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यदि किसी चोरगुरू,भ्रष्टाचारी गुरू ने इंटरनेट से सामग्री कट-पेस्ट करके , विदेशी प्रोफेसरों ,विद्वानों की पुस्तकों का पेज का पेज, पूरा चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अपने लेखक बनकर पुस्तक छपवा ले और उन पुस्तकों को साक्षात्कार में पेश करके , चोरगुरू संरक्षक भ्रष्टाचारी कुलपति के सक्रिय सहयोग से नियुक्ति पा जाय तो उसकी व उसको नियुक्त कराने वाले कुलपति को बर्खास्त किया जाना चाहिए। और जिस चोरगुरू ने ऐसा करके नौकरी पाया है उसको बर्खास्त करके उसको दिये गये वेतन की वसूली किया जाना चाहिए।
चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित ने हिंन्दी में पीएचडी किया है। चोरगुरू पातंजलि जब वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय का कुलपति बना तो अपने चहेते चोरगुरू शिष्य अनिल कुमार राय अंकित को एढ़ाक लेक्चरर बना पत्रकारिता विभाग खोलवा दिया। इन दोनों चोरवों ने मिलकर पूरे विश्वविद्यालय को लगभग चोरगुरूओं की फैक्ट्री बना दी। चोरगुरू पातंजलि ने यह काम दिल्ली के दरियागंज के अपने चहेते पुस्तक प्रकाशक,सप्लायर प्रशांत जैन के लाभालाभी सहयोग से किया कराया।चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित इस चोरकटई की धूरी बना और पूर्वांचल विश्वविद्यालय व शिक्षक व शिक्षा जैसे पवित्र पेशे को कलंकित करने में प्रमुख भूमिका निभाया।और चोरकटगुरूओं की पूरे देश में एक लम्बी श्रृंखला तैयार कर ली।यूजीसी व मंत्रालयों के भ्रष्ट अफसरों को भी साध लिये और उनको चढ़ावा चढ़ाकर बड़े बड़े प्रोजेक्ट लेकर माल डकारने लगे। सब चोरवे एक दूसरे को वाइवा आदि में बुलाते,एक दूसरे की जमकर मदद करते और अघोषित चोरकटगुरू गैंग बना लिये थे। ये चोरवे कटपेस्ट करके अपने नाम से छपवाई पुस्तकों(नकल करके लिखी पुस्तकों का दाम ओरिजनल पुस्तकों से भी अधिक रखे) को एक दूसरे के यहां के पुस्तकालयों में खरीदवाने और प्रकाशक व सप्लायर प्रशांत जैन के मार्फत मालबनाने का भी धंधा चमका लिये थे। इसमें ज्यादेतर विश्विद्यालयों के कुलपति भी शामिल हो गये थे।ऐसे भ्रष्टाचारी गुरूओं, चोरगुरूओं में पातंजलि, अनिल कुमार राय अंकित ,रामजी लाल,एसके सिन्हा, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का राममोहन पाठक,अनिल उपाध्याय,जामिया मिलिया दिल्ली का दीपक केम ( इसने व अनिल राय अंकित ने मिलकर नकलकरके किताब लिखी है, यह बर्खास्त हो गया),बुंदेलखंड वि.वि झांसी का कुलपति रहा रमेश चंद्रा आदि का नाम अब सब जानगये हैं। हरियाणा,पंजाब,हिमाचल,मध्य प्रदेश , दिल्ली, बिहार, झारखंड के अभी पहुत से नाम और हैं जो सामने आने हैं।
यूजीसी
के नियम के अनुसार, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों के मास्टरों, अध्यापकों के पद पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों को 50 प्रतिशत अंक उनके अकादमिक व रिसर्च रिकार्ड, तीस प्रतिशत अंक उनके सामान्य ज्ञान व तकनीकी ज्ञान और 20 प्रतिशत अंक साक्षात्कार में किए गए प्रदर्शन के आधार
पर मिलते हैं।
यदि किसी चोरगुरू,भ्रष्टाचारी गुरू ने इंटरनेट से सामग्री कट-पेस्ट करके , विदेशी प्रोफेसरों ,विद्वानों की पुस्तकों का पेज का पेज, पूरा चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अपने लेखक बनकर पुस्तक छपवा ले और उन पुस्तकों को साक्षात्कार में पेश करके , चोरगुरू संरक्षक भ्रष्टाचारी कुलपति के सक्रिय सहयोग से नियुक्ति पा जाय तो उसकी व उसको नियुक्त कराने वाले कुलपति को बर्खास्त किया जाना चाहिए। और जिस चोरगुरू ने ऐसा करके नौकरी पाया है उसको बर्खास्त करके उसको दिये गये वेतन की वसूली किया जाना चाहिए।
चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित ने हिंन्दी में पीएचडी किया है। चोरगुरू पातंजलि जब वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय का कुलपति बना तो अपने चहेते चोरगुरू शिष्य अनिल कुमार राय अंकित को एढ़ाक लेक्चरर बना पत्रकारिता विभाग खोलवा दिया। इन दोनों चोरवों ने मिलकर पूरे विश्वविद्यालय को लगभग चोरगुरूओं की फैक्ट्री बना दी। चोरगुरू पातंजलि ने यह काम दिल्ली के दरियागंज के अपने चहेते पुस्तक प्रकाशक,सप्लायर प्रशांत जैन के लाभालाभी सहयोग से किया कराया।चोरगुरू अनिल कुमार राय अंकित इस चोरकटई की धूरी बना और पूर्वांचल विश्वविद्यालय व शिक्षक व शिक्षा जैसे पवित्र पेशे को कलंकित करने में प्रमुख भूमिका निभाया।और चोरकटगुरूओं की पूरे देश में एक लम्बी श्रृंखला तैयार कर ली।यूजीसी व मंत्रालयों के भ्रष्ट अफसरों को भी साध लिये और उनको चढ़ावा चढ़ाकर बड़े बड़े प्रोजेक्ट लेकर माल डकारने लगे। सब चोरवे एक दूसरे को वाइवा आदि में बुलाते,एक दूसरे की जमकर मदद करते और अघोषित चोरकटगुरू गैंग बना लिये थे। ये चोरवे कटपेस्ट करके अपने नाम से छपवाई पुस्तकों(नकल करके लिखी पुस्तकों का दाम ओरिजनल पुस्तकों से भी अधिक रखे) को एक दूसरे के यहां के पुस्तकालयों में खरीदवाने और प्रकाशक व सप्लायर प्रशांत जैन के मार्फत मालबनाने का भी धंधा चमका लिये थे। इसमें ज्यादेतर विश्विद्यालयों के कुलपति भी शामिल हो गये थे।ऐसे भ्रष्टाचारी गुरूओं, चोरगुरूओं में पातंजलि, अनिल कुमार राय अंकित ,रामजी लाल,एसके सिन्हा, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ का राममोहन पाठक,अनिल उपाध्याय,जामिया मिलिया दिल्ली का दीपक केम ( इसने व अनिल राय अंकित ने मिलकर नकलकरके किताब लिखी है, यह बर्खास्त हो गया),बुंदेलखंड वि.वि झांसी का कुलपति रहा रमेश चंद्रा आदि का नाम अब सब जानगये हैं। हरियाणा,पंजाब,हिमाचल,मध्य प्रदेश , दिल्ली, बिहार, झारखंड के अभी पहुत से नाम और हैं जो सामने आने हैं।