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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में सदानन्द शाही मास्टर हैं। पढ़ने –पढ़ाने के साथ-साथ वे साहित्य की थोड़ी बहुत धंधासेवा भी करते हैं।उनके सम्पादन में बनारस से “ साखी ” नामक एक अनियतिकालीन साहित्यिक पत्रिका निकलती है। जो उनके धंधासेवा का प्रमुख माध्यम है। “साखी” के ताजा अंक में विजय प्रकाश सिंह का अपने पिता नामवर सिंह के बारे में लेख छपा है। लेख है- “ पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख्तों के लोग ” ।
विजय प्रकाश सिंह के लेख पर उनके चाचा यानी नामवर सिंह के छोटे भाई काशीनाथ सिंह बहुत पिनपिनाये हुए हैं। जबकि लेख में काशीनाथ सिंह का कहीं कोई जिक्र नहीं है। काशीनाथ की नाराजगी पर एक शेर सटीक बैठता है-
वह बात जिसका सारे फसाने में जिक्र न था,
वह बात उनको बहुत नागवार गुजरी है ।
चर्चा है कि विजय प्रकाश सिंह के लेख का जबाब देने के लिए काशीनाथ सिंह ने भारत भारद्वाज (राय) को, “अपना मोर्चे ” पर लगाया है।
म.गां.अं.हि.वि..वर्धा के तथाकथित सेकुलर जातिवादी जनवादी पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने खुफिया पुलिसकर्मी रहे भारत भारद्वाज (राय) को, वि.वि.की पत्रिका “पुस्तक वार्ता” के सम्पादक पद पर नियुक्त किया है। नामवर सिंह इसी म.गां.अं.हि.वि..वर्धा के कुलाधिपति भी हैं।
दूसरी तरफ विजय प्रकाश सिंह का कहना है- मैं भी मुख में जुबान रखता हूं ...।
अब आगे-आगे- देखिये होता है क्या ...?
यहां प्रस्तुत है “साखी” में छपा विजय प्रकाश सिंह का लेख-
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अवदान होता।अंत में, पिताजी के 83 वें जन्मदिन पर शतायु होने की शुभकामनाएं । ऐसे में मीर का एक शेर मौजूं है –
पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख्तों को लोग
आती रहेंगी याद ये बातें हमारियां ।
पढ़ते फिरेंगे गलियों में इन रेख्तों को लोग
आती रहेंगी याद ये बातें हमारियां ।