यह खबर 24 अगस्त 09 को स्वदेश इंदौर में बाटम स्टोरी थी।
-कृष्णमोहन सिंह
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के साक्षात्कार बोर्ड में वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय(vibhuti narayan rai, v.n. rai),प्रोवीसी नदीम हसनैन, दैनिक भास्कर-नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे,आज तक टीवी चैनल में सम्पादक कमर वहीद नकवी,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ-वाराणसी के कई घोटालो के आरोपी प्रो.राममोहन पाठक, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल,लखनऊ वि.वि.हिन्दी विभाग के प्रो.काली चरण स्नेही और म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के संस्कृत विद्यापीठ की तब डीन रही इलीना सेन थे। इनने अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (Dr. anil k. rai ankit ) से साक्षात्कार लिया ।इनमें इलीना सेन ने अनिल राय की क्षमता और पुस्तको पर सवालिया निशान लगाकर उनकी नियुक्ति का विरोध जताया था।कहा जाता है कि उन्होने तो साक्षात्कार वाले कागज पर पहले हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।मदन गोपाल ने भी विरोध जताया था।बाकी सबने वी.एन.राय के चश्मे से अनिल के.राय अंकित को देखा।जिसके चलते यह नहीं देख पाये कि हिन्दी में एम.ए.,पी.एच.डी. किया व्यक्ति कम्यूनिकेशन मैनेजमेंट,सेटेलाइट मीडिया,डिजिटल मीडिया,फोटोग्राफी आदि की मात्र सन 2006 से 2008 के दैरान एक दर्जन से अधिक पुस्तके कैसे लिख दिया।यदि ये महानुभाव लोग उन पुस्तको को ठीक से पलटे होते और इन विषयों का थोड़ा भी जानकार होते तो तुरंत पकड़ लेते कि पुस्तके नकल करके लिखी गई हैं।अंग्रेजी में लिखी इन पुस्तको की अंग्रेजी देखकर भी पकड़ा जा सकता है।क्योंकि ज्यादेतर में यूरोप व अमेरिका के शिक्षण संस्थानो में प्रचलित अंग्रेजी लिखी है।दिल्ली में तो दो साक्षात्कार में ही अनिल राय की नकल की पोल खुल गयी थी। तब प्रो.के.के.अग्रवाल और प्रो.सुधीर शर्मा ने पुस्तके पलटते ही पकड़ लिया था। वर्धा में साक्षात्कार लेनेवालो में जिनने भी अनिल कुमार राय को प्रोफेसर बनाये जाने के पक्ष में मत दिया उनमें से कोई भी उन विषयो के जानकार नही थे जिनपर अंकित ने नकल करके पुस्तके लिखी है। जो साक्षात्कार बोर्ड में थे उनमें से कुछ माननीयो से इस बारे में बातचीत हुई। जिनमें ज्यादेतर ने सवाल का सीधा जवाब देने से कन्नी काटी। कुछ तो बेशरम की तरह कुतर्क करने लगे।प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
* दैनिक भास्कर,नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे
सवाल : क्या यदि कोई व्यक्ति नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखकर प्रोफेसर बन गया हो तो उसके विरूद्ध कोई कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब : आप तो खुद पढ़े- लिखे समझदार व्यक्ति हैं आप तो जानते ही हैं कि ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही।
सवाल : और यदि नकल करके पुस्तके लिखने वाले व्यक्ति को प्रोफेसर बनाने वालो में से आप भी हों तो?
जबाब: साक्षात्कार के समय कोई कैसे जान पायेगा कि साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति नकल करके किताब लिखा है।
सवाल : कोई हिन्दी में एम.ए. किया व्यक्ति कम्प्यूटर साइंस ,सेटेलाइट मीडिया जैसे विषय पर किताबे लिखा हो और वे साक्षात्कार के समय आपके सामने रखी हों तो आपको आशंका नही हुई कि हिन्दी का आदमी इन विषयो का विद्वान कैसे बन गया?
जबाब : यदि आपके पास प्रमाण हो कि उसने नकल करके किताब लिखा है तो लिखकर वि.वि. प्रशासन को कम्प्लेन करें । वह जो उचित होगा करेगा।
सवाल : प्रकाश जी आपसे सीधा सवाल पूछ रहा हूं। आपने जिस व्यक्ति अनिल के.राय अंकित को वर्धा में प्रोफेसर बनाया है उन्होने एक दर्जन से अधिक पुस्तके नकल करके लिखा है। उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?
जबाब :मेरे सामने तो नकल करके लिखने का कोई प्रूफ आया नही।
सवाल :अकित ने नकल करके जो पुस्तके लिखा है उनमें से कुछ तथ्यो सहित छपा है। जिसे आपने मंगाकर पढ़ा है।अब इससे बड़ा प्रमाण आपको क्या चाहिए? जब तथ्य सामने आ गया है तब आप अंकित के खिलाफ कार्रवाई के बारे में क्या कह रहे हैं?
जबाब: वो तो वि.वि. प्रशासन पर है कार्रवाई करे या नही करे।
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* कमर वहीद नकवी,संपादक,आज तक
नकवी जी से इस बारे में बाते तो बहुत हुई लेकिन उन्होने तीन-चार बार दुहराया कि आप यही लिखिएगा।-
1-साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य के पास यह जांचने का कोई साधन नही होता कि जो व्यक्ति साक्षात्कार देने आया है वह किताब नकल करके लिखा है।
2-आपका जो आरोप है उसको भी जांचने का मेरे पास कोई साधन नही है।
3-अगर ये आरोप सच है तो निन्दनीय है।
सवाल :लेकिन यदि यह साबित हो जाय कि जो व्यक्ति प्रोफेसर नियुक्त हुआ है वह विदेशी पुस्तको,शोध-पत्रो से नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखा है तब ?
जबाब :यह तो उस वि.वि. प्रशासन पर है कि वह उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।
* राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल
इस बारे में मदन गोपाल का कहना है कि ऐसे मामलो में जांच समिति बनती है।नकल करके किताब लिखने के आरोपी व्यक्ति से भी पूछा जाता है।यदि यह साबित हो जाता है कि व्यक्ति नकल करके लिखा है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होती है।उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है। 420 आदि का केस दर्ज होता है।विदेश में तो इसके लिए बहुत ही कड़ा कानून है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में पत्रकारिता के प्रोफेसर राममोहन पाठक से जब इसबारे में सवाल पूछा तो वह मौसेरे भाई के तर्ज पर नकलची अनिल के. राय अंकित के बचाव में ही उतर आये।प्रस्तुत है उनसे बातचीत का प्रमुख अंश-
सवाल :वर्धा में आपलोग जिस अनिल के. राय अंकित को प्रोफेसर बनाये हैं उन्होने नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी है।नकल करके इतनी पुस्तके लिखने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए या नही ?
जबाब: नियुक्ति के बाद हमलोगो का काम खत्म हो गया।अब जिसको जो करना हो करे।
सवाल::लेकिन नकल का मामला तो उजागर हो गया है।ऐसे में क्या कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब: मैं तो नही जानता कि अंकित ने क्या किया है।आपके बारे में भी वह बहुत कुछ कह रहे हैं.कि..तो खबर लिख रहे हैं?
सवाल: राम मोहन पाठक जी, यहां मैं आपसे जो कुछ पूछ रहा हूं, प्रमाण सहित लिखने के बाद पूछ रहा हूं।आप जो कुछ कह रहे हैं उसको लिखित में दीजिए ,फिर मैं उसका जबाब देता हूं।
जबाब : आप अपनी पत्रकारिता कीजिए।मुझसे आप बहुत जूनियर हैं।
सवाल :आप से सीधा सवाल कर रहा हूं तो आप इधर-उधर की बात कर रहे हैं।आप उस साक्षात्कार बोर्ड में थे जिसमें अंकित की नियुक्ति हुई। ऐसे में नकलची को नियुक्त करने के जिम्मेदार आप भी हैं।नकलची प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं?
जबाब :देखिए ,ऐसी बातो का कोई मतलब नहीं है।आप अपनी पत्रकारिता कर रहे हैं,करिए। जो लिखना हो लिखिए।
सवाल:: राम मोहन पाठक , नकल करके किताबे लिखनेवाले को प्रोफेसर बनाने वाले और अब बेशर्मी से बचाने वालों को क्या कहना चाहिए ? क्या उन्हे चोरगुरू का गुरू कहना चाहिए ?
जबाब:..... चुप्प ।
* इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व अंतरराष्ट्रीय भाषा व संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष एस.एन.विनोद का कहना है कि म.अं.हि.वि.वि.वर्धा स्थापना के समय से ही विवादो के घेरे में रहा है। विभूति नारायण राय की नियुक्ति के बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी कि यह सुधरेगा।लेकिन उनके आने के बाद जो बाते तथ्यो सहित सामने आयी हैं उससे तो और निराशा हुई है।नकल करके एक दर्जन के लगभग पुस्तके लिखनेवाले को प्रोफेसर-हेड बना दिया गया,ऐसी खबर छपी हैं।प्रकाशित खबर में प्रमाण सामने है,इसलिए जांच में आसानी होगी।इस मामले की जांच कराया जाये। और आरोप सही पाया जाता है तो उसके (अनिल के. राय अंकित) खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाय।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के साक्षात्कार बोर्ड में वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय(vibhuti narayan rai, v.n. rai),प्रोवीसी नदीम हसनैन, दैनिक भास्कर-नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे,आज तक टीवी चैनल में सम्पादक कमर वहीद नकवी,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ-वाराणसी के कई घोटालो के आरोपी प्रो.राममोहन पाठक, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल,लखनऊ वि.वि.हिन्दी विभाग के प्रो.काली चरण स्नेही और म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के संस्कृत विद्यापीठ की तब डीन रही इलीना सेन थे। इनने अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (Dr. anil k. rai ankit ) से साक्षात्कार लिया ।इनमें इलीना सेन ने अनिल राय की क्षमता और पुस्तको पर सवालिया निशान लगाकर उनकी नियुक्ति का विरोध जताया था।कहा जाता है कि उन्होने तो साक्षात्कार वाले कागज पर पहले हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।मदन गोपाल ने भी विरोध जताया था।बाकी सबने वी.एन.राय के चश्मे से अनिल के.राय अंकित को देखा।जिसके चलते यह नहीं देख पाये कि हिन्दी में एम.ए.,पी.एच.डी. किया व्यक्ति कम्यूनिकेशन मैनेजमेंट,सेटेलाइट मीडिया,डिजिटल मीडिया,फोटोग्राफी आदि की मात्र सन 2006 से 2008 के दैरान एक दर्जन से अधिक पुस्तके कैसे लिख दिया।यदि ये महानुभाव लोग उन पुस्तको को ठीक से पलटे होते और इन विषयों का थोड़ा भी जानकार होते तो तुरंत पकड़ लेते कि पुस्तके नकल करके लिखी गई हैं।अंग्रेजी में लिखी इन पुस्तको की अंग्रेजी देखकर भी पकड़ा जा सकता है।क्योंकि ज्यादेतर में यूरोप व अमेरिका के शिक्षण संस्थानो में प्रचलित अंग्रेजी लिखी है।दिल्ली में तो दो साक्षात्कार में ही अनिल राय की नकल की पोल खुल गयी थी। तब प्रो.के.के.अग्रवाल और प्रो.सुधीर शर्मा ने पुस्तके पलटते ही पकड़ लिया था। वर्धा में साक्षात्कार लेनेवालो में जिनने भी अनिल कुमार राय को प्रोफेसर बनाये जाने के पक्ष में मत दिया उनमें से कोई भी उन विषयो के जानकार नही थे जिनपर अंकित ने नकल करके पुस्तके लिखी है। जो साक्षात्कार बोर्ड में थे उनमें से कुछ माननीयो से इस बारे में बातचीत हुई। जिनमें ज्यादेतर ने सवाल का सीधा जवाब देने से कन्नी काटी। कुछ तो बेशरम की तरह कुतर्क करने लगे।प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
* दैनिक भास्कर,नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे
सवाल : क्या यदि कोई व्यक्ति नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखकर प्रोफेसर बन गया हो तो उसके विरूद्ध कोई कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब : आप तो खुद पढ़े- लिखे समझदार व्यक्ति हैं आप तो जानते ही हैं कि ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही।
सवाल : और यदि नकल करके पुस्तके लिखने वाले व्यक्ति को प्रोफेसर बनाने वालो में से आप भी हों तो?
जबाब: साक्षात्कार के समय कोई कैसे जान पायेगा कि साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति नकल करके किताब लिखा है।
सवाल : कोई हिन्दी में एम.ए. किया व्यक्ति कम्प्यूटर साइंस ,सेटेलाइट मीडिया जैसे विषय पर किताबे लिखा हो और वे साक्षात्कार के समय आपके सामने रखी हों तो आपको आशंका नही हुई कि हिन्दी का आदमी इन विषयो का विद्वान कैसे बन गया?
जबाब : यदि आपके पास प्रमाण हो कि उसने नकल करके किताब लिखा है तो लिखकर वि.वि. प्रशासन को कम्प्लेन करें । वह जो उचित होगा करेगा।
सवाल : प्रकाश जी आपसे सीधा सवाल पूछ रहा हूं। आपने जिस व्यक्ति अनिल के.राय अंकित को वर्धा में प्रोफेसर बनाया है उन्होने एक दर्जन से अधिक पुस्तके नकल करके लिखा है। उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?
जबाब :मेरे सामने तो नकल करके लिखने का कोई प्रूफ आया नही।
सवाल :अकित ने नकल करके जो पुस्तके लिखा है उनमें से कुछ तथ्यो सहित छपा है। जिसे आपने मंगाकर पढ़ा है।अब इससे बड़ा प्रमाण आपको क्या चाहिए? जब तथ्य सामने आ गया है तब आप अंकित के खिलाफ कार्रवाई के बारे में क्या कह रहे हैं?
जबाब: वो तो वि.वि. प्रशासन पर है कार्रवाई करे या नही करे।
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* कमर वहीद नकवी,संपादक,आज तक
नकवी जी से इस बारे में बाते तो बहुत हुई लेकिन उन्होने तीन-चार बार दुहराया कि आप यही लिखिएगा।-
1-साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य के पास यह जांचने का कोई साधन नही होता कि जो व्यक्ति साक्षात्कार देने आया है वह किताब नकल करके लिखा है।
2-आपका जो आरोप है उसको भी जांचने का मेरे पास कोई साधन नही है।
3-अगर ये आरोप सच है तो निन्दनीय है।
सवाल :लेकिन यदि यह साबित हो जाय कि जो व्यक्ति प्रोफेसर नियुक्त हुआ है वह विदेशी पुस्तको,शोध-पत्रो से नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखा है तब ?
जबाब :यह तो उस वि.वि. प्रशासन पर है कि वह उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।
* राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल
इस बारे में मदन गोपाल का कहना है कि ऐसे मामलो में जांच समिति बनती है।नकल करके किताब लिखने के आरोपी व्यक्ति से भी पूछा जाता है।यदि यह साबित हो जाता है कि व्यक्ति नकल करके लिखा है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होती है।उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है। 420 आदि का केस दर्ज होता है।विदेश में तो इसके लिए बहुत ही कड़ा कानून है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में पत्रकारिता के प्रोफेसर राममोहन पाठक से जब इसबारे में सवाल पूछा तो वह मौसेरे भाई के तर्ज पर नकलची अनिल के. राय अंकित के बचाव में ही उतर आये।प्रस्तुत है उनसे बातचीत का प्रमुख अंश-
सवाल :वर्धा में आपलोग जिस अनिल के. राय अंकित को प्रोफेसर बनाये हैं उन्होने नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी है।नकल करके इतनी पुस्तके लिखने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए या नही ?
जबाब: नियुक्ति के बाद हमलोगो का काम खत्म हो गया।अब जिसको जो करना हो करे।
सवाल::लेकिन नकल का मामला तो उजागर हो गया है।ऐसे में क्या कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब: मैं तो नही जानता कि अंकित ने क्या किया है।आपके बारे में भी वह बहुत कुछ कह रहे हैं.कि..तो खबर लिख रहे हैं?
सवाल: राम मोहन पाठक जी, यहां मैं आपसे जो कुछ पूछ रहा हूं, प्रमाण सहित लिखने के बाद पूछ रहा हूं।आप जो कुछ कह रहे हैं उसको लिखित में दीजिए ,फिर मैं उसका जबाब देता हूं।
जबाब : आप अपनी पत्रकारिता कीजिए।मुझसे आप बहुत जूनियर हैं।
सवाल :आप से सीधा सवाल कर रहा हूं तो आप इधर-उधर की बात कर रहे हैं।आप उस साक्षात्कार बोर्ड में थे जिसमें अंकित की नियुक्ति हुई। ऐसे में नकलची को नियुक्त करने के जिम्मेदार आप भी हैं।नकलची प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं?
जबाब :देखिए ,ऐसी बातो का कोई मतलब नहीं है।आप अपनी पत्रकारिता कर रहे हैं,करिए। जो लिखना हो लिखिए।
सवाल:: राम मोहन पाठक , नकल करके किताबे लिखनेवाले को प्रोफेसर बनाने वाले और अब बेशर्मी से बचाने वालों को क्या कहना चाहिए ? क्या उन्हे चोरगुरू का गुरू कहना चाहिए ?
जबाब:..... चुप्प ।
* इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व अंतरराष्ट्रीय भाषा व संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष एस.एन.विनोद का कहना है कि म.अं.हि.वि.वि.वर्धा स्थापना के समय से ही विवादो के घेरे में रहा है। विभूति नारायण राय की नियुक्ति के बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी कि यह सुधरेगा।लेकिन उनके आने के बाद जो बाते तथ्यो सहित सामने आयी हैं उससे तो और निराशा हुई है।नकल करके एक दर्जन के लगभग पुस्तके लिखनेवाले को प्रोफेसर-हेड बना दिया गया,ऐसी खबर छपी हैं।प्रकाशित खबर में प्रमाण सामने है,इसलिए जांच में आसानी होगी।इस मामले की जांच कराया जाये। और आरोप सही पाया जाता है तो उसके (अनिल के. राय अंकित) खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाय।