-सत्ताचक्र गपशप-
नागपुर में एक प्रख्यात भाषाविद् रहते हैं। महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा,महाराष्ट्र में वह जाते रहते हैं।उनकी इस वि.वि. के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय(VIBHUTI NARAYAN / V.N.RAI ) से खुब छनती है। सूत्रो के मुतबिक पुलिसिया कुलपति भी उस भाषाविद् के यहां नागपुर जाते रहते हैं। भाषाविद् उनको खाने-पीने वाला आदमी बताते हैं। यह भी बताते हैं कि पुलिसिया कुलपति ने उ.प्र. के एक तांबे के बर्तन आदि बनाने के लिए प्रसिद्ध शहर से विश्वविद्यालय के तमाम नेम प्लेट आदि बनवाकर मंगवाये थे। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय लिखने में कुछ गड़बड़ी हो गई है। उस भाषाविद् ने जब बताया कि इन सभी तांबे के प्लेट पर विश्वविद्यालय के नाम में आधा न गलत लिखा गया है, तो पुलिसिया कुलपति ने नये नेम प्लेट बनवाने का फरमान जारी कर दिया। जिस पर कुछ लोग कहे कि साहब इन नेम प्लेट को बनवाने पर लगभग 60 हजार रूपये खर्च हो गया है, दूसरे नेम प्लेट बनवाने पर फिर खर्च होगा। कहा जाता है कि उस पर पुलिसिया कुलपति ने कहा कि चाहे जो हो, नये नेम प्लेट बनेंगे। किसी ने कहा – पहले ही क्यों नहीं वह लिखा गया जो अब लिखवाने की बात हो रही है। बताया जाता है कि उस पर कुलपति ने कहा कि पहले अपने पास यह बताने वाले भाषाविद् .... नहीं थे, अब हैं , बताये तो हो रहा है। भाषाविद् ने सूत्र को जो कहा वह यदि सच है तो – पुलिसिया कुलपति ने उनको खाने-पीने के दौरान बैठकी में बताया था कि दिसम्बर 2008 में महाश्वेता देवी विश्वविद्यालय स्थापना दिवस समारोह में आई थीं तो कृपाशंकर चौबे (KRIPA SHANKAR CHAUBE)को प्रोफेसर पद पर नियुक्त करने के लिए कही थीं। वि.वि. में पत्रकारिता के प्रोफेसर पद के लिए जो जगह निकली उसके लिए कृपाशंकर चौबे ने भी आवेदन किया था। उसके लिए जो स्क्रीनिंग कमेटी बनी थी उसमें वह भाषाविद् थे। सूत्रो का कहना है कि भाषाविद् ने कृपाशंकर चौबे को प्रोफेसर पद, शिक्षण कार्य के लायक नहीं पाया ।सो उनका नाम काट दिया । सूत्रों के अनुसार बाद में पुलिसिया कुलपति ने कृपाशंकर का हर हाल में नाम जुड़वाने और नियुक्त करने के लिए नागपुर के एक अपने यार पत्रकार प्रकाश दुबे की अगुवाई वाली स्क्रीनिंग कमेटी बनाई। जिसमें प्रकाश दूबे ने पुलिसिया कुलपति के मनमुताबिक कृपा का नाम रीडर पद के कंडीडेट के तौर पर क्लीयर कर दिया।और उसके बाद साक्षात्कार की खानापूर्ति करके उनकी नियुक्ति रीडर पद पर कर दी गई। सूत्रो का यह भी कहना है कि पुलिसिया कुलपति ने ही चाल चलके यह सब कराया।पहले तो वह कृपाशंकर को प्रिन्ट जर्नालिज्म के प्रोफेसर पद पर लाना चाहता था ( जिस पर अनिल चमड़िया की नियुक्ति हुई) , और अनिल चमड़िया को इलेक्ट्रानिक्स जर्नालिज्म के प्रोफेसर पद पर नियुक्त करने की योजना थी।लेकिन वांट निकलने के बाद पुलिसिया कुलपति से उसके पड़ोसी जिले का सजातीय अनिल कुमार राय अंकित (Dr. ANIL K. RAI ANKIT) मिल गया।कहा जाता है कि उसके बाद पुलिस कुलपति ने सजातीय अनिल राय अंकित को इलेक्ट्रानिक्स जर्नालिज्म का प्रोफेसर और अनिल चमड़िया को प्रिन्ट जर्नालिज्म का प्रोफेसर नियुक्त कराने का मन बना लिय़ा। सो इस चाल के तहत पहली स्क्रीनिंग में भाषाविद् से कृपाशंकर चौबे को प्रोफेसर व शिक्षण के लायक नहीं होने की नोट लिखवा प्रोफेसरशिप से पत्ता काटा , फिर दूसरी प्रकाश दुबे वाली स्क्रीनिंग कमेटी बना उसमें उसी कृपाशंकर चौबे को रीडर पद पर और पढ़ाने लायक योग्य कंडिडेट घोषित करा दिया। पुलिसिया कुलपति ने जिसको प्रोफेसर और रीडर पद पर नियुक्त करने का पहले से मन बनाया था उनसबको साक्षात्कार का कोरम पूरा करा नियुक्त करवा दिया।यह भी कहा जाता है कि कृपाशंकर चौबे को कलकत्ता सेंटर खुलवाकर वहां का इन्चार्ज बनाने का वायदा किया गया था जो अभी तक पूरा नहीं हुआ।सूत्रो का कहना है कि कृपाशंकर चौबे जुगाड़कला के उतने ही महारथी हैं जितना तथाकित चोरगुरू अनिल के.राय अंकित और तथाकथित चोरगुरू राममोहन पाठक।सूत्रो के अनुसार चौबे जी नामवर सिंह की कृपा से सहारा के अखबार में कलकत्ता संवाददाता बने।कहा जाता है कि उसके बाद नामवर से ही मृणाल पांडेय के यहां सिफारिश लगवाकर दैनिक हिन्दुस्तान का कलकत्ता संवाददाता बने ।उसके बाद वर्धा कैसे पहुंचे हैं ,पढ़ ही लिये हैं।
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