Sunday, June 30, 2013

bhrastachariguru - 4, CHORGURU ANIL UPADHYAY KO BANAYA PROFESSOR

sattachakra.blogspot.com

यह खयह खबर  "लोकमत" लखनऊ में दिनांक 30 जून 2013 को छपी है ।

भ्रष्टाचारी गुरू – 4
चोरगुरू / भ्रष्टाचारीगुरू अनिलउपाध्याय को विद्यापीठ के नाग, साहब ने प्रोफेसर बनवाया
- दिल्ली ब्यूरो-
 
CHORGURU, ANIL UPADHYAY
नईदिल्ली। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी में ,  नकल करके डीलिट
थीसिस  लिखने
, और उस पर डीलिट की उपाधि( काशी विद्यापीठ से) पाने
,कटपेस्ट करके अपने नाम से किताब लिखने वाले डा. अनिल कुमार उपाध्याय को
प्रोफेसर बनाने के लिए
23 जून 2013 को साक्षात्कार कराया गया, 26 जून
2013 को  एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक करके उनको प्रोफेसर पद पर चयन करने
की मंजूरी दी गई। और  
26 जून को ही प्रोफेसर पद पर ज्वाइन करा दिया गया।
उनका बायोडाटा व प्रोफेसर बनाये जाने वाला दस्तावेज विश्वविद्यालय अनुदान

आयोग
, नई दिल्ली को मंजूरी के लिए भेज दिया गया। मालूम हो कि डा. अनिल
कुमार उपाध्याय के नकल करके डीलिट थीसिस लिखने
,किताब लिखने,उसके आधार पर
रीडर बनने
, प्रोफेसर बनने के शैक्षणिक कदाचार , दुराचरण,भ्रष्टाचार के
SAHABLAL MAURYA
कर्मो के सप्रमाण शिकायत के बाद 2011 में यूजीसी ने उनका प्रोफेसर पद का
साक्षात्कार स्थगित करा दिया था। अपना आव्जर्वर नहीं भेजा था।चर्चा है कि

इसबार भी आव्जर्वर नहीं भेजा था। उसके बावजूद  काशी विद्यापीठ के कुलपति

डा. पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्या ने जिस तरह  अति तेजी से डा.

अनिल उपाध्याय को  प्रोफेसर  बनवाया है और मंजूरी के लिए यूजीसी को फाइल

भेजी है उससे भ्रष्टाचारी को लाभ पहुंचाने में इनके सक्रिय सहयोग का

संकेत मिलता है। इसके पीछे कुछ न कुछ तर्क गढ़कर
, कुछ सतही कागज को आधार
बनाने की कोशिश की जाने की आशंका है। कुलपति  डा. पृथ्वीश नाग और कुलसचिव साहब लाल मौर्या द्वारा अपने किये धतकर्मों को जायज ठहराने के लिए राज्यपाल या यूजीसी को कुछ न कुछ दस्तावेज भेजा ही होगा। जिसका खुलासा हो ही जायेगा।

                                                                                                                                                                                                


PRITHVISH NAG
B.L.JOSHI

Thursday, June 27, 2013

BHRASTACHARI GURU - 3,म.गां.काशी विद्यापीठ के रीडर डा.अनिल उपाध्याय ने वहीं के प्रोफेसर की पीएचडी थीसिस को कटपेस्ट करके लिखी है डीलिट की थीसिस



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यह खबर  , लोकमत , लखनऊ में 27- 06 - 2013 को छपी है। अन्य समाचारपत्रों में भी छपी है।


ANIL UPADHYAY
उ.प्र.के विश्वविद्यालयों के भ्रष्टाचारी गुरू व उनके संरक्षक-3
म.गां.काशी विद्यापीठ के रीडर डा.अनिल उपाध्याय ने वहीं के प्रोफेसर की
पीएचडी थीसिस को कटपेस्ट करके लिखी है डीलिट की थीसिस
प्रमाण सहित शिकायत के बावजूद राज्यपाल,कुलपति,कुलसचिव बचा रहे
भ्रष्टाचारी गुरू को,बना रहे हैं प्रोफेसर

-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली।महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के
रीडर , हेड डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने इसी विश्वविद्यालय के महामना मदन

मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह की पी.एचडी.
थीसिस , “संचार माध्यमों का प्रभाव” से पेज का पेज , काफी सामग्री हूबहू
नकल करके ,कटपेस्ट करके अपनी डी.लिट. की थीसिस “तीसरी दुनिया के आर्थिक
विकास में जनमाध्यमों की भूमिका” बना ली है। हालत यह है कि उपाध्याय ने
ओम प्रकाश की थीसिस से सामग्री के अलावा दूसरे चैप्टर का पूरा रिफरेंस भी
हूबहू उतारकर  अपने डीलिट थीसिस में लगा दिया।  ओमप्रकाश सिंह ने काशी
हिन्दू वि.वि. ,वाराणसी से प्रो.हरिहर नाथ त्रिपाठी के निर्देशन में 1988
में पी.एचडी.उपाधि हेतु शोध-प्रबंध (थीसिस) लिखा व जमा किया था।जिस पर
उनको पी.एचडी. की उपाधि मिली। अनिल कुमार उपाध्याय ने 1996 में महात्मा
गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी से 1996 में डी.लिट.उपाधि हेतु शोध
प्रबंध(थीसिस) लिखा (नकल करके) था। जिसपर  उनको वहां से डी.लिट. की उपाधि
मिली।
   डा. अनिल कुमार उपाध्याय  ने  ओम प्रकाश सिंह की पी.एचडी. थीसिस के
पेज 55 की सामग्री उतारकर अपने डी.लिट. थीसिस का पेज 75, पेज 56 की
सामग्री उतारकर पेज76, पेज 57 की सामग्री व चार्ट उतारकर पेज 77,78, पेज
58 की सामग्री व चार्ट उतारकर पेज 78,79, पेज 59 की सामग्री उतारकर पेज
80,पेज 77 की सामग्री व चार्ट उतारकर पेज 142,पेज 78 की सामग्री उतारकर
पेज143,पेज 79 की सामग्री व चार्ट हूबहू उतारकर पेज 144 बनाया है।
  कटपेस्ट करके डी.लिट. थीसिस लिखने का प्रमाण 2009 में ही उजागर होने और
उसके बाद लगातार लिखित शिकायत किये जाने के  बाद भी राज्यपाल उ.प्र.,
कुलपति व कुलसचिव काशी विद्यापीठ ने अब तक  अनिल उपाध्याय की डी.लिट की
डिग्री रद्द करके उनको रीडर पद से बर्खास्त नहीं किया है। और उनको नकल
करके लिखी डी.लिट.थीसिस , डी.लिट. डिग्री,उसको पुस्तक के रूप में छपवाने
आदि  शैक्षणिक भ्रष्टाचार,दुराचरण  का लाभ देकर, पुरस्कार के तौर पर
पदोन्नति देकर पहले रीडर बनाया गया,अब प्रोफेसर बनाया जा रहा है।

BHRASTACHARI GURU - 2, KASHI VIDYAPEETH KE ANIL UPADHYAY NE CUTPEST KARAKE KAISE LIKHI HAI D.LIT.THESIS

dr anil upadhyay
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यह खबर लोकमत,लखनऊ में 25-06-13 को पेज 2 पर छपी है।अन्य समाचार पत्रों में भी छपी है।



महात्मागांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के भ्रष्टाचारी गुरू -2

रीडर  डा.अनिल उपाध्याय ने कटपेस्ट करके कैसे लिखी है डीलिट थीसिस / पुस्तक
-कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी  के पत्रकारिता विभाग
के रीडर , हेड , शैक्षणिक कदाचारी  डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने इसी
विश्वविद्यालय के महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के प्रोफेसर
ओम प्रकाश सिंह की पीएचडी थीसिस से पेज के पेज, काफी  सामग्री हूबहू
कटपेस्ट करके अपनी डीलिट की थीसिस लिखी। और एशिया में पत्रकारिता में
पहला डीलिट होने का दावा करने लगे । लेकिन कत्तई यह दावा नहीं किया कि इस
डीलिट की थीसिस की ज्यादेतर सामग्री किसी और के पीएचडी थीसिस / पुस्तक से
हूबहू नकल करके उतार दिया है। कटपेस्ट करके डीलिट थीसिस बनाया है।और इसकी
पुस्तक  भी छपवा लिया है।नकल करके , कटपेस्ट करके बनाई गई इस पुस्तक का
नाम है  "पत्रकारिता एवं विकास संचार "। प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने भी अपनी
पीएचडी थीसिस को पुस्तक के रूप में छपवाई है जिसका नाम है "संचार
माध्यमों का प्रभाव "। यहां पहले यह प्रमाण  दिया  जा रहा कि ओमप्रकाश
सिंह की पुस्तक "संचार माध्यमों का प्रभाव" के किस पेज से  किस पेज तक की
सामग्री डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक "पत्रकारिता एवं विकास संचार" के
किस पेज से किस पेज तक है। इसके बाद एक तरफ ओमप्रकाश की पुस्तक का पेज ,
दूसरी तरफ डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक का वही कटपेस्ट का प्रमाण वाला
पेज दिया जायेगा। उसके बाद ओमप्रकाश की पीएचडी थीसिस का पेज और उसको
कटपेस्ट करके अनिल उपाध्याय ने अपनी डीलिट का जो पेज बनाया है उसे आमने
-सामने दिया  जायेगा। ताकि डा. अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी,शैक्षणिक
कदाचार का प्रमाण विश्वविद्यालयों के छात्रों, कर्मचारियों ,
अध्यापकों,आम जनता व धृतराष्ट्र बनकर इस शैक्षणिक कदाचारी को बचा रहे
,प्रोमोशन दे रहे कुलपति पृथ्वीश नाग, कुलसचिव साहब  लाल मोर्या , राजभवन
उ.प्र. के आला अफसर व उनके आका , यूजीसी के आला अफसर व उनके आका बार -बार
देख सकें । और यह सब भ्रष्टाचारी गुरू अनिल उपाध्याय की डीलिट डिग्री
रद्द करने , उनके विरूद्ध कड़ी कार्रवाई का  आधार बन सके।  इस शैक्षणिक
कदाचारी को बचाने वालों के विरूद्ध  कार्रवाई का आधार बन सके।
 इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के वकील बी.एस विलौरिया का कहना है- जो
प्रमाण है उसके आधार पर काशी विद्यापीठ ,वाराणसी को डा.अनिल कुमार
उपाध्याय की डीलिट की डिग्री रद्द करके उनको नौकरी से बर्खास्त कर देना
चाहिए था। और अब तक इनको अध्यापक के तौर पर दिये गये वेतन की वसूली की
जानी चाहिए थी। क्योंकि नकल करके डीलिट थीसिस लिखने,डिग्री लेने का मामला
परीक्षा में नकल का मामला है। इसमें अनिल उपाध्याय की डीलिट डिग्री हर
हाल में रद्द करके उनको शैक्षणिक कदाचार, शैक्षणिक दुराचरण  के मामले में
बर्खास्त किया जाना चाहिए।
       तो पहले देखें ओमप्रकाश की पुस्तक के पेज और चोरगुरू अनिल
उपाध्याय की पुस्तक के पेज का चार्ट (3 पेज )जो साबित करता है कि चोरगुरू
,शैक्षणिक कदाचारी   डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने कटपेस्ट करकेकिताब बनाया
है। अनिल उपाध्याय की पुस्तक  का पहला संस्करण 2001 में, दूसरा संस्करण
2007 में छपा है। दोनों में डा. अनिल  कुमार उपाध्याय द्वारा किये गये
नकलचेपी कारनामे का प्रमाण चार्ट में है।

Monday, June 24, 2013

NAKAL KARAKE D.LIT KARANE VALE ANIL UPADHYAY KO KASHI VIDYAPEETH ME PROF BANANE KI TAIYARI



sattachakra.blogspot.in , 24-06-2013 , 4.45 a.m.


यह खबर " लोकमत "  , लखनऊ में 23 जून 2013 को पहले पन्ने पर छपी है।

नकल करके डीलिट करने वाले अनिल उपाध्याय को काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर बनाने की तैयारी
राजभवन , यूजीसी व कुलपति,रजिस्ट्रार के सहयोग से  भ्रष्टाचारी को बर्खास्त नहीं करके की जा रही है पदोन्नति  
GOVERNOR  B.L. J0SHI
सांसद हर्षवर्धन, सांसद राजेन्द्र राणा, कैलाश गोदुका आदि के लगातार प्रमाण सहित शिकायत करने के बावजूद यह किया जा रहा है
-कृष्णमोहन सिंह
VC DR. PRITHVISH NAG
.
REGISTRAR SAHAB LAL MAURYA

CORRUPTGURU DR. ANIL KUMAR UPADHYAY
नईदिल्ली। नकल करके डीलिट थीसिस लिखने और पुस्तक के रूप में छपवाने वाले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के डा.अनिल कुमार उपाध्याय को रीडर से प्रोफेसर बनाया जा रहा है। उ.प्र. के राज्यपाल,यूजीसी के अध्यक्ष, काशी विद्यापीठ के कुलपति से लगायत राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री,मानव संसाधन विकास मंत्री को अन्य चोरगुरू प्रोफेसरों, रीडरों,लेक्चररो के अलावा अनिल उपाध्याय के शैक्षणिक कदाचरण,  दुराचरण ,नकलचेपी कारनामे की प्रमाण सहित शिकायत सांसद हर्ष वर्धन,सांसद राजेन्द्रसिंह राणा, कैलाश गोदुका, ओमप्रकाश सिंह जिनकी पीएचडी थीसीस से नकल किया है , व अन्य लोग 2010 से करते आ रहे हैं। एक टीवी चैनल पर भी  चोरगुरू शीर्षक से  इन शैक्षणिक कदाचारियों के भ्रष्टाचार व नकलचेपी कारनामों के बारे में सप्रमाण दिखाया गया था।इसके बावजूद ऐसे कदाचारी शिक्षकों को बर्खास्त करने के बजाय  बचाने और प्रोमोशन देने का उपक्रम किया जा रहा है।
सांसद हर्षवर्धन ने इस बारे में उ.प्र. के राज्यपाल को 27 फरवरी 2010 को  पत्र लिखा था – ...हमारे उच्च शिक्षा के मंदिरों में इस तरह की अनैतिक और आपराधिक  गतिविधियों को जानकर मैं आपको यह पत्र लिखने को विवश हुआ हूं। उससे भी अधिक दुख की बात यह है कि इन विश्वविद्यालय के प्रशासन द्वारा इस प्रवृति को रोकने की सशक्त कोशिश के बजाय दोषियों को बचाने की ही कोशिश होती दिखाई दे रही है।....
हर्षवर्धन ने 8 नवम्बर 2012 को उ.प्र. के राज्यपाल से सुबह 11 बजकर 20 मिनट पर मुलाकात करके उ.प्र. के कई विश्वविद्यालयों के  चोरगुरूओं के कदाचरण,शैक्षणिक कदाचार का प्रमाण देकर उनको बर्खास्त करने का आग्रह वाला  जो पत्र दिया था उसमें डा.अनिल कुमार उपाध्याय के शैक्षणिक कदाचार,नकलचेपी कारनामे का भी प्रमाण था। जिसमें लिखा था – ...आपसे ( राज्यपाल) आग्रह है कि जिन प्राध्यापकों पर शैक्षणिक कदाचार ,नकल करके पुस्तकें लिखने,पीएचडी शोध प्रबंध लिखने आदि का प्रमाण सहित आरोप लगा है  , उनके विरूद्ध एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित कर उनकी पुस्तकें प्रकाशित एवं वितरित करने वालों और प्राध्यापकों  के नकलचेपी कारनामे,शैक्षणिक कदाचार उजागर करनेवालों को भी बुलाया जाय। जांच की समयावधि सुनिश्चित करके ऐसे शैक्षणिक कदाचार करने वाले प्राध्यापकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। ज्ञातब्य हो कि एक ऐसे ही मामले में प्रमाण सहित शिकायत के बाद जामिया मिलिया इस्लामिया , दिल्ली के  रीडर डा. दीपक केम को जामिया प्रशासन ने 13 जून 2011 को बर्खास्त कर दिया । दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इस बर्खास्तगी को 10 अप्रैल 2012 को अपने फैसले में जायज ठहराया है
हमें खेद है कि काशी विद्यापीठ और पूर्वांचल वि.वि. में जांच के नाम पर लीपापोती की जा रही है। तर्क दिया जा रहा है  कि जिसके पुस्तक से सामग्री चुराया गया है वह शिकायत करे , केस, करे, न्यायालय निर्णय करेगा। यानी चोरी करके पीएचडी शोध व पुस्तकें लिखने वालों , शैक्षणिक कदाचारियों को वि.वि. प्रशासन लेक्चरर,रीडर,प्रोफेसर बनाता रहे, पदोन्नति करता रहेगा लेकिन ऐसे चोरगुरूओं व शैक्षणिक कदाचारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करेगा। इस कृत्य से विद्यार्थियों व शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में गलत संदेश जा रहा है और अनैतिक व भ्रष्ट प्राध्यापकों को बढ़ावा मिल रहा है।...
इसके बाद राज्यपाल ने 30 नवम्बर 2011 को उनसभी  विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र भेजवाया था जिसमें  शैक्षणिक कदाचारियों  के विरूद्ध जांच कराने के लिए लिखा था।  उस पत्र का संदर्भ देते हुए सांसद हर्षवर्धन ने कुलपति , महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ  को 15 दिसम्बर 2012 को 2 पेज का पत्र लिखा था यह कि-

.... महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ , वाराणसी के पत्रकारिता विभाग में रीडर डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा अपनी डीलिट थीसिस (इसी विश्वविद्यालय के एक अन्य पत्रकारिता विभाग, महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के निदेशक) में  ओमप्रकाश सिंह की पीएचडी की थीसिस, संचार माध्यमों का प्रभाव  से काफी सामग्री हूबहू उतारकर पहले डी.लिट थीसिस लिखी और बाद में उसे पत्रकारिता एवं विकास संचार पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया है।
 संबंधित कृत्य से शिक्षा जगत दूषित हो रहा है। यह वास्तव में बौद्धिक समाज के बुद्धि चोर हैं। आपसे आग्रह है कि अपने स्तर से इस मामले में प्रभावी कार्रवाई करें।
 इसी तरह का पत्र सांसद राजेन्द्रसिंह राणा ने  भी लगातार लिखा है। लेकिन काशी विद्यापीठ के कुलपति पृथ्वीश नाग ने एक शैक्षणिक कदाचारी, दुराचरणी प्रो. राममोहन पाठक के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं करके उसको सेवानिवृत्त हो जाने दिया। और दूसरे चोरगुरू शैक्षणिक कदाचारी , दुराचरणी डा. अनिल कुमार उपाध्याय को  प्रोफेसर बनाने के लिए साक्षात्कार की खानापूर्ति करा रहे हैं। 24 जून 2013 को एक्जक्यूटिव कमेटी की बैठक कराकर 25 या 26 तक उपाध्याय को प्रोफेसर पद का पत्र दे देंगे। अनिल उपाध्याय को प्रोफेसर बनाये जाने की प्रक्रिया रोकने के लिए दिल्ली के वकील राजीव रंजन और अरविंद केजरीवाल के साथ परिवर्तन नामक संस्था  शुरू करने वाले कैलाश गोदुका ने 20 जून 2013 को राज्यपाल उ.प्र.,कुलपति व कुलसचिव महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ  और अध्यक्ष यूजीसी को शिकायती पत्र ई-मेल किया , उनके कार्यालयों में जमा कराया । इसके बावजूद इनसबके मिलिभगत से चोरगुरू व शैक्षणिक कदाचारी अनिल उपाध्याय को प्रोफेसर बनाया जा रहा है।इससे साबित होता है कि शैक्षणिक भ्रष्टाचारियों व भ्रष्टाचार को प्रश्रय देने में इन सबका सहयोग है। और राज्यपाल,यूजीसी चेयर मैन, इनके मातहत अफसरान ,केन्द्र व राज्य के शिक्षा विभाग के आला अफसर व हुक्मरान जानबूझकर  ऐसा करने दे रहे हैं।   

Sunday, June 23, 2013

chorguru anil upadhyay ne o.p. singh ki kitab se katpest karake kaise likhi hai d.lit thesis/ kitab

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23-06-2013, 10.15 , a.m.

corrupt guru dr. anil upadhyay
 corrupt guru's protector vc dr. prithvish NAG
-के.एम.एस
नईदिल्मली।हात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी  के पत्रकारिता विभाग  के रीडर , हेड , चोरगुरू ,शैक्षणिक कदाचारी  डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने इसी विश्वविद्यालय के महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के प्रोफेसर ओम प्रकाश सिंह की पीएचडी थीसिस से पेज के पेज, काफी  सामग्री हूबहू कटपेस्ट करके अपनी डीलिट की थीसिस लिखी। और एशिया में पत्रकारिता में पहला डीलिट होने का दावा करने लगे । लेकिन कत्तई यह दावा नहीं किया कि इस डीलिट की थीसिस की ज्यादेतर सामग्री किसी और के पीएचडी थीसिस से हूबहू नकल करके उतार दिया है। कटपेस्ट करकेडीलिट थीसिस बनाया है।और इसकी पुस्तक  भी छपवा लिया है।नकल करके , कटपेस्ट करके बनाई गई इस पुस्तक का नाम है  "पत्रकारिता एवं विकास संचार "। प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने भी अपनी पीएचडी थीसिस को पुस्तक के रूप में छपवाई है जिसका नाम है "संचार माध्यमों का प्रभाव "। यहां पहले यह प्रमाण  दिया  जा रहा कि ओमप्रकाश सिंह की पुस्तक "संचार माध्यमों का प्रभाव" के किस पेज से  किस पेज तक की सामग्री डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक "पत्रकारिता एवं विकास संचार" के किस पेज से किस पेज तक है। इसके बाद एक तरफ ओमप्रकाश की पुस्तक का पेज , दूसरी तरफ डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक का वही कटपेस्ट का प्रमाण वाला पेज दिया जायेगा। उसके बाद ओमप्रकाश की पीएचडी थीसिस का पेज और उसको कटपेस्ट करके अनिल उपाध्याय ने अपनी डीलिट का जो पेज बनाया है उसे आमने -सामने दिया  जायेगा। ताकि डा. अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी,शैक्षणिक कदाचार का प्रमाण विश्वविद्यालयों के छात्रों, कर्मचारियों , अध्यापकों,आम जनता व धृतराष्ट्र बनकर इस शैक्षणिक कदाचारी को बचा रहे ,प्रोमोशन दे रहे कुलपति पृथ्वीश नाग, कुलसचिव साहब  लाल मोर्या , राजभवन उ.प्र. के आला अफसर व उनके आका , यूजीसी के आला अफसर व उनके आका बार -बार देख सकें  और यह सब भ्रष्टाचारी गुरू अनिल उपाध्याय की डीलिट डिग्री रद्द करने , उनके विरूद्ध कड़ी कार्रवाई का कुछ आधार बन सके।  
       तो पहले देखें ओमप्रकाश की पुस्तक के पेज और चोरगुरू अनिल उपाध्याय की पुस्तक के पेज का चार्ट (3 पेज )जो साबित करता है कि चोरगुरू ,शैक्षणिक कदाचारी   डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने कटपेस्ट करकेकिताब बनाया है। अनिल उपाध्याय की पुस्तक  का पहला संस्करण 2001 में, दूसरा संस्करण 2007 में छपा है। दोनों में डा. अनिल  कुमार उपाध्याय द्वारा किये गये नकलचेपी कारनामे का प्रमाण चार्ट में है।

Thursday, June 20, 2013

CHORGURU UNIL UPADHYAY ko reader se professor banva rahe hain brastachari sanrakshak kulpati NAG, KARA RAHE SAKSHATKAR

SATTACHAKRA.BLOGSPOT.COM
DATE 20-0602013 ,TIME  9.57 A.M.
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के जिस चोर गुरू डा.अनिल उपाध्याय,रीडर पत्रकारिता विभाग , को तबके भ्रष्टाचारी गुरू  संरक्षक कुलपति अवध राम ने 9 अप्रैल 2011 को साक्षात्कार कराकर प्रोफेसर बनाने की कोशिश की थी, लेकिन कैलाश गोदुका के शिकायत पर यूजीसी ने उनका साक्षात्कार रद्द करवाया था । और काशी विद्यापीठ के ही प्रो. ओमप्रकाश की पुस्तक से हूबहू सामग्री कट-पेस्ट करके डीलिट की थिसिस लिखने और किताब छपवाने वाले डा.अनिल उपाध्याय     को प्रोफेसर बनाये जाने से रोक दिया था, उसी चोरगुरू अनिल उपाध्याय  को अब  कुलपति पृथ्वीश नाग प्रोफेसर बनवा रहे हैं। इसके लिए 20 जून 2013 को अनिल उपाध्याय के साक्षात्कार की खानापूर्ति की जा रही है।
 मालूम हो कि उ.प्र. के राज्यपाल को सांसद हर्षवर्धन ने अक्टूबर 2012 में   . डा.अनिल उपाध्याय द्वारा नकल करके डीलिट की थिसिस लिखने,नकल करके किताब लिखने का प्रमाण  संलग्न करके इस चोरगुरू , शैक्षणिक कदाचारी,दुराचरणी शिक्षक के विरूद्ध  कार्रवाई करने ,उनको बर्खास्त करने की मांग की थी। जिसपर राज्यपाल ने महात्मागांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति को पत्र लिख कर मामले की जांच कराकर कार्रवाई करने को लिखा था। लेकिन कुलपति नाग लीपा-पोती करके  भ्रष्टाचार आरोपी अनिल उपाध्याय को बचाते रहे और अब उनको प्रोफेसर बनाने जा रहे हैं। जिसके लिए साक्षात्कार की खानापूर्ति की जा रही है।

कैलाश गोदुका ने नकलचेपी , कदाचारी गुरू डा. अनिल उपाध्याय को रीडर से प्रोफेसर बनाये जाने से रोकने के लिए 6 अप्रैल 2011 को जो पत्र  राज्यपाल उ.प्र.और यूजीसी के अध्यक्ष को लिखा था और उस पर कैसे कार्रवाई हुई इसका प्रमाण 7 अप्रैल 2011 को सत्ताचक्र में लगी सामग्री ,यह है-

Thursday, April 7, 2011

चोरगुरू अनिल उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी किया चोरगुरू संरक्षक कुलपति अवध राम


यही हैं गुरू अनिल कुमार उपाध्याय
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के कुलपति प्रो.अवध राम को पत्रकारिता विभाग के रीडर हेड , डा. अनिल कुमार उपाध्याय के खिलाफ , प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह की पुस्तक से नकल करके डी.लिट.की थिसिस लिखने और बाद में उसे पुस्तक के रूप में छपवाने की प्रमाण सहित लिखित शिकायत दी गई है। लेकिन इस चोरगुरू संरक्षक कुलपति ने उसकी तय समय में ठीक से जांच कराने के बजाये, चोरगुरू डा. अनिल कुमार उपाध्याय को 09अप्रैल 2011 को प्रोफेसर बनाने की तैयारी कर लिया है। अवध राम का कुलपति पद पर कार्यकाल 14 जुलाई 2011 को पूरा हो रहा है। उसके पहले यह चोरगुरू संरक्षक कुलपति अपने चहेते चोरगुरू डा.अनिल उपाध्याय को उसी तरह बचाता रहा है जैसे म.गां.अं.हि.वि.वि.वर्धा का छिनाली फेम पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय अपने सजातीय चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित उर्फ अनिल के.राय अंकित को,वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर के चोरगुरू संरक्षक पूर्वकुलपति आर.सी.सारस्वत (सारस्वत 22 नवम्बर 10 को सेवानिवृत हुए ) वि.वि. के अपने चार चहेते चोरगुरूओं को,उनकी लिखी किताबों को छापने व सप्लाई करने वाले को, अवधेश प्रताप वि.वि. रीवा के चोरगुरू संरक्षक कुलपति यादव अपने चहेते एक एक प्रोफेसर चोरगुरू को बचाते रहे हैं।

चोरगुरू संरक्षक कुलपति अवध राम की चोरगुरू अनिल कुमार उपाध्याय को प्रोफेसर बनाने की तैयारी की खबर जनसत्ता अखबार के लखनऊ संस्करण में 7 अप्रैल 2011 को छपी है -

नकल करने वाले को प्रोफेसर बनाने की तैयारी!
काशी विद्यापीठ में राज्यपाल और मुख्यमंत्री से दखल देने की अपील
-आशुतोष सिंह
लखनऊ, 6 अप्रैल। एक विश्वविद्यालय और पत्रकारिता के दो संस्थान। एक संस्थान का अध्यक्ष दूसरे संस्थान के अध्यक्ष की किताब की नकल करके नई किताब लिख देता है। मामला उजागर होने के बाद नकल करने वाले को कोई सजा देने के बजाए उसे तरक्की देने की कवायद शुरु हो चुकी है। आज इस मुददे को लेकर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बीएल जोशी और मुख्यमंत्री मायावती से दखल देने की मांग की गई। यह मामला है वाराणसी के काशी विद्यापीठ का। जिसमें महामना मदन मोहन मालवीय संस्थान के निदेशक प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय पर अपनी पुस्तक संचार माध्यमों का प्रभाव की सामग्री को चोरी कर अपनी पुस्तक प्रकाशित करने का आरोप लगाया था। इस मामले की जांच पड़ताल लंबित है। इस बीच आरोपी शिक्षक अनिल कुमार उपाध्याय को रीडर से प्रोफेसर बनाने की प्रक्रिया शुरु हो चुकी है।
दूसरे की पुस्तक की सामग्री को लेकर अपने नाम से प्रकाशित कराने के आरोपों से घिरे काशी विद्यापीठ के रीडर अनिल कुमार उपाध्याय की तरक्की रोकने के लिए आज उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और मुख्यमंत्री मायावती से अपील की गई। यह अपील संपूर्ण परिवर्तन जनसंगठन के मुखिया कैलाश गोदुका ने की। गोदुका कई वर्षो से आमजन से जुड़े लोगों का सवाल उठाते रहे हैं और एक दौर में आरटीआई विशेषज्ञ अरविंद केजरीवाल उनके साथ काम कर चुके है। गोदुके ने आज जो ज्ञापन भेजा है उसमें कहा गया है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय का प्रमोशन रोका जाए क्योंकि उन्होने दूसरे की पुस्तक से सामग्री चोरी कर अपनी पुस्तक प्रकाशित की है।
गोदुका ने अपने ज्ञापन में आगे कहा कि प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह, महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान में प्रोफेसर, निदेशक के पद पर कार्यरत है। प्रोफेसर सिंह की पुस्तक ‘‘संचार माध्यमों का प्रभाव’’ का प्रकाशन, नई दिल्ली से वर्ष 1993 में हुआ है जिसका कापीराइट प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह के पास है। जबकि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग में रीडर पद पर कार्यरत डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय वाराणसी की पुस्तक ‘‘पत्रकारिता एवं विकास संचार’’ प्रथम संस्करण वर्ष 2000-2001, में प्रकाशित हुआ।
प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह का आरोप है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय ने प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह की पुस्तक संचार माध्यमों का प्रभावमें प्रकाशित सामग्री को चोरी करके अपनी पुस्तक पत्रकारिता एवं विकास संचारमें हूबहू प्रकाशित कर लिया।
संचार माध्यमों का प्रभावके सबसे महत्वपूर्ण भाग अध्याय 2 के पृष्ठ 70 से 74 व पृष्ठ 97 से 100 पर छपी सामग्री और पृष्ठ 73, 78 एवं 100 पर मुद्रित चार माडल जो प्रोफेसर सिंह ने विकसित किए थे धोखे से ज्यों का त्यों चुराकर अपनी पुस्तक पत्रकारिता एवं विकास संचारके प्रथम संस्करण के क्रमशः पृष्ठ संख्या 66 से 69 व पृष्ठ संख्या 103 से 105 तक प्रकाशित कराया है।
गोदुका ने अपने ज्ञापन में कहा है कि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय ने अपनी डीलिट में भी चोरी कर संदर्भ लिखे है क्योंकि डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय की पुस्तक ‘‘पत्रकारिता एवं विकास संचार’’ डी.लिट की ही थ्रीसिस का प्रकाशन है। यह मामला पहले भी कई बार राज्यपाल एवं कुलाधिपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के सामने पेश किया जा चुका है और इस पर जांच लंबित है।
ज्ञापन में राज्यपाल से अनुरोध किया गया है कि चोरी कर पुस्तक लिखने वाले डाक्टर अनिल कुमार उपाध्याय को इस प्रकरण के निस्तारण तक कोई प्रमोशन न दिया जाए।गोदुका ने इस मामले में जनसत्ता से कहा- सवाल यह है कि जब एक शिक्षक खुद दूसरे शिक्षक की पुस्तक की सामग्री चुरागाएगा तो वह अपने छात्रों को क्या शिक्षा देगा।