एक्जक्यूटिव कमेटी से विष्णु नागर ने दिया इस्तीफा
-सत्ताचक्र-
महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ( महाराष्ट्र) के नये बने एक्जक्यूटिव कमेटी से पत्रकार व साहित्यकार विष्णुनागर ने पहली बैठक के पहले ही इस्तीफा दे दिया । वजह चाहे जो हो लेकिन यह तो तय है कि कोई भी नियम-कानून के प्रति संवेदनशीलऔर भ्रष्टाचार – कदाचार से घृणा करने वाला व्यक्ति किसी संस्था व उसके संचालक के इस तरह के कर्मो वाली फाइल पर अपनी हामी की मुहर लगाने के बजाय ऐसी कमेटियों से बाहर हो जाना अच्छा मानता है। वर्धा के इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय के नये बने एक्जक्यूटिव कमेटी में प्रो.रामकरन शर्मा, मृणाल पाण्डेय,डा.एस.थंकामुनियप्पा, प्रो.कृष्णकुमार, गंगा प्रसाद विमल, डा.एस.एन राय और विष्णुनागर( इन्होने इस्तीफा दे दिया) हैं। इसकी पहली बैठक दिनांक 13 जनवरी 2010 को दिल्ली में हो रही है। सूत्रो के मुताबिक इसमें विश्वविद्यालय के पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण( V.N.RAI ) राय द्वारा आपातकालीशक्ति का प्रयोग कर किये गये तथाकथित तमाम मनमानी पर आलराइट की मुहर लगनी है। इसमें सबसे प्रमुख है देशी-विदेशी प्रोफेसरो,वैज्ञानिको,संस्थाओं आदि के पुस्तकों,शोध पत्रों, साइटों से मैटर, चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अंग्रेजी और हिन्दी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकें अपने नाम से छाप लेने वाले नकलचेपी अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित की पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर व हेड पद पर नियुक्ति। इसके नकलचेपी कारनामों के बारे में सप्रमाण CNEB न्यूज चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” में दो बार दिखाया भी जा चुका है। जल्दी ही इसके अन्य कारनामो व इसको बचा रहे कुलपतियों के कारनामो के बारे में कुछ सबूत आने वाले हैं।पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर से इसको इसके नकलचेपी कारनामो के बारे में नोटिस देकर जबाब मांगा गया है।एक नोटिस का जबाब नहीं दिया तो दूसरी नोटिस 04-01-2010 को इसके नाम गई है। अनिल के. राय अंकित ने अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय , रीवा (म.प्र.) के बी.जे.एम.सी. के पाठ्यसामग्री का फिल्म वाला एक पूरा चैप्टर हूबहू उतारकर अपने नाम से लिखी संचार के सात सोपान नामक पुस्तक का एक चैप्टर ही बना दिया है। जिस पर अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय ने नवम्बर 2009 के अन्त में इसको लीगल नोटिस भेजकर 15 दिन में जबाब मांगा था। उसका अनिल के.राय अंकित ने आज तक जबाब नहीं दिया है। सूत्रो के मुताबिक अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय अब इस के खिलाफ कोर्ट में केस करने जा रहा है। इसी अनिल के. राय अंकित ने यू.जी.सी.मेजर प्रोजेक्ट में भी धांधली किया है । इसके खिलाफ और इसको बचा रहे सजातीय कुलपति विभूतिनारायण राय के खिलाफ कई संगठनो और कुछ सांसदों ने हाल ही में, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को पत्र लिख सी.बी.आई. जांच कराने की मांग की है। CNEB चैनेल ने जब अनिल के. राय को प्रोफेसर नियुक्त कराने ,हेड बनाने व बचाने वाले कुलपति विभूति नारायण राय से पूछा था कि नकलचेपी अनिल के बारे में मीडिया में इतना आ रहा है , आपने उससे कभी नकलकरके लिखी किताबें मांगकर देखी, उसकी जांच कराई ? इस पर पुलिस अफसर रहे कुलपति का जबाब था- मैंने उससे पूछा था, उसने कहा कि उसने फ्री मैटर इंटरनेट से उतारकर किताबें लिखी है। यानी सजातीय नकलचेपी ने जो कहा उसे पुलिसिया कुलपति ने मान लिया । देखा ,जांचा नहीं ।सूत्रो के मुताबिक म.अं.हि.वि.वि. के पत्रकारिता के छात्रों ने कईबार कहा कि उनके प्रोफेसर –हेड अनिल के. राय अंकित हिन्दी में एम.ए. करने के बावजूद, अंग्रेजी ठीक से एक पेज लिख नहीं लिख पाने के बावजूद कैम्ब्रिज और आक्सफोर्ड की अंग्रेजी में , सेटेलाइट,कम्यूटर मैनेजमेंट आदि पर 2500 रू. तक की जो किताबें लिखे हैं उसे विभाग की लाइब्रेरी में मंगाया जाय , ताकि उसका अवलोकन किया जा सके। लेकिन छात्रों की लगातार इस मांग के बावजूद पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने आज तक वे पुस्तकें नहीं मंगाई। क्योंकि पुस्तकें आ जाने पर छात्रों को अपने हेड की नकलचेपी कारनामो की असलियत साक्षात सामने आ जायेगी।उसके कई पूरी की पूरी पुस्तकों के एक-एक पंक्ति के चोरी का विवरण कई अखबारों में ,साइट पर छपा है कि कहां से मैटर चुराकर लिखा है, उनसबको छात्र अपने इस चौर्यकला महारथी चोरगरू प्रोफेसर- हेड व उसके संरक्षक पुलिसवाले को दिखाने लगेंगे।
इसके अलावा भी पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने बहुत से ऐसे कारनामे किये हैं। उनपर आरोप लगे हैं कि अपने इमरजेंसी पावर का प्रयोग करके मनमाने ढ़ंग से सेंटर खोले हैं, वहां चहेतो को भर रहे हैं, सेमिनार कराने का अपना पसंदीदा शगल पूरा कर रहे हैं। जिसमें अपने चहेतो को बुला लाइजनिंग चेन मजबूत कर रहे हैं।और इस सबमें आम आदमी के टैक्स का पैसा फूंक रहे हैं। विश्वविद्यालय के कई मेरिटोरियस दलित छात्रों को तरह-तरह से प्रताड़ित करने का भी आरोप है।पहले इसी विश्वविद्यालय के एक ऐसे ही करामाती कुलपति ने ऐसे ही मनमानी की थी जिस पर एक कमेटी ने जांच की थी, जिसमें उनके तरह-तरह के कारनामे उजागर हुए। इस पुलिसिया कुलपति के कारनामो की भी जांच की मांग होने लगी है।फिलहाल तो यह देखना है कि जो सुनाम धन्य लोग इस विश्वविद्यालय की एक्जक्यूटिव कमेटी के मेंम्बर बने हैं वे इस पुलिसिया कुलपति के किये को वेरिफाई करते हैं या बिना कोई फाइल लौटाए, इसके हर किये पर आंख मूंद कर अपनी सहमति की मुहर लगा देते हैं।