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यह खबर लोकमत,लखनऊ में 25-06-13 को पेज 2 पर छपी है।अन्य समाचार पत्रों में भी छपी है।
महात्मागांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के भ्रष्टाचारी गुरू -2
रीडर डा.अनिल उपाध्याय ने कटपेस्ट करके कैसे लिखी है डीलिट थीसिस / पुस्तक
-कृष्णमोहन सिंह
नई दिल्ली। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के पत्रकारिता विभाग
के रीडर , हेड , शैक्षणिक कदाचारी डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने इसी
विश्वविद्यालय के महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान के प्रोफेसर
ओम प्रकाश सिंह की पीएचडी थीसिस से पेज के पेज, काफी सामग्री हूबहू
कटपेस्ट करके अपनी डीलिट की थीसिस लिखी। और एशिया में पत्रकारिता में
पहला डीलिट होने का दावा करने लगे । लेकिन कत्तई यह दावा नहीं किया कि इस
डीलिट की थीसिस की ज्यादेतर सामग्री किसी और के पीएचडी थीसिस / पुस्तक से
हूबहू नकल करके उतार दिया है। कटपेस्ट करके डीलिट थीसिस बनाया है।और इसकी
पुस्तक भी छपवा लिया है।नकल करके , कटपेस्ट करके बनाई गई इस पुस्तक का
नाम है "पत्रकारिता एवं विकास संचार "। प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने भी अपनी
पीएचडी थीसिस को पुस्तक के रूप में छपवाई है जिसका नाम है "संचार
माध्यमों का प्रभाव "। यहां पहले यह प्रमाण दिया जा रहा कि ओमप्रकाश
सिंह की पुस्तक "संचार माध्यमों का प्रभाव" के किस पेज से किस पेज तक की
सामग्री डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक "पत्रकारिता एवं विकास संचार" के
किस पेज से किस पेज तक है। इसके बाद एक तरफ ओमप्रकाश की पुस्तक का पेज ,
दूसरी तरफ डा. अनिल उपाध्याय की पुस्तक का वही कटपेस्ट का प्रमाण वाला
पेज दिया जायेगा। उसके बाद ओमप्रकाश की पीएचडी थीसिस का पेज और उसको
कटपेस्ट करके अनिल उपाध्याय ने अपनी डीलिट का जो पेज बनाया है उसे आमने
-सामने दिया जायेगा। ताकि डा. अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी,शैक्षणिक
कदाचार का प्रमाण विश्वविद्यालयों के छात्रों, कर्मचारियों ,
अध्यापकों,आम जनता व धृतराष्ट्र बनकर इस शैक्षणिक कदाचारी को बचा रहे
,प्रोमोशन दे रहे कुलपति पृथ्वीश नाग, कुलसचिव साहब लाल मोर्या , राजभवन
उ.प्र. के आला अफसर व उनके आका , यूजीसी के आला अफसर व उनके आका बार -बार
देख सकें । और यह सब भ्रष्टाचारी गुरू अनिल उपाध्याय की डीलिट डिग्री
रद्द करने , उनके विरूद्ध कड़ी कार्रवाई का आधार बन सके। इस शैक्षणिक
कदाचारी को बचाने वालों के विरूद्ध कार्रवाई का आधार बन सके।
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के वकील बी.एस विलौरिया का कहना है- जो
प्रमाण है उसके आधार पर काशी विद्यापीठ ,वाराणसी को डा.अनिल कुमार
उपाध्याय की डीलिट की डिग्री रद्द करके उनको नौकरी से बर्खास्त कर देना
चाहिए था। और अब तक इनको अध्यापक के तौर पर दिये गये वेतन की वसूली की
जानी चाहिए थी। क्योंकि नकल करके डीलिट थीसिस लिखने,डिग्री लेने का मामला
परीक्षा में नकल का मामला है। इसमें अनिल उपाध्याय की डीलिट डिग्री हर
हाल में रद्द करके उनको शैक्षणिक कदाचार, शैक्षणिक दुराचरण के मामले में
बर्खास्त किया जाना चाहिए।
तो पहले देखें ओमप्रकाश की पुस्तक के पेज और चोरगुरू अनिल
उपाध्याय की पुस्तक के पेज का चार्ट (3 पेज )जो साबित करता है कि चोरगुरू
,शैक्षणिक कदाचारी डा. अनिल कुमार उपाध्याय ने कटपेस्ट करकेकिताब बनाया
है। अनिल उपाध्याय की पुस्तक का पहला संस्करण 2001 में, दूसरा संस्करण
2007 में छपा है। दोनों में डा. अनिल कुमार उपाध्याय द्वारा किये गये
नकलचेपी कारनामे का प्रमाण चार्ट में है।