-सत्ताचक्र-
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय , वाराणसी, आई.आई.टी के अगले निदेशक प्रो. के. पी. सिंह होंगे। वह प्रो. उपाध्याय से 1 फरवरी2010 को कार्यभार लेंगे। इसके लिए बीते दिनो हुई बैठक में डा. चूड़ामणि ने इनके नाम का प्रस्ताव किया । जिस पर बहुमत से इनका नाम ओ.के. हो गया। सूत्रो के मुताबिक आई.आई.टी के वर्तमान निदेशक उपाध्याय ने एक टर्म और पाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था। लेकिन बात बनी नहीं। एक सज्जन और रेस में थे। का.हि.वि.वि. के इलेक्ट्रानिक्स विभाग में प्रो. के.पी. सिंह, पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुलपति रह चुके हैं। वहां कुलपति रहने के दौरान उनकी जान-पहचान उस विश्वविद्यालय में हर साल लगभग पौने एक करोड़ रूपये की पुस्तकों की सप्लाई करने वाली इंडिका कम्पनी के चर्चित मालिक प्रशांत जैन से हुई। प्रशांत जैन परिवार उस श्री पब्लिकेशन और यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन का भी मालिक है जो देशी-विदेशी पुस्तकों से सामग्री हूबहू उतारकर अपने नाम छपवाने वाले प्रोफेसरो, रीडरों, लेक्चररों की पुस्तकें छापने के लिए और उनके सहयोग से विश्वविद्यालयों आदि में सप्लाई करने के लिए मशहूर है। उनके यहां हुई शादी में उनके आमंत्रण पर तमाम सुनामधन्य शिक्षक व कर्मचारी लोग संबंध निभाने दिल्ली गये थे । का.हि.वि.वि. में चर्चा है कि अब प्रशांत जैन और उसके प्रतिनिधियों के BHU – IIT में आने – जाने पर निगाह रखनी होगी।
Thursday, December 31, 2009
प्रो. के.पी. सिंह BHU – IIT के निदेशक
चन्द्रशेखर : यादें
हिन्दी दैनिक "राष्ट्रीय नवीन मेल" ने "चन्द्रशेखर - यादें " शीर्षक से लेख की श्रृंखला शुरू किया है। जिसमें उनसे जुड़े रहे कोई भी उनके साथ के बीते दिनो की यादों को लिखकर भेज सकते हैं ।
चन्द्रशेखर : यादें
( रामबहादुर राय की लिखी राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित 334 पेज की पुस्तक “चन्द्रशेखर” में से सामग्री काट – छांट कर कृष्णमोहन सिंह ने यह लेख बनाया है )
दिनांक 17 अप्रैल , 1927 को बलिया जिले के इब्राहिम पट्टी गांव में द्रोपदी देवी की कोख से जिस बालक का जन्म हुआ, वह अपने मुंह में चांदी का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुआ । वह बालक बहुत ही गरीब परिवार में पैदा हुआ । कठिन परिस्थितियों से जूझते, संघर्ष करते हुए उसने अपनी राह बनाई । बड़े से बड़े तोप सुनामधन्यों से सीधे टक्कर लेने में, बिना लाग लपेट अपनी बात कहने में कभी रत्ती भर भी नहीं हिचका । जो उचित लगा वह ऐलानिया , डंके की चोट पर कहा । उस पर डटा रहा । जिसको सहयोग का वायदा किया दमदारी से उसका साथ दिया । वह हैं चन्द्रशेखर ।
उन्ही के शब्दों में – मैंने निकट से गरीबी और विवशता देखा है । जब मैं छोटा था,अपने गांव के स्कूल में पांचवे दर्जे का विद्यार्थी था , मेरे पैर में बड़ा फोड़ा हुआ। दो लोगो ने हाथ पकड़ा, दो लोगो ने पैर ...........नाई के छुरे से उस फोड़े का आपरेशन हुआ ।.......... बड़ा हुआ और जब मैं कालेज का विद्यार्थी था, मेरी मां को हैजा हुआ था और बिना किसी डाक्टर की सहायता के वह इस दुनिया से चल बसीं....
Monday, December 28, 2009
क्या प्रो.राममोहन पाठक की पीएच.डी. व नौकरी जा सकती है ?
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी (MAHATMA GANDHI KASHI VIDYAPEETH) के महामना मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान में प्रोफेसर राममोहन पाठक (Pro. RAM MOHAN PATHAK) ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,वाराणसी के हिन्दी विभाग से सन् 1983 में पी-एच.डी. किया है। इनके पी.एच.डी. के गाइड हिन्दी विभाग के तबके अध्यक्ष डा. विजयपाल सिंह थे। उन्होने दिनांक 20 मार्च 1983 को राममोहन पाठक के पूर्णकालिक शोध छात्र के रूप में पी.एच.डी. पूरा करने के बारे में जो लिखा व हस्ताक्षर किया है वह निम्न है-
हिन्दी विभाग
कला संकाय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय दिनांक 20 मार्च 1983
प्रमाणित किया जाता है कि श्री राममोहन पाठक , शोध छात्र , हिन्दी विभाग ने पी-एच0 डी0 आर्डिनेंस की धारा 1 के अनुसार पूर्ण समय तक कार्य करते हुए प्रबंध पूरा कर लिया है और पी-एच0डी0 छात्र के रूप में की गयी यह खोज इनके स्वयं के निष्कर्ष पर अघृत है।
( विजय पाल सिंह )
निर्देशक एवं अध्यक्ष
हिन्दी विभाग
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
उक्त पत्र में साफ-साफ लिखा है कि श्री राममोहन पाठक ने पूर्ण कालिक रूप से पी-एच.डी. किया है। यानी उन्होने पी-एच.डी. करते समय कहीं नौकरी या अन्य काम नहीं किया है।
लेकिन इसी राममोहन पाठक ने काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पत्रकारिता विभाग में स्थाई रीडर पद पर नियुक्ति के लिए जो बायोडाटा दिया था, जिसके लिए दिनांक 22-08-1987 को साक्षात्कार हुआ , उसमें अनुभव कालम में 2 नं. पर लिखा है- उपसंपादक रिपोर्टर – जुलाई 1973 से कार्यरत – “आज ” दैनिक पत्र समूह ।
उसमें 3 नं. पर लिखा है- संयुक्त संपादक - मार्च 1979 से फरवरी 1985 तक “अवकाश पाक्षिक ” ।
इस साक्षात्कार के बाद राम मोहन पाठक काशी विद्यापीठ में रीडर हो गये थे। इसी राममोहन पाठक ने इसी काशी विद्यापीठ के पत्रकारिता संस्थान में जब प्रोफेसर पद के लिए आवेदन के साथ बायोडाटा लगाया था , जिसका साक्षात्कार 06-01-1996 को हुआ था, तो उसमें अनुभव वाले कालम के 5 नं. पर लिखा था- सम्पादक हिन्दी आज दैनिक लगभग 15 वर्ष , 16 – 7 -73 से 2 – 9 -87 तक ।
6 नं. पर लिखा था- संयुक्त सम्पादक अप्रैल 79 से 86 .
राममोहन पाठक के ये दोनो बायोडाटा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के रिकार्ड में है। इन दोनो बायोडाटा से जाहिर होता है कि –
1- राममोहन पाठक , काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. करने के दौरान आज अखबार समूह में पूर्णकालिक वेतनभोगी कर्मचारी के रूप में काम करते रहे थे ।
2- आज अखबार समूह में प्रिंट लाइन में सम्पादक का नाम पहले सत्येन्द्र कुमार गुप्त छपता था ,उनके बाद शार्दूल विक्रम गुप्त का नाम छपने लगा। ऐसे में प्रिंट लाइन में कब राममोहन पाठक के नाम के आगे सम्पादक छपा ?
3- दोनो बायोडाटा में अनुभव वाले कालम में राममोहन ने अपना पद अलग-अलग लिखा है।
Saturday, December 26, 2009
काशी विद्यापीठ में रीडर अनिल उपाध्याय के नकलचेपी कारनामे "चोर गुरू" के 11वें एपीसोड में CNEB पर
CNEB न्यूज चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोर गुरू” के 11 वें एपीसोड में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी के पत्रकारिता विभाग के रीडर, हेड डा.अनिल कुमार उपाध्याय के नकलचेपी कारनामो का खुलासा होगा। यह कार्यक्रम रविवार 27 -12 -09 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा। जिसमें है कि किस तरह अनिल जी ने दिलेरी से अपनी किताब “पत्रकारिता एवं विकास संचार” में न केवल अपनी ही तरह के पत्रकारिता के एक शिक्षक डा. ओम प्रकाश सिंह की किताब से शब्दशः अनेक पन्ने उतार डाले, बल्कि गुमराह करने के लिए अध्यायों के अंत में दिये गये संदर्भ भी गलत लिख दिये।
डॉ अनिल कुमार उपाध्याय की किताब का दूसरा संस्करण सन् 2007 में वाराणसी के भारती प्रकाशन से छपा है। इसी किताब का पहला संस्करण सन् 2001 में वाराणसी के ही विजय प्रकाशन से छपा था। जानकार यह भी कहते हैं कि यह किताब अनिल जी की डी. लिट. की उपाधि का ही मैटर है , और इस किताब का पहला संस्करण बाज़ार में आने के दो-तीन साल बाद अनिल जी को इसी मैटर पर डी. लिट. की उपाधि मिली है। उपाधि भी गजब तरीके से मिली। उपाध्याय ने डी.लिट. करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के अर्थशास्त्र विभाग में और 11 साल बाद उसी रजिस्ट्रेशन पर ही डि.लिट. लिया पत्रकारिता विभाग से।
अनिल जी के ही सहकर्मी प्रो.ओम प्रकाश सिंह ने हाल ही में आरोप लगाया है कि उनकी सन् 1993 में दिल्ली से छपी किताब “संचार माध्यमों का प्रभाव ” से डॉ अनिल उपाध्याय ने मैटर न केवल चुराया है बल्कि गुमराह करने के लिए संदर्भ भी ग़लत लिखे हैं।
ओम प्रकाश सिंह ने आरोप लगाया है कि इस किताब ( संचार माध्यमों का प्रभाव ) के पेज 70 से 74 तक का मैटर और फिर पेज 97 से पेज 100 तक का मैटर शब्दशः अनिल जी ने अपनी किताब में उतार दिया है । उनका आरोप यह भी है कि अनिल उपाध्याय ने मैटर के साथ-साथ ओम प्रकाश जी के अपने विकसित किये हुए मॉडल भी कॉपी कर लिये हैं।
अनिल उपाध्याय ने अपनी किताब के सन् 2007 के संस्करण में , संचार के संघटक शीर्षक से शुरू करके शब्द-दर-शब्द उतार कर रख दिया है (अपनी किताब के ) पेज 84 से 87 तक। कॉमा, फ़ुलस्टॉप के साथ सब कुछ उतार कर रख देने की यही प्रक्रिया फिर से दोहराइ गयी है पेज 139 से 141 तक।
डा. अनिल कुमार उपाध्याय तो 12-13 पेज से कम के मैटर की नकल को किसी तरह से गलत मानते ही नहीं। कहते हैं – इतने तक का मैटर उतारना कापी राइट के नियम के अनुसार भी जायज है। लेकिन यह कापी राइट के किस खण्ड में कहां लिखा है , यह नतो बता पाते नहीं दिखा पाते हैं उपाध्याय जी।
नकल करके पी.एच.डी., डी.लिट.,किताब लिखने वाले काशी विद्यापीठ के चोरगुरूओं के बारे में कुलपति अवधराम जी ने पत्रकारद्वय संजय देव व कृष्णमोहन सिंह से आनकैमरा बातचीत में कहा- शिक्षक जब चोरी की नजीर बनेंगे तो छात्र उनसे क्या सीखेंगे। ऐसे शिक्षकों पर कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए। होगी।
Thursday, December 24, 2009
क्या प्रो.राममोहन पाठक ने शपथ पत्र में सच नहीं लिखा है ?
-सत्ताचक्र-
प्रो.राममोहन पाठक (PRO.RAM MOHAN PATHAK ) महात्मागांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के मदनमोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान में दिनांक 29 दिसम्बर 2008 तक निदेशक थे। विश्वविद्यालय के कुलसचिव के हस्ताक्षर वाले पत्र संख्या-कु0स0/1079/V I –विभागाध्यक्ष / 2008 के बाद उनको निदेशक पद से हटा दिया गया। 30 दिसम्बर 2008 को जारी कुलसचिव के कार्यालय-आदेश में लिखा है-
कार्य परिषद की बैठक दिनांक 27-12-2008 में लिये गये निर्णय एवं कुलपति जी के आदेश दिनांक 30-12-2008 के अनुपालन में प्रो. ओमप्रकाश सिंह को दिनांक 30-12-2008 से 29-12-2011 तक (तीन वर्ष) के लिए चक्रानुक्रम से वरिष्ठताक्रम में मदन मोहन मालवीय हिन्दी पत्रकारिता संस्थान का निदेशक नियुक्त किया जाता है।
प्रो. ओम प्रकाश सिंह , प्रो. राम मोहन पाठक से तत्काल कार्यभार प्राप्त कर उसकी सूचना प्रशासन एवं वित्त विभाग को भी दे दें।
डा.(रमाशंकर राम)
कुलसचिव
इस आदेश के बाद से प्रो.ओमप्रकाश सिंह निदेशक हो गये हैं।
लेकिन डा.राम मोहन पाठक ने माननीय न्यायालय सिविल जज (सी.डि.),वाराणसी में तथाकथित फर्जी दस्तावेज के आधार पर राधाकृष्ण मंदिर व जमीन अपने नाम कराने और उसकी मूर्ति चोरी के आरोप वाले मामले में 10 रूपये के स्टैंप पेपर पर दिनांक 06-08-2009 को जो शपथ पत्र दिया है , उसके पेज 13 पैरा 33 में लिखा है – यह कि प्रतिवादी संख्या -1 सम्भ्रांत नागरिक है और काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर व निदेशक पद पर कार्यरत है। .......
इसके प्रमाण के तौर पर इनके शपथ –पत्र के पेज 1 और 13 की स्कैन कापी लगी है,देखें-
Wednesday, December 23, 2009
प्रो.राममोहन पाठक पर मूर्ति चोरी का आरोप ?
-सत्ताचक्र -
गांडीव,वाराणसी में 17 अक्टूबर 2009 को छपा है।
राधाकृष्ण मंदिर हड़पने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हो
काशी, 16 अक्टूबर । चेतगंज थाना अंतर्गत शहीद ,कबीरचौरा निवासिनी श्रीमति बेसर देवी ने राधाकृष्ण मंदिर को हड़पने की साजिश करने वालों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की गुहार लगाई है। उन्होने एक विज्ञप्ति में कहा है कि भवन संख्या सी- 25 / 19 मुहल्ला पुरानी टकसाल ,कबीरचौरा में विराजमान देवता श्रीराधाकृष्ण मंदिर की वह सेवायत हैं। मंदिर में देख-रेख के लिए रोहनिया थाना क्षेत्र के गोविंन्दपुर भीमचंडी निवासी बहनू के लड़के त्रिभुवन मिश्र को रखा था । बेसर देवी ने आरोप लगाया है कि त्रिभुवन ने नीयत खराब होने पर दशाश्वमेध थाना क्षेत्र के रानी भवानी गली के निवासी राममोहन पाठक ( RAMMOHAN PATHAK) व उनके पुत्र अमितांशु पाठक के साथ मिलकर मंदिर से मूर्तियां गायब करके हड़पने का प्रयास किया है। बसर देवी ने चेतगंज थाना प्रभारी से प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की है।
………..
जनवार्ता,वाराणसी, गुरूवार 15 अक्टूबर 2009 को छपा है-
मूर्धन्य संगीतज्ञ के मकान का फर्जी बैनामा,प्रशासन ने जड़ा ताला
.........
अमर उजाला,वारणसी बृहस्पतिवार,15 अक्टूबर 2009 को छपा है-
मूर्ति चोरी का पर्दाफाश नहीं हुआ तो अनशन
मा.प.वि.वि. में जुगाड़कला के बदौलत कुलपति बनने की कोशिश
- सत्ताचक्र -
नईदिल्ली । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में 15 जनवरी 2010 से खाली हो रहे कुलपति पद के लिए एक दावेदार, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी के पुस्तकालय घोटाले सहित अन्य कई मामले में आरोपी, प्रो. राममोहन पाठक भी हैं। सूत्रो के मुताबिक उनकी कोशिश जुगाड़ लगाकर वहां कुलपति बनने की है। यदि मा.प.वि.वि. में कुलपति नहीं बन पाये तो 17 मार्च 2010 से खाली हो रहे कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर में कुलपति पद पर भी उनकी निगाह है। सूत्रो का कहना है कि पाठक इसके लिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह से पैरवी कराने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन चक्कर यह है कि इग्नू में पत्रकारिता विभाग के निदेशक शंभूनाथ सिंह भी राजनाथ सिंह और अपनी दूसरी पत्नी दीक्षा के पिता यानी ससुर जे.एस.राजपूत व इनके संपर्को को अपना नाथ माने हुए हैं।सो राजनाथ सिंह जी कहेंगे भी तो शंभू के लिए कहेंगे या राममोहन पाठक के लिए। इधर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति सच्चिदानंद जोशी का 17 मार्च 2010 को 5 साल का टर्म पूरा हो रहा है। टर्म पूरा होने के बाद सच्चिदानंद भाजपा नेताओं से पैरवी कराकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में कुलपति बन जाना चाहते हैं। जुगाड़कला के महारथी जोशी रायपुर में कुलपति के पद पर जाने के पहले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में रजिस्ट्रार थे।सूत्रो के मुताबिक सच्चिदानंद भाजपा के राज्य सभा सांसद प्रभात झा के मार्फत भोपाल में कुलपति पद पाने की कोशिश कर रहे हैं। संघ के सूत्रो का कहना है कि माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय,भोपाल में कुलपति पद के ये तीनो दावेदार महाजुगाड़ू ,अवसरवादी हैं। यदि भाजपा की सरकार में भी ऐसे अवसरवादियों,जुगाड़ियों ,भ्रष्टाचार के आरोपियों को ही कुलपति बनाया गया तो इस पार्टी का भगवान ही मालिक है।संघ के सूत्रो का कहना है कि इस विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए जो कुछ हो रहा है उस पर नागपुर में बैठे संघ प्रमुख की भी निगाह है।
Monday, December 21, 2009
Saturday, December 19, 2009
क्या पुलिस से कुलपति बने वी.एन. राय मैटर चोर को हेड बना बचा रहे हैं , देखें CNEB पर
Friday, December 18, 2009
दो बीवियों के पति, नकलची, भ्रष्टाचार के आरोपी हैं मा.प.वि.वि. भोपाल में कुलपति पद के दावेदार
नई दिल्ली। माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल में कुलपति पद के दावेदार जो लोग हैं उनमें प्रमुख नाम हैं – शंभूनाथ सिंह(SHAMBHUNATH SINGH) , राममोहन पाठक (RAM MOHAN PATHAK) , सच्चिदानंद जोशी ( SACHCHIDANAND JOSHI) ।कहा जाता है कि ये तीनो ही भयंकर जुगाड़ू हैं। सूत्रो का कहना है कि शंभूनाथ सिंह की दो बीवियां हैं । पहली पत्नी का नाम सुनीता, दूसरी का नाम दीक्षा है। दोनो से बच्चे हैं।जैसा कि अक्सर होता है ,गांव के लोग पढ़ते –लिखते हैं गांव में शादी करते हैं,उसकेबाद शहर में आते हैं,किसी नेता के सिफारिश पर या किसी तरह कहीं नौकरी पाते हैं तो कुछ समय बाद उनको गांव वाली पत्नी गंवार लगने लगती है। सो माडर्न पत्नी की चाह पूरा करने के लिए शहर में किसी लड़की से इश्क करते हैं और मामला जब आगे बढ़ जाता है तो शादी कर लेते हैं। शंभूनाथ ने भी दूसरी शादी कर ली। जिस पर प्रभाष जोशी ने इनको “जनसत्ता” अखबार की नौकरी से निकाल बाहर कर दिया। सूत्रो के मुताबिक इनकी दूसरी पत्नी अपने महाजुगाड़ू व महामतलबी पिता के जुगाड़ से यू.जी.सी. में मिली मोटी सेलरी वाली नौकरी पर है। कहा जाता है कि शंभूनाथ जी एक समाजवादी नेता के सिफारिश से कुछ साल बाद दूसरे अखबार में नौकरी पा गये। कुछ साल बाद अखबार मालकिन और उनकी तबकी चहेती एक सम्पादिका ने इनको नौकरी से निकाल दिया । सूत्रो के अनुसार उसके बाद एक नेता और एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री के यहां सहायक रहे व्यक्ति ने माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. भोपाल में इनको रजिस्ट्रार बनवाने के लिए सिफारिश किया और दबाव डलवाया। लेकिन वहां रजिस्ट्रार नहीं बन पाये। फिर इनके महाजुगाड़ी दूसरे ससुर , एक पूर्व केन्द्रीय मंत्री के सहायक आदि ने एक उद्योगपति को पकड़ा। उनके मार्फत एक विश्वविद्यालय के कुलपति को पकड़ा गया। उस समय उस वि.वि. में एक विभाग में एक बड़ा पद खाली था।उसके लिए जुगाड़ बैठाया गया। उद्योगपति से आग्रह किया गया कि फला-फला तीन व्यक्ति को इंटरव्यू बोर्ड में कुलपति से कह कर रखवा दिया जाय तो काम हो जायेगा। वही हुआ। जो नाम दिया गया था उन्ही तीनो को एक्सपर्ट बनाकर बुलाया गया। उन्होने नियुक्ति कर दी। बाद में उनमें से एक से इस संवाददाता ने बात भी की थी। अब इसी तरह माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि.वि. के कुलपति बनने के लिए भी जुगाड़ बैठाया गया है।सूत्रो के मुताबिक एक पार्टी के एक केन्द्रीय नेता और राज्य के एक मंत्री इसके लिए पूरा जोर लगा दिये हैं। इधर कानूनविदो का कहना है कि अपने देश के कानून के मुताबिक कोई हिन्दू यदि दो शादी किया है तो सरकारी नौकरी में नहीं रह सकता। मामला जब किसी वि.वि. के कुलपति पद का हो तब तो उसके लिए ऐसे व्यक्ति को लाना चाहिए जो छात्रो के लिए नजीर बने। ऐसे व्यक्ति को नहीं जिस पर दो शादी करने, किसी विधवा की जमीन हड़पने,मंदिर की मूर्ति गायब कराने, वि.वि. के पुस्तकालय का प्रभारी रहते घोटाला करने, नकल करके पी.एच.डी की थिसिस लिखने, किसी नकलची को अपने वि.वि. में रीडर व हेड नियुक्त करने,उसकी निजी पत्रिका के एडीटोरियल बोर्ड का मेंम्बर होने ,उसके नकल के कारनामों व धतकर्मो के बारे में सूचना मांगने पर लटकाने के आरोप हों। राम मोहन पाठक पर वाराणसी में एक विधवा ने अपना मंदिर और जमीन हडपने, मंदिर की मूर्ति गायब कराने का आरोप लगाया है। पाठक पर महात्मागांधी काशी विद्यापीठ ,वाराणसी के पुस्तकालय प्रभारी रहते घोटाला करने का आरोप है। जिस पर एक जांच कमेटी बैठी थी। सूत्रो के मुताबिक उसने भी अपनी रिपोर्ट में घोटाले की तरफ इंगित किया है। राम मोहन पाठक पर नकल करके अपनी पी.एच.डी. की थिसिस लिखने का भी आरोप है। इसी तरह सच्चिदानंद जोशी पर नकलकरके एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी में पुस्तकें लिखने वाले अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित को कुशाभाऊ ठाकरे वि.वि. में रीडर व हेड बनाने ,उनके धतकर्मो के बारे में आर .टी.आई. के मार्फत मांगी गई सूचना को दबाने , करोड़ो रूपये की पुस्तको की खरीद का व्यौरा नहीं देने आदि का आरोप है। सूत्रो के अनुसार पाठक ने एक भाजपा के नेता और जोशी ने भाजपा के एक राज्य सभा सांसद के मार्फत कुलपति बनने का जुगाड़ लगाया है।
Monday, December 14, 2009
हरियाणा पुलिस एकेडमी के अफसरो का तथाकथित सेक्स स्कैडल उजागर करने वाले अखबार के खिलाफ हरियाणा पुलिस ने केस दर्ज कराया
इनेलो महासचिव अजय चौटाला ने हरियाणा पुलिस एकेडमी के आला अफसरो के खिलाफ की सी.बी.आई. जांच की मांग
एकेडमी के निदेशक वी.एन.राय व अन्य पुलिस अफसर संदेह के घेरे में
-सत्ताचक्र गपशप –
इनेलो महासचिव अजय चौटाला ने हरियाणा पुलिस एकेडमी ,मधुबन (करनाल) के आला पुलिस अफसरो के खिलाफ एक तथाकथित सेक्स स्कैंडल मामले की जांच सी.बी.आई. से कराने की मांग की है। इस एकेडमी के निदेशक वी.एन. राय हैं। अजय चौटाला का कहना है कि एक जूनियर महिला पुलिस अफसर ने (जो एकेडमी में ट्रेनिंग में रही) इसबारे में मुख्मंत्री हुड्डा को लिखित शिकायत की है,जिसकी छायाप्रति व अन्य प्रमाण उनके पास हैं। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला की अगुवाई में इनेलो नेताओ का एक प्रतिनिधि मंडल मंगलवार को राजभवन में राज्यपाल से मिलेगा और इस पूरे मामले को उनके सामने रखेगा तथा इसकी सीबीआई से जांच कराने ,जांच पूरा होने तक एकेडमी के आलापुलिस अफसरो को प्रशासनिक पदो से हटाने की मांग करेगा। अजय चौटाला का यह भी कहना है कि यह खबर छापने वाले एक स्थानीय अखबार के मालिक,संपादक और रिपोर्टर को पुलिस परेशान करने लगी है।उनके खिलाफ केस दर्ज करा दी है।उधर हरियाणा के पत्रकारो के बीच चर्चा है कि यदि इस मामले की ठीक से जांच हो जाय तो कईयों के चेहरे बेनकाब हो जायेंगे। यह भी कहा जा रहा है कि हरियाणा और उ.प्र. के कुछ पुलिस अफसर साहित्य रस , सोम रस ,सौन्दर्य रस के कुछ ज्यादे ही प्रेमी और जोगाड़ी हो गये हैं। इसमें दो तो सगे भाई हैं। बताया जाता है कि जिस आईपीएस पुलिस अफसर पर आरोप है वह उ.प्र. के आजमगढ़ का रहने वाला है और उसका भाई भी आईपीएस है।
Saturday, December 12, 2009
पूर्वकुलपति रमेश चन्द्रा के नकलचेपी कारनामे और उस पर पूर्व केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डा.जोशी की कड़ी टिप्पणी CNEB पर
-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” के अगले एपीसोड में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी(उ.प्र.) के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश चन्द्रा के नकल करके एक साल में 29 किताबें लिखने के काले कारनामों को दिखाया जायेगा। जिस पर पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी की टिप्पणी भी दिखाई जायेगी। प्रो.रमेश चन्द्रा अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.आर.अम्बेडकर सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक ( Pro. RAMESH CHANDRA , DIRECTOR- B.R.AMBEDKAR CENTRE FOR BIOMEDICAL RESEARCH , DELHI UNIVERSITY ) हैं , और उ.प्र. में किसी वि.वि. में कुलपति बनने के लिए जुगाड़ लगाये हुए हैं। चोर गुरू के इस नौंवे एपीसोड में यह दिखाया जायेगा कि पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम ने जब कैमरा के सामने प्रो. रमेश चन्द्रा से उनके नकलचेपी कारनामो के बारे पूछा तो किस तरह पहले तो वह बड़े ही टालू अंदाज में कहे – यह तो एडिटेड बुक है ।फिर जब उनको दिखाया गया कि इसमें एडिटेड बुक का कोई प्रमाण ही नहीं है। केवल उपर एडिटेड बुक लिख दिया गया है। इस किताब के सभी चैप्टर केवल आपने लिखा है । कौन चैप्टर किससे लिखवाया है ,किस लेखक ने लिखा है,उसका डिटेल क्या ,कहीं कुछ नहीं दिया है। न कोई रिफरेंस नहीं और कुछ। यह किताब कई देशी –विदेशी किताबो आदि से पेज के पेज ,चैप्टर के चैप्टर मैटर हूबहू उतार कर बनाई गई है। किस किताब से ,कहां से मैटर हूबहू उतार कर पुस्तक बनाई गई है यह प्रमाण दिखाने पर प्रो. रमेश चन्द्रा ने ठीक वही शब्द कहा जो जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली का नकलचेपी रीडर दीपक केम ने कहा था- यह तो मेरी किताब ही नहीं है। चन्द्रा ने कहा कि इसे तो मैंने लिखा ही नहीं है। इस किताब से तो मेरा कोई लेना –देना ही नहीं है। जब रमेश चन्द्रा से यह पूछा गया कि जब आप की लिखी किताब नहीं है तो प्रकाशक ने आपके नाम से यह पुस्तक छापा कैसे, इतने दिनो से कैसे बेच रहा है, आपने अब तक उसके खिलाफ केस क्यों नहीं किया ? किया तो ,उसका प्रमाण दे दीजिए ? प्रमाण मांगने पर चन्द्रा ने कहा – कहीं होगा। लेकिन प्रो.चन्द्रा ,आपने तो एक साल में 29 तक किताबें लिखी हैं। जो कि कई-कई वालूम में इन्साइक्लोपीडिया के रूप में छपी हैं।उन सभी पुस्तकों के अंतिम कवर पेज के अंदर वाले पेज पर आपका चित्र आपही के बायोडाटा सहित छपा है। इस सवाल पर भी प्रो. चन्द्रा ने झट से कह दिया – वे सब भी मेरी लिखी पुस्तकें नहीं है। यह पूछने पर कि आपके नाम से पुस्तकें छपी हैं आप कह रहे हैं आपकी लिखी नहीं है,आपकी नहीं हैं, फिर किसकी हैं ? इस पर चन्द्रा ने बड़े ही चालाकी वाला जबाब दिया- यह तो आप प्रकाशक से पूछिये। उसके बाद पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम गई प्रो.रमेश चन्द्रा के पुस्तकों के प्रकाशक – कल्पाज प्रकाशन, ईशा प्रकाशन से जुड़े गर्ग के यहां दरिया गंज ,नई दिल्ली। उनको जब, रमेश चन्द्रा ने जो कहा था वह बताया गया तो उन्होने कहा- क्या पब्लिशर पागल है जो अपने मन से किसी की किताबें छापेगा या किसी के नाम पर किताबें छाप कर बेचेगा।उसे मरना है क्या? गर्ग ने प्रमाण सहित बताया कि जितनी भी ,जो भी पुस्तकें, वालूम की वालूम इनसाइक्लोपीडिया प्रो. रमेश चन्द्रा के नाम से छपी हैं सबका मैटर वही दिये हैं। उन्होने लिखित दिया है कि ये उनकी मौलिक कृति हैं। गर्ग ने जिसकी छायाप्रति आन कैमरा दिया है। चोरगुरू के इसके पहले के एपीसोड में दिखाया जा चुका है कि बुंदेलखंड वि.वि. के एक प्रो. डी.एस.श्रीवास्तव ने कैमरे के सामने कहा है कि रमेश चन्द्रा मैटर लाकर उनको देते थे, कहते थे कि इसमें से मैटर छांट कर उनके ( प्रो. रमेश चन्द्रा) नाम से किताब बना दो, जो मैटर बचे उससे अपने (डी.एस.श्रीवास्तव )और सरिता कुमारी ( प्रो.रमेश चन्द्रा की चचेरी बहन जो इस समय जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली में लेक्चरर हैं) के नाम से पुस्तकें बना लो। इस तरह नकल करके पुस्तकें लिखने ,लिखवाने,छपवाने, उन्हे बिकवाने,एक दूसरे को मदद पहुंचाने, नौकरी –संरक्षण देने-दिलानेवाले कुलपतियों, मैटरचोर मौसेरे प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर भाइयों का विश्वविद्यालयों में बड़ा रैकेट बन गया है। जिसका भंडापोड़ CNEB न्यूज चैनेल पर “चोरगुरू” कार्यक्रम में हो रहा है। यह कार्यक्रम रविवार 13 -12-09 को रात्रि 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा।
Thursday, December 10, 2009
नकलची अनिल के बचाव में जुटे उसे प्रोफेसर नियुक्त करने वाले
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता के प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के साक्षात्कार बोर्ड में वि.वि. के कुलपति विभूति नारायण राय(vibhuti narayan rai, v.n. rai),प्रोवीसी नदीम हसनैन, दैनिक भास्कर-नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे,आज तक टीवी चैनल में सम्पादक कमर वहीद नकवी,महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ-वाराणसी के कई घोटालो के आरोपी प्रो.राममोहन पाठक, राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल,लखनऊ वि.वि.हिन्दी विभाग के प्रो.काली चरण स्नेही और म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के संस्कृत विद्यापीठ की तब डीन रही इलीना सेन थे। इनने अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (Dr. anil k. rai ankit ) से साक्षात्कार लिया ।इनमें इलीना सेन ने अनिल राय की क्षमता और पुस्तको पर सवालिया निशान लगाकर उनकी नियुक्ति का विरोध जताया था।कहा जाता है कि उन्होने तो साक्षात्कार वाले कागज पर पहले हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था।मदन गोपाल ने भी विरोध जताया था।बाकी सबने वी.एन.राय के चश्मे से अनिल के.राय अंकित को देखा।जिसके चलते यह नहीं देख पाये कि हिन्दी में एम.ए.,पी.एच.डी. किया व्यक्ति कम्यूनिकेशन मैनेजमेंट,सेटेलाइट मीडिया,डिजिटल मीडिया,फोटोग्राफी आदि की मात्र सन 2006 से 2008 के दैरान एक दर्जन से अधिक पुस्तके कैसे लिख दिया।यदि ये महानुभाव लोग उन पुस्तको को ठीक से पलटे होते और इन विषयों का थोड़ा भी जानकार होते तो तुरंत पकड़ लेते कि पुस्तके नकल करके लिखी गई हैं।अंग्रेजी में लिखी इन पुस्तको की अंग्रेजी देखकर भी पकड़ा जा सकता है।क्योंकि ज्यादेतर में यूरोप व अमेरिका के शिक्षण संस्थानो में प्रचलित अंग्रेजी लिखी है।दिल्ली में तो दो साक्षात्कार में ही अनिल राय की नकल की पोल खुल गयी थी। तब प्रो.के.के.अग्रवाल और प्रो.सुधीर शर्मा ने पुस्तके पलटते ही पकड़ लिया था। वर्धा में साक्षात्कार लेनेवालो में जिनने भी अनिल कुमार राय को प्रोफेसर बनाये जाने के पक्ष में मत दिया उनमें से कोई भी उन विषयो के जानकार नही थे जिनपर अंकित ने नकल करके पुस्तके लिखी है। जो साक्षात्कार बोर्ड में थे उनमें से कुछ माननीयो से इस बारे में बातचीत हुई। जिनमें ज्यादेतर ने सवाल का सीधा जवाब देने से कन्नी काटी। कुछ तो बेशरम की तरह कुतर्क करने लगे।प्रस्तुत है बातचीत के प्रमुख अंश-
* दैनिक भास्कर,नागपुर के स्थानीय संपादक प्रकाश दुबे
सवाल : क्या यदि कोई व्यक्ति नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखकर प्रोफेसर बन गया हो तो उसके विरूद्ध कोई कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब : आप तो खुद पढ़े- लिखे समझदार व्यक्ति हैं आप तो जानते ही हैं कि ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही।
सवाल : और यदि नकल करके पुस्तके लिखने वाले व्यक्ति को प्रोफेसर बनाने वालो में से आप भी हों तो?
जबाब: साक्षात्कार के समय कोई कैसे जान पायेगा कि साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति नकल करके किताब लिखा है।
सवाल : कोई हिन्दी में एम.ए. किया व्यक्ति कम्प्यूटर साइंस ,सेटेलाइट मीडिया जैसे विषय पर किताबे लिखा हो और वे साक्षात्कार के समय आपके सामने रखी हों तो आपको आशंका नही हुई कि हिन्दी का आदमी इन विषयो का विद्वान कैसे बन गया?
जबाब : यदि आपके पास प्रमाण हो कि उसने नकल करके किताब लिखा है तो लिखकर वि.वि. प्रशासन को कम्प्लेन करें । वह जो उचित होगा करेगा।
सवाल : प्रकाश जी आपसे सीधा सवाल पूछ रहा हूं। आपने जिस व्यक्ति अनिल के.राय अंकित को वर्धा में प्रोफेसर बनाया है उन्होने एक दर्जन से अधिक पुस्तके नकल करके लिखा है। उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?
जबाब :मेरे सामने तो नकल करके लिखने का कोई प्रूफ आया नही।
सवाल :अकित ने नकल करके जो पुस्तके लिखा है उनमें से कुछ तथ्यो सहित छपा है। जिसे आपने मंगाकर पढ़ा है।अब इससे बड़ा प्रमाण आपको क्या चाहिए? जब तथ्य सामने आ गया है तब आप अंकित के खिलाफ कार्रवाई के बारे में क्या कह रहे हैं?
जबाब: वो तो वि.वि. प्रशासन पर है कार्रवाई करे या नही करे।
------------
* कमर वहीद नकवी,संपादक,आज तक
नकवी जी से इस बारे में बाते तो बहुत हुई लेकिन उन्होने तीन-चार बार दुहराया कि आप यही लिखिएगा।-
1-साक्षात्कार बोर्ड के सदस्य के पास यह जांचने का कोई साधन नही होता कि जो व्यक्ति साक्षात्कार देने आया है वह किताब नकल करके लिखा है।
2-आपका जो आरोप है उसको भी जांचने का मेरे पास कोई साधन नही है।
3-अगर ये आरोप सच है तो निन्दनीय है।
सवाल :लेकिन यदि यह साबित हो जाय कि जो व्यक्ति प्रोफेसर नियुक्त हुआ है वह विदेशी पुस्तको,शोध-पत्रो से नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखा है तब ?
जबाब :यह तो उस वि.वि. प्रशासन पर है कि वह उसके खिलाफ क्या कार्रवाई करता है।
* राष्ट्रपति के प्रतिनिधि मदन गोपाल
इस बारे में मदन गोपाल का कहना है कि ऐसे मामलो में जांच समिति बनती है।नकल करके किताब लिखने के आरोपी व्यक्ति से भी पूछा जाता है।यदि यह साबित हो जाता है कि व्यक्ति नकल करके लिखा है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होती है।उसको नौकरी से निकाल दिया जाता है। 420 आदि का केस दर्ज होता है।विदेश में तो इसके लिए बहुत ही कड़ा कानून है।
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में पत्रकारिता के प्रोफेसर राममोहन पाठक से जब इसबारे में सवाल पूछा तो वह मौसेरे भाई के तर्ज पर नकलची अनिल के. राय अंकित के बचाव में ही उतर आये।प्रस्तुत है उनसे बातचीत का प्रमुख अंश-
सवाल :वर्धा में आपलोग जिस अनिल के. राय अंकित को प्रोफेसर बनाये हैं उन्होने नकल करके एक दर्जन से अधिक पुस्तके लिखी है।नकल करके इतनी पुस्तके लिखने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई होनी चाहिए या नही ?
जबाब: नियुक्ति के बाद हमलोगो का काम खत्म हो गया।अब जिसको जो करना हो करे।
सवाल::लेकिन नकल का मामला तो उजागर हो गया है।ऐसे में क्या कार्रवाई होनी चाहिए ?
जबाब: मैं तो नही जानता कि अंकित ने क्या किया है।आपके बारे में भी वह बहुत कुछ कह रहे हैं.कि..तो खबर लिख रहे हैं?
सवाल: राम मोहन पाठक जी, यहां मैं आपसे जो कुछ पूछ रहा हूं, प्रमाण सहित लिखने के बाद पूछ रहा हूं।आप जो कुछ कह रहे हैं उसको लिखित में दीजिए ,फिर मैं उसका जबाब देता हूं।
जबाब : आप अपनी पत्रकारिता कीजिए।मुझसे आप बहुत जूनियर हैं।
सवाल :आप से सीधा सवाल कर रहा हूं तो आप इधर-उधर की बात कर रहे हैं।आप उस साक्षात्कार बोर्ड में थे जिसमें अंकित की नियुक्ति हुई। ऐसे में नकलची को नियुक्त करने के जिम्मेदार आप भी हैं।नकलची प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए या नहीं?
जबाब :देखिए ,ऐसी बातो का कोई मतलब नहीं है।आप अपनी पत्रकारिता कर रहे हैं,करिए। जो लिखना हो लिखिए।
सवाल:: राम मोहन पाठक , नकल करके किताबे लिखनेवाले को प्रोफेसर बनाने वाले और अब बेशर्मी से बचाने वालों को क्या कहना चाहिए ? क्या उन्हे चोरगुरू का गुरू कहना चाहिए ?
जबाब:..... चुप्प ।
* इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार व अंतरराष्ट्रीय भाषा व संस्कृति संस्थान के अध्यक्ष एस.एन.विनोद का कहना है कि म.अं.हि.वि.वि.वर्धा स्थापना के समय से ही विवादो के घेरे में रहा है। विभूति नारायण राय की नियुक्ति के बाद थोड़ी उम्मीद जगी थी कि यह सुधरेगा।लेकिन उनके आने के बाद जो बाते तथ्यो सहित सामने आयी हैं उससे तो और निराशा हुई है।नकल करके एक दर्जन के लगभग पुस्तके लिखनेवाले को प्रोफेसर-हेड बना दिया गया,ऐसी खबर छपी हैं।प्रकाशित खबर में प्रमाण सामने है,इसलिए जांच में आसानी होगी।इस मामले की जांच कराया जाये। और आरोप सही पाया जाता है तो उसके (अनिल के. राय अंकित) खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई की जाय।
Monday, December 7, 2009
मारिशस के राष्ट्रपति को डि.लिट. देने की मंजूरी के लिए कैसे बाध्य किया गया भारतीय राष्ट्रपति को
-कृष्णमोहनसिंह
नईदिल्ली। महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय जाते हैं मारिशस। वहां वह राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ से मुलाकात करते हैं। जहां पता चलता है कि जगन्नाथ दिसम्बर का पहला डेढ़ हप्ता भारत में बितायेंगे। लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल से लगायत अन्य तमाम जगह जायेंगे। सो सम्पर्क बढ़ाने , चमचागिरी चमकाने का उत्तम अवसर देख विभूति नारायण ने इस भारत यात्रा के दौरान ही उनको डी.लिट.उपाधि देने की बात कर ली। मारिशस से वापस आने के बाद पुलिसिया कुलपति ने वि.वि. के एके़डमिक कौंसिल की आपात बैठक बुलाई।वि.वि में अभी तक एक्जक्यूटिव कौंसिल नही होने के कारण पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण अपने इमरजेंसी पावर का इस्तेमाल करके नकलची को प्रोफेसर –हेड बनवाने से लगायत अपनी मंडली के तरह-तरह के लोगो को तरह-तरह से लाभान्वित करने का उपक्रम कर रहे हैं। तो उस एकेडमिक कौंसिल की आपात बैठक में आपात निर्णय मारिशस के राष्ट्रपति अनिरूद्द जगन्नाथ को डी.लिट. देने का हुआ।उस फाइल को मंजूरी के लिए वाया केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ,वि.वि. के विजिटर भारत के राष्ट्रपति के यहां भेज दिया गया। म.अं.हि.वि.वि. के पुलिसिया कुलपति ने जब मारिशस के राष्ट्रपति से मुलाकात करके और अपने यहां एकेडमिक कौंसिल की आपात बैठक कर डी.लिट. देने का आपात निर्णय कर ही लिया है तो केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन उस फाइल पर अपनी मंजूरी मजबूरी में देगा ही। क्योंकि यदि फाइल रोक दी जायेगी तो भद्द होगी।तो इस तरह विभूति ने अपने निर्णय पर मंजूरी देने के लिए केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति भवन को मजबूर किया।जिसको शिक्षा मंत्रालय ने तो ठीक से नोट कर ही लिया है।
पुलिसिया कुलपति ने नकलची को बनाया मारिशस के राष्ट्रपति के कार्यक्रम / दीक्षान्त समारोह का प्रचार प्रभारी
-सत्ताचक्र गपशप-
महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा,महाराष्ट्र के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने अपने विरादर , जनसंचार विभाग के नकलचेपी प्रोफेसर व हेड अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के.राय अंकित को मारिशस के राष्ट्रपति अनिरूद्ध जगन्नाथ के कार्यक्रम/ दीक्षांत समारोह का प्रचार प्रभारी बनाया है। अनिरूद्ध जगन्नाथ 9 दिसम्बर 09 को वर्धा जा रहे हैं। दीक्षान्त समारोह में उनको डि.लिट. की उपाधि दी जायेगी। उस दिन म.अं.हि.वि.वि. में इसके लिए जो कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है उसका मीडिया के मार्फत प्रचार का जिम्मा नकलची प्रोफेसर अनिल के. राय अंकित को सौंपा गया है।
Saturday, December 5, 2009
पूर्वांचल वि.वि. के शिक्षक एस.के.सिन्हा के नकलचेपी कारनामे CNEB पर
-सत्ताचक्र-
वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर के डिपार्टमेंट आफ फाइनांसियल स्टडीज में वरिष्ठ शिक्षक डा.एस.के.सिन्हा ( जिनका इसी वि.वि. में रीडर पद पर सेलेक्शन हो गया है,लिफाफा खुलने की देरी है। इन नकलचेपी प्रोफेसरो ,रीडरो,लेक्चररो को बचाने का ,मामला दबाने का तरह-तरह से उपक्रम शुरू हो गया है। ये नकलची प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर और इनकी पुस्तकें छापकर इसी वि.वि. की पुस्तकालयों में,इन्ही नकलची आध्यापकों और वि.वि. के कुछ अफसरो के सहयोग से बीते 6-7 साल से प्रति वर्ष 70-80 लाख रूपये की पुस्तकें सप्लाई करने वाले प्रकाशक,सप्लायर का रैकेट राज्य के कुछ तथाकथित घूसखोर नेताओं,अफसरों के मार्फत मामला दबाने में लग गया है) के नकल करके किताबें लिखने का कारनामा CNEB न्यूज चैनल के खोज परक कार्यक्रम “चोरगुरू” के अगले एपीसोड में दिखाया जायेगा। जो कि रविवार दिनांक 06 दिसम्बर 2009 को रात्रि 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा। डा.एस.के.सिन्हा ने नकल करके जो किताब लिखा है उसका नाम है – LOGISTICS AND SUPPLY CHAIN MANAGEMENT . इस पुस्तक को SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS , ANSARI ROAD, DARAYA GANJ , NEW DELHI -110002 . ने छापा है। पुस्तक 2007 में छपी है। पूर्वांचल विश्वविद्यालय,जौनपुर नकलचेपी शिक्षकों का गढ़ हो गया है। यहां के पूर्व कुलपति प्रेम चंद पातंजलि, डीन रामजी लाल, लेक्चरर एस.के. सिन्हा, लेक्चरर अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (अवैतनिक अवकाश पर , इस समय म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में सजातीय पुलिसिया कुलपति की कृपा व संरक्षण से जनसंचार विभाग के प्रोफेसर व हेड ) के नकल करके एक साल में एक दर्जन तक किताबें लिखने का मामला सामने आया है। इन सब नकलचेपियों की पुस्तकें SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS ने छापा है। इन सबके नकलचेपी कारनामों को CNEB न्यूज चैनल पर चल रहे चोर गुरू कार्यक्रम में दिखाया जा चुका है। चोर गुरू कार्यक्रम की आठवीं कड़ी में रविवार दिनांक 06-12-09 को रात 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में एस.के. सिन्हा के बारे में दिखाया जायेगा कि किस तरह उन्होने विदेशी लेखक विलियम सी कोपैसिनो की किताब SUPPLY CHAIN MANAGEMENT से लगग हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक का 21 से 42 तक का पेज बना लिया है। CNEB न्यूज चैनल की टीम ने पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति और रजिस्टार के सामने जब पूछताछ की तो उसमें सिन्हा ने स्वीकारा है। कैमरा के सामने आने के पहले सिन्हा को कुलपति और रजिस्टार ने अलग कमरे में ले जाकर कुछ पूछा,समझाया कि क्या कहना है।लेकिन कैमरे के सामने सिन्हा ने काफी कुछ बता दिया ।सिन्हा ने साफगोई से सबकुछ बताना शुरू किया तो कुलपति और रजिस्टार थोड़ा असहज हो गये और सिन्हा को आगाह करते हुए कम बोलने का संकेत किया। फिर भी सिन्हा ने बहुत कुछ बताया। उन्होने तो यह भी बताया कि जिस प्रशांत जैन की कम्पनी SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS के यहां से किताबें छपवाई हैं उसी के यहां से मुफ्त में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय ,जौनपुर के डिपार्टमेंट आफ फाइनांसियल स्टडीज का एक जर्नल भी छपता है। इस बारे में पूछने पर प्रशांत जैन ने कैमरे के सामने स्वीकार किया की वह यह बिजनेस प्रमोशन के लिए करते हैं। यानी सप्लायर,पब्लिशर,वि.वि. के अधिकारी व शिक्षक सब इस बिजनेस प्रमोशन की एक लाभवाली कड़ी के अंग बन गये हैं। ईमानदार शिक्षाविद इसे रैकेट कहने लगे हैं। जिसके मार्फत भारत में प्रेफेसरो,रीडरो,लेक्चररों द्वारा नकल करके लिखी पुस्तकों का सालाना लगभग 500 करोड़ रूपये का कारोबार हो रहा है। ये किताबें विश्वविद्यालयों के लाइब्रेरियों में रैकेट के मार्फत बिक रही हैं। जिनपर आन रिकार्ड केवल 10 से 20 प्रतिशत छूट दिखाया जाता है। किताबों के छपे दाम का बाकी 40 से 50 प्रतिशत रैकेट में शामिल अफसरो,मास्टरों,लाइब्रेरियनों,क्लर्कों के बीच चढ़ावा चढ़ जाता है। CNEB के इस एपीसोड में आप यह भी देखेंगे कि किस तरह नकलचेपी शिक्षकों की लाखो-लाखो- रूपये की ढ़ेर सारी पुस्तकें,इनसाइक्लोपीडिया मंगाकर लाइब्रेरी में रखा जाता है। इस तरह की पुस्तकें सप्लाई करने वाली कम्पनियों में से एक इंडिका और छापने वाली कम्पनी श्री पब्लिशर के मालिक प्रशांत जैन के मजेदार तर्क भी इस एपीसोड में देखने को मिलेगा।
Sunday, November 29, 2009
जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली में नकलचेपी रीडर दीपक केम के कारनामे
-सताचक्र गपशप-
जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली के सेंटर फार कल्चर एंड मीडिया गवर्नेस में दीपक केम रीडर हैं। उनके पिता यू.जी.सी. में दो साल पहले तक सेक्रेटरी थे और अभी यू.जी,सी. के ही एक विभाग नाक में कुलपति रैंक के पद पर निदेशक हैं।इस पद पर उनकी नियुक्ति यू.जी.सी. के वर्तमान चेयरमैन थोराट ने की है।कैसे की है इसकी स्टोरी बाद में।इसी तरह बड़े केम ने अपने पुत्र दीपक और उनकी पत्नी को किस तरह आगे बढाया है,दीपक को प्रोफेसर बनवाने के लिए कहां-कहां जुगाड़ भिड़ाया जा रहा है,कैसे यू.जी.सी.आदि का प्रोजेक्ट दिलवाया जा रहा है ,इसके बारे में बाद में। पहले दीपक केम के नकल करके कई किताबें लिखने के कारनामों पर। दीपक केम ने, महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग में अपने सजातीय पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय की कृपा से जुलाई09 में प्रोफेसर नियुक्त हुए व हेड बने, अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित के साथ मिलकर PHOTOGRAPHY PRINCIPLES AND PRACTICES नामक 2500 रूपये की किताब लिखी है।जिसे श्रीपब्लिशर व डिस्ट्रीब्यूटर,दरियागंज ,दिल्ली ने छापा है। जिसमें 22 चैप्टर हैं।ये 22 चैप्टर तीन विदेशी पुस्तकों से चैप्टर के चैप्टर हूबहू उतार कर बनाये गये हैं। नकलचेपी दीपक केम और अनिल के. राय अंकित की इस पुस्तक में ढ़ेर सारी फोटो भी हैं। जिसके चयन में भी केम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।नकल करके यह किताब लिखने की बात उजागर होने पर कलाकार केम अब कह रहे हैं “– ये अनिल के. राय कौन है,इसको तो मैं जानता ही नहीं हूं।इस किताब से मेरा कोई लेना –देना नहीं है...।“ जबकि दोनों नकलचेपियो को अच्छी तरह जानने वाले लोग कह रहे हैं कि दोनों एक ही चौर्यकला के चट्टे-बट्टे हैं।दोनो एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं।यह भी कहा जा रहा है कि इसी दीपक केम के मार्फत इनके पिता यानी बड़े केम से जुगाड़ लगाकर अनिल के. राय अंकित ने यू.जी.सी. का एक प्रोजेक्ट लिया है। उसमें भी एक प्रोजेक्ट फेलो को, नियुक्त करने के एक साल बैक डेट से सेलरी दिलाने का आर्डर कराने का धांधली किया है। जिसमें यू.जी.सी. का एक कर्मचारी भी शामिल है। केम और अंकित के नकल करके किताब लिखने के कारनामे जब CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जाने के लिए प्रोमो चलने लगा तो यू.जी.सी. की एक कमेटी में मेम्बर एक व्यक्ति के यहां एक सज्जन का फोन गया। कहे- भाई साहब उस लड़के से गलती तो हो गई है,खबर दिखाने से तो उसका कैरियर खत्म हो जायेगा। जिस व्यक्ति के यहां फोन गया था उन्होने जबाब दिया –एक पिता का अपने पुत्र की भविष्य की चिंता मैं अच्छी तरह समझ रहा हूं,लेकिन आपका पुत्र कोई दूध पिता बच्चा नहीं है, प्राचार्य है। पुत्र ने नकल करके किताबें लिखी है तो वह कैसे नहीं दिखाया जाय। जब चोरगुरू खबर दिखा दी गयी और दूसरे दिन भी उसे रिपीट करने के लिए वही प्रोमो चल रहा था तो उस व्यक्ति के यहां एक नकलचेपी ने फोन किया और कहा- अंकल उस प्रोमो सें मेरा फोटो तो हटवा दीजिए..।खबर दिखाये जाने के दो दिन बाद फिर एक नकल चेपी के पावरफुल पिता का फोन उस व्यक्ति के यहां गया- भाई साहब जो खबर चैनल पर दिखाई गई, उसकी सी.डी. को जामिया मिलिया के कुलपति के यहां नहीं भेजवाइयेगा,वरना वह कार्रवाई कर सकते हैं। आगे क्या हुआ बाद में पढ़ियेगा।
Saturday, November 28, 2009
पूर्वांचल वि.वि. के डीन रामजी लाल के नकल करके किताबें लिखने के कारनामे CNEB पर
चोरगुरू कार्यक्रम के सातवीं कड़ी में दिखाया जायेगा, रविवार दिनांक 29-11-09 को रात 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में उन्हीं प्रोफ़ेसर रामजी लाल की कारस्तानी । उसके बाद देखियेगा CNEB के जौनपुर संवाददाता सुरेंद्र से हुई रामजी लाल की गरमागरम बातचीत और उसके बाद संजय देव और कृष्णमोहन सिंह की जोड़ी के साथ हुई उनकी नौटंकी के रोचक अंश।
प्रो. रामजी लाल गुरू जी ने विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों आदि की पुस्तकों व शोध-पत्रों आदि से मैटर लगभग हूबहू उतार कर अपने नाम से जो पुस्तकें छपवाई हैं उनमें एक पुस्तक है- इंडस्ट्रियल एंड ऑर्गेनाइज़ेशनल साइकोलॉजी । सन् 2004 में छपी इस किताब में रामजी गुरू जी ने छह-सात जगहों पर 20-20, 30-30 पेज और एक जगह 50 से भी अधिक पेज का मैटर चुराया है। इसके प्रकाशक हैं -श्री पब्लिशर्स, दरियागंज, नई दिल्ली।
285 पेज की इस किताब में रामजीलाल ने 200 पेज के लगभग मैटर छह अलहदा स्रोतों से चुराया है, किताब में बिबलिओग्राफ़ी नहीं होगी, यह अब आप भी जान ही चुके हैं। लाल के कानामो का नमूना देखें रविवार दिनांक 29-11-09 को CNEB पर।
Friday, November 27, 2009
अब चोर गुरू करेंगे प्रभाष जोशी पर कार्यक्रम
प्रख्यात पत्रकार आलोक तोमर ने ठीक ही लिखा है- प्रभाष जी की आत्मा को शांति नहीं चाहिए..। यदि उनकी आत्मा को शांति मिल गई तो उन सफेदपोश चोरो की चांदी हो जायेगी जिनकी चांदी की चमचमाती पन्नी में काईंयापन से ढ़की सिर तक सराबोर कदाचार की करनी को वह अपनी लेखनी से तार-तार कर दुनिया के सामने उनके असली चेहरे उजागर करते थे। सफेदपोशो के कदाचार,धतकर्मो को तार –तार करने के लिए प्रभाष जी की उस सागर आत्मा को हमारे बीच प्रेरणा श्रोत बने रहना होगा। वरना उनके ही नाम पर कार्यक्रम आयोजित करके चौर्यकला महारथी प्रोफेसर ,रीडर,लेक्चरर इनके संरक्षक कुलपति अपने स्याह कर्म को सफेद करने लगेंगे।
यह शुरू भी हो गया है। महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने देशी-विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,वैज्ञानिको आदि की पुस्तकों,शोधपत्रों से लगभग हूबहू उतार कर एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी व हिन्दी में पुस्तकें ,शोध-पत्र अपने नाम से छपवालेने वाले अनिल के राय अंकित को प्रभाष जी पर कार्यक्रम आयोजित करने की जिम्मेदारी दी है।विभूति राय ने ही अनिल कुमार राय को वि.वि. में प्रोफेसर नियुक्त कराया व जनसंचार विभाग का हेड बनाया है।सो अब एक नकलचेपी प्रोफेसर और उसका संरक्षक आयोजित कर रहे हैं प्रभाष जी पर कार्यक्रम।
Thursday, November 26, 2009
क्या कार्रवाई रूकवाने के लिए नकलचेपी गुरू करने लगे तरह-तरह के उपक्रम ?
पूर्वांचल वि.वि.जौनपुर के फिलहाल तीन नकलचेपी गुरूओं (प्रो.रामजी लाल,लेक्चरर एस.के. सिन्हा,लेक्चरर अवैतनिक अवकाश ,इससमय म.गां.अं.हि.वि.वि. वर्धा में प्रोफेसर, अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित) को वि.वि. प्रशासन ने कारण बताओ नोटिस दिया है। जिसका जबाब एक सप्ताह में देने को कहा गया है।वह समय अब पूरा हो गया ।नोटिस पर वि.वि. के रजिस्ट्रार का हस्ताक्षर है।जिन्होने कुलपति के निर्देश पर यह नोटिस जारी किया है। नकलचेपियों को नोटिस दिये जाने के कुछ दिन बाद ही भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ,जौनपुर के एक पदाधिकारी का पत्र उ.प्र. के राज्यपाल के यहां भेजा जाता है।उसकी प्रति BABAJI PCO OLANDGANJ,JAUNPUR-2 ,FAX NO. 05452-268714 से 20-11-09 को सायं 3 बजकर 46 मिनट पर CNEB न्यूज चैनल के लिए चोर गुरू कार्यक्रम बना रही टीम के यहां भेजा गया। NSUI जौनपुर के जिस पदाधिकारी ने अपने लेटर हेड पर यह पत्र लिखा है उन्होने इस पर अपना दो फोन नम्बर दिया है। एक -9889055407 दूसरा 9415893652 . इसमें पहला मोबाइल आइडिया का है जो आफ है। दूसरा मोबाइल नं. गोरखपुर में एक मोबाइल की दुकान चलाने वाले सब्बीर अहमद का है। आज 11.23 a.m. पर इस नंबर पर बात हुई तो सब्बीर ने बताया कि इस मोबाइल से पैसा ट्रांसफर होता है।
एनएसयूआई के जौनपुर के पदाधिकारी ने प्रदेश के राज्यपाल को डेढ़ पेज का जो पत्र लिखा है उसमें लिखा है-
विषय : बी.बी.एस. पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर में कार्यरत कुलसचिव डा.बीएल.आर्या के कृत्य के सन्दर्भ में ।
यानी पत्र वि.वि. के रजिस्ट्रार के खिलाफ लिखा गया है। जिसको पढ़ने से ऐसा आभास होता है कि वि.वि. में जोभी भ्रष्टाचार है सबकी एक मात्र जड़ रजिस्ट्रार हैं। बाकी सब हरिश्चन्द्र हैं। कुलपति,नकलचेपी अध्यापक,सप्लायर के यहां शादी में दिल्ली जाने वाले वि.वि. के मास्टर,पदाधिकारी ,कैटालागर,पुस्तकालय सहायक,क्लर्क,पी.ए. आदि सब दूध के धूले हैं।
इस पत्र के साथ एक भी प्रमाण नहीं दिया गया है। पत्र पर दिनांक भी नही डाला गया है। इसमे वि.वि. के रजिष्ट्रार के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि उन्होने अपने पुत्र रामसिंह को एम.बी.ए. विभाग में गेस्ट लेक्चरर नियुक्त कर दिया है । लेकिन पत्र में यह कहीं नही लिखा है इसी वि.वि. के DEPARTMENT OF FINANCIAL STUDIES के नकलचेपी लेक्चरर डा.एस.के. सिन्हा के सगे भाई प्रभात सिन्हा,वि.वि.के केन्द्रीय पुस्तकालय में पुस्तकालय सहायक अवधेश प्रताप के रिश्तेदार सहित डेढ़ दर्जन से अधिक गेस्ट लेक्चरर हैं।जिसमें कई तो यहां के मास्टरो,अफसरो,कर्मचारियों के नजदीकी या दूर के रिश्तेदार या खास हैं।
पत्र में लिखा है कि रामसिंह को कापी जांचने का काम भी दिया गया। वि.वि. के नियम के अनुसार तीन साल तक पढ़ाने का अनुभव रखने वाला लेक्चरर कापी जांच सकता है। इस नियम के अनुसार यदि राम सिंह का पढ़ाने का अनुभव तीन साल से अधिक हो गया होगा तो वह कापी जांच सकते हैं। पत्र में पांचवे नम्बर पर लिखा है- शैक्षणिक अनुभाग में थिसिस तथा मैखिक परीक्षा कराने के नाम पर 5 से 10 हजार प्रति छात्र लिया जाता है। पत्र में रजिस्ट्रार पर और भी आरोप लगाये हैं। लेकिन कहीं भी वि.वि. के इन तमाम तथाकथित घोटालों ,गड़बडियों के लिए कुलपति या विभाग के हेड या इन्चार्ज पर आरोप नहीं लगाया गया है।ऐसा लगता है कि इस वि.वि. के रजिस्ट्रार ही कुलपति,विभागाध्यक्ष,सभी विभाग के इन्चार्ज और क्लर्क हैं। इस पत्र में यह कहीं नहीं लिखा गया है कि नकलकरके किताबें लिखनेवाले वि.वि. के प्रोफेसरो को नौकरी से निकाला जाना चाहिए। नकल करके लिखी उन मास्टरों की पुस्तकें छापने और उनकी सप्लाई इस वि.वि. में लगभग सात साल से करने वाले दिल्ली के इंडिका सप्लायर ,श्री पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर को ब्लैक लिस्ट किया जाय।उसके यहां से कई करोड़ रू. की पुस्तकें खरीदवाने वाले कुलपति,हेड,लेक्चरर,अफसर के खिलाफ सी.बी.आई. जांच कराया जाय।लाइब्रेरी में कई-कई साल तक किताबों को डम्प करने,उनकी इन्ट्री नहीं करने वालो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय।सप्लायर के यहां शादी में क्या इसी-लेन-देन की रिश्तेदारी निभाने के लिए ये सभी गये थे ,इसकी जांच कराया जाय।
इस पत्र को लिखने वाले व्यक्ति के संगठन के राष्ट्रीय पदाधिकारियों का इस बारे में कहना है कि पूर्वांचल वि.वि. में भ्रष्टाचार के लिए वे सब बराबर के जिम्मेदार हैं जो कुर्सी पर बैठे हैं। जांच सबके खिलाफ होनी चाहिए। इस संगठन के कुछ पदाधिकारी जौनपुर के इस पदाधिकारी के पत्र को कांग्रेस अध्यक्ष और एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष के यहां पूर्वांचल वि.वि. के नकलचेपी मास्टरों के कारनामो के सबूत सहित भेज रहे हैं।
Wednesday, November 25, 2009
दैनिक भास्कर के गढ़ में दैनिक जागरण के घुसने की तैयारी
बदले में दैनिक भास्कर भी दैनिक जागरण के गढ़ में घुसेगा
-सत्ताचक्र-
उ.प्र. के कानपुर से शुरू हुआ नरेन्द्रमोहन बंधुओं का अखबार दैनिक जागरण उ.प्र.,उत्तराखंड बिहार ,झारखंड, आदि राज्यों के बाद अब मध्यप्रदेश में पांव फैलाने की तैयारी में जुट गया है। मध्यप्रदेश के भोपाल ,रीवा से जो दैनिक जागरण निकलता है उसके मालिको से कानपुरवालों की कट्टी हो गयी। सूत्रो के का कहना है कि भोपाल वाले अब अपना जन जागरण नाम से अखबार निकालेंगे। दैनिक जागरण की टाइटल म.प्र. में भी कानपुर वालो के पास रहेगी। कानपुरवालो ने म.प्र. के कई प्रमुख शहरो से एक साथ अखबार (दैनिक जागरण) निकालने की योजना बनाई है।अखबार जल्दी निकालना है इसलिए किसी अन्य अखबार के प्रिंटिंग प्रेस से छपाई कराने के लिए बात चल रही है। इसके लिए इस अखबार के मैनेजरों की म.प्र. के कई शहरो से निकलने वाले पीपुल्स ग्रुप से छपाई के लिए कई राउन्ड बात-चीत हुई है। इंदौर में दैनिक जागरण का अपना प्रेस है। भोपाल वालों के साथ भागीदारी में इंदौर में जो अखबार निकला था उसमें लगी छपाई मशीन कानपुर वालों के हिस्से में आ गई है। म.प्र.में कुलमिलाकर भास्कर नं-1 है। दूसरे नंबर पर नई दुनिया है। इन दोनो से दैनिक जागरण की कड़ी टक्कर होगी। नई दुनिया का झुकाव कांग्रेस की तरफ है। भास्कर का व्यवसाय के हिसाब से घालमेल है। ऐसे में भाजपा शासित राज्य म.प्र.,छत्तीसगढ़ में दैनिक जागरण के जल्दी छा जाने की संभावना है। दैनिक जागरण म.प्र. में भास्कर और नई दुनिया के गढ़ में घुसेगा तो उसके गढ़ उ.प्र. में भी भास्कर और नई दुनिया घुसेगें ही। कांग्रेस के कुछ आला नेता भी यह चाहते हैं। देखिए कब उ.प्र. में ये दोनो अखबार जाते हैं। यह होने पर लाइजनर एडवर्टाइजमेंट मैनेजर एडिटरो की डिमांड एक बार और बढ़ जायेगी।
Tuesday, November 24, 2009
फंसने से बचने के लिए पुलिसिया कुलपति ने पातंजलि से किया किनारा,इस्तीफा लिया
-सत्ताचक्र गपशप-
सूत्रो का कहा यदि सही है तो महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. वर्धा के दिल्ली सेंटर में पूर्वांचल वि.वि. के पूर्व कुलपति प्रेम चंद पातंजलि को ओ.एस.डी./सलाहकार पद पर रखा गया था।पुलिस अफसर से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने इनकी नियुक्ति की। पातंजलि पर भी नकल करके किताबें लिखने का आरोप है। विभिन्न विषयों पर एक साल में 14 पुस्तकें लिखें हैं।सभी पुस्तकें SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS , 20 , ANSARI ROAD,DARYA GANJ, NEW DELHI-110002 से प्रकाशित हैं। नकलचेपी विधा में पातंजलि के पटु अनुआई अनिल कुमार राय अंकित को भी विभूति नारायण राय ने वि.वि. में नियुक्त कराया है। दोनो के नकल करके किताबें लिखने का मामला तथ्यों सहित उजागर होने के बाद भी इनके आका तरह-तरह के कुतर्क देकर इनको बचाते रहे हैं। सबूतो सहित जब शिकायत प्रधानमंत्री और शिक्षामंत्री के यहां पहुंची है,CNEB चैनल पर आया है तो वि.वि. ने प्रेमचंद पातंजलि से किनारा कर लिया । सूत्रो का कहना है कि उनसे इस्तीफा ले लिया गया। इसबारे में पातंजलि से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की गई, पर वह फोन आफ किये हुए हैं।वि.वि. का भी कोई जिम्मेदार कर्मचारी इस पर बोलने को तैयार नहीं है।क्योंकि वहां पुलिसिया राज है।
सूचना- आपके पास किसी कुलपति, प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर के द्वारा नकल करके पुस्तकें, शोध-पत्र लिखने का प्रमाण है तो sattachakra@gmail.com पर मेल कर सकते हैं।
Sunday, November 22, 2009
पूर्वांचल वि.वि.प्रशासन ने नकल करके किताबें लिखने के मामले में डीन रामजी लाल,लेक्चरर एस.के.सिन्हा,लेक्चरर अनिल कुमार राय को दिया नोटिस
नईदिल्ली। CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जारहे खोजपरक कार्यक्रम चोर गुरू का असर दिखने लगा। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर प्रशासन ने नकल करके किताबें लिखने के मामले में प्रो. रामजी लाल (डीन सामाजिक विज्ञान संकाय),एस.के.सिन्हा(लेक्चरर फाइनांस कन्ट्रोल डिपार्टमेंट), अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित (लेक्चरर,अवैतनिक अवकाश पर, पत्रकारिता विभाग । इस समय महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में प्रोफेसर हैं) को कारण बताओ नोटिस दिया है। बताया जाता है कि वि.वि. प्रशासन ने नोटिस में लिखा है –.....आप लोगो ने जो कर्म किया है उससे विश्वविद्यालय की छवि धूमिल हुई है....।....देशी –विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,वैज्ञानिको आदि के पुस्तकों,शोध-पत्रो आदि से कापीराइटेड मैटर लगभग हूबहू उतार कर आप लोगो ने जो पुस्तकें लिखी है इस संबंध में CNEB चैनल के राजनीतिक संपादक प्रदीप सिंह का पत्र आया था। इस बारे में एक सप्ताह के भीतर आख्या दें।जिससे CNEB चैनल को अवगत कराया जा सके। इस नोटिस पर वि.वि. के कुल सचिव बी.एल. आर्या का हस्ताक्षर है। सूत्रो के मुताबिक नकल करके किताबें लिखने वाले ये गुरूजी लोग बचने के लिए तरह-तरह की जुगत लगा रहे हैं। इनके संरक्षक व आका भी इन्हे बचाने के लिए पूरा जोर लगा रहे हैं।देखिये वि.वि. प्रशासन आगे क्या करता है? कुछ कठोर कार्रवाई भी करता है या नोटिस देकर मामला ठंडे बस्ते में डाल देता है।
चोरगुरूओं,उनके सहयोगियों,संरक्षकों का उजागर होने लगा दोहरा चरित्र
पूर्वी उ.प्र. के एक वि.वि.के कैटालागर लाइब्रेरियन वि.वि. के अपने कुछ चंपुओं व मातहतो के सामने तो सीना चौड़ाकर उन पत्रकारो के बारे में बहुत अनाप-शनाप बक रहे थे जिनने नकलची प्रोफेसरो,रीडरो,लेक्चररो के नकल करके किताबें लिखने,उन्हे छापने-सप्लाई करने,खरीदने,खरीदवाने वालों के कालेधंधे का भण्डा फोड़ शुरू किया है।लेकिन जब यह सामने आ गया कि 1- वह लाइब्रेरियन महोदय पत्नी व बच्चे सहित पुस्तक सप्लायर के यहां दिल्ली में शादी में गये थे,जिसकी सारी व्यवस्था सप्लायर ने की थी ,2-वह लाइब्रेरियन महोदय उस सप्लायर द्वारा सप्लाई की हुई विभिन्न विषयों की नकलची गुरूओं द्वारा लिखी अति महंगे दामवाली करोड़ो रूपये की इन्साइक्लोपीडिया के वालूम के वालूम को लाइब्रेरी के पहली मंजिल के कमरो में डम्प किये हुए हैं, 3- नकलची गुरूओं की लिखी हर साल मंगाई गई ढ़ेर सारी पुस्तको को बहुत समय तक इन्ट्री,कैटालागिंग न करके वैसे ही डम्प रखा गया है,छात्रो को कई –कई साल तक इसु नहीं किया गया है। यह सब सामने आने के बाद बहुत बढ़-चढ़कर अनाप-शनाप बोल रहे कैटालागर महोदय की धुक-धुकी बढ़ गयी। वह कैटालागर लाइब्रेरियन महाशय म.प्र. के एक विश्वविद्यालय के लाइब्रेरियन के अंडर में पी.एच.डी.सबमिट किये हैं। अपना कर्म उजागर होने से पुकपुकाये यह साहब जिसके अंडर में पी.एच.डी. सबमिट किये हैं,उससे फोन करवा रहे हैं।यह कि हुजूर बख्श दीजिए। विश्वविद्यालयों में लाइब्रेरियन का प्रभार प्रोफेसरके पास होता है,यहां यह कैटालागर लाइब्रेरी का प्रभारी है।
नकलचेपी प्रोफेसर बाहर बढ़-चढ़कर बोल रहा अंदर सिफारिश लगवा रहा: नकल करके दर्जनो पुस्तकें लिखने वाला एक नकलचेपी महाराष्ट्र के एक नये केन्द्रीय वि.वि. में अपने जाति के कुलपति की कृपा से प्रोफेसर –हेड बना है। उसके नकल करके ढ़ेर सारी पुस्तकें लिखने के कारनामे अखबारो में आ रहे हैं। उस नकलची ने अपने संरक्षको,चंपुओं के सामने तो खबर लिखनेवालों के बारे में बहुत अंड-बंड कहता रहा। उसके बड़बोले आका भी उसी की जुबान बोलते रहे हैं। नकलची ने नकल करके लिखी अपनी एक पुस्तक अपने एक मददगार को समर्पित की है। उनसे वह बहुत बार आरजू किया कि सर जो लोग लिख रहे हैं उनसे कहिए मत लिखें। यह है नकलचेपी का अंदर कुछ और बाहर कुछ और मामला।ऐसे बहुत हैं।उसके आका का भी यही हाल है।
Saturday, November 21, 2009
पूर्व कुलपति व म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में ओ.एस.डी. पातंजलि और पूर्वांचल वि.वि. के डीन रामजी लाल के नकल करके किताबें लिखने के कारनामे CNEB पर
नैतिकता की दुहाई देकर सीएनईबी के रिपोर्टरों को डाँटने-हड़काने वाले ये शिक्षक कलई खुलने पर किस तरह रंग बदलते हैं, इसकी कुछ झलक भी इस छठी कड़ी में पेश की जायेगी। पूर्वांचल वि.वि.जौनपुर,भागलपुर वि.वि.भागलपुर के पूर्व कुलपति,व इस समय म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में ओ.एस.डी.प्रेम चंद पातंजलि से लेकर अनिल के. राय अंकित के, मैटर चुराकर किताबें लिखने के कारनामे दिखाने के बाद अब सीएनईबी पर इसी संस्थान के कुछ और वरिष्ठ और वर्तमान शिक्षकों के कारनामे दिखाये जायेंगे। पूर्वांचल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर रमेश चंद्र सारस्वत के सामने सीएनईबी की टीम ने जब प्रोफेसरो,रीडरों द्वारा नकलकरके बहुत सी पुस्तकें लिखने का प्रमाण दिखाया तो उन्होंने माथा पकड़ लिया। प्रस्तुत किये गये प्रमाणों को देखकर प्रोफ़ेसर सारस्वत ने कहा कि यह तो कापी राइट उल्लंघन से भी बड़ा और गंभीर मामला है । लेकिन किस तरह की कार्रवाई करेंगे कुलपति, इसका साफ़ संकेत देने से अभी उन्होंने इनकार किया है।
इसके बाद वाराणसी के कुछ नामी-गिरामी संस्थानों के वरिष्ठ शिक्षकों द्वारा की गयी चोरी और उसपर उनके कुलपति की टिप्पणी भी दिखाई जायेगी। दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षकों के कारनामे भी जल्द ही चैनल पर दिखायें जायेंगे।
Friday, November 20, 2009
नकलची प्रोफेसरो की पुस्तके छापने और सप्लाई करने वालो को क्यों नहीं काली सूची में डाल रहे कुलपति
-सत्ताचक्र गपशप-
पुरानी दिल्ली का दरिया गंज इलाका पुस्तक पब्लिशरों व सप्लायरों की बहुत बड़ी मंडी है। इस मंडी में अब नकल करके लिखी प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों आदि की पुस्तकें खुब बिक रही हैं।यू.जी.सी.अफसरो,विश्विद्यालयों के कुलपतियों,विभागाध्यक्षों,पुस्तकालयाध्यक्षो व पुस्तक पब्लिशरों,सप्लायरो का बहुत बड़ा रैकेट बन गया है ।जिसके माध्यम से, विश्वविद्यालयों में नकल करके लिखी पुस्तकें खुब सप्लाई हो रही हैं।ऐसी पुस्तकों का हर साल 300 से 500 करोड़ रूपये का कारोबार हो रहा है। कोई विश्वविद्यालय यदि एक करोड़ रूपये की पुस्तकें खरीद रहा है तो उसमें लगभग 40 से 50 लाख रूपये चढ़ावा के तौर पर बंटता है।ज्यादेतर ऐसी पुस्तकों की खरीद हो रही है जो कई खण्डो वाली इन्साइक्लोपीडिया हैं और उनके दाम 5000 रूपये से लेकर 30 हजार तक हैं। प्रोफेसरो आदि ने ज्यादेतर इन्साइक्लोपीडिया नकल करके लिखी हैं।इसी तरह अन्य पुस्तकें भी नकल करके लिखी गई हैं और उनके दाम बहुत मंहगा रखकर पुस्तकालयों में खरीदवाने और माल कमाने का धंधा खूब परवान चढ़ा हुआ है। इसकाले धंधे का तंत्र कितना मजबूत है इसका प्रमाण 13 नवम्बर 09 को दिल्ली के करनाल रोड पर हुई एक पब्लिशर,सप्लायर के यहां शादी में देखने को मिला। वह पब्लिशर,सप्लायर जिन विश्वविद्यालयों में पुस्तकें सप्लाई करता है,जिन विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररो की नकल करके लिखी पुस्तकें छापता,बेचता है,जिन विभागाध्यक्षो के जर्नल मुफ्त में छापता है ,उनमें से ज्यादेतर उस सप्लायर के यहां शादी में गये थे।कई विश्वविद्यालयों के कुलपति,प्रोफेसर,रीडर ,लेक्चरर,विभागाध्यक्ष,लाइब्रेरियन,पूर्वलाइब्रेरियन,लेखा क्लर्क,कुलपति के पी.ए.,लाइब्रेरी सहायक आदि तक गये थे।इन सबसे पूछा जाना चाहिए कि इन सबकी उस सप्लायर से कौन सी रिश्तेदारी है। इस एक प्रमाण से साबित होता है कि रैकेट कितना मजबूत है और इनका आपसी नेटर्क कितना तगड़ा है। यही वजह है कि जब भी किसी प्रोफेसर,रीडर व लेक्चरर के नकल करके किताबें लिखने का कारनामा उजागर हो रहा है तो सब मिलकर उसे दबाने और नकलची प्रोफेसर,उसकी पुस्तकें छापने,सप्लाई करने वाले को बचाने में लग जा रहे हैं। उनके खिलाफ कम्प्लेन को दबाकर चोर को बचाने के लिए पूरा जोर लगा दे रहे हैं। जिसका फिलहाल उदाहरण नागपुर के पास का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,दिल्ली का एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय,पूर्वी उ.प्र. के दो वि.वि.हैं।यही वजह है कि नकलची प्रोफेसरो की पुस्तकें छापने और सप्लाई करने वालो को काली सूची में नहीं डाल रहे कुलपति ।
नकलची टीचर उनकी पुस्तकों के प्रकाशक, लगा रहे तरह – तरह का जुगाड़ : एक नकलची पूर्व कुलपति और उसके नकलची चेलों,नकलची मित्र प्रोफेसरो,रीडरों,लेक्चररों की पुस्तकें छापने और उनके सहयोग से विश्वविद्यालयों में सप्लाई करने वाली कई कम्पनियों के एक मालिक की मंडली पहले तो बहुत लंबी-लंबी हांक रही थी । लेकिन जब उनके इस नकल के किताबों को लिखने,छापने और उनके सप्लाई के कारनामों का खुलासा कुछ अखबारों और CNEB न्यूज चैनल पर होने लगा तो वह और उनके इस काले धंधे के यार कुलपति,प्रोफेसर ,उनके संरक्षक कुछ पालिटिशियन ,कुछ विज्ञापन एजेंसी वाले, खबर रूकवाने के लिए तरह –तरह का उपक्रम कर रहे हैं।साम-दाम-दंड-भेद हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। किस –किस तरह के हथकंडे अपना रहे हैं,किससे-किससे क्या कहलवा रहे हैं ,पढ़ने के लिए करें इंतजार।
Wednesday, November 18, 2009
नकलचेपी अंकित ने महानकलचेपी पातंजलि को समर्पित की नकलकर लिखी पुस्तक
म.अं.वि.वि.वर्धा के नकलचीगुरू अंकित का एक और काला कारनामा
नकल करके लिखी इस पुस्तक को प्रश्रयदाता पतंजलि को समर्पित किया है
-कृष्णमोहन सिंह
नईदिल्ली।महात्मागांधी जब स्कूल में पढ़ते थे तो एकबार उनका अध्यापक इमला बोलकर लिखारहा था। जिसमें एक शब्द केतली आया।गांधी उसे कतली लिख रहे थे।जिस पर अध्यापक ने गांधी को धीरे से इशारा किया कि तुम केतली गलत लिख रहे हो,बगल के लड़के में से देख कर सही लिख लो। लेकिन गांधी ने कहा-आप ने ही तो कहा है नकल नहीं करना चाहिए।यह चोरी है।मैं नकल नहीं करूंगा।जो आता है वही लिखूंगा। उसी गांधी की कर्मभूमि वर्धा में उसी गांधी के नाम पर बने अंतरराष्ट्रीय वि.वि. में नकल करके अंग्रेजी और हिन्दी की लगभग डेढ़ दर्जन पुस्तके लिखने वाले महाचोर अनिल कुमार राय अंकित को पत्रकारिता का प्रोफेसर व हेड बना दिया गया। पुलिस से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने यह कराया-किया।उस अनिल कुमार राय अंकित(Dr. ANIL K. RAI ANKIT) के चौर्य प्रवीणता का पेश है एक और सबूत।नकल करके लिखी इस पुस्तक का नाम है-
COMMUNICATION
PRINCIPLES AND PRACTICE
लेखक- डा.अनिल के. राय अंकित
इस पुस्तक का भी पब्लिशर व डिस्ट्रीब्यूटर है-
SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS
20,Ansari Road,Daryaganj, New Delhi-110002
यह पुस्तक 2006 में प्रकाशित हुई है। 231 पेज की इस पुस्तक का मूल्य रू.700 है।अनिल कुमार राय अंकित ने इस पुस्तक को प्रश्रयदाता पूर्व कुलपति प्रेम चंद पतंजलि को समर्पित किया है। पुस्तक में कुल आठ अध्याय हैं।
अध्याय-1
पेज नं 1 से 6 :
अंकित ने अपनी इस पुस्तक का 1 से 6 पेज University of California San Francisco, की वेवसाइट http://ucsfhr.ucsf.edu/index.php/pubs/hrguidearticle/chapter-13-communication/ पर उपलब्ध सामग्री गाइड टू मैनेजिंग ह्यूमन रिसोर्सेज के अध्याय 13 कम्यूनिकेशन से चुराया है।इसकी हेडिंग कम्यूनिकेशन को बदलकर कम्यूनिकेशन कान्सेप्ट कर दिया है।
पेज नं 6 से 22 :
पेज नं 6 से 22 की सामग्री वेवसाइट http://www.gettoefl.com/download/study_skills/study_skills_sample.htm%206-22 पर अंग्रेजी की तैयारी के लिए बनाये पाठ्यसामग्री के Chapter 7: Expanding your mind through the power of words से कापी किया है।अंकित ने इसअध्याय के शुरूआत के 5 शब्द को हटा दिया है और कई जगह पर हेडिंग बदलकर बाकी मैटर हूबहू उतार लिया है।
पेज नं 22 से40
पेज नं 22 से 40 तक की सामग्री वेवसाइट http://www.statemaster.com/encyclopedia/Part-of-speech पर उपलब्ध इन्साइक्लोपीडिया के पार्ट आफ स्पीच से लिया है।कुछ जगह पर हेडिंग हटा दिया है।जैसे एडजेक्टिव के बारे में लिखा है और उसकी हेडिंग हटा दिया है।
पेज नं40 से 46
पेज नं40 से 46की सामग्री वेवसाइट http://www.spiritus-temporis.com/ के अध्याय grammatical-mood से चुराया है।केवल शीर्षक को हटा दिया है।
पेज नं 52 से 6 4
पेज नं 52 से 64 की सामग्री वेवसाइट http://www.en.wikipedia.org/ पर उपल्ब्ध सामग्री के अध्याय Writing better articles से चुराया है। अनिल कुमार राय अंकित ने अपनी पुस्तक में इसका शीर्षक बदलकर STRUCTURE OF THE ARTICLE कर दिया है।
अध्याय-2
पेज नं 69 से 115
अर्लीइन्टरवेंसन प्रोग्राम डिपार्टमेंट आफ हेल्थ न्यूयार्क ने विभिन्न क्षेत्र के 14 विशेषज्ञो से एक रिपोर्ट- Practice Guideline: Report of the Recommendations, Communication Disorders, Assessment and Intervention for Young Children तैयार कराई थी। अंकित ने इस रिपोर्ट के अध्याय दो Communication disorder in young children और अध्याय चार Intervention Methods को मिलाकर अपनी पुस्तक COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE का पूरा अध्याय 2 पेज 69 से 115 बना लिया है।रिपोर्ट के अध्याय 4 के शुरू के 3 पैरा को हटाकर अपने अध्याय 2 की शुरूआत की है।
अध्याय-3
पेज नं116 से 134
अंकित ने अपने किताब की पेज नं116 से 134 तक की सामग्री USA की सरकारी वेवसाइट http://www.au.af.mil/ पर उपल्ब्ध सामग्री के अध्याय 3 का पूरा 26 पेज कापी करके लगाया है।इसे अपनी पुस्तक का अध्याय 3 बना लिया है।इसके पहले पैरा व दूसरे पैरा की पहली लाइन हटा दी है। इसी तरह interviewing goal हेडिंग की जगह अपनी पुस्तक में goals of interviewing कर दिया है।
अध्याय-4
पेज नं 135 से 154 :
वाशिंगटन डी.सी.AAAS,प्रोजेक्ट 2061 की वेवसाइट WWW.project.org पर उपलब्ध साइंस फार आल अमेरिकन्स पुस्तक के अध्याय-11 COMMON THEMS को अपनी पुस्तक का अध्याय 4 इसी शीर्षक से बना लिया है। पहली लाइन का एक शब्द SOME हटा दिया है।दूसरे पैरा के शुरू के तीन शब्द को भी हटा दिया है।
अध्याय-5
पेज नं 155-164
वाशिंगटन डी.सी.AAAS,प्रोजेक्ट 2061 की वेवसाइट WWW.project.org पर उपलब्ध साइंस फार आल अमेरिकन्स पुस्तक के अध्याय-12 , Habits of Mind को अपनी पुस्तक का अध्याय -5, Role of Mind and Habits बनाया है।इस अध्याय के शुरू के दो शब्द को हटाया है।हेडिंग को इधर-उधर कर दिया है।हेडिंग कुछ मैटर कुछ हो गया है।
अध्याय-6
पेज 169 से 198
अंकित ने अपनी पुस्तक के पेज नं 169 से 178 की सामग्री Tom Hanlon की लिखी पुस्तक Absolute Beginner's Guide to Coaching Youth Baseball से उतार लिया है।
उसने पेज नं 178 से 198 की सामग्री
Guide to health Informatics
2nd Edition
लेखक-Enrico Coiera,
के Chapter 25 - Clinical Decision Support Systems को हूबहू उतारकर पैराग्राफ इधर-उधर करके छाप लिया है।
अध्याय-7
पेज नं 198 से 208
नकलची अनिल कुमार राय अंकित ने एक पुस्तक Developing Research & Communication Skills
Guidelines for Information Literacy in the Curriculum की समरी को हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE का अध्याय -7 बना लिया है। यह पुस्तक मीडल स्टेट आफ हायर एजूकेशन ने प्रकाशित की थी। उसने पुस्तक के प्रचार –प्रसार के लिए समरी जारी की थी। नकलची अंकित ने उसको भी नही छोड़ा।उसके शुरू के केवल दो पैरा को छोड़कर बाकी सामग्री कापीकर छाप लिया है।
अध्याय-8
पेज 209 से 213
अंकित ने अपनी पुस्तक के पेज 209 से 213 तक का मैटर ,लेखक- David G. Jensen की पुस्तक Street Savvy ScienceTM Leadership ,http://www.todroberts.com/
के Chapter 5: Communication Skills for Scientist Leaders (Part Two) से नकल कर लिखा है।
उसने United Nations Population Fund की वेवसाइट http://www.unfpa.org/public/ पर उपल्ब्ध
Information, Education and Communication (IEC) Programmes के फील्ड मैनुअल को ही हूबहू उतारकर अपनी पुस्तक का पेज नं 220 से 231 बना लिया है।
उसने अपनी इस पुस्तक में भी कोई संदर्भ सूची नहीं दिया है।
अंकित ने अपनी इस पुस्तक को वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. ,जौनपुर के पूर्व कुलपति पी.सी.पतंजलि को समर्पित किया है। पतंजलि जब दिल्ली के अंबेडकर कालेज में हिन्दी के हेड थे तो वहां अंकित हिन्दी का अस्थाई अध्यापक था।पतंजलि जब जौनपुर में कुलपति बने तो अनिल कुमार राय अंकित को वहां पहले कान्ट्रेक्ट पर ले जाकर पत्रकारिता का लेक्चरर व हेड बनाया ,फिर जब स्थाई जगह निकली तो इसे परमानेन्ट कर दिया। तब अंकित के पास पत्रकारिता की कोई डिग्री नही थी। बाद में वहां पढ़ाते हुए ही इसने रीवां से पत्रकारिता का पत्राचार कोर्स किया,फिर सागर वि.वि. से पत्राचार से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री लिया। इस समय बहरामपुर में एस. के. बेहरा के अंडर में पत्रकारिता में पी.एच.डी. कर रहा है। इस संवाददाता ने पी.सी.पतंजलि से पूछा - अनिल कुमार राय अंकित ने एक किताब लिखी है COMMUNICATION PRINCIPLES AND PRACTICE , यह पूरी पुस्तक विदेशी लेखको के पुस्तको,शोधपत्रो से नकल करके लिखी गयी है । नकल करके लिखी पुस्तक आपको समर्पित की गयी है,इसपर आपका क्या कहना है ?पतंजलि का जवाब था-हो सकता है उनके विभाग से फोन आया हो कहा गया हो पुस्तक आपको समर्पित की जा रही है। सवाल-अंकित ने यह पूरी पुस्तक नकल करके लिखी है , क्या उनके विरूद्ध कापी राइट एक्ट के तहत कार्रवाई होनी चाहिए?जवाब- मैंने तो देखा नही है कि अंकित ने कहां से मैटर चुराकर यह पुस्तक लिखी है।सवाल-क्या हिन्दी वि.वि. वर्धा के कुलपति को नकल करके एक दर्जन पुस्तकें लिखकर प्रोफेसर बन गये अंकित के खिलाफ कापी राइट एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराना चाहिए ?मैने तो देखा नहीं कि अंकित ने मैटर कहां से चुराया है।सवाल-यदि कोई भी व्यक्ति दूसरे लेखको की पुस्तको से चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अपने नाम से पुस्तक छपवा लेता है तो उसके विरूद्ध कोई कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए या नही?जबाब-मैं जब देखूंगा तब कुछ कहूंगा।सवाल- अंकित को आप जौनपुर ले गये,लेक्चरर व हेड बनाये।उसके साथ मिलकर एक पुस्तक – संचार क्रांति व विश्व जन माध्यम भी आपने लिखा है(बाद में अनिल अंकित ने इस किताब से भी कुछ मैटर लगभग हूबहू उतार कर अपनी पुस्तक संचार के सात सोपान का कुछ पेज बनाया है) । इस सबसे तो यही लगता है कि अंकित के काले कारनामो में आपका भी जाने-अनजाने योगदान रहा है, और आज इस महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. बर्धा के दिल्ली सेंटर का ओ.एस.डी. होते हुए उसके काले कारनामो को तोपने –ढ़पने की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं । जबाब- (चुप्पी )।#
क्या म.अं.हि.वि.वि.वर्धा के कुलपति वी.एन.राय सी.बी.आई. जांच से बचने की जुगत लगा रहे हैं?
Aaj hi university me meri kisi senior purane officer se charcha hui. CBI enquiry se bachne ke liye VC apne Registrar ke sath desh ke kisi khash vyakti aur state minister of HRD se milne AMRAVATI gaye the. AMRAVATHI GHARANA se Registrar ki nazdikiyan hai. Vo abhi VC and AMRAVATHI GHARANA ke bich dalal ka kaam kar rehe hai. Dono abhi setting me dilli gaye hain.
November 17, 2009 8:07 PM
Tuesday, November 17, 2009
किताबें गायब करा रहे हैं नकलचेपी प्रोफेसर
काशी विद्यापीठ – यहां के एक चोर गुरू प्रोफेसर ने एक पुराने हिन्दी अखबार के प्रकाशन संस्थान से अपनी पत्रकारिता की पुस्तक छपवाया था।यह किताब उसने नकल करके लिखी है। जब उसको पता चला कि एक चैनल उसके नकल करके लिखी पुस्तको के बारे में व्यौरा जुटा रहा है तो उसने उस प्रकाशन संस्थान में बची अपनी पुस्तक की 20 प्रति खरीद कर घर पर डंप कर दिया। हिन्दी से एम.ए. किये इस प्रोफेसर ने इलेक्ट्रानिक मीडिया पर भी पुस्तक लिखा है। उसकी कुछ प्रति काशी विद्यापीठ के केन्द्रीय लाइब्रेरी में थी। जिसमें से उसने कुछ प्रति कहीं गायब करा दिया ,बची कुछ प्रति अपने चहेते छात्रो के नाम इसु कराकर उसमें से कुछ से पुस्तक का पैसा जमा करा दिया। वह प्रोफेसर खुद भी पुस्तकालय प्रभारी रह चुका है और उस दौरान 300 रूपये की पुस्तकें 1300 रूपये में खरीदवाया था। उसके इस घपले पर जांच बैठी थी । जिसने जांच में घपला सही पाया था ।चर्चा है कि उस प्रोफेसर ने वह जांच रिपोर्ट ही गायब करा दिया है। और लखनऊ तक जुगाड़ लगाकर अपने खिलाफ कार्रवाई वाली फाइल दबवा दिया है। इस विश्वविद्यालय में ऐसे कई और चोर गुरू हैं ।जिनके बारे में कुछ दिन बाद।