ति पर मुहर लगायेंगी ?

इस तरह मिजोरम विवि के कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में क्या-क्या धांधली होने के आरोप हैं-

1-मिजोरम विवि का नियम है कि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव होना चाहिए। लेकिन इस नियम को दरकिनार करके सर्च कमेटी ने प्रोफेसर पद पर मात्र 9 साल (अप्रैल 2011 में हो गया 9 साल 5 माह) के अनुभव वाले प्रो लियान जेला के नाम की संस्तुति कर दी और आरपी तिवारी के नाम का चयन किया था । जबकि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए आदिवासी या गैर आदिवासी यानी किसी को भी प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव की बाध्यता में कोई छूट भी नहीं है।

2-धांधली का एक और मामला है- मिजोरम विवि के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य हैं प्रो लियान जेला। सर्च कमेटी के सदस्यों का नाम तय करने के लिए विवि कार्यकारिणी परिषद की जो बैठक 05 अक्टूबर 2011 को हुई थी ,उसमें प्रो लियान जेला शामिल थे। उस कार्यपरिषद की बैठक में सर्च कमेटी का सदस्य बनाने के लिए जिन महानुभावों का नाम रिकमेंड किया गया वही सर्च कमेटी का सदस्य बने। उन सदस्यों( प्रो अतुल शर्मा, प्रो एसजी ढ़ांडे ) ने प्रो लियान जेला का नाम मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए रिकमेंड कर दिया।उस नाम को कपिल सिब्बल (जो लगातार बयान दे रहे हैं कि कुलपति पद की नियुक्ति को राजनिति हस्तक्षेप से मुक्त करना होगा। सिब्बल साहब ठीक कह रहे हैं। लेकिन एक रोग से मुक्त करने के नाम पर क्या कुलपति की नियुक्ति , कारटेल बनाकर शिक्षा माफिया की तरह काम कर रहे, कुछ अध्यापको व शिक्षा मंत्रालय के नौकरशाहो के हवाले कर देना चाहिए।नये बन रहे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों ,आईआईटी में सरकार कई-कई सौ करोड़ रूपये झोंक रही है।इसके पीछे के खेल को आसानी से समझा जा सकता है।चर्चा है कि कोई चहेता,एसमैन,कीर्तनी कुलपति,निदेशक बनेगा तो मोटा प्रसाद मिलता रहेगा।इसी के तहत सब हो रहा है) और उनके मंत्रालय में लंबे समय से कुंडली मारे साम्राज्य बनाये बैठे अफसरों ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के यहां भेजवा दिया ।

3-धांधली का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण मामला है मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक केन्द्रीय विवि में स्थानीय आदमी को कुलपति बनाने की प्रायोजित मांग को तरजीह देना।

Sunday, April 17, 2011

नकल करके पीएचडी थिसिस लिखे थे, रक्षामंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा



-सत्ताचक्र-SATTACHAKRA-
जर्मनी के रक्षामंत्री कार्ल थियोडोर जू गुटनबर्ग को अपने पीएचडी थिसिस में नकल करने का खुलासा होने पर 2011 में इस्तीफा (रक्षामंत्री पद से) देना पड़ा था।
गुटनबर्ग ने बायरूथ वि.वि.से "अमेरिका व यूरोपीय देशों के संविधान का विकास"विषय पर 2007 में पीएचडी की थी। बाद में कुछ लोगो ने पाया कि गुटनबर्ग की पीएचडी थिसिस में 6 लेखकों के शोध पत्रों के पेज के पेज मैटर हूबहू उतार दिये गये हैं यानी कट-पेस्ट किये गये हैं। गुटनबर्ग ने कहा-मैं अब अपने पीएचडी उपाधि का उपयोग नहीं करूंगा। लेकिन इस पर भी बात बनी नहीं। उनका यह नकलचेपी कारनामा उजागर होने के बाद बायरूथ विश्वविद्यालय ने उनकी पीएचडी की डिग्री रद्द कर दी। जर्मनी के लगभग 51 हजार शोध छात्रों ने देश के सर्वोच्च नेता को खुला पत्र लिख गुटनबर्ग को रक्षामंत्री पद से हटाने की मांग की। मामला इतना तुल पकड़ा कि गुटनबर्ग को रक्षामंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
जर्मनी में तो यह हुआ ।भारत में तो चोरगुरूवे प्रमोशन पा रहे हैं ,भ्रष्टारोपी कुलपतियों के संरक्षण में दिन रात फल फुल रहे हैं। यहां हालत यह है कि पुलिसवाला जोड़-जुगाड़ से कुलपति बन रहा है तो सजातीय चोर (नकलचेपी) को लाकर प्रोफेसर -हेड बना रहा है।

Friday, April 15, 2011

तथाकथित चोरगुरू डा.अनिल कुमार उपाध्याय कार्रवाई से बचने के लिए कर रहे उपक्रम

नकल करके पत्रकारिता में एशिया का पहला डी-लिट.थिसिस लिखने के आरोपी डा.अनि कुमार उपाध्याय(Dr.Anil Kumar Upadhyay, Reader-Head , MahatmaGandhi KashiVidyaPeeth,Varanasi) कार्रवाई से बचने और प्रोफेसर बनने के लिए तरह तरह का उपक्रम कर रहे हैं। इसके लिए काशी से प्रयाग तक एक किये हुए हैं।नकल करके अपनी पी.एच-डी.थिसिस लिखने के आरोपी, इसी विश्वविद्यालय के एक अन्य पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर राम मोहन पाठक (Pro.RamMohanPathak) उनको साथ होने का भौकाल बना चढ़ा रहे हैं। कहा जाता है कि उपाध्याय पहले राम मोहन पाठक का बहुत विरोध करते रहे हैं, सो बड़ा गुरू पाठक अब फंसे उपाध्याय को सहानुभूति दिखाने व साथ होने का अभिनय करके और उलझा-फंसाकर अपना पुराना हिसाब चुकता करने में लगे हैं।

मालूम हो कि नकलचेपी आरोपी अनिल कुमार उपाध्याय ने कुलपति अवध राम(Pro.Awadh Ram) से प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति होने की खानापूर्ति वाली साक्षात्कार तिथि 9 अप्रैल 2011 तय करा लिया था। अन्य की पुस्तक, शोध का पृष्ठ का पृष्ठ हूबहू उतारकर पी.एच-डी. व डी.लिट.थिसिस लिखनेवाले चोरगुरू अध्यापकों के तथाकथित संरक्षक कुलपति अवध राम ने, राममोहन पाठक और अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी कारनामों के खिलाफ बीते डेढ़ साल में कई बार सप्रमाण लिखित शिकायत के बावजूद, इन अध्यापकों( राम मोहन पाठक, अनिल कुमार उपाध्याय) के कदाचार के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। और नहीं तो अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी कर ली। इस सबकी जब प्रमाण सहित शिकायत राज्यपाल और यूजीसी में गया और वहां से जब नकल करके डि.लिट.थिसिस लिखने के आरोपी अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने के लिए 9 अप्रैल 2011 को होने वाला साक्षात्कार रद्द करने का आदेश आया तब जाकर कुलपति अवध राम ने साक्षात्कार रद्द किया। वरना उसके पहले तो अवध राम नकल के आरोपी के लिए फैसिलिटेटर का ही कार्य किये। अब वही अवध राम इस आरोपी व उसके सहयोगी गुरूवों से कह रहे हैं कि देखिये मैंने तो इनको (पत्रकारिता में एशिया के एक मात्र डि.लिट. अनिल कुमार उपाध्याय को )प्रोफेसर बनाने के लिए सभी इंतजाम कर दिया था, लेकिन जब राज्यपाल और यूजीसी ने ही रोक दिया तो अब मैं क्या कर सकता।

कहा जाता है कि 8 अप्रैल 2011 को जब नकलचेपी आरोपी अनिल कुमार उपाध्याय को 9 अप्रैल 2011 को होने वाला उनका साक्षात्कार रद्द होने की सूचना मिल गई तो उन्होंने हर हाल में साक्षात्कार कराने के लिए लखनऊ से लगायत दिल्ली तक बहुत हाथ-पांव मारा। चर्चा है कि नकलचेपी आरोपी राम मोहन पाठक ने भी उनको वीर तुम बढ़े चलो के अंदाज में बढते रहने के लिए कहा और दिखाने के लिए कि हम भी इसघड़ी में आपके साथ हैं, यूजीसी में किसी का नम्बर डायल कर करके कहने लगे- भाई साहब,कृपया नामिनी को साक्षात्कार लेने के लिए भेजिए, रोकिये मत। चर्चा है कि नकलचेपी आरोपीयों ने कानूनविदों का भी दरवाजा खटखटाया। अन्य लोग भी तरह-तरह के सलाह दे रहे हैं।कोई सलाह दे रहा है मामा जी, इस मामले में आपको पाने के लिए कुछ भी नहीं है, जो है सब खोने के लिए ही है, आप की डि.लिट. की डिग्री रद्द हो सकती है, कदाचार के चलते आपकी नौकरी जा सकती है। कोई कह रहा है आप पत्रकारिता में एशिया के पहले डि.लिट. हैं,तथाकथित तमाम चोरगुरूओं के नेता हैं,लगाइये जुगाड़; कर दीजिए राज्यपाल,यूजीसी,कुलपति पर मुकदमा।आपलोग जैसे प्रतिभाशाली समर्थवान का कार्य किसी न किसी तरह से तो होगा ही।बता दें कि समरथ को नहीं दोष गोसाईं सो दोनो चोरी के आरोपी गुरू जुटे हुए हैं।

Saturday, April 9, 2011

राज्यपाल व यूजीसी ने नकलचेपी रीडर अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने से रोका

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के रीडर- हेड तथाकथित चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोन्नति करके प्रोफेसर बनाने की तैयारी सफल नहीं हो पायी। इस विश्व विद्यालय के तथाकथित चोरगुरू संरक्षक कुलपति प्रो.अवध राम ने सप्रमाण लिखित शिकायत के बावजूद , नकलचेपी अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी कर ली थी। इसके लिए साक्षात्कार की खानापूर्ति 9 अप्रैल 2011 को की जानी थी। लेकिन इस बाबत और तथाकथित चोरगुरू अनिल उपाध्याय के नकलचेपी कारनामो की सप्रमाण शिकायत राज्यपाल ,मुख्यमंत्री,यूजीसी आदि के यहां पहुंच जाने और वहां से आदेश आ जाने के बाद साक्षात्कार रद्द करना पड़ा।एक अन्य अध्यापक की पी.एच-डी. थिसिस (शोध)से पन्ना का पन्ना हूबहू उतारकर अपनी डि.लिट. थिसिस लिखने ,फिर उसे किताब के रूप में भी दो बार छपवा लेने वाले रीडर हेड डा.अनिल कुमार उपाध्याय को 8 अप्रैल 2011 को साक्षात्कार रद्द किये जाने की पाती दे दी गयी। इसी विश्व विद्यालय के दूसरे पत्रकारिता विभाग के एक प्रोफेसर राममोहन मोहन पाठक पर भी नकल करके पी-एच.डी. थिसिस लिखने का आरोप है चर्चा है कि विश्व विद्यालय में राममोहन पाठक को बड़ा चोरगुरू और अनिल कुमार उपाध्याय को छोटा चोरगुरू कहा जाने लगा है। दोनो ही नकलची गुरू कई दिनो से हर तरह से लगे हुए थे कि किसी भी तरह से 9 अप्रैल 11 को साक्षात्कार प्रोमोशन हो जाय। इसके लिए जगह-जगह हाथ-पांव मार रहे थे।

Thursday, April 7, 2011

चोरगुरू अनिल उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी किया चोरगुरू संरक्षक कुलपति अवध राम


यही हैं गुरू अनिल कुमार उपाध्याय
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के कुलपति प्रो.अवध राम को पत्रकारिता विभाग के रीडर हेड , डा. अनिल कुमार उपाध्याय के खिलाफ , प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह की पुस्तक से नकल करके डी.लिट.की थिसिस लिखने और बाद में उसे पुस्तक के रूप में छपवाने की प्रमाण सहित लिखित शिकायत दी गई है। लेकिन इस चोरगुरू संरक्षक कुलपति ने उसकी तय समय में ठीक से जांच कराने के बजाये, चोरगुरू डा. अनिल कुमार उपाध्याय को 09अप्रैल 2011 को प्रोफेसर बनाने की तैयारी कर लिया है। अवध राम का कुलपति पद पर कार्यकाल 14 जुलाई 2011 को पूरा हो रहा है। उसके पहले यह चोरगुरू संरक्षक कुलपति अपने चहेते चोरगुरू डा.अनिल उपाध्याय को उसी तरह बचाता रहा है जैसे म.गां.अं.हि.वि.वि.वर्धा का छिनाली फेम पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय अपने सजातीय चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित उर्फ अनिल के.राय अंकित को,वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर के चोरगुरू संरक्षक पूर्वकुलपति आर.सी.सारस्वत (सारस्वत 22 नवम्बर 10 को सेवानिवृत हुए ) वि.वि. के अपने चार चहेते चोरगुरूओं को,उनकी लिखी किताबों को छापने व सप्लाई करने वाले को, अवधेश प्रताप वि.वि. रीवा के चोरगुरू संरक्षक कुलपति यादव अपने चहेते एक एक प्रोफेसर चोरगुरू को बचाते रहे हैं।

चोरगुरू संरक्षक कुलपति अवध राम की चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी की खबर जनसत्ता अखबार के लखनऊ संस्करण में 7 अप्रैल 2011 को छपी है -


नकल करने वाले को प्रोफेसर बनाने की तैयारी!

काशी विद्यापीठ में राज्यपाल और मुख्यमंत्री से दखल देने की अपील

-आशुतोष सिंह

लखनऊ, 6 अप्रैल। एक विश्वविद्यालय और पत्रकारिता के दो संस्थान। एक संस्थान का अध्यक्ष दूसरे संस्थान के अध्यक्ष की किताब की नकल करके नई किताब लिख देता है। मामला उजागर होने के बाद नकल करने वाले को कोई सजा देने के बजाए उसे तरक्की देने की कवायद शुरु हो चुकी है। आज इस मुददे को लेकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी और मुख्यमंत्री मायावती से दखल देने की मांग की गई। यह मामला है वाराणसी के काशी विद्यापीठ का। जिसमें महामना मदन मोहन मालवीय संस्थान के निदेशक प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय पर अपनी पुस्तक संचार माध्यमों का प्रभाव की सामग्री को चोरी कर अपनी पुस्तक प्रकाशित करने का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच पड़ताल लंबित है। इस बीच आरोपी शिक्षक अनिल कुमार उपाध्याय को रीडर से प्रोफेसर बनाने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है।

दूसरे की पुस्तक की सामग्री को लेकर अपने नाम से प्रकाशित कराने के आरोपों से घिरे काशी विद्यापीठ के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय की तरक्की रोकने के लिए आज उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री मायावती से अपील की गई। यह अपील संपूर्ण परिवर्तन जनसंगठन के मुखिया कैलाश गोदुका ने की। गोदुका कई वर्षो से आमजन से जुड़े लोगों का सवाल उठाते रहे हैं और एक दौर में आरटीआई विशेषज्ञ अरविंद केजरीवाल उनके साथ काम कर चुके है। गोदुके ने आज जो ज्ञापन भेजा है उसमें कहा गया है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय का प्रमोशन रोका जाए क्योंकि उन्होने दूसरे की पुस्तक से सामग्री चोरी कर अपनी पुस्तक प्रकाशित की है।

गोदुका ने अपने ज्ञापन में आगे कहा कि प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह, महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान में प्रोफेसर, निदेशक के पद पर कार्यरत है। प्रोफेसर सिंह की पुस्तक ‘‘संचार माध्यमों का प्रभाव’’ का प्रकाशन, नई दिल्ली से वर्ष 1993 में हुआ है जिसका कापीराइट प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह के पास है। जबकि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग में रीडर पद पर कार्यरत डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय वाराणसी की पुस्तक ‘‘पत्रकारिता एवं विकास संचार’’ प्रथम संस्करण वर्ष 2000-2001, में प्रकाशित हुआ।

प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह का आरोप है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय ने प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह की पुस्तक संचार माध्यमों का प्रभावमें प्रकाशित सामग्री को चोरी करके अपनी पुस्तक पत्रकारिता एवं विकास संचारमें हूबहू प्रकाशित कर लिया।

संचार माध्यमों का प्रभावके सबसे महत्वपूर्ण भाग अध्याय 2 के पृष्ठ 70 से 74 व पृष्ठ 97 से 100 पर छपी सामग्री और पृष्ठ 73, 78 एवं 100 पर मुद्रित चार माडल जो प्रोफेसर सिंह ने विकसित किए थे धोखे से ज्यों का त्यों चुराकर अपनी पुस्तक पत्रकारिता एवं विकास संचारके प्रथम संस्करण के क्रमशः पृष्ठ संख्या 66 से 69 व पृष्ठ संख्या 103 से 105 तक प्रकाशित कराया है।

गोदुका ने अपने ज्ञापन में कहा है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय ने अपनी डीलिट में भी चोरी कर संदर्भ लिखे है क्योंकि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय की पुस्तक ‘‘पत्रकारिता एवं विकास संचार’’ डी.लिट की ही थ्रीसिस का प्रकाशन है। यह मामला पहले भी कई बार राज्यपाल एवं कुलाधिपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के सामने पेश किया जा चुका है और इस पर जांच लंबित है।

ज्ञापन में राज्यपाल से अनुरोध किया गया है कि चोरी कर पुस्तक लिखने वाले डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय को इस प्रकरण के निस्तारण तक कोई प्रमोशन न दिया जाए।गोदुका ने इस मामले में जनसत्ता से कहा- सवाल यह है कि जब एक शिक्षक खुद दूसरे शिक्षक की पुस्तक की सामग्री चुरागाएगा तो वह अपने छात्रों को क्या शिक्षा देगा।