Wednesday, April 20, 2011

केन्द्रीय विवि के कुलपति पद पर नियुक्ति में किस तरह हो रही धांधली




जुगाड़ी की नियुक्ति पर मुहर लगायेंगी प्रतिभा पाटिल?

तथाकथित शिक्षा माफिया कैसे कर-करा रहे काम

-कृष्णमोहन सिंह

नई दिल्ली। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति में किस तरह धांधली हो रही है इसका ताजा उदाहरण है मिजोरम विवि। मिजोरम विश्वविद्यालय,आईजल (MIZORAM UNIVERSITY,AIZAWL) के कुलपति पद के लायक नाम तलाशने के लिए बनने वाली तलाशी समिति (SEARCH COMMITTEE) के दो सदस्यों का नाम तय करने के लिए तत्कालीन कुलपति एएन राय (A N RAI ) की अध्यक्षता में विश्विद्यालय की कार्यकारिणी समिति (EXECUTIVE COMMITTEE) की 5 अक्टूबर 2010 को ऐजल में बैठक हुई। कहा जाता है कि एएन राय ने अपने सजातीय आनन्द मोहन (BHU में भौतिक विज्ञान विभाग में प्रोफेसर हैं)से पहले ही कह रखा था कि बैठक में आप प्रो एसजी ढांडे (Prof. Sanjay Govind Dhande Director IITK Prof. of Mechanical Engineering and Computer Science & Engineering) के नाम का प्रस्ताव कीजिएगा। वही हुआ। मिजोरम विवि के अधिनियम के अनुसार कार्यकारिणी समिति दो नाम देती है। कुलपति एएन राय ने अपने अंतरंग 4 महानुभावों के नाम, एक पैनल में दो के नाम देकर , दो पैनल बनाकर ,सर्च कमेटी का सदस्य बनाने के लिए केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में भेज दिया । पहले पैनल में नाम था- 1-प्रो.अतुल शर्मा 2-प्रो.एस जी ढांडे। दूसरे पैनल में नाम था- 1-रोहमिंग थंगप्पा 2-डा एसके राव । दो पैनल इसलिये भेजा जाता है कि पहले पैनल के किसी या दोनो व्यक्ति ने मना कर दिया तो दूसरे पैनल से बुला लिया जायेगा। जैसा कि होना ही था,पहले पैनल के दोनो महानुभावों ने सर्च कमेटी का सदस्य बनने के लिए अपनी मंजूरी दे दी।

इधर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एडिशनल सेक्रेटरी मलयाली सुनील कुमार (SUNIL KUMAR) ने इस सर्च कमेटी का अध्यक्ष अपने ही एक मलयाली माधव मेनन (MADHAV MENAN) को बनवा दिया। जिनका पता है- देवी प्रिया, टी सी-17/2186, साईंराम रोड,परीक्षा भवन ,त्रिवेंद्रम,केरल। सुनील कुमार को एएन राय ने कैसे पटा रखा है और दोनो मिलकर क्या गुल खिला रहे हैं यह अलग कहानी है। मंत्रालय में चर्चा है कि सुनील कुमार ने ही एएन राय का मिजोरम विवि में टर्म खत्म होने के कुछ माह पहले ही नेहू विवि का कुलपति बनवा दिया ।जबकि एएन राय पर मिजोरम विवि का कुलपति रहते भ्रष्टाचार के बहुत आरोप लगे हैं। एएन राय का मिजोरम विवि में 16-04-11 को टर्म पूरा हो रहा था । लेकिन जुगाड़ और सुनील कुमार की लाभालाभी जोड़ से एएन राय बन गये एक और नेहू (North-Eastern Hill University,Shillong)के कुलपति। तो इस तरह वह सर्च कमेटी के काम शुरू करने के दौरान चले गये नेहू । इधर सर्च कमेटी ने मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए 7 नाम की संस्तुति की । जो थे-

1- प्रो एके अग्रवाल (मिजोरम विवि के कार्यकारी कुलपति) प्रोफेसर पद पर अनुभव 13साल।

2- प्रो आरपी तिवारी (मिजोरम विवि) प्रोफेसर पद पर 9 साल का अनुभव।

3- प्रो.लियान जेला(मिजोरम विवि में हैं) मिजोआदिवासी हैं,प्रोफेसर पद पर 9 साल का अनुभव ।

4-डा ट्लूंगा( नेहू के प्रोवीसी रह चुके हैं) मिजोआदिवासी हैं, प्रोफेसर पद पर अनुभव 25 साल।

5- प्रो एसडी शर्मा (प्रो वीसी ,असम विवि) इन पर तमाम आरोप हैं।

6- प्रो डेविड सिमली (नेहू में प्रोवीसी ) प्रोफेसर पद पर अनुभव 13 साल।

7- प्रो अब्दुल कलाम (सोशलअंथ्रोपोलाजिस्ट,चेन्नई) प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव ।

इसके बाद मेनन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय सर्च कमेटी 12 मार्च 2011 शनिवार को मिजोरम विवि, आईजल पहुंची। 13 मार्च 11 रविवार को कुलपति पद के उक्त उम्मीदवारो से मुलाकात किया । 14 मार्च 11 सोमवार को सुबह सिविल सोसाइटी ,आईजल के स्थानीय संस्थाओं से मिली । उनसे पूछा कि आप लोग कैसा कुलपति चाहते हैं। विवि के लोकल( मिजो )कर्मचारियों और अध्यापकों ने कुछ लोगों और स्थानीय सिविल सोसाइटी वालों को इनसे मिलवाने ,दबाव बनाने के लिए जमा कर लिया। सो लोकल लोग कहे कि लोकल कुलपति चाहिए। कहा जाता है कि सर्च कमेटी को दिल्ली से ही मंत्री कपिल सिब्बल का निर्देश था कि वहां लोकल लोगो की राय लेकर आइये कि कैसा कुलपति चाहते हैं।तो स्वाभाविक तौर पर लोकल लोग लोकल (मिजो) कुलपति चाहे। इसके बाद सर्च कमेटी के सदस्य 14 मार्च 11को वापस चले आये। मिजोरम से लौटने के बाद सर्च कमेटी ने कुलपति पद के उन सातो उम्मीदवारो को 22 मार्च 11 को दिल्ली में साक्षात्कार के लिए बुलाया। जिसमें प्रो डेविड सिमली नहीं आये, बाकी 6 आये ।

यह करने के बाद सर्च कमेटी ने मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए तीन नाम की सूची मानव संसाधन विकास मंत्रालय में भेज दिया। कहा जाता है कि इसमें पहला नाम है प्रो.लियांग जेला,दूसरा नाम है-डा ट्लूंगा, तीसरा नाम प्रो अब्दुल कलाम या प्रो एचडी शर्मा में से किसी का है। बताया जाता है कि इस सूची पर अपनी प्राथमिकता की संस्तुति दे मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति भवन भेज दिया है। क्या राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ऐसे हो रही नियुक्ति पर मुहर लगायेंगी ?

इस तरह मिजोरम विवि के कुलपति नियुक्ति प्रक्रिया में क्या-क्या धांधली होने के आरोप हैं-

1-मिजोरम विवि का नियम है कि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव होना चाहिए। लेकिन इस नियम को दरकिनार करके सर्च कमेटी ने प्रोफेसर पद पर मात्र 9 साल (अप्रैल 2011 में हो गया 9 साल 5 माह) के अनुभव वाले प्रो लियान जेला के नाम की संस्तुति कर दी और आरपी तिवारी के नाम का चयन किया था । जबकि कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए आदिवासी या गैर आदिवासी यानी किसी को भी प्रोफेसर पद पर 10 साल का अनुभव की बाध्यता में कोई छूट भी नहीं है।

2-धांधली का एक और मामला है- मिजोरम विवि के कार्यकारिणी परिषद के सदस्य हैं प्रो लियान जेला। सर्च कमेटी के सदस्यों का नाम तय करने के लिए विवि कार्यकारिणी परिषद की जो बैठक 05 अक्टूबर 2011 को हुई थी ,उसमें प्रो लियान जेला शामिल थे। उस कार्यपरिषद की बैठक में सर्च कमेटी का सदस्य बनाने के लिए जिन महानुभावों का नाम रिकमेंड किया गया वही सर्च कमेटी का सदस्य बने। उन सदस्यों( प्रो अतुल शर्मा, प्रो एसजी ढ़ांडे ) ने प्रो लियान जेला का नाम मिजोरम विवि के कुलपति पद के लिए रिकमेंड कर दिया।उस नाम को कपिल सिब्बल (जो लगातार बयान दे रहे हैं कि कुलपति पद की नियुक्ति को राजनिति हस्तक्षेप से मुक्त करना होगा। सिब्बल साहब ठीक कह रहे हैं। लेकिन एक रोग से मुक्त करने के नाम पर क्या कुलपति की नियुक्ति , कारटेल बनाकर शिक्षा माफिया की तरह काम कर रहे, कुछ अध्यापको व शिक्षा मंत्रालय के नौकरशाहो के हवाले कर देना चाहिए।नये बन रहे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों ,आईआईटी में सरकार कई-कई सौ करोड़ रूपये झोंक रही है।इसके पीछे के खेल को आसानी से समझा जा सकता है।चर्चा है कि कोई चहेता,एसमैन,कीर्तनी कुलपति,निदेशक बनेगा तो मोटा प्रसाद मिलता रहेगा।इसी के तहत सब हो रहा है) और उनके मंत्रालय में लंबे समय से कुंडली मारे साम्राज्य बनाये बैठे अफसरों ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के यहां भेजवा दिया ।

3-धांधली का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण मामला है मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक केन्द्रीय विवि में स्थानीय आदमी को कुलपति बनाने की प्रायोजित मांग को तरजीह देना।