Saturday, January 2, 2010

क्या का.वि.पी. में रीडर हेड अनिल उपाध्याय की डि.लिट. रद्द होगी ? “चोर गुरू” के 12 वें एपीसोड में CNEB पर

पैरवी और अटैची से बने कुलपति तो नकलची शिक्षकों को बचायेंगे ही”
-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम “चोर गुरू “ की 12 वीं कड़ी में रविवार दिनांक 3 जनवरी 2010 को रात्रि 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में, वाराणसी के ऐतिहासिक कबीर मठ के विद्वान महंत विवेक दास की टिप्पणी और शिव की नगरी काशी से ही जुड़े अध्यापक संघों के कुछ दमदार पदाधिकारियों के धांसू विचार दिखाये जायेंगे। साथ ही यह भी दिखाया जायेगा कि किस तरह मैटर चुराकर लिखने वाले महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी में पत्रकारिता विभाग के रीडर व हेड डा. अनिल कुमार उपाध्याय ( Dr. ANIL KUMAR UPADHYAY), गुमराह करने के लिए अपनी किताबों में उल्टे-सीधे संदर्भ लिखे हैं — ये सोचकर कि इससे उनकी चोरी पकड़ी नहीं जायेगी ।अनिल उपाध्याय ने काशी विधापीठ में डि.लिट.के लिए शोध –प्रबंध जमा किया था, लेकिन डि.लिट. की डिग्री एवार्ड होने के पहले ही उसे पुस्तक के रूप में छपवा दिया । सो उनके चौर्यकला की पारंगता का प्रमाण उनकी डि.लिट. ही है।
चोर गुरू की विशेष टीम कुछ ही दिन पहले एकबार फिर वाराणसी गयी थी। ऐतिहासिक कबीर मठ के प्रमुख, महंत विवेक दास से चोर गुरू प्रकरण पर बात शुरू हो ही रही थी कि काशी विद्यापीठ के ही एक और वरिष्ठ अध्यापक राममोहन पाठक के सताये हुए कुसुम मिश्रा, उनकी माँ और कुसुम के सगे भाई वहाँ आ पहुँचे। राममोहन पाठक के बारे में विवेक दास जी बेसाख्ता बोल उठे —............
लेकिन प्रो. राममोहन पाठक (Pro. RAM MOHAN PATHAK ) के कारनामों के बारे में विस्तार से बात हम फिर कभी करेंगे।
चोर गुरू की पिछली कड़ी में काशी विद्यापीठ के अनिल उपाध्याय की लिखी किताब पत्रकारिता एवं विकास संचार में की गयी मैटर की चोरी के कुछ नमूने पेश किये थे। CNEB संवाददाता जगदीश मोहन ने जब उनसे बात की थी तो वे तमक कर बोले थे। कितने खोखले थे उनके जोशीले जवाब। पहले देखिये अनिल जी के विश्वास से भरे कुछ जवाब -
“संदर्भ जिनके जिनके हैं, सब दिये गये हैं ”
“ये देखिये, 5-6 मूर्ति नादिग कृष्ण ”
“मैने भी वही दस फ़ुटनोट लगाये तो वे आपके
नहीं कहलायेंगे ”
सच्चाई यह है कि अनिल जी ने शब्द दर शब्द ओम प्रकाश सिंह की किताब से उतारा है और संदर्भ ग़लत लिख दिये हैं। कुछ उदाहरण फिर देखिये।
अपनी किताब के सन् 2001 के संस्करण के पेज 66 पर अनिल जी ने संदर्भ क्रमांक 2 अंकित किया है। अध्याय के अंत में अनिल जी संदर्भ 2 को प्रवीण दीक्षित की किताब के पेज 91 से लिया हुआ दिखाते हैं। यह झूठ है। प्रवीण दीक्षित की किताब के पेज 91 पर यह जो मैटर है, उसका अनिल जी की किताब के पेज 66 के इस अंश से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं। प्रवीण दीक्षित की किताब के इसी तरह के दो और गुमराह करने वाले संदर्भ अनिल जी की किताब में हैं।
डॉ नादिग कृष्ण मूर्ति की अंग्रेज़ी में लिखी गयी किताब इंडियन जर्नलिज़्म से काफ़ी मैटर लेने का और ओम प्रकाश सिंह को ठेंगा दिखाने का दावा करते है अनिल जी। देखिये अनिल जी के झूठ का एक और गुलदस्ता। अपनी किताब के सन् 2007 के संस्करण के पेज 141 की इन छह-सात लाइनों में अनिल जी संदर्भ क्रमांक 8 से 11 तक का उपयोग करते हैं। सब के सब डॉ नादिग कृष्ण मूर्ति के मत्थे। पेज 70-71, 73-74, 440 और 761।
नादिग कृष्ण मूर्ति की किताब में 761 पेज हैं ही नहीं। पेज 70..... 71......और 440 पर जो मैटर है उसका अनिल जी की किताब के इस अंश से कोई लेना देना नहीं। हो भी कैसे,.... मैटर टीपा है ओम प्रकाश सिंह की किताब से।
जो मूल किताब अंग्रेज़ी में थी, तो उसका अनुवाद किया ओम प्रकाश सिंह ने। सही संदर्भ दिये। उसको शब्दशः उतार कर और संदर्भ बदलकर अनिल जी कहते हैं कि मूल से लिया है।
कैसे भाँग पी कर नकल की गयी है अनिल जी की किताब में—अब इसका एक छोटा उदाहरण। ओम प्रकाश सिंह की किताब के पेज 99 पर डॉ श्याम लाल वर्मा की किताब आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के पेज 22 से कुछ वाक्य आभार सहित लिये गये हैं। ग़लती से एक शब्द “अर्थ” छूट गया है ओम प्रकाश सिंह की किताब में। वही शब्द छूटा हुआ है अनिल जी की किताब में भी। क्या कहेंगे इसे आप? संयोग... या भाँग की पिनक में की गयी नकल?
तो असलीयत यह है लेकिन सीएनईबी के संवाददाता से बातचीत में अनिल जी क्या बोले—
“मान भी लीजिये लिया है, तो यह उनका भी तो नहीं है ”
“न कॉपीराइट का उल्लंघन है, न कोई अनुचित कार्य ”
“दो तीन पेजों का मैटर अगर मैंने उनकी किताबों से ले भी लिया तो....
यह नादिक कृष्णमूर्ति वगैरह का संदर्भ तो यह अनुचित नहीं ”
अब आप ही तय करें कि सच क्या है और झूठ क्या? और हम कर रहे हैं इंतज़ार कि विद्यापीठ के कुलपति क्या कार्रवाई करते हैं।
चोर गुरू टीम ने तीन शिक्षक नेताओं से इस चोर गुरू अभियान के अलग अलग मुद्दों पर बात की। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कार्यरत डॉ सोमनाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश आवासीय विश्वविद्यालय महासंघ के महामंत्री हैं और प्रखरता से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़े इस मसले के विभिन्न आयामों पर बोले—
“दूसरे के ज्ञान को चुराकर अपना ज्ञान बताना, यह तो चारित्रिक, नैतिक स्खलन का परिचायक ”
“कौटिल्य ने कहा .....ब्राह्मण को चोरी का अधिक दण्ड मिलना चाहिए....”
“अवेयरनेस के कुछ कार्यक्रम चलाने होंगे और उसके बारे में शिक्षक संघ को भी सोचना होगा ”
इस सवाल पर कि कुछ कुलपति, चोर गुरुओं को दंडित करने के बजाय बचाने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सोमनाथ ने कहा-
जो खुद पैसा देकर आये है वह वीसी तो ऐसे लोगों को सपोर्ट ही करेगा।”
कुलपति की भूमिका वाला यही सवाल जब काशी विद्यापीठ के अध्यापक संघ के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर श्रीनिवास ओझा से पूछा गया तो उनकी राय भी कमोबेश वैसी ही थी—
“पैरवी और अटैची के आधार पर नियुक्त होते हैं कुलपति....”
“उनसे आदर्श की अपेक्षा करना स्वयं बेइमानी होगी....”
साथ ही श्रीनिवास जी ने एक और मौलिक सवाल उठाया, जिसे सबके सामने लाना बहुत ज़रूरी है—
“हर कोई हठात न तो लेखक बन सकता है, न ही कवि....”
“उच्च शिक्षा लिपिकीय स्तर पर निर्धारित नहीं की जानी चाहिए....”
“शिक्षक के शिक्षण की गुणवत्ता पर, उसके द्वारा छात्रों को समुन्नत करने पर जोर नहीं, किताबों पर ही जोर क्यों....”
“लेकिन जब सरकार कुछ नौकरशाहों के इशारे पर सबको लेखक और कवि बनाना चाहेगी तो यह विसंगति बरकरार रहेगी....”
काशी विद्यापीठ अध्यापक संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ उदित नारायण चौबे ने भी बड़ी प्रखरता और दमदारी से कुलपतियों की भूमिका पर बात रखी।
एक बात और -
“शोधार्थी किसी की थीसिस से नकल करता है तो उसकी थीसिस रिजेक्ट कर दी जाती है।”
विद्यापीठ के कुलपति की नज़र में अनिल उपाध्याय की डी. लिट. की थीसिस क्या इस श्रेणी में आयेगी?