Friday, November 20, 2009

नकलची प्रोफेसरो की पुस्तके छापने और सप्लाई करने वालो को क्यों नहीं काली सूची में डाल रहे कुलपति


-सत्ताचक्र गपशप-
पुरानी दिल्ली का दरिया गंज इलाका पुस्तक पब्लिशरों व सप्लायरों की बहुत बड़ी मंडी है। इस मंडी में अब नकल करके लिखी प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों आदि की पुस्तकें खुब बिक रही हैं।यू.जी.सी.अफसरो,विश्विद्यालयों के कुलपतियों,विभागाध्यक्षों,पुस्तकालयाध्यक्षो व पुस्तक पब्लिशरों,सप्लायरो का बहुत बड़ा रैकेट बन गया है ।जिसके माध्यम से, विश्वविद्यालयों में नकल करके लिखी पुस्तकें खुब सप्लाई हो रही हैं।ऐसी पुस्तकों का हर साल 300 से 500 करोड़ रूपये का कारोबार हो रहा है। कोई विश्वविद्यालय यदि एक करोड़ रूपये की पुस्तकें खरीद रहा है तो उसमें लगभग 40 से 50 लाख रूपये चढ़ावा के तौर पर बंटता है।ज्यादेतर ऐसी पुस्तकों की खरीद हो रही है जो कई खण्डो वाली इन्साइक्लोपीडिया हैं और उनके दाम 5000 रूपये से लेकर 30 हजार तक हैं। प्रोफेसरो आदि ने ज्यादेतर इन्साइक्लोपीडिया नकल करके लिखी हैं।इसी तरह अन्य पुस्तकें भी नकल करके लिखी गई हैं और उनके दाम बहुत मंहगा रखकर पुस्तकालयों में खरीदवाने और माल कमाने का धंधा खूब परवान चढ़ा हुआ है। इसकाले धंधे का तंत्र कितना मजबूत है इसका प्रमाण 13 नवम्बर 09 को दिल्ली के करनाल रोड पर हुई एक पब्लिशर,सप्लायर के यहां शादी में देखने को मिला। वह पब्लिशर,सप्लायर जिन विश्वविद्यालयों में पुस्तकें सप्लाई करता है,जिन विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररो की नकल करके लिखी पुस्तकें छापता,बेचता है,जिन विभागाध्यक्षो के जर्नल मुफ्त में छापता है ,उनमें से ज्यादेतर उस सप्लायर के यहां शादी में गये थे।कई विश्वविद्यालयों के कुलपति,प्रोफेसर,रीडर ,लेक्चरर,विभागाध्यक्ष,लाइब्रेरियन,पूर्वलाइब्रेरियन,लेखा क्लर्क,कुलपति के पी.ए.,लाइब्रेरी सहायक आदि तक गये थे।इन सबसे पूछा जाना चाहिए कि इन सबकी उस सप्लायर से कौन सी रिश्तेदारी है। इस एक प्रमाण से साबित होता है कि रैकेट कितना मजबूत है और इनका आपसी नेटर्क कितना तगड़ा है। यही वजह है कि जब भी किसी प्रोफेसर,रीडर व लेक्चरर के नकल करके किताबें लिखने का कारनामा उजागर हो रहा है तो सब मिलकर उसे दबाने और नकलची प्रोफेसर,उसकी पुस्तकें छापने,सप्लाई करने वाले को बचाने में लग जा रहे हैं। उनके खिलाफ कम्प्लेन को दबाकर चोर को बचाने के लिए पूरा जोर लगा दे रहे हैं। जिसका फिलहाल उदाहरण नागपुर के पास का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,दिल्ली का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,पूर्वी उ.प्र. के दो वि.वि.हैं।यही वजह है कि नकलची प्रोफेसरो की पुस्तकें छापने और सप्लाई करने वालो को काली सूची में नहीं डाल रहे कुलपति ।

नकलची टीचर उनकी पुस्तकों के प्रकाशक, लगा रहे तरह – तरह का जुगाड़ : एक नकलची पूर्व कुलपति और उसके नकलची चेलों,नकलची मित्र प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों की पुस्तकें छापने और उनके सहयोग से विश्वविद्यालयों में सप्लाई करने वाली कई कम्पनियों के एक मालिक की मंडली पहले तो बहुत लंबी-लंबी हांक रही थी । लेकिन जब उनके इस नकल के किताबों को लिखने,छापने और उनके सप्लाई के कारनामों का खुलासा कुछ अखबारों और CNEB न्यूज चैनल पर होने लगा तो वह और उनके इस काले धंधे के यार कुलपति,प्रोफेसर ,उनके संरक्षक कुछ पालिटिशियन ,कुछ विज्ञापन एजेंसी वाले, खबर रूकवाने के लिए तरह –तरह का उपक्रम कर रहे हैं।साम-दाम-दंड-भेद हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। किस –किस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं,किससे-किससे क्या कहलवा रहे हैं ,पढ़ने के लिए करें इंतजार।