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क्या पटना में गरीब बच्चों के लिए सुपर 30 नामक कोचिंग शुरू करनेऔर इसमें पढ़ाकर अब तक 263
बच्चों को आईआईटी में दाखिला दिला, इंजिनियर बनवा देने वाले वाले गणीतज्ञ आनंद कुमार बड़े हैं , महान हैं
या
देशी -विदेशी विद्वानों की पुस्तकों से सामग्री कट पेस्ट करके अपने नाम कई -कई किताबें छपवाकर . जुगाड़ लगाकर विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बन जाने वाले चोर गुरू ,भ्रष्टाचारी गुरू राम मोहन पाठक,अनिल उपाध्याय,रामजी लाल ,एसके सिन्हा, अनिल कुमार राय अंकित,रमेश चन्द्रा,दीपक केम आदि व इनके संरक्षक यानी भ्रष्टाचारी गुरू संरक्षक वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर के वर्तमान व इनके पहले वाले कुलपति,कुलसचिव,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व व वर्तमान कुलपति व कुलसचिव,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय ( यह पुलिस वाला जब कुलपति बना तो चोर अनिल कुमार राय को बना दिया प्रोफेसर ,हेड) जैसे भ्रष्टगुरू मंडलीवाले महान हैं ?
dainik jagaran se sabhar , 16-06-2013
पिछले साल से उन्होंने यूपी से बच्चे लेना भी शुरू कर दिया है और इस साल एक जुलाई को इसके लिए लखनऊ में टेस्ट होगा। इसी सिलसिले में लखनऊ आए आनंद बताते हैं कि वैश्रि्वक स्तर पर नेम-फेम के बाद उनके पास सरकारी-गैर सरकारी दान-अनुदान के सैंकड़ों प्रस्ताव आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उद्योगपति मुकेश अंबानी, उद्योगपति महेन्द्रा आदि ने मदद के प्रस्ताव किए पर वह दान के पैसे आज भी नहीं लेते। वजह, इससे रास्ता भटकने और सेवा के व्यवसाय में बदलने का खतरा है।
वैज्ञानिक बनने का था सपना
आनंद बताते हैं, हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल में पढ़ता था। जब कक्षा सात-आठ में था, तभी वैज्ञानिक बनने का सपना देखा। कई प्रयोग किए। ट्रांजिस्टर, वायरलेस, लाइट डिपेंडेंट रजिस्टेंस के मॉडल बनाए। लगन देख लोगों ने कहा, पहले पढ़ाई पर ध्यान दे। पटना साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन के दौरान रुचि देख प्रो डीपी वर्मा ने मार्ग दर्शन किया।
मैथ की चार प्रॉपर्टी खोजी। प्रो वर्मा ने एडिट कर लंदन भेजी, चारों प्रकाशित हुई। सब शिक्षकों का चहेता बन गया। प्रो वर्मा के मार्गदर्शन से ही कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला और स्कालरशिप मिली, लेकिन पिता के असामयिक निधन से कैम्ब्रिज का सफर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया।
मां ने पापड़ बेले, हमने बेचे
पिता राजेंद्र प्रसाद डाक विभाग में पत्र छांटक थे। एक अक्टूबर, 1994 को कैम्ब्रिज में मेरी पहली कक्षा थी, जाने की तैयारी चल रही थी। इसी बीच 23 अगस्त को पिता का निधन हो गया। विकलांग चाचा, बीमार दादी, मां और छोटे भाई प्रणव की जिम्मेदारी पिता जी ही उठाते थे। निधन के बाद तुरंत पेंशन, फंड वगैरह भी नहीं मिला।
कैम्ब्रिज की फुल स्कॉलरशिप नहीं थी। रहने, खाने और जाने का खर्चा खुद उठाना था। यह सफर यहीं खत्म हो गया। मैंने मृतक आश्रित की नौकरी नहीं की। आजीविका के लिए मां मेरे नाम से पापड़ बनाने लगीं और मैं झोले में रखकर उन्हें बेचने लगा।
शुरू हुआ 'सुपर-30' का सफर
लोगों ने समझाया। पापड़ बेचने के बजाए ट्यूशन पढ़ाओ। 1996 में दो बच्चों से ट्यूशन शुरू किया और दो साल में डेढ़-दो सौ बच्चे हो गए। डेढ़ हजार सालाना फीस लेता था। लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी। इसी बीच एक लड़का अभिषेक जो काफी गरीब था। उसने कहा, पांच-पांच सौ तीन बार में ले लें क्योंकि पिता जब खेत से आलू निकलवाते थे तभी घर पैसा आता था।
ऐसे बच्चों के लिए ही 'सुपर-30' का विचार आया। पढ़ाने के लिए मेरे साथ मेरे पूर्व छात्र प्रवीन कुमार, अमित कुमार और बाद में राहुल रंजन जुड़े। घर के बगल में छात्रों के रहने की व्यवस्था की। मां ने खाना बनाने का जिम्मा लिया। बाद में मेरी पत्नी और भाई प्रणव की पत्नी ने भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
परिवार का मिला साथ
शादी के बाद मेरी पत्नी ऋतु रश्मी भी इस मिशन में शामिल हो गई। उन्होंने इसके लिए बेंगलूर में विप्रो की जॉब भी छोड़ दी। एक बेटा जगत है जो अभी छोटा है। पटना में जब कुछ कोचिंग माफिया ने हमला बोला तो पत्नी को लगा कि सब छोड़ कुछ अपने लिए भी किया जाए पर क्षणिक निराशा के बाद हम सब इससे उबर गए। इस समय कई लोगों ने सुपर-30 से मिलते-जुलते नाम रखकर कोचिंगों में उगाही शुरू कर दी है। हम चाहते हैं कि लोग इस मॉडल को अपनाएं पर उगाही न करें।
प्रोफाइल:-
पटना के आनंद कुमार हर साल गरीब तबके के 30 छात्रों को नि:शुल्क कोचिंग, फूडिंग, लॉजिंग मुहैया कराते हैं। इसका खर्च वह, उनका परिवार और टीम बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उठाती है। इस मॉडल को उन्होंने सुपर-30 का नाम दिया है। देश-विदेश में इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान मिले।
vbspu jaunpur, MGAHU VERDHA, mgkvp, super30,patna, prof.ramjilal, sksinha, chorguru Dr.Deepak Kem, chorguru dr.Anil kumar upadhyay, chor guru anil k rai ankit, Corrupt Guru RamMohanPathak, CHHINALI VIBHUTI(V.N.RAI IPS),
क्या पटना में गरीब बच्चों के लिए सुपर 30 नामक कोचिंग शुरू करनेऔर इसमें पढ़ाकर अब तक 263
super30's anand |
या
देशी -विदेशी विद्वानों की पुस्तकों से सामग्री कट पेस्ट करके अपने नाम कई -कई किताबें छपवाकर . जुगाड़ लगाकर विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर बन जाने वाले चोर गुरू ,भ्रष्टाचारी गुरू राम मोहन पाठक,अनिल उपाध्याय,रामजी लाल ,एसके सिन्हा, अनिल कुमार राय अंकित,रमेश चन्द्रा,दीपक केम आदि व इनके संरक्षक यानी भ्रष्टाचारी गुरू संरक्षक वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर के वर्तमान व इनके पहले वाले कुलपति,कुलसचिव,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के पूर्व व वर्तमान कुलपति व कुलसचिव,महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय ( यह पुलिस वाला जब कुलपति बना तो चोर अनिल कुमार राय को बना दिया प्रोफेसर ,हेड) जैसे भ्रष्टगुरू मंडलीवाले महान हैं ?
dainik jagaran se sabhar , 16-06-2013
लखनऊ [अजय शुक्ला]। गोल चेहरा, चमकीली आंखें, खिचड़ी
दाढ़ी, दरम्याना कद, दिल में कसक और बहुत कुछ करने की प्यास.. अपनी अनूठी
पहल से 'सुपर-30' के जरिए गुदड़ी के लालों को मिट्टी से सोना बना देने वाले
पटना के गणितज्ञ आनंद कुमार उन लोगों में से एक हैं जो अपने लिए सफलता और
शोहरत के शिखर खुद बनाते हैं। वह दान के पैसे आज भी स्वीकार नहीं करते और
खुद कमाकर लोगों को नि:शुल्क पढ़ाकर इंजीनियरिंग में दाखिला दिलाते हैं।
छात्रों के बीच 'सुपर-30' आज अपरिचित नहीं। गणितज्ञ आनंद ने वर्ष 2002
में पटना में नि:शुल्क कोचिंग, हॉस्टल और भोजन का सहारा देकर 30 बच्चों को
महंगी मानी जाने वाली इंजीनियरिंग में दाखिले की पढ़ाई के लिए चुना और पहली
ही बार में 18 बच्चों को दाखिले की सीढ़ी पर चढ़ा दिया। अब तक 263 छात्र
देश के एलीट माने जाने वाले इंजीनियरिंग संस्थानों में पढ़ाई कर चुके या कर
रहे हैं। पिछले साल से उन्होंने यूपी से बच्चे लेना भी शुरू कर दिया है और इस साल एक जुलाई को इसके लिए लखनऊ में टेस्ट होगा। इसी सिलसिले में लखनऊ आए आनंद बताते हैं कि वैश्रि्वक स्तर पर नेम-फेम के बाद उनके पास सरकारी-गैर सरकारी दान-अनुदान के सैंकड़ों प्रस्ताव आए। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उद्योगपति मुकेश अंबानी, उद्योगपति महेन्द्रा आदि ने मदद के प्रस्ताव किए पर वह दान के पैसे आज भी नहीं लेते। वजह, इससे रास्ता भटकने और सेवा के व्यवसाय में बदलने का खतरा है।
वैज्ञानिक बनने का था सपना
आनंद बताते हैं, हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल में पढ़ता था। जब कक्षा सात-आठ में था, तभी वैज्ञानिक बनने का सपना देखा। कई प्रयोग किए। ट्रांजिस्टर, वायरलेस, लाइट डिपेंडेंट रजिस्टेंस के मॉडल बनाए। लगन देख लोगों ने कहा, पहले पढ़ाई पर ध्यान दे। पटना साइंस कॉलेज से ग्रेजुएशन के दौरान रुचि देख प्रो डीपी वर्मा ने मार्ग दर्शन किया।
मैथ की चार प्रॉपर्टी खोजी। प्रो वर्मा ने एडिट कर लंदन भेजी, चारों प्रकाशित हुई। सब शिक्षकों का चहेता बन गया। प्रो वर्मा के मार्गदर्शन से ही कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में दाखिला और स्कालरशिप मिली, लेकिन पिता के असामयिक निधन से कैम्ब्रिज का सफर शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया।
मां ने पापड़ बेले, हमने बेचे
पिता राजेंद्र प्रसाद डाक विभाग में पत्र छांटक थे। एक अक्टूबर, 1994 को कैम्ब्रिज में मेरी पहली कक्षा थी, जाने की तैयारी चल रही थी। इसी बीच 23 अगस्त को पिता का निधन हो गया। विकलांग चाचा, बीमार दादी, मां और छोटे भाई प्रणव की जिम्मेदारी पिता जी ही उठाते थे। निधन के बाद तुरंत पेंशन, फंड वगैरह भी नहीं मिला।
कैम्ब्रिज की फुल स्कॉलरशिप नहीं थी। रहने, खाने और जाने का खर्चा खुद उठाना था। यह सफर यहीं खत्म हो गया। मैंने मृतक आश्रित की नौकरी नहीं की। आजीविका के लिए मां मेरे नाम से पापड़ बनाने लगीं और मैं झोले में रखकर उन्हें बेचने लगा।
शुरू हुआ 'सुपर-30' का सफर
लोगों ने समझाया। पापड़ बेचने के बजाए ट्यूशन पढ़ाओ। 1996 में दो बच्चों से ट्यूशन शुरू किया और दो साल में डेढ़-दो सौ बच्चे हो गए। डेढ़ हजार सालाना फीस लेता था। लोकप्रियता काफी बढ़ चुकी थी। इसी बीच एक लड़का अभिषेक जो काफी गरीब था। उसने कहा, पांच-पांच सौ तीन बार में ले लें क्योंकि पिता जब खेत से आलू निकलवाते थे तभी घर पैसा आता था।
ऐसे बच्चों के लिए ही 'सुपर-30' का विचार आया। पढ़ाने के लिए मेरे साथ मेरे पूर्व छात्र प्रवीन कुमार, अमित कुमार और बाद में राहुल रंजन जुड़े। घर के बगल में छात्रों के रहने की व्यवस्था की। मां ने खाना बनाने का जिम्मा लिया। बाद में मेरी पत्नी और भाई प्रणव की पत्नी ने भी हाथ बंटाना शुरू कर दिया।
परिवार का मिला साथ
शादी के बाद मेरी पत्नी ऋतु रश्मी भी इस मिशन में शामिल हो गई। उन्होंने इसके लिए बेंगलूर में विप्रो की जॉब भी छोड़ दी। एक बेटा जगत है जो अभी छोटा है। पटना में जब कुछ कोचिंग माफिया ने हमला बोला तो पत्नी को लगा कि सब छोड़ कुछ अपने लिए भी किया जाए पर क्षणिक निराशा के बाद हम सब इससे उबर गए। इस समय कई लोगों ने सुपर-30 से मिलते-जुलते नाम रखकर कोचिंगों में उगाही शुरू कर दी है। हम चाहते हैं कि लोग इस मॉडल को अपनाएं पर उगाही न करें।
प्रोफाइल:-
पटना के आनंद कुमार हर साल गरीब तबके के 30 छात्रों को नि:शुल्क कोचिंग, फूडिंग, लॉजिंग मुहैया कराते हैं। इसका खर्च वह, उनका परिवार और टीम बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर उठाती है। इस मॉडल को उन्होंने सुपर-30 का नाम दिया है। देश-विदेश में इसके लिए उन्हें अनेक सम्मान मिले।
vbspu jaunpur, MGAHU VERDHA, mgkvp, super30,patna, prof.ramjilal, sksinha, chorguru Dr.Deepak Kem, chorguru dr.Anil kumar upadhyay, chor guru anil k rai ankit, Corrupt Guru RamMohanPathak, CHHINALI VIBHUTI(V.N.RAI IPS),