Friday, January 1, 2010

क्या पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति नकलचेपी शिक्षकों को बचा रहे हैं ? - 1

-सत्ताचक्र-
क्या वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुलपति आर.सी.सारस्वत (R.C.SARASWAT) अपने विश्वविद्यालय के उन शिक्षकों को बचा रहे हैं जिनने देशी-विदेशी शिक्षकों,वैज्ञानिकों की पुस्तकों,शोध-पत्रों से सामग्री लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम से दो से लेकर दर्जनों पुस्तकें छपवा ली हैं ? क्या कुलपति इन शिक्षकों की ऐसी पुस्तकों को छापकर इस विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले को भी बचा रहे हैं, उसकी कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड करने, बीते कुछ सालों में लगभग 5 करोड़ रूपये की उसकी सप्लाई की जांच कराने से कन्नी काट रहे हैं ? जिसमें लगभग अढ़ाई करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप है। इंडिका सप्लायर, दरियागंज, नईदिल्ली के यहां से किताबें 60 प्रतिशत छूट पर खरीदने का प्रमाण अपने पास है।विश्वविद्यालय को यदि पुस्तकें केवल 10 या 15 प्रतिशत छूट पर सप्लाई की गई होंगी तो आशंका है कि बाकी 45 से 50 प्रतिशत रकम वाया सप्लायर विश्वविद्यालय के संबंधित पुस्तक खरीद का आर्डर देने वाले बड़े से छोटे गुरूजीलोगों, बिल पास करने वालों आदि को पुष्पम्-पत्रम् चढ़ाने में गया होगा।
इस सबके बारे में कई पत्र इस विश्वविद्यालय के कुलपति के पास भेजा गया । जिसमें से प्रमाण के तौर पर दिनांक 31 - 10 - 2009 को भेजे एक पत्र और उसके आगे का व्यौरा प्रस्तुत है-

कुलपति,
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय,
जौनपुर ।

विषय : आपके विश्वविद्यालय के कुछ वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा मैटर चुराकर किताबें लिखने और इस तरह समूचे शिक्षा जगत को कलंकित करने के बारे में ।

महोदय,

हमारे पास इस बात के साफ-साफ स्पष्ट प्रमाण हैं कि आपके विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वरिष्ठ प्राध्यापकों ने विभिन्न श्रोतों से मैटर चुराकर ........पुस्तक लेखन के तमाम स्थापित मानदण्डो को ताक पर रखते हुए अनेक किताबें लिखी हैं। यह कृत्य न केवल अनैतिक है बल्कि दण्डनीय अपराध भी है और इस बारे में बतौर कुलपति आपकी जबाबदेही समस्त आकादमिक जगत के लिए और समाज के लिए बनती है।.....
मैटर चुराकर किताबें लिखने के धंधे में केवल विश्वविद्यालय के प्रध्यापक ही नहीं , दिल्ली के कई प्रकाशक भी शामिल हैं ।और यह प्रतिवर्ष कई अरब रूपये का कारोबार है।.......
चोरी करके किताबें लिखने के प्रमाणो का जो मैटर लेकर हमारी टीम आपके सामने पहुंचेगी वह फिलहाल निम्नलिखित व्यक्तियों से संबंधित है-
1. डा.अनिल के. राय अंकित(प्रवक्ता, पत्रकारिता विभाग,अवैतनिक अवकाश पर )
2. प्रो.रामजी लाल( संकाय अध्यक्ष,सामाजिक विज्ञान)
3. डा.एस.के. सिन्हा (प्रवक्ता, फाइनांसियल स्टडीज विभाग)
हम चाहेंगे कि जब हमारी टीम आपके सामने प्रमाण प्रस्तुत करे तो उपरोक्त उल्लिखित महानुभाव भी मौजूद रहें ताकि उनका पक्ष भी आपके सामने तत्काल आ सके....।......
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ,

प्रदीप सिंह
राजनीतिक संपादक
सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनेल

दो पेज का यह पत्र कुलपति, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के फैक्स नंबर पर भेजा गया। इसकी प्रति राज्यपाल ,उ.प्र. के यहां भी फैक्स कर दिया गया। इसके बाद कुलपति से फोन पर बात कर मुलाकात के लिए उनके दिये दिनांक व समय 6 नवम्बर 2009 को दोपहर लगभग 12 बजे , CNEB की टीम विश्वविद्यालय में उनके कार्यालय में पहुंची। जहां कुलपति आर.सी.सारस्वत और कुलसचिव बी.एल.आर्य को आन कैमरा उक्त तीनो शिक्षकों के नकल करके किताबें लिखने के प्रमाण दिखाये। यह कि कहां से मैटर हूबहू उतारकर इनने अपने नाम से पुस्तकें बनाई हैं। उसके बाद कुलपति ने उक्त शिक्षको की पुस्तकों के पेजेज और जिन पुस्तकों के पन्नो से सामग्री उतार कर अपनी पुस्तकें बनाये हैं उन सबकी फोटोकापी करवाकर अपने पास रख लिये। कुलपति सारस्वत ने आन कैमरा ,आन रिकार्ड कहा कि हम इस पर कार्रवाई करेंगे। CNEB की टीम ने कुलपति और कुलसचिव के सामने ही प्रोफेसर रामजी लाल और डा.एस.के.सिन्हा से उनके नकल करके पुस्तकें लिखने के सबूत दिखा कर उनका वरजन लिया। इस सबमें लगभग अढ़ाई घंटा समय लगा था। उसके बाद इसे CNEB चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” के दो एपीसोड में दिखाया गया। जिसपर विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन और फारवर्ड ब्लाक जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं ने कुलपति और राज्यपाल को पत्र लिखकर उक्त भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग भी की है। जिसकेबाद वाराणसी व लखनऊ से निकलनेवाले हिन्दी व अंग्रेजी अखबारों में भी इस वि.वि. के नकलचेपी शिक्षकों के कारनामों के बारे में खबर छपीं। इतना सब होने के बाद कुलपति सारस्वत ने कुलसचिव के हस्ताक्षर से तीनो नकलचेपी शिक्षकों को दिनांक 18 नवम्बर 2009 को एक नोटिस भेजवाया ( प्रमाण के तौर पर एक नकलचेपी डा.अनिल कुमार राय अंकित (Dr. ANIL K. RAI ANKIT) को भेजे नोटिस की प्रति संलग्न है) । उस नोटिस पर आगे क्या कार्रवाई हुई इस बारे में दिनांक 01 जनवरी 2010 को कुलसचिव से उनके मोबाइल फोन पर अपरान्ह एक बजकर अट्ठाइस मिनट पर बात हुई। जिसमें कुलसचिव बी.एल.आर्य ने कहा-
सवाल- क्या नोटिस का जबाब आया ? जबाब- तीनो में से किसी शिक्षक ने नोटिस का जबाब नहीं दिया है। सवाल- आपने कितने दिन में नोटिस का जबाब देने के लिए लिखा था, 15 या 30 दिन ? जबाब- समय नहीं लिखा गया था। सवाल- तब तो नकलचेपी शिक्षक जबाब ही नहीं दें तो आप लोग क्या करेंगे ? जबाब- शिक्षक तो मेरे अधिन आते नहीं , वो तो कुलपति जी के अधिन हैं ,वही बतायेंगे। सवाल- नकलचेपी शिक्षकों के खिलाफ आपलोगों को प्रमाण दिये लगभग पौने दो माह हो गये, आपकी साइन से कुलपति ने केवल उन तीनो को नोटिस भेजवाया, जिसमें जबाब के लिए समय सीमा दी ही नहीं, अब तक जबाब नहीं देने पर भी आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई, इससे तो यह आशंका हो रही है कि विश्वविद्यालय प्रशासन नकलचेपी अध्यापकों को बचा रहा है ? जबाब- यह तो कुलपति जी बतायेंगे ? सवाल- नकलची शिक्षकों की पुस्तके छापने व उन्हे विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले पब्लिशर –सप्लायर से विश्वविद्यालय में करोड़ो रूपये की पुस्तक खरीद मामले की जांच के बारे में क्या हुआ ? जबाब- इसपर आप कुलपति जी से बात करें। सवाल – इसका मतलब आप लोग नकल करके पुस्तकें लिखने वाले विश्वविद्यालय के शिक्षकों, उनकी नकलकर लिखी पुस्तकों को छापने वाले पब्लिशर व सप्लायर को बचा रहे हैं ? जबाब- यह तो कुलपति जी ही बतोयेंगे।