अनिल के राय अंकित की कुछ चोरियाँ काफ़ी रोचक और फूहड़ हैं। ऐसी ही कुछ चोरियों को नये सिरे से और तकनीकी विस्तार से इस एपिसोड में दिखाया जायेगा और बेहिसाब चोरी करके लिखी गयी बेहद महँगी किताबों का सच उजागर किया जायेगा। धड़ल्ले से चोरी करने वाले ये चोर गुरू सीधी बात करने से किस तरह कतराते हैं, इसका भी खुलासा चोर गुरू की इस 19वीं कड़ी में होगा। चोरी का एक पैराग्राफ़ दिखा दिये जाने पर तुरंत जाँच करवा कर कड़ी कार्रवाई करने का दावा करने वाले वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति राय , सैंकड़ों पैराग्राफ़ों की चोरी के प्रमाण मौजूद होने के बाद कैसे पेश आ रहे हैं, कैसे चैनल से बात करके बात साफ़ करने से कतरा रहे हैं—इसका सच भी इस कड़ी में सामने आयेगा। कुछ भी खिलाफ़ लिखने वाले स्थानीय पत्रकारों से किस तरह पेश आते हैं कुलपति विभूति नारायण, इस बारे में भी कुछ रोचक तथ्य इस कड़ी में पेश किये जायेंगे। इसमें वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद की म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा के हालात व उसके तथाकथित सेकुलर जातिवादी पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ( VIBHUTI NARAYAN RAI / V.N.RAI) के कारनामो के बारे में बातचीत भी दिखाया जायेगा।
Friday, April 30, 2010
सबको ठेंगा दिखा रहे चोरगुरू अनिल राय, कुलपति विभूति राय, देखें CNEB पर
अनिल के राय अंकित की कुछ चोरियाँ काफ़ी रोचक और फूहड़ हैं। ऐसी ही कुछ चोरियों को नये सिरे से और तकनीकी विस्तार से इस एपिसोड में दिखाया जायेगा और बेहिसाब चोरी करके लिखी गयी बेहद महँगी किताबों का सच उजागर किया जायेगा। धड़ल्ले से चोरी करने वाले ये चोर गुरू सीधी बात करने से किस तरह कतराते हैं, इसका भी खुलासा चोर गुरू की इस 19वीं कड़ी में होगा। चोरी का एक पैराग्राफ़ दिखा दिये जाने पर तुरंत जाँच करवा कर कड़ी कार्रवाई करने का दावा करने वाले वर्धा विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति राय , सैंकड़ों पैराग्राफ़ों की चोरी के प्रमाण मौजूद होने के बाद कैसे पेश आ रहे हैं, कैसे चैनल से बात करके बात साफ़ करने से कतरा रहे हैं—इसका सच भी इस कड़ी में सामने आयेगा। कुछ भी खिलाफ़ लिखने वाले स्थानीय पत्रकारों से किस तरह पेश आते हैं कुलपति विभूति नारायण, इस बारे में भी कुछ रोचक तथ्य इस कड़ी में पेश किये जायेंगे। इसमें वरिष्ठ पत्रकार एस.एन.विनोद की म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा के हालात व उसके तथाकथित सेकुलर जातिवादी पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ( VIBHUTI NARAYAN RAI / V.N.RAI) के कारनामो के बारे में बातचीत भी दिखाया जायेगा।
Thursday, April 29, 2010
CNEB पर चोरगुरू में पूर्व कुलपति पी.सी.पातंजलि के नकलचेपी कारनामे
CNEB NEWS CHANNEL पर चल रहे खोजपरक कार्यक्रम चोरगुरू के 18वें एपीसोड में शुक्रवार 30 अप्रैल 2010 को सायं 6 बजकर 15 मिनट पर ,पूर्वांचल वि.वि , जौनपुर व भागलपुर वि.वि. के पूर्व कुलपति प्रेमचंद पातंजलि के, नकल करके किताबे लिखने के कारनामे दिखाये जायेंगे।
प्रेम चंद पातंजलि कुछ समय पहले तक वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के लिए दिल्ली में काम करते थे।
वर्धा का वही विश्वविद्यालय जिसके कुलपति विभूति नारायण राय हैं। जहाँ महाचोर अनिल अंकित शोभायमान हैं। जिसको इसी पातंजलि ने पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर में नौकरी दी थी । जिसे बाद में विभूति नारायण राय वर्धा ले आये। और न जाने क्या खास बात है तथाकथित ईमानदारी नैतिकता आदि का भौकाल बनाये वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय में कि उन्हें चोरी करके किताबें लिखने वाले लोग कुछ ज़्यादा ही पसंद आते हैं। यह उनकी अंदर की पसंद है, वो ही जानें। इस तथाकथित चोरगुरू को विभूति राय द्वारा वि.वि. में मोटे भुगतान पर तथाकथित OSD पद पऱ रखने की जांच की मांग केन्द्रीय शिक्षा मंत्री के यहां हुई । इसकी सूचना मिलते ही विभूति ने अपने को बचाने के लिए पातंजलि को निकाल दिया।
तथाकथित चोरगुरू पी.सी.पातंजलि और उनके जैसे चोरगुरूओं के बारे में प्रो. यशपाल ,मोहसिना किदवई, तारिक अनवर का क्या कहना है , इस एपीसोड में यह भी दिखाया दिखाया जायेगा।
संबंधित खबर-
CNEB :चोरगुरू अनिल के. राय व रीवा के कुलपति के कारनामे
CNEB NEWS CHANNEL के खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू”के 17 वें एपीसोड में बृहस्पतिवार 29अप्रैल 2010 को सायं 6 बजकर 15 मिनट पर अनिल कुमार राय अंकित और रीवा वि.वि. के कुलपति के कारनामे दिखाया जायेगा। अनिल के. राय अंकित(ANIL K. RAI ANKIT) ने पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर में लेक्चरर रहने के दौरान ( इस समय म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा में पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर –हेड हैं)नकल करके जो एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी व हिन्दी की पुस्तकें अपने नाम से छपवाई हैं, उसमें एक पुस्तक “ संचार के सात सोपान” की सामग्री अवधेश प्रताप सिंह वि.वि. ,रीवा के पत्रकारिता के स्टडी मैटेरियल से चुराई है। इस बारे में अवधेश प्रताप सिंह वि.वि. ,रीवा के कुलपति शिवनारायण यादव के कारनामो को दिखाया जायेगा । यह कि शिकायत करने , नकल के प्रमाण दिखाने पर कुलपति यादव ने किस तरह तुरन्त कड़ी कार्रवाई के बड़े बोल बोले थे , लेकिन 5 माह बीत जाने पर भी कुछ नहीं किये हैं। मैटर चोरी करने वाले अनिल अंकित को दो बार नोटिस भेजकर चुप बैठ गये थे। CNEB NEWS CHANNEL लगातार उनसे कार्रवाई के बारे में पूछताछ करता रहा है , उसके बाद उनका यह टालू रवैया रहा । अब क्या कह रहे हैं यह देखिये आज के एपीसोड में।
Sunday, April 25, 2010
चोरगुरूओं उनके संरक्षको के कारनामे CNEB पर 26 से रोज सायं सवा 6 बजे
-सत्ताचक्र-
सोमवार दिनांक 26 अप्रैल 2010 से रोज शाम 6 बजकर 15 मिनट पर चोरगुरू की अगली कड़ियां दिखाई जायेंगी। जिसमें तथाकथित चोरगुरूओं -अनिलकुमार उपाध्याय,राममोहन पाठक,अनिल कुमार राय अंकित,रामजी लाल,एस.केसिन्हा,पीसी पातंजलि,रमेश चन्द्रा,डी.एस.श्रीवास्तव,सरिता कुमारी,दीपक केम आदि के शैक्षणिक कदाचारी नकलचेपी कारनामो और उनके संरक्षक कुलपतियों के कारनामो को दिखाया जायेगा।यह कि कुलपति किस तरह चोरगुरूओ को बचाने का उपक्रम कर रहे हैं।कैसे जांच कराने का दिखावा कर रहे हैं। कैसे-कैसे महानुभावों को जांच अधिकारी बना रहे हैं।कैसे जांच कमेटी बनाकर मामला लंबे समय तक लटकाकर अपने तथाकथित चहेते चोरगुरूओं को बचाने , समय देने का काम कर रहे हैं।चोरगुरूओं को प्रशानिक पदो पर बनाये रखकर चोरी के प्रमाण आदि प्रभावित करने का मौका दे रहे हैं।चोरगुरू भी किस-किस तरह का उपक्रम कर रहे हैं।
Friday, April 23, 2010
अवधरामजी,चोरगुरूओं के शैक्षणिक कदाचार की जांच कराओ
Thursday, April 22, 2010
विभूति की एक और थानेदारी करतूत
इसबारे में निम्न खबर दिनांक 19 अप्रैल 2010 को " दैनिक 1857 " में पेज 12 पर छपी है-
हि.वि.वि.परिसर में छात्रनेता और पत्रकार पर प्रतिबंध
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के कुलपति वी.एन.राय (VIBHUTI NARAYAN RAI / V.N.RAI )ने एक आदेश जारी कर छात्र संघर्ष समिति के नेता राजीव सुमन और एक अंग्रेजी दैनिक के वर्धा संवाददाता को वि.वि. परिसर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है।दोनो ही वि.वि. के छात्र रहे हैं।फोटो के साथ आदेश का नोटिस जारी करते हुए कुलपति ने कहा है कि दोनो ही वि.वि विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं और वि.वि.का आकादमिक माहौल खराब कर रहे हैं। कुलपति विभूति नारायण राय के इस आरोप के बारे में अंग्रेजी दैनिक के संवाददाता संजीव चंदन ने कहा कि यह देर-सबेर होना ही था। हमने राष्ट्रपति भवन से लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय और वि.वि.अनुदान आयोग तक वि.वि.के भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष छेड़ रखा है।कुलपति विभूति के इस कदम से हमें किसी तरह का आश्चर्य नहीं है। आदेश के नोटिस में हमारी तस्वीरें भी लगाई गईं हैं।इसलिए हम इसके खिलाफ जल्द ही कोर्ट में जाने वाले हैं।
Wednesday, April 21, 2010
चोरगुरू के सेमिनार में जांचअधिकारी गेस्ट
ऐसे हो रही है चोरगुरूओं के कारनामों की जांच
-सत्ताचक्र (SATTACHAKRA)गपशप-
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर के कुलपति को सितम्बर-अक्टूबर 2009 में ही वहां के नकल करके पुस्तकें लिखने वाले अध्यापकों के बारे में सप्रमाण कम्पलेन किये गये,और उसकी जांच की मांग वाले पत्र लिखे गये।उस पर कुलपति आरसी.सारस्वत कुंडली मारे बैठे रहे। सूचना के अधिकार के तहत इस वि.वि. के पुस्तकालयों में बीते 5 साल में इन नकलचेपियों की कितनी पुस्तकें खरीदी गईं इसकी जानकारी मांगी गई। उस पर कुलपति सारस्वत आज तक कुंडली मारे बैठे हुए हैं। कुछ नहीं किये। नवम्बर में जब CNEB NEWS CHANNEL की टीम ने उस वि.वि. के चोर गुरूओं के नकल के प्रमाण दिखाकर उनके वर्जन लिए तो उन्होंने बड़े ही मीठे शब्दो में कहा- मैं जांच कराऊंगा। लेकिन सारस्वत ने कुछ नहीं किया। उल्टे वह चोरगुरूओं को बचाते रहे। जब CNEB NEWS CHANNEL और कुछ सांसदो ने उ.प्र.के राज्यपाल को राज्य के तीन विश्वविद्यालयों के 9 चोर गुरूओं और उनको बचारहे कुलपतियों के खिलाफ सप्रमाण पत्र लिख जांच कराने की मांग किया और उस पर राजभवन से इन विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के यहां पत्र गया तो अपना गला बचाने के लिए ये कुलपति क्या कर रहे हैं देखिए-
राजभवन से पत्र आने के बाद पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति आर.सी.सारस्वत ने जौनपुर के ही विनय कुमार सिंह को जांच अधिकारी बनाया। लेकिन जिस दिन 3अप्रैल 2010को इनको वि.वि. के गेस्ट हाउस में बुलाया गया , उसी दिन शाम को एक चोरगुरू एस.के.सिन्हा को इन्टरव्यू का लिफाफा खोल कर रीडर बना दिया गया। पहले से ही बनाई रणनीति के तहत उसके बाद 20 व 21 अप्रैल 2010 को सेमिनार रखा गया। पत्रकारिता विभाग की तरफ से कराये जा रहे इस सेमिनार का निदेशक उस तथाकथित चोरगुरू रामजी लाल को बनाया गया जो पत्रकारिता विभाग का हेड व डीन हैं और जिन पर नकल करके पुस्तक लिखने का सप्रमाण आरोप है। सेमिनार में ज्यादेतर उन लोगों को बुलाया गया जिनको पूर्वांचल वि.वि. के चोरगुरूओं ने (प्रो.रामजी लाल, डा.एस.के.सिन्हा,डा.अनिल के. राय अंकित) या तो नकलकरके लिखी अपनी पुस्तकें समर्पित की हैं या बहुत ही मधुर एक-दूसरे के हित का ध्यान रखने वाला पुराना संबंध है। 20 अप्रैल 2010 को सेमिनार के उदघाटन सत्र में जौनपुर के एक नेता ओमप्रकाश श्रीवास्तव आये थे। कहा जाता है कि उनसे रामजी लाल की बहुत घनिष्ठता है। श्रीवास्तव ने सेमिनार में मंच से अपने भाषण में कहा-“ ....मित्र विनय सिंह भी आये हैं।....” यह वही विनय कुमार सिंह हैं जिनको वी.ब.सिं.पू.वि.वि.,जौनपुर के कुलपति आर.सी.सारस्वत ने चोरगुरूओं के नकल के कारनामों की जांच के लिए जांच अधिकारी बनाया है।
यही विनय सिंह इसी वि.वि. में 20 अप्रैल 2010 को सेमिनार के बाद रात 8 बजे से शुरू हुए कवि सम्मेलन में भी पधारे थे।
महात्मागांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी
महात्मागांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति अवधराम को वहां के दो तथाकथित चोरगुरूओं (प्रो. राममोहन पाठक, डा.अनिल कुमार उपाध्याय) के नकलचेपी कारनामों का सी.डी.सहित प्रमाण देकर इसकी जांच कराने का पत्र दिया गया था। लेकिन वह भी उस पर कुंडली मारे बैठे रहे। जब राजभवन से उनको भी इसकी जांच कराकर कार्रवाई करने वाला पत्र गया है तब वह भी जांच कमेटी बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.,वर्धा
महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.,वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय तो आन कैमरा बहुत लम्बी-लम्बी नैतिकता की हांकते रहे , लेकिन अपने चहेते चोरगुरू अनिल के. राय अंकित को लगातार बचाते रहे । अखबारो में सप्रमाण छपा,टी.वी. पर आया लेकिन यह पुलिसिया कुलपति महोदय तो अनिल राय के बचाव में पुलिसिया तर्क देता रहा।जब राष्ट्रपति भवन और केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय को इस बाबत किये सप्रमाण कम्पलेन व अनिल अंकित के नकलचेपी कारनामों की जांच की मांग वाले पत्र पर महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.,वर्धा के कुलपति से जबाब मांगा गया तब विभूति नारायण राय ने अनिल के. राय के नकलचेपी कारनामो की जांच के लिए म.गां.काशीविद्यापीठ ,वाराणसी के पूर्व कुलपति सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा की वनमैन जांच कमेटी बना दिया। लेकिन कितने दिन में जांच करना है यह तय नहीं किया। और सुरेन्द्र सिंह कुशवाहा की हालत यह है कि उनपर म.गां.काशीविद्यापीठ ,वाराणसी का कुलपति रहने के दौरान किये घोटाले की, राज्यपाल के आदेश से, विजिलेंस जांच चल रही है। कुशवाहा की तथाकथित चोरगुरू केसीपातंजलि,राममोहन पाठक, अनिल उपाध्याय,अनिल के.राय अंकित से पुराना हित वाला संबंध है।
यह मालूम होने पर कुछ लोगो ने म.गां.अं.हि.वि.वि.वर्धा के कुलपति के नाम लिखे पत्र को उनके कार्यालय में बाकायदे रीसीव कराया। जिसमें लिखा है कि- अनिल के राय अंकित की पुस्तकें मंगवाकर सभी छात्रो को उपलब्ध कराने , खर्च लेकर उसकी फोटोकापी उपलब्ध कराने की मांग की गई है। इसमें मांग की गई है- अनिल अंकित के नकलचेपी कारनामों की जांच किसी ऐसे व्यक्ति से कराने जिसे चोरगुरू व उसका संरक्षक जानते नहों और जिसपर किसी तरह की जांच नहीं चल रही हो, जो वर्धा व दिल्ली में आन कैमरा जांच करे ,जिसमें उन टी.वी.चैनल, अखबार वालों को बुलाया जाय जिनने इन चोरगुरूओं के शैक्षणिक कदाचार के कारनामों को उजागर किया है।
लेकिन अपनी बहुत तथाकथित सेकुलर, न्यायवादी छवि की शेखी बघारने वाले पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्योंकि इस सेकुलर जातिवादी को तो जबतक संभव है अपने चहेते नकलचेपी को बचाना है।
प्रदीप माथुर
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर में 20 व 21 अप्रैल 2010 को हो रहे सेमिनार में प्रदीप माथुर भी पधारे हैं।ये वही प्रदीप माथुर हैं जिनको तथकथित चोरगुरू अनिल के. राय अंकित ने अपनी नकल करके लिखी पुस्तकों में से एक अंग्रेजी वाली पुस्तक समर्पित की है।इस बारे में पूछने पर इन्होने कहा था कि अनिल के.राय अंकित ने मुझसे बिना पूछे ही पुस्तक मुझे समर्पित किया है। माथुर ने अनिल अंकित के और भी कई कारनामे बताये थे। इस प्रदीप माथुर से 20 अप्रैल 2010 को सेमिनार के दौरान ही जब कुछ पत्रकारो ने पूछा कि एक चोरगुरू ( रामजी लाल)सेमिनार करा रहा है और आप इसमें आये हैं , तो इस पर माथुर ने कहा-मुझको तो यह मालूम नहीं। मुझको तो कुलपति आर.सी. सारस्वत ने बुलाया है, उनके बुलावे पर आया हूं।
इससवाल पर कि यदि आपको यह मालूम होता तो।
माथुर का जबाब था-तब तो नहीं आया होता।
प्रदीप माथुर से जब पत्रकारो ने पूछा –प्रो.रामजीलाल ने नकल करके किताब लिखा है, इस पर आपका क्या कहना है।
माथुर ने कहा- यह तो अनैतिक है।
प्रदीप माथुर के बारे में जानने वाले लोग कहते हैं कि उनका यह जबाब सुविधा अनुसार फेस सेविंग वाला जबाब है। कुछ का कहना है कि प्रदीप माथुर कोई दूध पीते बच्चे नहीं हैं,उनको सब मालूम है।वह उसी पूर्वांचल वि.वि. में अभी लगभग दो माह पहले गये थे, चोरगुरू अनिल के.राय अंकित के अंडर में शोधकर रहे एक छात्र का वाइवा लेने। तब तक पूर्वांचल वि.वि. के चारो चोरगुरूओं(अनिल के.रायअंकित,पी.सी.पातंजलि, एस.के.सिन्हा, रामजी लाल) के बारे में CNEB NEWS CHANNEL दिखा चुका था। और उस वि.वि.के अलावा अन्य वि.विद्यालयों के पत्रकारिता के छात्र व अध्यापक इन चोरगुरूओं के कारनामों के बारे में जान चुके थे।ऐसे में प्रदीप माथुर का अनभिज्ञता जाहिर करना फेससेविंग या विरादर का बचाव ही लगता है। वैसे तो इनका चहेता चोरगुरू अनिल के. राय अंकित इनको सबकुछ बता ही दिया होगा। वह नहीं बताया होगा तो इनके चहेते, पूर्वांचल वि.वि. के कुलसचिव बी.एल.आर्य ने तो बताया ही होगा।
Tuesday, April 20, 2010
पू.वि.वि.के डीन प्रो.रामजीलाल के नकलचेपी प्रमाण
अब देखिय़े निम्न पुस्तक HANDBOOK OF PSYCHOLOGY ,जिसके वालुम एडीटर- WALTER C. BORMAN, DANIEL R. ILGEN,RICHARD J. KALIMOSKI और एडीटर -इन-चीफ IRVING B. WEINER हैं। जिसपर लिखा है-copyright c 2003 by john wiley & sons,inc.,hoboken,NewJersy.All rights reserved. इस पुस्तक का एक भी पेज या पैरा मैटर कहीं और छापने के पहले लिखित और पर पेज की दर से पेमेंट करके परमिशन लेना पड़ेगा, इस बारे में साफ-साफ लिखा है ,जिसका प्रमाण नीचे है। इस पुस्तक के चैप्टर- STABILITY AND CHANGE IN INDUSTRIAL AND ORGANIZATIONAL PSYCHOLOGY लेखक- WALTER C. BORMAN, DANIEL R. ILGEN,RICHARD J. KALIMOSKI के पेज 1 के चौथे पैरा से पेज 10 तक का मैटर हूबहू उतारकर प्रो.रामजी लाल ने अपनी पुस्तक - INDUSTRIAL AND ORGANIZATIONAL PSYCHOLOGY का पेज 6 के दूसरे पैरा से लगायत पेज 31 तक पर चिपका दिया है। प्रमाण के तौर पर ऊपर रामजी लाल की 2004 में SHREE PUBLISHERS,DARYA GANJ,NEW DELHI-2 से छपी पुस्तक और नीचे एडीटर -इन-चीफ IRVING B. WEINER की 2003 में NEW JERSEY से छपी पुस्तक दी गई है।रामजी लाल की पुस्तक का पेज 6 व 7 (ऊपर)तथा IRVING B. WEINER की पुस्तक का पेज 1 और 2 (नीचे) दिया गया है।जो हूबहू कामा, फुलस्टाप सहित सेम है और रामजी लाल द्वारा नकल करके पुस्तक लिखने के ढ़ेर सारे प्रमाण में से एक प्रमाण है। संबंधित खबर-
राज्यपाल से 9 चोरगुरूओं के कदाचार की जांच की मांग
पू.वि.वि.में चोरगुरू, उसका संरक्षक करा रहे सेमिनार...
Monday, April 19, 2010
राज्यपाल से 9 चोरगुरूओं के कदाचार की जांच की मांग
महामहिम राज्यपाल,
उत्तर प्रदेश,
लखनऊ।
विषयः प्रदेश के अनेक विश्वविद्यालयों के वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा मैटर चुराकर अपनी किताबों में शामिल करने और इस बारे में संबंधित विश्वविद्यालयों द्वारा समुचित कार्रवाई न करने के बाबत।
महामहिम,
शिक्षा जगत में हो रहे कदाचार के एक पहलू को उजागर करने के उद्देश्य से हमारे समाचार चैनल सीएनईबी न्यूज़ ने पिछले साल पहली नवंबर से एक खोजपरक साप्ताहिक कार्यक्रम चोर गुरू शुरू किया है। इसकी अब तक 14 कड़ियाँ दिखायी जा चुकी हैं।
अन्य प्रदेशों के विश्वविद्यालयों के अलावा इसमें उत्तर प्रदेश के तीन विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध रहे वरिष्ठ-कनिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा की गयी चोरी के सप्रमाण किस्से दिखाये गये हैं और यथासंभव इन सभी विश्वविद्यालयो के कुलपतियों के सामने भी यह प्रमाण रखे गये हैं और इस संबंध में संबंधित कुलपतियों की बाइट को भी हमने अपने कार्यक्रम में दिखाया है।
उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षकों द्वारा किये जा रहे इस अनैतिक कृत्य को देखकर प्रोफ़ेसर बिपिन चंद्रा, प्रोफ़ेसर यशपाल और प्रोफ़ेसर मुशीरुल हसन सरीखे देश के कुछ बेहद सम्मानित शिक्षाविदों ने भी हमारे कार्यक्रम में अपना दुख और रोष व्यक्त किया है। अनेक राजानीतिक दलों के वरिष्ठ सासदों ने भी इस पर रोष व्यक्त किया है। इस प्रकरण का दुखद पहलू यह है कि विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा कड़ी कार्रवाई का वायदा करने के महीनों बीत जाने के बाद भी किसी तरह की समुचित कार्रवाई अबतक नहीं की गयी है।
सीएनईबी न्यूज़ के चोर गुरू कार्यक्रम में अबतक उत्तर प्रदेश के जिन तीन विश्वविद्यालयों से जुड़े रहे शिक्षकों के कारनामे दिखाये गये हैं, वे हैं--बुंदेलखंड विश्वविद्यालय (झाँसी), वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर) और महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी)।
इन संस्थाओं से जुड़े जिन महानुभावों के कारनामे हमारे चोर गुरू कार्यक्रम में दिखाये गये हैं, उनके नाम निम्नवत हैं—
1. प्रोफ़ेसर रमेश चंद्रा पूर्व कुलपति, बुंदेलखंड विवि
2. प्रोफ़ेसर डी एस श्रीवास्तव पूर्व संकायाध्यक्ष, बुंदेलखंड विवि
3. सुश्री सरिता कुमारी बुंदेलखंड विवि से सम्बद्ध रहीं
4. प्रोफ़ेसर प्रेम चंद पातंजलि पूर्व कुलपति, पूर्वांचल विवि
5. प्रोफ़ेसर रामजी लाल संकायाध्यक्ष, पूर्वांचल विवि
6. प्रोफ़ेसर अनिल के राय अंकित पूर्व विभागाध्यक्ष, पूर्वांचल विवि
7. डॉ एस के सिन्हा विभागाध्यक्ष, पूर्वांचल विवि
8. डा. अनिल उपाध्याय काशी विद्यापीठ
9. प्रोफ़ेसर राममोहन पाठक काशी विद्यापीठ
उत्तर प्रदेश के बाहर के जिन अन्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों के कारनामे सप्रमाण हमने दिखाये हैं, उनमें दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा और इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) के नाम प्रमुख हैं। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कई दलों के सांसदों ने इस मुद्दे को संसद के आगामी सत्र में उठाने का मन बनाया है। यह वास्तव में राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा है।
अपने इस चोर गुरू कार्यक्रम की कुछ उन कड़ियों की सीडी हम इस पत्र के साथ आपके अवलोकनार्थ भेज रहे हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश के विश्वविद्यालयों से जुड़े मसले हैं। हम मानते हैं कि यह मुद्दा बेहद गंभीर है लेकिन जानबूझकर इसकी अनदेखी की जा रही है और इसीलिए अब इस मुद्दे पर आपकी ओर से समुचित कार्रवाई किये जाने की ज़रूरत है। आप यदि उचित समझें तो हमारी चोर गुरू टीम सभी प्रमाणों को विस्तार से आपके सामने या आपके द्वारा नियुक्त किसी जाँच समिति के सामने रखने को तत्पर रहेगी।
साभार,
प्रदीप सिंह
राजनीतिक संपादक,
सीएनईबी न्यूज़
28-01-10
Saturday, April 17, 2010
पू.वि.वि.में चोरगुरू, उसका संरक्षक करा रहे सेमिनार,पहुंचेंगे कई चोरगुरू
-सत्ताचक्र(sattachakra) गपशप-
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्व विद्यालय, जौनपुर(उ.प्र.) में 20 व 21 अप्रैल को एक सेमिनार में जुटेंगे कई चोरगुरू । पत्रकारिता विभाग सेमिनार करा रहा है।जिसके हेड व सेमिनार के निदेशक हैं, नकल करके किताब लिखने के आरोपी चोरगुरू रामजी लाल।जो लाला हैं।इस सेमिनार के उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करेंगे वि.वि. के कुलपति आर.सी.सारस्वत। जो ब्राह्मण हैं। सो सेमिनार का उदघाटन सत्र 3 ब्राह्मण व 3 लाला के हवाले है।अध्यक्षता करेगा ब्राह्मण,मुख्यअतिथि ब्राह्मण,एक विशेष अतिथि ब्राह्मण - ये हुए 3 ब्राह्मण। एक विशेष अतिथि लाला,मुख्य वक्ता लाला और सेमिनार निदेशक लाला- ये हुए 3 लाला। इस सेमिनार में जिन लोगो को बुलाया गया है उनमें नकल करके शोध-प्रबंध व पुस्तक लिखने के आरोपी तथाकथित चोरगुरूवे प्रो.राममोहन पाठक और डा.अनिल कुमार उपाध्याय भी हैं। ये दोनो महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ,वाराणसी में अध्यापक हैं .
सेमिनार का विषय है-“जनमाध्यम प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक परिवर्तन”। इसकी विज्ञप्ति वाराणसी के अखबार के कार्यालयों में पहुंची है। एक अखबार के उपसम्पादक ने बताया कि विज्ञप्ति में लिखा है- विभिन्न मीडिया से जुड़े लोग जनमाध्यमो के सामाजिक परिवर्तन में योगदान को क्रमवार रेखांकित करेंगे।
सवाल यह है कि क्या वी.ब.पू.वि.वि., जौनपुर में जुटने वाले ये महानुभाव क्रमवार रेखांकित करेंगे कि वि.वि.के कुलपति,प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर, शोधार्थी किस तरह कम्प्यूटर प्रोद्योगिकी का उपयोग करके इंटरनेट से मैटर कट-पेस्ट करके अपने नाम से किताबें छपवा रहे हैं। उसे साक्षात्कार में दिखाकर नौकरी, प्रमोशन पा रहे हैं। नकल करके इस तरह की पुस्तकें लिखने वाले कुलपति,प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर, शोधार्थियों,उसे छापने वाले पब्लिशरो,उसको विश्वविद्यालयों में सप्लाई करने वाले सप्लायरों,उसे विक्रय मूल्य पर 10 से 15 प्रतिशत छूट दिखा ,अंदर खाने 40 प्रतिशत तक पुष्पम-पत्रम लेकर लाखो –करोड़ो रूपये की हर साल इस तरह की पुस्तकें खरीदने वालो का एक अघोषित रैकेट बन गया है।विश्वविद्यालयो,महाविद्यालयों में यह धंधा जोरों से चल रहा है। इस तरह रैकेट बन गया है,जिसमें शामिल हर व्यक्ति एक –दूसरे की मदद व संरक्षण कर रहा है। इस तरह का आरोप पूर्वांचल वि.वि. पर भी लग रहा है।
पूर्वांचल विवि. तो नकलकरके किताबें लिखने का, इसे छापने व सप्लाई करने वाले से हर साल ऐसी लाखो रूपये की पुस्तकें खरीदने के सबसे बड़े केन्द्र के रूप में चर्चित हो गया है।
अभी तक इस वि.वि. के निम्न तथाकथित चोरगुरूओ के नकल करके किताबे लिखने के कारनामे उजागर हुए हैं-
1.प्रो.प्रेम चंद पातंजलि, पूर्व कुलपति
2.प्रो.रामजी लाल, डीन व हेड
3.डा.अनिल के.राय अंकित, लेक्चरर(अवैतनिक अवकाश पर) पत्रकारिता विभाग
4.डा.एस.के.सिन्हा ,रीडर
उक्त चार महानशिक्षको के अलावा अभी कई और के नकलचेपी कारनामे जल्दी ही उजागर होने वाले हैं।
इसमें अनिल के.राय अंकित के तो और भी बहुत से कारनामें उजागर हो रहे हैं।उसने दरियागंज, दिल्ली के SHREE PUBLISHERS & DISTRIBUTORS और इसी के हिन्दी में पुस्तकें छापने वाले यूनिवर्सिटी पब्लिकेशन और सप्लायर इंडिका के यहां से अपनी अंग्रेजी व हिन्दी की पुस्तकें छपवाई हैं ।इस कम्पनी ने बीते 6 साल में पूर्वांचल वि.वि.में लगभग 6 करोड़ रू. की पुस्तकें सप्लाई की है।इसने यहां के ज्यादेतर अध्यापको की नकलकरके लिखी पुस्तकें छापी है। उन्हे यहीं पर मंहगे दाम पर सप्लाई भी किया है। जिसकी जांच की मांग इसी कुलपति सारस्वत से की गई है। लेकिन वह इस पर लीपा-पोती कर रहे हैं और नकलची अध्यापकों, उनकी पुस्तकें छापने, सप्लाई करने वाले को बचा रहे हैं। अभी कुछ हप्ते पहले ही उसी इंडिका सप्लायर ने वि.वि. के पुस्तकालय में लगभग 50 लाख रूपये से अधिक की पुस्तकें सप्लाई किया है। कहा जाता है कि इस बार भी नकल करके लिखी बहुत सी पुस्तकें आई हैं।जिसका आर्डर से मिलान कई दिन तक, 10 बजे रात तक पुस्तकालय खोल कर किया गया । और बिल जल्दी पास कराने का इंतजाम इसी कुलपति ने कर दिया ।
तो इस तरह से शिक्षा व मिडिया संस्थानो से जुड़े लोग प्रौद्योगिकी का उपयोग कर अपने तथाकथित चोरगुरू व उनके संरक्षक समाज के काकस के उत्थान में योगदान कर रहे हैं।
इस वि.वि. के एक चोरगुरू अनिल के. राय अंकित(जो अब जोड-जुगाड़ से म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा में प्रोफेसर हो गया है) ने तो जिन महानुभावो को अपनी नकल करके लिखी पुस्तकें समर्पित किया है(जिसमें एक खुद ही चोर गुरू है),उनमें से 3 लोग इस सेमिनार में पधार रहे हैं। कई तथाकथित चोरगुरूओं व उनके संरक्षकों की कथनी व करनी के अंतर ; अंदर कुछ और बाहर कुछ और चरित्र का साक्षात सबूत होगा यह सेमिनार।यह भी पता लगाया जाना चाहिए कि इस सेमिनार का कुछ या पूरा खर्च, चोरगुरूओ की पुस्तकें छापने,सप्लाई करने वाला SHREE PUBLISHER / INDICA दे रहा है या नहीं ? क्योंकि यहां के एक चोरगुरू ने आन कैमरा कहा है कि इस पब्लिशिंग /सप्लायर कम्पनी के मालिकान जैन बंधु वि.वि. में इस तरह के कर्म करते रहते हैं।
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पु.कु.,वी.एन.राय, मैटरचोर ए.के.राय की किताबें मंगा आन कैमरा जांच करावो
म.गां.अं.हि.वि.वि., वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय(VIBHUTI NARAYAN RAI / V. N. RAI) को अपने चहेते तथाकथित चोर गुरू अनिल के. राय अंकित (ANIL KUMAR RAI / ANIL K. RAI ANKIT / A.K.RAI ANKIT ) की लिखी सभी पुस्तकें खरीदवाकर वि.वि. के पुस्तकालय में रखवाने , पढ़ने के लिए छात्रो को उपलब्ध कराने, जो छात्र उन पुस्तकों की फोटो कापी चाहें उन्हे फोटो कापी का खर्च लेकर फोटो कापी उपलब्ध कराने और तथाकथित मैटर चोर अनिल के .राय की नकल करके किताबें लिखने की जांच वर्धा के अलावा दिल्ली में आन कैमरा कराने की मांग की गई है। जिसमें उन टीवी चैनल,अखबार आदि के प्रतिनिधियों को भी बुलाने की मांग की गई है जिनने अंकित के मैटर चोरी के कारनामे उजागर किये हैं। इसके लिए विनोद नामक व्यक्ति ने म.गां.अं.हि.वि.वि., वर्धा के कुलपति कार्यालय में दिनांक 19 -03-10 को पत्र दिया है । जिसका प्रमाण निम्न है-
Sunday, April 11, 2010
चोरगुरू गायब करा रहे हैं पुस्तकें, उनकी पुस्तकें ,शोधप्रबंध जहां मिले भेजें
-सत्ताचक्र(sattachakra)-
शातिर चोरगुरू और उनके संरक्षक कुलपति आदि नकल करके लिखी पुस्तकें ,शोध-प्रबंध विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों से गायब करा रहे हैं।ऐसे पुस्तकों के पब्लिशर भी अपनी वेव- साइट पर इन पुस्तको को आउट आफ स्टाक या और कुछ दिखा रहे हैं । यह भी कहा जा रहा है कि कुछ चोरगुरू अपनी नकल करके लिखी पुस्तकों व शोध-प्रबंधों में कुछ जोड़ कर शैक्षणिक कदाचार के आरोपो और केस से बचने का उपक्रम कर रहे हैं।
सो सुधि पाठकों और दर्शकों से आग्रह है कि ऐसे चोरगुरूओं के व उनके संरक्षकों के इन कारनामों को उजागर करने के लिए इनकी नकलकरके लिखी पुस्तकों व शोध-प्रबंधों की प्रति / कापी जहां कहीं भी मिले , उन्हे “चोरगुरू” कार्यक्रम दिखाने वाले चैनल या इसके बारे में लिखने वाले ब्लाग व अखबार के कार्यालय में भेजें। ताकि शिक्षा जगत के ऐसे काले भेड़ियों को जनहित में बेनकाब किया जा सके।
Saturday, April 10, 2010
पुलिस से कुलपति बने वी.एन.राय के खिलाफ FIR दर्ज कराने के लिए कम्प्लेन
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के कुलपति व पूर्व एडी़जी पुलिस उ.प्र., विभूति नारायण राय ( Vibhuti Narayan Rai/ V.N.RAI ) के खिलाफ वर्धा के सेवाग्राम थाने में आज दोपहर बाद FIR दर्ज कराने के लिए कम्प्लेन हुआ है। यह कम्प्लेन नागपुर से निकलने वाले हिन्दी “दैनिक 1857” के संवाददाता प्रफुल्ल शुक्ला और प्रताप सिंह कुशवाहा ने दर्ज करवाया। जिसमें विभूति नारायण राय पर प्रफुल्ल शुक्ला और प्रताप सिंह कुशवाहा को गाली देने, मारने की धमकी देने, चोरी के आरोप में बंद कराने की धमकी देने, डंडे मारकर इनके गाड़ी को क्षति पहुंचाने का आरोप लगाया गया है।
सूत्रो के मुताबिक “दैनिक 1857” के संवाददाता प्रफुल्ल शुक्ला और प्रताप सिंह कुशवाहा आज सवेरे अपनी एक कार से विश्वविद्यालय परिसर में अखबार बंटवाने गये थे। परिसर में अंदर जाने के लिए दोनो ने बाकायदा गेट पास बनवाया था। लेकिन “दैनिक 1857” में अपने तथाकथित धतकर्मो व भ्रष्टाचार के आरोपो के लगातार छपने से बौखलाये कुलपति विभूति नारायण राय आज अपने तथाकथित जनवादी साहित्यिक चोले से बाहर असली पुलिसिया रूप में आ गये और थानेदार का व्यवहार किये। संवाददाताओं पर वि.वि. परिसर में चोरी करने का आरोप लगाये , उनको गाली दिये, उनपर डंडा ताने, चलाये जो गाड़ी पर लगा।
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कुलपति अपने पुलिसिया रौ में आया, पुलिस बुलाया
पुलिसिया कुलपति वी.एन.राय ने पत्रकार पर लाठी उठाया...
कुलपति अपने पुलिसिया रौ में आया, पुलिस बुलाया
उसकी थानेदारी का जबाब देने संपादक एस.एन.विनोद ने भी किया वर्धा कूच
-सत्ताचक्र-
सूत्रो के मुताबिक पुलिस से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने "दैनिक 1857" के म.गां.अं.हि.वि.वि.वर्धा संवाददाता प्रफुल्ल शुक्ला और प्रताप सिंह कुशवाहा को आज सुबह दरबानों से जबरिया बुलवाकर गाली दिया, मारने के लिए लाठी उठा लिया,चोरी के आरोप में बंद कराने की धमकी दी,संवाददाताओं पर वि.वि परिसर में चोरी करने आदि का केस दर्ज कराने के लिए पुलिस बुला लिया।इसकी सूचना मिलने पर अखबार के मालिक व संपादक एस.एन.विनोद ,पुलिसिया कुलपति के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए नागपुर से वर्धा के लिए निकल गये हैं। उधर वर्धा में भी पत्रकार पुलिसिया कुलपति के इस हरकत से नाराज होकर घटना स्थल पर पहुंचने लगे हैं।
नागपुर से निकलने वाले हिन्दी “दैनिक 1857” ने महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के भ्रष्टाचार के आरोपो और पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण ( VIBHUTI NARAYAN RAI / V.N. RAI ) व उनके चहेतो के तथाकथित अनैतिक, शैक्षणिक कदाचार के आरोपो को लगातार छापना शुरू किया है। आज दिनांक 10-04-10 को भी अंतिम पेज पर लीड स्टोरी छपी है। जिसका शीर्षक है- मंत्रालय ने वि.वि. से मांगा जबाब , वि.वि. में पदों की कथित नीलामी का मामला ..।जिसमें वि.वि. के विजिटर / राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के प्रेस अफसर के हवाले से खबर छपी है कि म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा में पदो की नीलामी आदि के आरोपो के बारे में शिकायती पत्र मिले थे। जिसपर आगे की कार्रवाई के लिए केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय में भेज दिया गया है।.....
अखबार के दो संवाददाता प्रफुल्ल शुक्ला और प्रताप सिंह कुशवाहा आज सवेरे वि.वि. परिसर में प्रोफेसरो के यहां अपना अखबार "दैनिक 1857 " बंटवाने गये थे। उस समय वि.वि. के दरबान आये और दोनो से कहे कि चलिए कुलपति (विभूति नारायण राय) बुला रहे हैं। दोनो संवाददाता ने कहा कि अभी काम कर रहे हैं , काम खत्म करके आते हैं। इस पर दरबानो ने दोनो को जबरिया पकड़कर कुलपति के पास ले गये। सूत्रो का कहना है कि कुलपति ने इन दोनो संवाददाताओ को गाली दिया, उनको मारने के लिए लाठी उठाया , और वि.वि. में चोरी करने का इल्जाम लगाकर बंद करवाने की धमकी दी। उसके बाद पुलिस को फोन किया। इसकी सूचना मिलने पर अखबार के संपादक एस.एन.विनोद ने वर्धा के एस.पी. को फोन किया और संवाददाता का भी बयान लेकर कुलपति विभूति नारायण राय के खिलाफ केस दर्ज करने को कहा।इसके बाद एस.एन.विनोद को सूचना मिली की विभूति नारायण राय ने फोन करके पुलिस बुला लिया है । यह सूचना मिलते ही एस.एन. विनोद नागपुर से वर्धा के लिए निकल पड़े । ताकि पुलिसिया कुलपति के कारनामो की जानकारी लेकर आगे की कार्रवाई कर सकें।
पुलिसिया कुलपति वी.एन.राय ने पत्रकार पर लाठी उठाया,गाली दिया,चोरी का केस लादने की धमकी दी
म.गां.अं.हि.वि.वि. वर्धा के पुलिसिया कुलपति के खिलाफ केस दर्ज कराने की तैयारी
-सत्ताचक्र-
प्रख्यात पत्रकार एस.एन.विनोद के नागपुर से निकलने वाले हिन्दी अखबार “दैनिक 1857” में लगातार खोजपरक खबर छपने से बौखलाए, पुलिस वाले से कुलपति बने विभूति नारायण राय ने अखबार के स्थानीय संवाददाता को आज सुबह गाली दिया, मारने के लिए लाठी उठा लिया और चोरी के आरोप के केस में बंद कराने की धमकी दी । संपादक एस.एन.विनोद को जब उनके म.गां.अं.हि.वि.वि., वर्धा संवाददाता ने पुलिसिया कुलपति के इस हरकत की जानकारी दी तो उन्होने तुरन्त वर्धा के एस.पी. को फोन करके इस मामले की तहकीकात करने को कहा।और यह भी कहा कि स्थानीय थाने में कुलपति विभूतिनारायण के खिलाफ संवाददाता का बयान लेकर केस दर्ज किया जाय।
Thursday, April 8, 2010
क्या नकलचेपी मामले में अनिल उपाध्याय CNEB से बात करने से भाग रहे हैं ?कुलपति को पत्र
CNEB NEWS CHANNEL ने नकल करके पुस्तक लिखने के मामले में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पत्रकारिता विभाग के रीडर हेड डा. अनिल उपाध्याय से बात करने के लिए कुलपति अवधराम के यहां दिनांक 05-03-10 को पत्र रिसीव कराया था।जिसमें था कि ........ हमारे चैनल के पास अनिल कुमार उपाध्याय के बारे में और भी कुछ तथ्य हैं, जिन्हे हम शीघ्र दिखाने वाले हैं। हम आपके मार्फत श्री अनिल उपाध्याय से अनुरोध करना चाहते हैं कि जनहित में वे हमारे आरोपों के संदर्भ में अपनी बात हमारे वाराणसी रिपोर्टर से कैमरे के सामने आकर कहें।...........
आज( दिनांक 08-04-10) एक माह तीन दिन बीत जाने के बाबजूद CNEB NEWS CHANNEL को कुलपति अवधराम या अनिल कुमार उपाध्याय के यहां से इस संबंध में अब तक कोई सूचना नहीं मिली। इससे यह जाहिर होता है कि अनिल उपाध्याय भाग रहे हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति अवधराम को दिनांक 05-03-10 को रिसीव कराया दो पेज का पत्र निम्न है -
Wednesday, April 7, 2010
कुलपति सारस्वत ने तथाकथित चोरगुरू सिन्हा को रीडर,हेड बनाया
-सत्ताचक्र-
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति आर.सी.सारस्वत ने नकल करके किताब लिखने के आरोपी एस.के.सिन्हा को रीडर बना कर हेड बना दिया।सारस्वत ने सिन्हा, प्रो रामजी लाल और अनिल कुमार राय अंकित के खिलाफ नकल करके किताब लिखने के मामले में कई बार लिखित कम्प्लेन करने , CNEB NEWS CHANNEL के “चोरगुरू” कार्यक्रम में इनके कारनामें सप्रमाण दिखाने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं किया।इन चोरगुरू आरोपियों को बचाते रहे। बहुत लिखा –पढ़ी और दबाव पड़ने के बाद अपना गला बचाने के लिए एक वनमैन जांच कमेटी बना दिया है।जिसको जांच का काम दिया गया है उनको इसबावत पत्र लगभग एक माह पहले कुलसचिव आर्य के हस्ताक्षर से भेजवाया गया। उनको अब तक कोई दस्तावेज नहीं दिया गया। संभवत: जांच के लिए कोई समय सीमा भी निर्धारित नहीं की गई है। इससे केवल टालू रवैया अपना खाना पूर्ति करने की आशंका होने लगी है। जांच के पहले ही चोरगुरू आरोपी सिन्हा को साक्षात्कार वाला लिफाफा खोल रीडर, हेड बना देने से इस आशंका को और बल मिल रहा है।
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आलोक तोमर, आपने अप्लाई नहीं किया..-वी.एन.राय
सूत्रो के मुताबिक बीते कुछ माह में विभूति नारायण राय ने आलोक तोमर को कई बार फोन किया, जो बात हुई उसका लगभग सार -
म.गां.अं.हि.वि.वि. वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय ने 05 अप्रैल 2010 को आलोक तोमर को फोन किया । कहा- म.गां.अं.हि.वि.वि. में वान्ट निकला था, आपने अप्लाई नहीं किया। आलोक तोमर ने जबाब दिया- मैं आपके यहां नौकरी के लिए अप्लाई करूं, और आप मुझे नौकरी देंगे। मेरे ऐसे दिन तो नहीं आये हैं।
इस पर विभूति नारायण राय ने कहा- यदि मैं आपको नौकरी (म.गा.अं.हि.वि.वि. के दिल्ली सेंटर का प्रभारी पद) आफर करूं तो ।
अलोक का जबाब- आप आफर करेंगे तो भी तय तो मुझे करना है।
विभूति नारायण ने अपने असली मकसद पर आते हुए कहा- आप भी दुश्मनो के गुट में शामिल हो गये।
आलोक ने प्रतिप्रश्न के लहजे में पूछा- मतलब..। सही बात लिखना दुश्मनो के गुट में शामिल होना होता है।
विभूति- नहीं मेरा मतलब ये नहीं । आपको किसी ने सही ब्रीफ नहीं किया है । आप जब मिलेंगे तो डी ब्रीफ करूंगा तब सही बात समझेंगे।
इस पर आलोक ने कहा- ठीक है जब मिलेंगे तब बताइयेगा।
इसके पहले विभूति नारायण राय ने आलोक तोमर को 21 मार्च 2010 को दो बार फोन किया था। आलोक तोमर ने फोन नहीं उठाया। विभूति ने फोन 21 मार्च को उनके पोर्टल datelineindia.com व उनकी खबर छापने वाले अखबारों व पोर्टलों में निम्न खबर छपने के बाद किया था-
.....................................................................................................................................................
आइए… वर्धा में अंकित एक विभूति से भी मिलिए…
-आलोक तोमर
अपने नाम के पहले डॉक्टर लगाना किसको अच्छा नहीं लगता। मैं पहले दर्जे में एमए करने के बाद भी पीएचडी नहीं कर पाया क्योंकि रोजगार के गम ज्यादा थे। मगर पैसा ले कर तीन चार पीएचडी थीसिस मैंने भी लिखी हैं क्योंकि पैसे चाहिए था। वह मेहनत की कमाई थी और उनके आधार पर डॉक्टरेट पा कर कई मित्र विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं।
मगर इन दिनों गजब हो रहा है। विश्वविद्यालयों में ऐसे ऐसे चोर गुरु हैं जो इंटरनेट की कृपा से अध्याय के अध्याय उड़ा कर रातों रात किताब तैयार करते हैं और अंग्रेजी में अपना नाम तक ठीक से नहीं लिख पाने के बावजूद उनके खाते में अंग्रेजी की दर्जनों किताबें हैं। ऐसा ही एक कारनामा दुनिया के अकेले हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में हुआ। इस विश्वविद्यालय का नाम महात्मा गांधी के नाम पर है और इसका कुलपति बनने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सबसे बड़े अधिकारी और अपने मित्र विभूति नारायण राय ने पुलिस से इस्तीफा दे दिया।
हिंदी विश्वविद्यालय में पत्रकारिता भी पढ़ाई जाती है। यहां पत्रकारिता विभाग के प्रमुख अनिल राय अंकित नाम के एक विद्वान हैं, जिन्होंने इंटरनेट से चोरी करके दर्जनों किताबें अपने नाम से छपवा ली है। जाहिर है कि वे अपने शिष्यों को बौद्धिक चोरी का अच्छा प्रशिक्षण दे सकते हैं। इसके पहले वे जौनपुर में पढ़ा रहे थे और वहां भी धड़ल्ले से चोरी कर रहे थे। नेटवर्किंग ऐसी कि रायपुर में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय खुला, तो ये महोदय वहां भी मौजूद थे। फिर विभूति नारायण राय ने उन्हें वर्धा बुला कर अपने यहां पत्रकारिता विभाग का अध्यक्ष बना दिया। वे पहुंचे, इंटरव्यू दिया, चुने गये और जिस दिन लिफाफ खुला उसी दिन उन्होंने काम भी संभाल लिया। ऐसी भर्तियां तो युद्ध के दौरान भी सेना तक में नहीं होती। दिलचस्प बात यह है कि जिस तारीख को वे वर्धा में विभागाध्यक्ष के तौर पर काम कर रहे थे, उसी तारीख में रायपुर में भी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के रीडर थे।
अंकित प्रतिभाशाली हैं, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। आखिर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अधिकतम आठ लोगों को अपने अधीन पीएचडी करवाने की अनुमति हर प्रोफेसर को दी है। मगर अंकित चौदह लोगों को पीएचडी करवा रहे हैं। उनकी चोरी चकारी की कहानी जब एक टीवी चैनल पर, जिसका हिस्सा मैं भी हूं, प्रसारित हुई तो कोई दस साल बाद विभूति जी ने फोन किया। उन्होंने कहा कि जो दिखाया जा रहा है वह झूठ है और अगर एक भी दस्तावेज उन्हें मिल जाए, तो वे अंकित की एक मिनट में छुट्टी कर देंगे।
विभूति नारायण राय काफी सम्मानित साहित्यकार हैं। पुलिस में रह कर पुलिस के खिलाफ उपन्यास लिख चुके हैं और फिर भी निलंबित नहीं हुए। उनके लेखन और दोस्ती दोनों का मैंने हमेशा मान रखा है। विभूति से कहा कि वे चैनल के ऑफिस आ जाएं और पूरे रिकॉर्ड देख लें। चैनल के प्रधान संपादक राहुल देव से बात भी करवा दी। मगर विभूति नहीं पहुंचे। कुछ दिन बाद विश्वविद्यालय से चैनल में पत्र आया कि आपने जो कुछ दिखाया है, वह सच है तो इसके बारे में शपथ पत्र दीजिए। यह एक कुलपति की नहीं, पुलिस वाले की भाषा थी। आप जानते हैं कि पुलिस में अगर किसी को नहीं पकड़ना है, तो उसके बारे में एक के बाद एक सबूत मांगा जाता रहता है। अगर पकड़ना है, तो पहले हवालात में बंद कर दिया जाता है और फिर सबूत तैयार किये जाते हैं।
अनिल राय अंकित के खिलाफ कई किलोग्राम सबूत मौजूद है। विभूति भाई पढ़ने-लिखने वाले आदमी हैं और उनकी आत्मा जानती होगी कि असलियत क्या है। लेकिन उनके भीतर जो पुलिस वाला बैठा है, वह तो मुठभेड़ में भी सिर्फ आत्मरक्षा में गोली चलाता है, जिसमें कुछ मारे जाते हैं और कुछ अंधेरे का लाभ उठा कर फरार हो जाते हैं। विभूति नारायण राय अंकित को अंधेरे का लाभ दे रहे हैं। बहुत दबाव के बाद जांच बैठा दी गयी है, मगर जांच के लिए वाराणसी से अंकित के एक पुराने शुभचिंतक को बुलाया गया है और आप जानते हैं कि ऐसे में क्या होता हैं!
विभूति नारायण राय हिदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है, लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में वे गॉड फादर की तरह काम कर रहे हैं।
अनिल राय अंकित का जो होगा, सो होगा और उनसे पत्रकारिता पढ़ने वाली पीढ़ियों का भविष्य कैसा होगा, यह बाद की बात है लेकिन भारतीय पुलिस सेवा में एक संवेदनशील अधिकारी के तौर पर शिनाख्त रखने वाले विभूति नारायण राय एक स्थापित चोर की रक्षा में अपनी छवि और अस्तित्व को खतरे में क्यों डाल रहे हैं, यह समझ में नहीं आता।
वैसे अपने विभूति भाई खतरों के खिलाड़ी है। साहित्य में भी और जीवन में भी। बहुत साल पहले जब इलाहाबाद में पूर्ण कुंभ हुआ था तो विभूति कुंभ जिले के पुलिस अधीक्षक थे। कानून और व्यवस्था के अलावा उनका काम यह भी था कि मेला परिसर में नशीले पदार्थ न आएं और कोई भी मांसाहारी आहार नहीं लाया जाए। विभूति भाई ने बहुत कृपा कर के कुंभ परिसर में ही तंबुओं के बने अपने बंगले में मुझे ठहराया था और साहित्य की नगरी इलाहाबाद के कई नामी साहित्यकार रोज शाम नियमित तौर पर इस तंबू में जमा होते थे और शराब के लंबे दौरों के बाद मुर्गे पकाये जाते थे। आधी रात के बाद जब यह आतिथ्य संपन्न होता था, तो मोटर बोट में बैठ कर कुछ पुलिस वाले बोतलों और हड्डियों का विसर्जन संगम में कर आते थे।
बगल में तत्कालीन डीआईजी त्रिनाथ मिश्रा का तंबू वाला बंगला था। यह वे ही मिश्रा जी हैं, जो बाद में सीबीआई के डायरेक्टर बने। यह विभूति नारायण राय की बहादुरी की एक कहानी है, जिसमें मुजरिम के तौर पर मैं भी शरीक हूं। इसलिए मुझे हैरत नहीं होती कि अगर विभूति नारायण राय ने अनिल राय अंकित को बचाने का जेहादी रास्ता अपना ही लिया है, तो वे आखिरी दम तक कोशिश करेंगे। मगर विभूति भाई मित्र हैं इसलिए उन्हें बता देना अपना फर्ज है कि जेहादियों का आखिर में होता क्या है? अंकित पुराना चोर है और चोरी के लिए नया ठिकाना तलाश कर लेगा, मगर विभूति भाई आप नाहक शहीद हो जाएंगे।
इसके पहले विभूति नारायण राय ने आलोक तोमर को 23 फरवरी 2010 को फोन किया था। विभूति ने उस दिन आलोक के पोर्टल , अन्य पोर्टल व अखबारों में उनकी निम्न खबर छपने के बाद फोन किया था-
सीएनईबी और राहुल देव का कसूर
-आलोक तोमर
वाराणसी के एक प्रोफेसर ने दिल्ली के टीवी चैनल सीएनईबी और इसके प्रधान संपादक राहुल देव के खिलाफ ब्लैक मेल करने का आरोप लगाया है। अदालत शिकायत की जांच कर रही है और अगर जांच में कोई तत्व पाया गया तो ही राहुल देव और चैनल पर चोर गुरु नाम का धारावाहिक शोध रिपोर्टिंग वाला कार्यक्रम बनाने वाले उनके साथियों संजय देव और कृष्ण मोहन सिंह को तलब किया जाएगा।
सीएनईबी की शोध दरअसल भारतीय शिक्षा जगत में शोध के नाम पर हो रही प्रचंड धोखाधड़ी के खिलाफ अभियान के तौर पर चल रही है मगर मीडिया में विस्फोट करने का दावा करने वाले भाई लोगों का कहना है कि ब्लैकमेलिंग की शिकायत के बाद चैनल के संचालकों ने यह शो बंद करवा दिया हैं। पहली बात तो यह कि यह शो बंद नहीं हुआ है। दूसरी बात यह कि ब्लैकमेलिंग की कोई भी शिकायत देश के किसी भी पुलिस थाने में सीएनईबी या इसके किसी पत्रकार के खिलाफ दर्ज नहीं की गई है। उल्टे चोर गुरु में जो पीएचडी के नाम पर चोरी के खेल बताए गए हैं उनके आधार पर कई विश्वविद्यालयों में जांच शुरू हो चुकी है। इन चोर गुरुओं को नोटिस दिए गए हैं और जवाब मांगा गया है।
पीएचडी और नई किताबों के नाम पर हो रही यह चोरी शर्मनाक भी है और भारतीय शिक्षा व्यवस्था को जड़ से उखाड़ने वाली भी। जब तक यह शो सामने नहीं आया था तब तक कोई नहीं जानता था कि इस देश में ऐसे ऐसे प्रतिभाशाली प्रोफेसर मौजूद हैं जो एक साल में छह छह किताबें अंग्रेजी में लिख सकते हैं और भले ही खुद अपने नाम से एक आवेदन भी शुद्व अंग्रेजी में नहीं लिख सकते हो मगर मोटी मोटी किताबें उनके नाम से छपी हुई हैं और विश्वविद्यालयों में खरीदी गई है।
चोर गुरु पीएचडी के नाम पर होने वाली सरेआम चोरी का पर्दाफाश करने की एक सोची समझी मुहिम है और आसान नहीं है। इन चोरो की किताब ले कर इंटरनेट पर बैठना पड़ता है, उनमें से वाक्य और पैरे सर्च कर के उनके मूल स्रोत का पता लगाना होता है और जब सबूत काफी जमा हो जाते हैं तो न सिर्फ टीवी पर दिखाए जाते हैं बल्कि संबंधित विश्वविद्यालयों को विधिवत इसकी जानकारी दी जाती है।
वाराणसी में कोई अनिल उपाध्याय है जिन्होंने सीएनईबी पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया है। ये उपाध्याय साहब और वाराणसी के ही भूतपूर्व पत्रकार और अब प्रोफेसर राम मोहन पाठक की कृपा से दुनिया के अकेले हिंदी विश्वविद्यालय में विभागाध्यक्ष के तौर पर लगभग लाख रुपए महीने का वेतन पाने वाले एक अनिल अंकित नाम के सज्जन हैं जो सरेआम चोरी यानी बौद्विक संपदा की लूट के अभियुक्त हैं।
राम मोहन पाठक पर इल्जाम है कि उन्होंने नौकरी के लिए अपने जीवन परिचय में गलत और बढ़ा चढ़ा कर जानकारियां दीं। उन पर मूर्ति चोरी का भी आरोप है। अनिल उपाध्याय का अतीत भी बहुत उज्जवल नहीं हैं और उसके प्रमाण सीएनईबी में उपलब्ध है। इन सब भाई लोगों से उनका पक्ष जानने के लिए चैनल ने संपर्क किया था। कई तो सामने नहीं आए और अनिल अंकित ने तो वर्धा में गई टीवी चैनल की टीम को अपने छात्रों से पिटवाने तक की धमकी दे डाली। क्या अनिल उपाध्याय सबूताें के सामने एक पल भी खड़े रह पाएंगे?
वे विदेशी किताबें मौजूद हैं जिनमें कॉमा तक बदले बगैर सीधे अपने नाम से उनकी सामग्री इस्तेमाल कर ली गई है। प्रचंड मूर्खता तो यह है कि शोध हुई यूरोप के किसी देश में और उसे भारत के संदर्भ में बगैर जगहों, संस्थाओं और नामों को बदले सीधे सीधे चिपका दिया गया। एक एक चीज का सबूत है। विस्फोट करने वालों को पता नहीं कहां से यह सुपर खबर मिली है कि चैनल के मालिकों ने इस कार्यक्रम का प्रसारण बंद करवा दिया है। कार्यक्रम बन रहा है, शोध हो रही है और जितने चोर गुरुओं का हो सकता है, कबाड़ा किया जाएगा क्योंकि वे हमारी शिक्षा व्यवस्था का कबाड़ा कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस के बड़े अधिकारी रहे साहित्यकार विभूति नारायण राय अनिल अंकित को नियुक्त करने वाले व्यक्ति हैं। आज से तीन महीने पहले उन्होंने फोन किया था कि आप लोग जो यह दिखा रहे हैं इसके बारे में एक पैरा का सबूत दे दीजिए, मैं दोषी को एक मिनट में बाहर कर दूंगा। उन्हें बाइज्जत चैनल में बुलाया गया, कहा गया कि आप आ कर खुद पूरी शोध और टेप देख लीजिए। वे तैयार भी हो गए। उन्होंने प्रधान संपादक राहुल देव से बात भी कर ली मगर चैनल नहीं पहुंचे।
अब जब बहुत दबाव पड़ा तो अंकित की शोध की जांच करने के लिए उन्होंने एक सदस्यीय जांच कमेटी बनाई और उसके लिए भी वाराणसी से प्रोफेसर सुरेंद्र सिंह कुशवाह को नियुक्त किया और आदेश में यह कही नहीं कहा गया कि जांच कितने समय में पूरी करनी है। हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा शायद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नहीं, भारतीय दंड विधान के आधार पर चलता है।
अनिल अंकित का इंटरव्यू ले कर उसे प्रोफेसर बनाने वाले पैनल में राम मोहन पाठक भी थे जिन पर खुद नकली पीएचडी लिखने, फर्जी कागज बना कर मंदिर की जमीन हड़प करने और काशी विद्यापीठ में किताबों की खरीद में लाखों रुपए का घोटाला करने का आरोप है। आश्चर्य नहीं कि ब्लैकमेलिंग का आरोप भी वाराणसी से आया है। जिस एक और चौर गुरु प्रेम चंद्र पातंजलि ने पूर्वाचल विश्वविद्यालय जौनपुर में कुलपति रहने के दौरान अनिल अंकित को पहले ठेके पर पढ़ाने का काम दिया और फिर पत्रकारिता विभाग का प्रमुख बना दिया। उन्हें इसी हिंदी विश्वविद्यालय के अदृश्य दिल्ली केंद्र में मोटे वेतन पर ओएसडी बनाया गया।
बाद में जब मानव संसाधन मंत्रालय में शिकायत हुई तो पातंजलि की नौकरी चली गई। अंकित की जांच करने वाले सुरेंद्र सिंह कुशवाह जब काशी विद्यापीठ के कुलपति थे तो इन्हीं पातंजलि को बार बार विशेषज्ञ के तौर पर बुलाते थे। उस समय अनिल उपाध्याय पत्रकारिता विभाग के प्रमुख थे और काशी विद्यापीठ शिक्षक संघ के अध्यक्ष भी। इस पूरे घपले का वाराणसी कनेक्शन साफ नजर आ रहा है और पूरे जीवन पुलिस में रह कर कानून की रक्षा करने वाले विभूति नारायण राय शायद अंकित के प्रेम में इतने अंधे हो गए हैं कि उन्हें सामने रखे सबूत नजर नहीं आते और जांच कमेटी बैठानी पड़ती है।
एक और प्रोफेसर अनिल चमड़िया पर इस तरह का कोई आरोप नहीं था और उनकी एक सजग सामाजिक बुद्विजीवी के तौर पर ख्याति भी है, मगर उन्हें हड़बड़ी में बुलाई गई एक बैठक जिसमें ज्यादातर सदस्य गैर हाजिर थे, के बाद बर्खास्त कर दिया गया। सीएनईबी को कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारी मुहिम जारी है और लड़ाई इस पार और उस पार की है। यह लड़ाई समाज के पक्ष में हैं।
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23फरवरी 2010 को विभूति नारायण राय ने आलोक तोमर को फोन किया तो जो पहला वाक्य कहा वह था- आपको तो अपने वि.वि. के दिल्ली सेंटर का प्रभारी बनाने को सोच रहा हूं, आप भी उस गुट में शामिल हो गये ?
आलोक तोमर – किस गुट में ?
विभूति- आप जो लिखे हैं ।
आलोक- क्या सही बात लिखना गुट में शामिल होना है। और जब कोई CNEB NEWS CHANNEL के कार्यक्रम पर ,उसे बनाने वालों पर गलत आरोप लगायेगा तो मैं कैसे चुप रहूंगा । मैं उस संस्था से जुड़ा हुआ हूं। उस कार्यक्रम के बारे में अच्छी तरह जानता हूं।
विभूति- ऐसी बात नहीं है...।
आलोक- आप नकल करके किताबें लिखने वाले चोर अनिल राय अंकित को बदनामी की हद तक बचाने में जुटे हुए हैं। उसको बचाने के लिए तरह-तरह के तर्क गढ़ रहे हैं, तरह-तरह के उपक्रम कर रहे हैं । जबकि पत्रकारीय कर्म, लेखन, शोध,पढ़ाने हर मामले में उत्तम अनिल चमड़िया को आपने अपना अहं तुष्ट करने के लिए एक्जक्यूटिव कमेटी के तथाकथित निर्णय के बहाने निकाल दिया।
विभूति- आप तो पुलिस की भाषा बोल रहे हैं।
आलोक- जो जोभाषा समझता है वह भाषा बोलनी पड़ती है।
विभूति- (बात बदलते हुए) आइये मिलते हैं , बैठकर बात करते हैं।
आलोक – आपके पास जब समय हो तो मिलिएगा , बैठा जायेगा।
Tuesday, April 6, 2010
क्या वी.ब.सिं.पू.वि.वि. का कुलपति भ्रष्टाचारियों को बचा रहा है?
क्या वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर के कुलपति आर.सी. सारस्वत और कुलसचिव बी.एल. आर्य नकल करके किताबें लिखने वाले वि.वि. के अध्यापकों,उनकी नकलचेपी किताबें छापने वाले पब्लिशर/ सप्लायर की करोड़ो रूपये की पुस्तकें खरीद के भ्रष्टाचार को लीपा-पोती कर दबाने की कोशिश कर रहे हैं ?
सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल की टीम ने नवम्बर 2009 के प्रथम सप्ताह में इस बारे में कुलपति आर.सी. सारस्वत और कुलसचिव बी.एल. आर्य से आन कैमरा बात-चीत की थी। दोनो को ही प्रो.रामजी लाल, लेक्चरर एस.के.सिन्हा, और अनिल कुमार राय अंकित(अवैतनिक अवकाश पर) के नकलचेपी कारनामों का प्रमाण दिखाया था।कुलपति ने उनमें से कुछ दस्तावेज के कापी कराकर रख लिय़ा।कुलपति और कुलसचिव के सामने ही प्रो.रामजी लाल और एस.के.सिन्हा से चैनेल की टीम ने उनके नकल के प्रमाण दिखाकर दोनो का वर्सन लिय़ा। जिसमें रामजी लाल केवल हाथ जोड़ते रहे। जिसे “चोरगुरू” कार्यक्रम में दिखाया गया। जिसमें सारस्वत ने आन रिकार्ड कहा था कि वह इस पर जल्दी ही जांच कराकर कार्रवाई करेंगे। लेकिन मिठबोलवा सारस्वत बाद में कुछ किये नहीं, चुप्पी साधे रहे। अध्यापको के इस शैक्षणिक कदाचार और वि.वि.की लाइब्रेरी के लिए करोड़ो रूपये की नकलचेपी पुस्तकों के खरीद के बारे में आर.टी.आई. के तहत सूचना मांगी गई। सारस्वत के वि.वि. ने आज तक एक भी आर.टी.आई. का जबाब नहीं दिया है। सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल ने इसी कुलपति आर.सी.सारस्वत को पत्र लिख कर रामजीलाल, एस.के.सिन्हा और अनिल कुमार राय अंकित के नकलचेपी कारनामों की जांच करा कर शैक्षणिक कदाचार के तहत कार्रवाई करने के लिए पत्र लिखा। लेकिन कुलपति आर.सी.सारस्वत ने कुछ कार्रवाई नहीं कर केवल डाकिया का काम करते रहे। नकलचेपी अध्यापकों को सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल के पत्रो का हवाला देकर दो बार पत्र लिखे कि आप लोग इसका जबाव दें, जिसे सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल को भेजा जा सके। कुलपति बी.एल आर्य ने तो अनिल कुमार राय अंकित के बारे में आन कैमरा कहा कि वह अब यहां नहीं है। जब सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल की टीम ने उनसे पूछा ( यह बात नवम्बर 2009 की है) कि वह तो आपके यहां आज भी अवैतनिक अवकाश पर लेक्चरर है, तो आर्य का जबाब था- एक साल पूरा होने पर अवकाश बढ़ाने के लिए आवेदन देना पड़ता है, उसने अभी तक अवकाश बढ़ाने के लिए आवेदन नहीं दिया है, सो उसकी नौकरी यहां से आटोमेटिक खत्म हो गई है। वह यहां का अब कर्मचारी नहीं है। यह था कुलसचिव बी.एल.आर्य का जबाब। लेकिन हकीकत यह है कि आज दिनांक 06अप्रैल 2010 को भी वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल वि.वि.,जौनपुर के वेवसाइट पर अनिल कुमार राय अकित का नाम वि.वि. के पत्रकारिता विभाग के फैकल्टी मेम्बर के रूप में है। वि.वि. में जिस तरह के भ्रष्टाचार का आरोप है उससे तो यह भी आशंका है कि तमाम तरह के शैक्षणिक कदाचार के आरोपी अनिल कुमार राय अंकित यदि म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा से निकाले गये और वापस पूर्वांचल वि.वि. आये तो उसे वि.वि. अवकाश पिरियड में वापसी दिखा रख लेगा। यह अलग जांच का विषय है कि मैटरचोर शैक्षणिक कदाचारी अनिल कुमार राय अंकित उर्फ अनिल के. राय अंकित एक साथ पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि. रायपुर , दोनो जगह कैसे अवकाश पर है। भयंकर जुगाड़ी अनिल अंकित ने पूर्वांचल के बाद कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि. रायपुर के तत्कालीन भ्रष्टाचार के आरोपी कुलपति जोशी से जुगाड़ लगा वहां रीडर बन कर चला गया। उसके बाद अपने सजातीय पुलिसिया कुलपति की कृपा से म.गां.अं.हि.वि.वि.,वर्धा में प्रोफेसर हो गया। तो यह नकलचेपी शैक्षणिक कदाचारी इस समय वर्धा में है।उसको भी सारस्वत केवल डाकिया की तरह पाती पहुंचवाते रहे। जबकि इसी सारस्वत ने नवम्बर 2009 में आन रिकार्ड कहा था कि अनिल कुमार राय अंकित ने इस वि.वि. में नौकरी करते हुए ये सब किताबें लिखी हैं।उन किताबों के आधारपर आगे रीडर , प्रोफेसर बना है। उनका पी.एफ. वगैरह यहां है। सो उनपर कुछ न कुछ तो होगा ही। लेकिन नवम्बर से अब तक कुलपति और कुलसचिव का इस मामले में जो रवैया रहा उससे अब आशंका हो रही है कि दोनो ही पूर्वांचल में नौकरी के दौरान कई तरह के भ्रष्टाचार आरोपी इस अनिल कुमार राय अंकित को भी हर मामले में बचा रहे हैं।
कुलपति सारस्वत और कुलसचिव आर्य ने इधर एक और कारनामा किया । नकल करके किताब लिखने के आरोपी डा. एस.के.सिन्हा का रीडर पद के लिए साक्षात्कार हुआ था। सिन्हा ने साक्षात्कार में अपनी नकलकरके लिखी होने की आरोपवाली पुस्तक भी रखी थी। कहा जाता है कि उस आधार पर उनका चयन रीडर पद पर हो गया है। सूत्रो का कहना है कि सारस्वत ने सेलेक्शन वाला लिफाफा शनिवार 03 अप्रैल 2010 को खोलवा दिया । जिस पर वि.वि. की एक्जक्यूटिव कमेटी की मुहर लगाकर ज्वाइनिंग करा देनी है। या पहले ज्वाइन करा बाद में मुहर लगवा दी जायेगी।
चूंकि एस.के.सिन्हा पर नकल करके किताब लिखने का भी आरोप है। तो कुलपति को उसे भी रफा-दफा करना होगा। क्योंकि इधर सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल और कई सांसदो के कई पत्र उ.प्र. के राज्यपाल के यहां गये हैं। जिसमें इन शैक्षणिक कदाचारियों , उनकी नकलचेपी पुस्तकें छापने वाले पब्लिशरों , इन पुस्तकों को पूर्वांचल वि.वि. व अन्य जगह सप्लाई करने वाले सप्लायरों,इनको संरक्षण दे रहे कुलपतियो,कुलसचिवो के खिलाफ विजिलेंस जांच कराकर कड़ी कार्रवाई करने की मांग की गई है।
इस वजह से मिठबोलवे कुलपति सारस्वत और कुलसचिव आर्य ने गुप-चुप तरीके से विनयकुमार सिंह की वनमैन जांच कमेटी बना दिया। कमेटी ने शनिवार 03-04-2010 को वि.वि. के गेस्ट हाउस में जाकर कुछ किया भी। लेकिन कुलपति और कुलसचिव ने सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनल को इस जांच कमेटी के सामने रामजीलाल, एस.के.सिन्हा और अनिल कुमार राय अंकित के नकलचेपी कारनामों के प्रमाण लाकर दिखाने के लिए आज 06 अप्रैल 2010 तक पत्र नहीं भेजा। चैनल को जब इस जांच कमेटी की भनक लगी तो अपने स्थानीय रिपोर्टर को 05 अप्रैल2010 को पूर्वांचल वि.वि. भेजा। लेकिन कुलपति या कुलसचिव में से कोई नहीं मिला। रिपोर्टर आज फिर गया। उसने कुलसचिव से इस बारे में पूछा तो कुलसचिव ने उसके साथ बदतमीजी की। जिसपर सी.एनई.बी.चैनल के रिपोर्टर ने उनके कार्यालय में पत्र लिखकर रिसीव करा दिया कि वि.वि. के अध्यापको द्वारा नकल करके पुस्तकें लिखने की जिस जांच कमेटी से जांच कराई जा रही है ,उसके सामने नकलचेपियों के कारनामो का प्रमाण रखने, दिखाने के लिए चैनेल के टीम को भी बुलाया जाय ।इस सब से अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या होने वाला है।
इसतरह कैसे विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति,कुलसचिव आदि शैक्षणिक कदाचारियों को बचा रहे हैं, इस बारे में जानने के लिए देखते रहिए...
Monday, April 5, 2010
क्या म.गां.अं.हि.वि.वि.के कुलाधिपति नामवर,कुलपति विभूति शराब पीते हैं,मांस खाते हैं ?
महाराष्ट्र का वर्धा जिला मोहनदास करम चंद गांधी यानी महात्मा गांधी की कर्म भूमि रही है। महात्मा गांधी मांस,मदिरा खाने –पीने के घोर विरोधी थे।उसी गांधी की कर्म भूमि में ,उसी गांधी के नाम पर बने अंतररष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय का, क्या शराब पीने वाले ,मांस खाने वाले को कुलाधिपति(CHANCELLOR) ,कुलपति (VICE- CHANCELLOR) बनाया जाना चाहिए ?
गांधी हिन्दी के सबसे बड़े पैरोकारों में से थे। वह हिन्दी को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर स्थापित करने की हर संभव कोशिश किये। उन्ही के प्रयास को मानस में रख केन्द्र सरकार ने उनके ही कर्म भूमि वर्धा में , उनके ही नाम पर अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि. खोला । केन्द्रीय विश्वविद्यालय।इस वि.वि. की स्थापना के बिल पर मंजूरी देते समय सांसदो के दिल –दिमाग में यह बात थी कि इस वि.वि. के कुलाधिपति और कुलपति महात्मा गांधी के आचार-विचार और सुचिता के अनुरूप होंगे, उनका मन-बचन-कर्म-खान-पान गांधी के सिद्धान्तो के अनुरूप होगा। वे गांधीवादी तरीके से हिन्दी की राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय छवि बनाये रखने के लायक होंगे। शैक्षणिक कदाचार ,अनैतिकता प्रश्रय देने वाले नहीं होंगे। इसी को ध्यान में रख सरकार ने वर्धा शहर में शराब बिक्री व पीने पर तथा म.गां.अं.हि.वि.वि. में शराब व मांस पर प्रतिबंध लगा रखा है। म.गां.अं.हि.वि.वि., वर्धा के तो एक्ट में है कि वि.वि. परिसर में शराब-मांस की बिक्री व खाना-पीना प्रतिबंधित है।
म.गां.अं.हि.वि.वि., वर्धा के कुलाधिपति हैं नामवर सिंह और कुलपति हैं विभूति नारायण राय ।
क्या कुलाधिपति नामवर सिंह और कुलपति विभूति नारायण राय शराब पीते हैं, मांस खाते हैं ?
Sunday, April 4, 2010
पूर्व कुलपति रमेश चन्द्रा बर्खास्त: शैक्षणिक कदाचार व मैटरचोरी के आरोपी
नकल करके एक साल में 29 किताबें लिखने के आरोपी बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी(उ.प्र.) के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश चन्द्रा को शैक्षणिक कदाचार व नकलचेपी कारनामो के चलते दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.आर.अम्बेडकर सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक ( Pro. RAMESH CHANDRA , DIRECTOR- B.R.AMBEDKAR CENTRE FOR BIOMEDICAL RESEARCH , DELHI UNIVERSITY ) पद व नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया। दिल्ली वि.वि. ने प्रो.रमेश चन्द्रा के शैक्षणिक कदाचार की जांच एक रिटायर जज से कराई ।जिसके बाद रमेश चन्द्रा को बर्खास्त किया गया। इसबारे में जब CNEB न्यूज चैनल की टीम ने दिल्ली वि.वि. के कुलपति , वि.वि. के एक्जक्यूटिव कमेटी के सदस्यों और जज से बात करने की कोशिश की तो सबकेसब कन्नी काट लिये। इस पर आन कैमरा एक भी शब्द बोलने को तैयार नहीं हुए।
मालूम हो कि CNEB न्यूज चैनल ने अपने खोज परक कार्यक्रम “चोरगुरू” के नौंवे एपीसोड में रविवार 13 -12-09 को रात्रि 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में, प्रो. रमेश चन्द्रा के नकल करके किताबें लिखने और अपने नाम छपवाने के कारनामों को सप्रमाण दिखाया था। जिसके आधार पर इन शैक्षणिक कदाचारी चोरगुरूओं के खिलाफ जांच के लिए कई सांसदो ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री,केन्द्रीय शिक्षामंत्री और राज्यपाल को पत्र लिखा है। ज्यादेतर कुलपति तो ऐसे शैक्षणिक कदाचारी चोर गुरूओं, नकल करके लिखी उनकी किताबों को छापने वाले पब्लिशर/ सप्लायरों को अन्दर –अन्दर बचाने की हर तरह से कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस चक्कर में जब उन कुलपतियों की नौकरी पर तलवार लटकने की नौबत आ रही है तो अपना गला बचाने के लिए जांच कराने का उपक्रम कर रहे हैं। इस जांच में भी खेल हो रहा है । कुछ कुलपति तो अपने चहते शैक्षणिक कदाचारी चोरगुरूओं को बचाने के लिए किसी अपने या कदाचारी के पूर्व परिचित व खास को ही जांच कमेटी का अध्यक्ष बना दे रहे हैं ।और कुछ तो उनसे भी एक हाथ आगे जाकर उस प्रोफेसर को जांच सौंप रहे हैं जिसके खिलाफ ही शैक्षणिक कदाचार का आरोप है । राज्यपाल के आदेश से जिसकी विजिलेंस जांच चल रही है।
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” के अगले एपीसोड में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय,झांसी(उ.प्र.) के पूर्व कुलपति प्रो. रमेश चन्द्रा के नकल करके एक साल में 29 किताबें लिखने के काले कारनामों को दिखाया जायेगा। जिस पर पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी की टिप्पणी भी दिखाई जायेगी। प्रो.रमेश चन्द्रा अभी दिल्ली विश्वविद्यालय के बी.आर.अम्बेडकर सेंटर फार बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक ( Pro. RAMESH CHANDRA , DIRECTOR- B.R.AMBEDKAR CENTRE FOR BIOMEDICAL RESEARCH , DELHI UNIVERSITY ) हैं , और उ.प्र. में किसी वि.वि. में कुलपति बनने के लिए जुगाड़ लगाये हुए हैं। चोर गुरू के इस नौंवे एपीसोड में यह दिखाया जायेगा कि पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम ने जब कैमरा के सामने प्रो. रमेश चन्द्रा से उनके नकलचेपी कारनामो के बारे पूछा तो किस तरह पहले तो वह बड़े ही टालू अंदाज में कहे – यह तो एडिटेड बुक है ।फिर जब उनको दिखाया गया कि इसमें एडिटेड बुक का कोई प्रमाण ही नहीं है। केवल उपर एडिटेड बुक लिख दिया गया है। इस किताब के सभी चैप्टर केवल आपने लिखा है । कौन चैप्टर किससे लिखवाया है ,किस लेखक ने लिखा है,उसका डिटेल क्या ,कहीं कुछ नहीं दिया है। न कोई रिफरेंस नहीं और कुछ। यह किताब कई देशी –विदेशी किताबो आदि से पेज के पेज ,चैप्टर के चैप्टर मैटर हूबहू उतार कर बनाई गई है। किस किताब से ,कहां से मैटर हूबहू उतार कर पुस्तक बनाई गई है यह प्रमाण दिखाने पर प्रो. रमेश चन्द्रा ने ठीक वही शब्द कहा जो जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली का नकलचेपी रीडर दीपक केम ने कहा था- यह तो मेरी किताब ही नहीं है। चन्द्रा ने कहा कि इसे तो मैंने लिखा ही नहीं है। इस किताब से तो मेरा कोई लेना –देना ही नहीं है। जब रमेश चन्द्रा से यह पूछा गया कि जब आप की लिखी किताब नहीं है तो प्रकाशक ने आपके नाम से यह पुस्तक छापा कैसे, इतने दिनो से कैसे बेच रहा है, आपने अब तक उसके खिलाफ केस क्यों नहीं किया ? किया तो ,उसका प्रमाण दे दीजिए ? प्रमाण मांगने पर चन्द्रा ने कहा – कहीं होगा। लेकिन प्रो.चन्द्रा ,आपने तो एक साल में 29 तक किताबें लिखी हैं। जो कि कई-कई वालूम में इन्साइक्लोपीडिया के रूप में छपी हैं।उन सभी पुस्तकों के अंतिम कवर पेज के अंदर वाले पेज पर आपका चित्र आपही के बायोडाटा सहित छपा है। इस सवाल पर भी प्रो. चन्द्रा ने झट से कह दिया – वे सब भी मेरी लिखी पुस्तकें नहीं है। यह पूछने पर कि आपके नाम से पुस्तकें छपी हैं आप कह रहे हैं आपकी लिखी नहीं है,आपकी नहीं हैं, फिर किसकी हैं ? इस पर चन्द्रा ने बड़े ही चालाकी वाला जबाब दिया- यह तो आप प्रकाशक से पूछिये। उसके बाद पत्रकारद्वय संजयदेव व कृष्णमोहन सिंह की टीम गई प्रो.रमेश चन्द्रा के पुस्तकों के प्रकाशक – कल्पाज प्रकाशन, ईशा प्रकाशन से जुड़े गर्ग के यहां दरिया गंज ,नई दिल्ली। उनको जब, रमेश चन्द्रा ने जो कहा था वह बताया गया तो उन्होने कहा- क्या पब्लिशर पागल है जो अपने मन से किसी की किताबें छापेगा या किसी के नाम पर किताबें छाप कर बेचेगा।उसे मरना है क्या? गर्ग ने प्रमाण सहित बताया कि जितनी भी ,जो भी पुस्तकें, वालूम की वालूम इनसाइक्लोपीडिया प्रो. रमेश चन्द्रा के नाम से छपी हैं सबका मैटर वही दिये हैं। उन्होने लिखित दिया है कि ये उनकी मौलिक कृति हैं। गर्ग ने जिसकी छायाप्रति आन कैमरा दिया है। चोरगुरू के इसके पहले के एपीसोड में दिखाया जा चुका है कि बुंदेलखंड वि.वि. के एक प्रो. डी.एस.श्रीवास्तव ने कैमरे के सामने कहा है कि रमेश चन्द्रा मैटर लाकर उनको देते थे, कहते थे कि इसमें से मैटर छांट कर उनके ( प्रो. रमेश चन्द्रा) नाम से किताब बना दो, जो मैटर बचे उससे अपने (डी.एस.श्रीवास्तव )और सरिता कुमारी ( प्रो.रमेश चन्द्रा की चचेरी बहन जो इस समय जामिया मिलिया इस्लामिया,दिल्ली में लेक्चरर हैं) के नाम से पुस्तकें बना लो। इस तरह नकल करके पुस्तकें लिखने ,लिखवाने,छपवाने, उन्हे बिकवाने,एक दूसरे को मदद पहुंचाने, नौकरी –संरक्षण देने-दिलानेवाले कुलपतियों, मैटरचोर मौसेरे प्रोफेसर,रीडर,लेक्चरर भाइयों का विश्वविद्यालयों में बड़ा रैकेट बन गया है। जिसका भंडापोड़ CNEB न्यूज चैनेल पर “चोरगुरू” कार्यक्रम में हो रहा है। यह कार्यक्रम रविवार 13 -12-09 को रात्रि 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा।
Saturday, April 3, 2010
न्यायालय ने म.अं.हि.वि.वि. से अनिल चमड़िया मामले में 3 हप्ते में जबाब मांगा
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय ने वि.वि. से पत्रकारिता के प्रोफेसर अनिल चमड़िया को नौकरी से निकाल दिया । उसके लिए उन्होने पहले तो वि.वि.के एक्जक्यूटिव कांउसिल की बैठक में अनिल चमड़िया की नियुक्ति वाली फाइल को ओ.के.नहीं कराया। उसके बाद यह कहकर कि एक्जक्यूटिव कांउसिल ने अनिल चमड़िया की नियुक्ति पर मंजूरी नहीं दी, उनको (अनिल चमड़िया) वि.वि. से सेवा समाप्ति की पाति दिलवा दी। जिसके खिलाफ अनिल चमड़िया ने नागपुर के न्यायलय में केस दर्ज करा दिया ।जिसमें वि.वि. के चांसलर नामवर सिंह, वाइस चांसलर विभूति नारायण राय, रजिस्ट्रार कैलाश खामरे को पार्टी बनाया गया है। नोटिस जारी हुई। जिसकी पहली सुनवाई दिनांक 30 मार्च 2010 को हुई। जिसमें वि.वि. के वकील ने कहा कि अनिल चमड़िया की योग्यता प्रोफेसर पद के लायक नहीं थी, वह केवल ग्रेजुएट हैं। जिसपर अनिल चमड़िया के वकील ने कहा कि वि.वि. के विज्ञापन को देखकर चमड़िया ने बाकायदे आवेदन किया था। जिसको देखने और योग्य पाने पर वि.वि. की स्क्रीनिंक कमेटी ने उनका नाम संस्तुत किया। फिर उनका साक्षात्कार हुआ। जिसमें उनका सर्वसम्मत से सेलेक्शन हुआ। इसलिए वि.वि. का आज यह कहना कि अनिल चमड़िया के पास प्रोफेसर पद की योग्यता नहीं है , सरासर गलत है। वह प्रोफेसर पद की सारी क्राइटेरिया पूरा करते हैं। और पत्रकारिता में प्रोफेसर पद के लिए डिग्री की बाध्यता भी नहीं है।
जिसपर वि.वि. के वकील ने कहा कि नागपुर हाईकोर्ट के आदेश से अनिल चमड़िया को नौकरी से निकाला गया। इस पर अनिल चमड़िया के वकील ने प्रमाण दिखाया और कहा कि नागपुर हाईकोर्ट ने तो इस तरह का कोई आदेश ही नहीं दिया है। वहां तो वि.वि. ने ही अनिल चमड़िया की नौकरी समाप्ति वाला पत्र जमा करके कहा कि उनकी सेवा समाप्त कर दी गई, इसलिए केस खत्म किया जाय ( एक व्यक्ति ने अनिल चमड़िया की नियुक्ति मामले में केस दायर किया था। जिस पर वि.वि. को नोटिस जारी हुई थी। वि.वि. ने अनिल चमड़िया की नियुक्ति को जायज न बता यह कहा कि वि.वि. से गलती हुई है, उसके बाद पुलिसिया कुलपति ने अनिल चमड़िया को नौकरी से निकालने का उपक्रम किया। वह करने के बाद कोर्ट में पत्र जमा करा दिया कि अनिल चमड़िया की सेवा समाप्त कर दी गय़ी , सो केस बंद किया जाय)।
इसपर माननीय न्यायालय ने वि.वि. को इस मामले में तीन हप्ते में अपना पक्ष रखने को कहा। अगली तारीख तीन हप्ते बाद है।
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