Saturday, January 23, 2010

का गुरू ,का राममोहन पाठक चोरगुरू हैं ? देखें CNEB पर

-सत्ताचक्र-

CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम चोरगुरू के चौदहवें एपीसोड में, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ के महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान संकाय के प्रोफ़ेसर राममोहन पाठक (PRO.RAM MOHAN PATHAK) के नकलचेपी आदि बहुआयामी कारनामे, रविवार दिनांक 24 जनवरी 2010 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा।
जिसमें है किस तरह चोरी की बुनियाद पर शोधार्थी राममोहन पाठक ने पीएचडी की डिग्री हासिल की और फिर किस तरह झूठ और भ्रष्टाचार करते हुए सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते रहे, झूठे बयान देकर मकानों की खरीद-फ़रोख्त करते रहे।
इसमे पहले है जब राममोहन पाठक शोधार्थी थे, तब के कारनामे। राममोहन पाठक (RAM MOHAN PATHAK )ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू से सन् 1983 में पूर्णकालिक शोधार्थी के रूप में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनके गाइड और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ विजय पाल सिंह ने उनके पूर्णकालिक रुप से काम करने और मौलिक शोध करने का प्रमाणपत्र दिया है।
यहीं से शुरू होता है झूठ का सिलसिला। रीडर और प्रोफ़ेसर पद के लिए काशी विद्यापीठ में दिये अपने बायो डाटा में इसी काल में अखबारों में काम करने का दावा किया है राममोहन पाठक ने। यानी एक तरफ़ वे जिस अवधि में पूर्णकालिक शोधार्थी थे, उसी अवधि में वे एक अखबार समूह में पूर्णकालिक पत्रकार के रूप में भी कार्यरत थे। इतना ही नहीं, सन् 1973 से लेकर 1987 तक आज अखबार में संपादक होने का दावा भी किया गया है इन्हीं काग़ज़ात में। और यह झूठ है। इसी तरह के और भी कई छोटे झूठ इन दोनों बायो डाटा में है।
प्रोफ़ेसर पद पर नियुक्ति के लिए राममोहन जी के नाम की संस्तुति करने वालों में एक थे देश के जाने माने पत्रकार वेद प्रताप वैदिक। लेकिन उन वैदिक जी को ज़रा भी अंदाज़ नहीं रहा होगा कि उनकी बहुचर्चित किताब हिंदी पत्रकारिताः विधिध आयाम से अनेक अहम विश्लेषणों को इन्हीं रांममोहन जी ने चुरा कर अपना शोध प्रबंध तैयार किया था। वैदिक जी जब राममोहन की यह करामात देखे तो सन्न रह गये।
इस एपीसोड में आगे दिखाया गया है-शोधार्थी राममोहन पाठक के शोध की मौलिकता के दावे का झूठ। वेद प्रताप वैदिक जी ने दो साल के अथक परिश्रम और कोई पचास लोगों की टीम के सहयोग से हिंदी पत्रकारिता के विविध आयामों पर सन् 1976 में 974 पेज की किताब लिखी। किताब के महत्व का अंदाज़ इसी से लगा लीजिये कि इसका विमोचन राष्ट्रपति भवन में लगभग संपूर्ण कैबिनेट की मौजूदगी मे हुआ था।
वैदिक जी की किताब के चौथे अध्याय का पहला लेख है समाचार और उसका संपादन और इसके लेखक हैं प्रेमनाथ चतुवेर्दी। लेख में समाचार की कुछ परिभाषाएँ दी हैं। विलार्ड ब्लेयर की परिभाषा को शोधार्थी राममोहन ने दो परिभाषाएँ बनाकर पेश किया है। इसी तरह मूल किताब में तीसरी परिभाषा है चिल्टन बुश की। उसे भी शोधार्थी राममोहन ने तोड़ कर दो जुदा परिभाषाओं का रूप दिया है। इन सभी परिभाषाओं के लिए शोधार्थी राममोहन ने किसी का नाम देना मुनासिब नहीं समझा। अंत में जिस अंश को उन्होंने प्रेमनाथ चतुर्वेदी से लिया दिखाया भी है, वह वास्तव में प्रेमनाथ जी के लेख में शिकागो के दो पत्रकारों के नाम से दर्ज है।
दूसरों के मौलिक निष्कर्षों को किस तरह शोधार्थी राममोहन पाठक ने निर्लज्जता से अपना बना कर पेश किया अपनी पीएचडी की थीसिस में, अब इसका एक उदाहरण —
वैदिक जी की किताब के दूसरे अध्याय में श्री लक्ष्मीशंकर व्यास का लेख है उत्तर प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता। व्यास जी राममोहन जी के वरिष्ठ रहे हैं। उनके इस लेख में लिखा है—“उत्तर प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता की एक प्रमुख विशेषता उसकी क्रांतिकारी पत्रकारिता ही है।”
चतुर शोधार्थी राममोहन ने इसे अपना बनाकर उतार लिया लेकिन मौलिकता के नाम पर उत्तर प्रदेश की जगह लिख दिया काशी इसी तरह कुछ लाइनों बाद जहाँ मूल लेख में व्यास जी ने लिखा है—ब्रिटिश सरकार—वहाँ प्रतिभाशाली शोधार्थी राममोहन ने मौलिक होने के लिए लिख दिया—अंग्रेज़ी हुकूमत। और इस तरह तैयार हो गया इस मौलिक शोध का पूर्णकालिक शोध का एक और मौलिक पैराग्राफ़।
ऐसे तमाम उदाहरण हैं राममोहन पाठक के इस मौलिक शोध में।
इस तरह नकल करके पीएच.डी. की डिग्री लेने वालों के बारे में काशी विद्यापीठ के शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष उदित नारायण चौबे का कहना है-—..... पीएचडी की थीसिस कैंसिल होनी चाहिए।....
सोमवार 11 जनवरी 2010 को जब सीएनईबी के वाराणसी संवाददाता जगदीश मोहन और कैमरामैन को, काशीविद्यापीठ,वाराणसी के महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान में भेजकर, दिल्ली से संजय देव ने जगदीश के फ़ोन के माध्यम से डॉ राममोहन पाठक से बात करनी चाही और उनसे बात करने की कोशिश की तो पहलीबार तो राममोहन ने जगदीश मोहन से बड़ी-बड़ी बातें करके कन्नी काट लिया।जगदीश और कैमरा मैन वापस आ गये। तब.संजयदेव ने जगदीश से दुबारा पत्रकारिता संस्थान में जाने और वहां राममोहन के सामने मोबाइल फोन का स्पीकर आन करके आन कैमरा बात कराने को कहा ।फिर जगदीश गये और फोन पर बताये कि सर, राममोहन सर सिर हिला रहे हैं।इधर से कहा गया कि जगदीश जी आप अपने फोन का स्पीकर आन कीजिए और उसे राममोहन के सामने ले जाइये।इधर से संजय ने पूछा कि राममोहन जी क्या आपको मेरी आवाज सुनाई पड़ रही है ? जिस पर जगदीश ने बताया कि राममोहन सर कान पर हाथ रखकर इशारा कर रहे हैं कि कह दो नहीं सुनाई पड़ रहा है।तब संजय ने कहा कि फोन उनके कान के नजदीक ले जाओ।फिर संजय ने सवाल किया कि राममोहन जी आपने नकल करके अपनी पीएच.डी. शोधप्रबंध लिखी है ,उसके पेज फलां का मैटर यहां से उतारा है,इस पर आपका क्या कहना ? उधर से जगदीश मोहन ने बताया कि सर,राममोहन सर हाथ जोड़ रहे है,और इशारा कर रहे हैं कि बात नहीं करेंगे। तब संजय ने कहा कि उनसे कह दो कि यदि वह बात नहीं करना चाहते हैं तो हम बिना उनके वर्सन के ही कार्यक्रम दिखाने को बाध्य होंगे। जगदीश ने उनसे यह बात कही। उसके बाद राममोहन उठकर अपने कमरे का ताला बंद किये और विभाग से बाहर भाग गये।
उसके बाद काशी विद्यापीठ के कुलपति के यहां एक पत्र फैक्स करके आग्रह किया गया कि राममोहन से कहें कि वह CNEB के लिए चोरगुरू कार्यक्रम बना रही टीम को आन कैमरा साक्षात्कार दें। लेकिन कुलपति के यहां से भी इस संबंध में 23 जनवरी 2010 सायं 5 बजे तक तो कोई सूचना नहीं आई थी।
इन डॉ राममोहन पाठक ने अपने शोध प्रबंध में पंडित अंबिका प्रसाद वाजपेयी की किताब से भी इसी तरह चुराया है। जब ये काशी विद्यापीठ में पुस्तकालयाध्यक्ष थे, तो तमाम नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए किताबों की खरीद-फ़रोख्त की। जाँच हुई, दोष सिद्ध हुए, बड़ी जाँच की संस्तुति तक हुई। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। वर्तमान कुलपति अवध राम जी के लिए रुतबेदार, पहुँच वाले इन पाठक जी के खिलाफ़ कोई कार्रवाई करना अभी तक संभव नहीं हो पाया है।
ऐसे नकलचेपी और तरह-तरह के कदाचार के आरोपी शिक्षक के बारे में कबीर मठ के महंत विवेकदास, धर्माचार्य अविमुक्तेशवरानंद,सम्पूर्णानंद संस्कृत वि.वि.शिक्षक संघ के महामंत्री डा. हरिप्रसाद अधिकारी ने कड़ी टिप्पणी की है ।

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