Saturday, December 26, 2009

काशी विद्यापीठ में रीडर अनिल उपाध्याय के नकलचेपी कारनामे "चोर गुरू" के 11वें एपीसोड में CNEB पर

-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोर गुरू” के 11 वें एपीसोड में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के रीडर, हेड डा.अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी कारनामो का खुलासा होगा। यह कार्यक्रम रविवार 27 -12 -09 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा। जिसमें है कि किस तरह अनिल जी ने दिलेरी से अपनी किताब “पत्रकारिता एवं विकास संचार” में न केवल अपनी ही तरह के पत्रकारिता के एक शिक्षक डा. ओम प्रकाश सिंह की किताब से शब्दशः अनेक पन्ने उतार डाले, बल्कि गुमराह करने के लिए अध्यायों के अंत में दिये गये संदर्भ भी गलत लिख दिये।
डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की किताब का दूसरा संस्करण सन् 2007 में वाराणसी के भारती प्रकाशन से छपा है। इसी किताब का पहला संस्करण सन् 2001 में वाराणसी के ही विजय प्रकाशन से छपा था। जानकार यह भी कहते हैं कि यह किताब अनिल जी की डी. लिट. की उपाधि का ही मैटर है , और इस किताब का पहला संस्करण बाज़ार में आने के दो-तीन साल बाद अनिल जी को इसी मैटर पर डी. लिट. की उपाधि मिली है। उपाधि भी गजब तरीके से मिली। उपाध्याय ने डी.लिट. करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अर्थशास्त्र विभाग में और 11 साल बाद उसी रजिस्ट्रेशन पर ही डि.लिट. लिया पत्रकारिता विभाग से।
अनिल जी के ही सहकर्मी प्रो.ओम प्रकाश सिंह ने हाल ही में आरोप लगाया है कि उनकी सन् 1993 में दिल्ली से छपी किताब “संचार माध्यमों का प्रभाव ” से डॉ अनिल उपाध्याय ने मैटर न केवल चुराया है बल्कि गुमराह करने के लिए संदर्भ भी ग़लत लिखे हैं।
ओम प्रकाश सिंह ने आरोप लगाया है कि इस किताब ( संचार माध्यमों का प्रभाव ) के पेज 70 से 74 तक का मैटर और फिर पेज 97 से पेज 100 तक का मैटर शब्दशः अनिल जी ने अपनी किताब में उतार दिया है । उनका आरोप यह भी है कि अनिल उपाध्याय ने मैटर के साथ-साथ ओम प्रकाश जी के अपने विकसित किये हुए मॉडल भी कॉपी कर लिये हैं।
अनिल उपाध्याय ने अपनी किताब के सन् 2007 के संस्करण में , संचार के संघटक शीर्षक से शुरू करके शब्द-दर-शब्द उतार कर रख दिया है (अपनी किताब के ) पेज 84 से 87 तक। कॉमा, फ़ुलस्टॉप के साथ सब कुछ उतार कर रख देने की यही प्रक्रिया फिर से दोहराइ गयी है पेज 139 से 141 तक।
डा. अनिल कुमार उपाध्याय तो 12-13 पेज से कम के मैटर की नकल को किसी तरह से गलत मानते ही नहीं। कहते हैं – इतने तक का मैटर उतारना कापी राइट के नियम के अनुसार भी जायज है। लेकिन यह कापी राइट के किस खण्ड में कहां लिखा है , यह नतो बता पाते नहीं दिखा पाते हैं उपाध्याय जी।
नकल करके पी.एच.डी., डी.लिट.,किताब लिखने वाले काशी विद्यापीठ के चोरगुरूओं के बारे में कुलपति अवधराम जी ने पत्रकारद्वय संजय देव व कृष्णमोहन सिंह से आनकैमरा बातचीत में कहा- शिक्षक जब चोरी की नजीर बनेंगे तो छात्र उनसे क्या सीखेंगे। ऐसे शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए। होगी।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. श्री निवास ओझा, पूर्व अध्यक्ष डा. उदित नारायण चौबे और उ.प्र. आवासीय विश्वविद्यालय महासंघ के महामंत्री डा. सोमनाथ त्रिपाठी ने नकल करके शोध-प्रबंध, किताबें लिखने वालो को अध्यापन जैसे पवित्र पेशे से बिना रियायत दिये हमेशा के लिए निकाल बाहर करने की बात कही है।