पुलिसवाले ने जोड़-जुगाड़ से कुलपति पद पाया तो सजातीय चोरगुरू को प्रोफेसर हेड बना बचाने लगा। खूब बचाया।पुलिसिया हनक में उसने अपने साथ कई पीने वालो से कहा भी कि जब तक ऊपर से नहीं आयेगा तब तक तो जांच नहीं कराऊंगा। जब उसकी यह करतूत जगजाहिर हो गई तथा ऊपर से दस्तावेज आने लगे हैं तो पहले तो खूब खींचता रहा, और चोरगुरू की नियुक्ति को ई.सी. से मंजूरी दिलवाने के डेढ़ माह बाद उस पुलिसिया कुलपति ने कदाचार के आरोपी एक पूर्व कुलपति की अगुवाई में अब जाकर एक जांच कमेटी बनाया है। तथाकथित चोर गुरू हैं अनिल कुमार राय अंकित उर्फ अनिल के. राय अंकित। इस तथाकिथित चोर गुरू को प्रोफेसर पद पर नियुक्त कराकर हेड बनाने वाले हैं पुलिस से कुलपति बने विभूति नारायण राय। और देशी-विदेशी प्रोफेसरो, बैज्ञानिको आदि की पुस्तको,शोध-पत्रो को हूबहू उतारकर अपने नाम एक दर्जन से अधिक पुस्तकें छपवा लेने वाले अनिल के. राय अंकित के इस कदाचार की जांच के लिए विभूति नारायण राय ने जिस व्यक्ति की अगुवाई में वनमैन जांच कमेटी बनाई है उसका नाम है सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा। कुशवाहा पर महात्मा गांधी काशीविद्यापीठ ,वाराणसी का कुलपति रहते कदाचार के कई बड़े आरोप लगे थे। 15 दिन, 20 दिन, एक माह , कितने दिन में जांच रिपोर्ट देनी है इसके बारे में पुलिसिया कुलपति ने चालाकी से कुछ नहीं लिखा है।सूत्रो का कहना है कि कुशवाहा को जांच कमेटी का अध्यक्ष बनवाने में तीन और तथाकथित चोरगुरू प्रो.राममोहन पाठक , प्रेमचंदपातंजलि व अनिल कुमार उपाध्याय का हाथ है।इस तरह पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय इन तथाकथित चोर गुरूओ का तथाकथित अलीबाबा बन गये हैं। नकल करके अपनी पी-एच.डी.शोध प्रबंध लिखने,फर्जी कागजात पर मंदिर की जमीन अपने नाम लिखाने,काशी विद्यापीठ में पुस्तकालय प्रभारी रहते किताबो के खरीद में लाखो रू. के घोटाले व अन्य तमाम कदाचार के आरोपी व महाजुगाड़ी राममोहन पाठक उन साक्षात्कार लेने वालो में थे जिनने कदाचारी चोरगुरू अनिल के. राय अंकित को म.गां.अं.हि.वि.वि.वर्धा में प्रोफेसर नियुक्त किया।नकल करके कई किताबे लिखने वाले प्रेमचंद पातंजलि ही वह व्यक्ति हैं जिन्होने पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर में कुलपति बनने के बाद अपने चहेते कदाचारी चोरगुरू अनिल के. राय अंकित को ठेके पर पढ़ाने का काम दिया,फिर उसे पत्रकारिता विभाग में लेक्चरर व हेड नियुक्त कर दिया। उसी चोर गुरू पातंजलि को पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने म.गां.अं.हि.वि.वि. के तथाकथित दिल्ली सेंटर में मोटी सेलरी पर ओ.एस.डी. पद पर रखा था। लेकिन जब इसकी जांच कराने के लिए शिकायती पत्र केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय में गया तो चालाक पुलिसिया कुलपति ने फंसने से बचने के लिए पातंजलि की नौकरी खत्म कर दी। सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा जब काशी विद्यापीठ में कुलपति थे तो इसी पातंजलि को शोधविकास समिति व अन्य समितियो में एक्सपर्ट के तौर पर बुलाते थे।कहा जाता है कि तब अपने मार्गदर्शक चोरगुरू पातंजलि की आवभगत करने चोरगुरू अनिल अंकित जौनपुर से काशी विद्यापीठ वाराणसी जाता था। सूत्रो का कहना है कि कुशवाहा और पातंजलि एक –दूसरे को लाभ पहुंचाने के लिए मिलकर काम करते रहे हैं। इसके लिए ये दोनो अपने को पिछड़ी जातियो के स्वयंभूनेता पोज करते हैं। कुशवाहा जब काशी विद्यापीठ में कुलपति थे पातंजलि को एक्जक्यूटिव क्लास का, हवाई जहाज का किराया देकर दिल्ली से बुलाते थे। पातंजलि जी विद्यापीठ में जाते थे पत्रकारिता विभाग के शोध कमेटियो में एक्सपर्ट बनकर। छोटे से काशी विद्यापीठ में पत्रकारिता के दो विभाग चलते हैं। कुशवाहा जब वहां कुलपति थे तो एक पत्रकारिता संस्थान के निदेशक राममोहन पाठक और एक पत्रकारिता विभाग के हेड अनिल उपाध्याय थे। उस समय उपाध्याय काशी विद्यापीठ शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी थे। कहा जाता है कि उपाध्याय पहले तो कुशवाहा के द्वारा मनमाने तरीके से की जा रही नियुक्तियों का विरोध कर रहे थे, लेकिन जब कुशवाहा ने उपाध्याय को रीडर पद पर 8 साल पूरा हुए बगैर ही साक्षात्कार करा , बलदेव राज गुप्ता व एक अन्य को एक्सपर्ट बना प्रोफेसर बनवा दिया( विजिलेंस जांच के कारण लटक गया) तो उपाध्याय ने कुशवाहा का कीर्तन करना शुरू कर दिया। अनिल उपाध्याय का घर वाराणसी -9 के जानकी नगर कालोनी में है, और सुरेन्द्र कुशवाहा का भी मकान इसी कालोनी में है।कुशवाहा के इस तरह के करम व अन्य बड़े घोटालो के आरोपो की विजिलेंस जांच चल रही है। इस विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि चोर गुरूओं व उनके संरक्षक पुलिसिया कुलपति व सुरेन्द्र कुशवाहा का तार आपस में कैसे जुड़ा हुआ है। ऐसे में आगे क्या होने वाला है अनुमान लगाया जा सकता है।
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