IIT-BHU के निवर्तमान निदेशक एस.एन. उपाध्याय व सहयोगी लाबी को एक झटका लगा। इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेंट के हेड के.पी. सिंह को 1 फरवरी 2010 को IIT-BHU के निदेशक बनने पर रोक लगाने के लिए इस लाबी के तथाकथित मिशन के लोग इलाहाबाद उच्चन्यायालय में याचिका दायर किये थे। जिस पर 29 जनवरी 2010 को कोर्ट ने स्टे देने से मना कर दिया। इनकी यचिका खारिज कर दिया। कहा विजिटर(राष्ट्रपति) के यहां जाइये।
Saturday, January 30, 2010
के.पी. के खिलाफ उपाध्याय लाबी को नहीं मिला स्टे
IIT-BHU के निवर्तमान निदेशक एस.एन. उपाध्याय व सहयोगी लाबी को एक झटका लगा। इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेंट के हेड के.पी. सिंह को 1 फरवरी 2010 को IIT-BHU के निदेशक बनने पर रोक लगाने के लिए इस लाबी के तथाकथित मिशन के लोग इलाहाबाद उच्चन्यायालय में याचिका दायर किये थे। जिस पर 29 जनवरी 2010 को कोर्ट ने स्टे देने से मना कर दिया। इनकी यचिका खारिज कर दिया। कहा विजिटर(राष्ट्रपति) के यहां जाइये।
Friday, January 29, 2010
IIT -BHU निदेशक पद पर के .पी. की नियुक्ति रोकवाने उपाध्याय लाबी गयी कोर्ट
-सत्ताचक्र गपशप-
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,वाराणसी एक्जक्यूटिव काउंसिल ने बीते माह हुई बैठक में, आई.आई.टी. के निदेशक पद पर नियुक्ति के लिए ,विश्वविद्यालय के इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेंट के हेड के.पी. सिंह के नाम पर मुहर लगा दिया । जो निवर्तमान निदेशक एस.एन.उपाध्याय से 1 फरवरी2010 को पदभार लेगें। लेकिन के.पी. सिंह को किसी भी हालत में निदेशक नहीं बनने देने के लिए कटिबद्ध निवर्तमान निदेशक उपाध्याय व इलेक्ट्रानिक्स विभाग के एक भू ने मिलकर पहले तो दिल्ली में जबरदस्त लाबिंग की। जिसमें प्रचारित किया गया कि IIT-BHU को फुल फ्लैज IIT बनाने का काम उपाध्याय बेहतर कर सकते हैं । सो उनको ही अभी निदेशक पद पर एक्सटेंशन दे दिया जाय या एक नोडल बना उसका इंचार्ज बना दिया जाय। फिर जब फुल फ्लैज IIT बन जाय तो उसका निदेशक नियुक्त कर दिया जाय। इस तरह 8 माह बाद रिटायर होने वाले उपाध्याय जी की निगाह 5 साल और नौकरी का समय बढ़ जाने तथा IIT बनाने के लिए मिलने वाले 500 से 1000 करोड़ रूपये के ग्रांट पर है। लेकिन दिल्ली में जब दाल नहीं गली तो उनकी नियुक्ति पर स्टे के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस दायर करवा दिया। जिसकी तारीख आज है।जिसमें तर्क दिया गया है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ,वाराणसी एक्जक्यूटिव काउंसिल ने कम अनुभव वाले के.पी. सिंह को निदेशक बनाकर गलत किया, सो उनकी नियु्क्ति पर रोक लगाई जाय। इधर इलेक्ट्रानिक्स विभाग के एक भू प्रोफेसर ने दिल्ली के एक बड़े अखबार समूह के एक अंग्रेजी चैनेल के वाराणसी के सजातीय संवाददाता के मार्फत के.पी. सिंह के खिलाफ खबर लगवाने की कोशिश शुरू किया है। उस संवाददाता ने गुड ...से अभिवादन करने के नियम वाले एक चिट फंड कंपनी के हिन्दी टी.वी.चैनल के जौनपुर संवाददाता से फोन करके कहा कि के.पी. सिंह जब पूर्वांचल वि.वि. जौनपुर में कुलपति थे उस दौरान उनपर जो-जो आरोप लगे थे उसके कागजात एक दिन के भीतर उपलब्ध करा दो। उसे 30 या 31 जनवरी 2010 को टेलिकास्ट कराना है। जौनपुर के उस रिपोर्टर ने कहा कि नकल करके एक दर्जन के लगभग अंग्रेजी और हिन्दी में पुस्तकें अपने नाम छपवा लेने वाले चोरगुरू अनिल के. राय अंकित( जो पूर्वांचल वि.वि. ,जौनपुर में लेक्चरर अवैतनिक अवकाश पर है, और अपने सजातीय कुलपति विभूति नारायण राय की चाह से म.अं.हि.वि.वि. वर्धा में प्रोफेसर व हेड हो गया है) ने नकल करके लिखी अपनी एक किताब के.पी. सिंह को समर्पित की है। मैटर चोर अनिल राय अंकित ने यू.जी.सी. के मेजर प्रोजेक्ट में भी फ्राड किया है। दिल्ली के जिस प्रकाशन व सप्लायर के यहां उसकी नकलचेपी किताबे छपी हैं, उस सप्लायर से वि.वि. में अपनी 100 के लगभग अति मंहगी किताबें सप्लाई करवाया है। उसके और भी धतकर्म हैं। उस सब पर दस्तावेज भेज रहा हूं , अच्छी स्टोरी बनेगी।जौनपुर के रिपोर्टर की बात सुनकर भू पत्रकार हें..हें...हें. करने लगा
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Wednesday, January 27, 2010
पुलिसिया कुलपति V.N.RAI ने अनिल चमड़िया को नौकरी से निकाला, विरादर मैटर चोर को गले लगा बचाया
महात्मागांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.,वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूतिनाराय़ण राय ने पत्रकारिता विभाग के प्रोफेसर अनिल चमड़िया को आज रात्रि साढ़े सात बजे सेवा समाप्ति का पत्र दिलवा दिया। उन्होने इसके लिए आधार बनाया है कि 13 जनवरी 2010 को दिल्ली में हुई एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक में अनिल चमड़िया की नियुक्ति पर मुहर नहीं लगी। सो उनकी सेवा समाप्त की जाती है। सूत्रो के मुताबिक विभूति नारायण राय ने सोची-समझी चाल के तहत पूरी एक्जक्यूटिव काउंसिल बनाये बिना ही ,अधूरी एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक कराकर उसमें अनिल चमड़िया की नियुक्ति पर खुद ही काउंसिल की सहमति की मुहर नहीं लगने दिया, कह दिया कि इनका मामला चल रहा है। जबकि इसी विभूति राय ने अपने विरादर व चहेते, नकल करके एक दर्जन के लगभग पुस्तकें अपने नाम छपवा लेने वाले अनिल कुमार राय "अंकित"( Dr. ANIL K. RAI "ANKIT") की नियुक्ति पर यह कह कर मुहर लगवा लिया कि इनकी नियुक्ति पर अभी मुहर लगा दिया जाय,इनके बारे में जो नकल करके किताबें लिखने की शिकायत आई है उसकी जांच हो जायेगी। तो इस तरह इस पुलिसिया कुलपति ने मैटर चोर अनिल के. राय अंकित को बचाने और अनिल चमड़िया को निकालने की चाल चली। और फिलहाल तो उसमें कामयाब हो गया।लेकिन सेवा समाप्ति के खिलाफ अनिल चमड़िया न्यायालय में जा रहे हैं। सूत्रो के अनुसार इधर पुलिसिया कुलपति की कोशिश अपने चहेते मैटर चोर विरादर के खिलाफ 6 माह और कुछ भी नहीं करने की है। बहुत लिखित शिकायत मिलने के बाद दिखावा के लिए अपने हां में हां मिलानेवाले घनिष्ट की अध्यक्षता में एक जांच कमेटी बनवा उससे 6 माह बाद रिपोर्ट दिलवाने और उस रिपोर्ट को काफी दिन तक दबाये रखने का खेल होगा। तब तक तो मैटर चोर अनिल के. राय अंकित का प्रोबेशन का 12 माह 17 जुलाई 2010 को पूरा हो जायेगा।
अनिल चमड़िया को निकालने, सजातीय मैटरचोर अनिल राय को बचाने की V.N.RAI की चाल
तब लाली पार्टियों (वामपंथी दलो) के सहयोग से चल रही यू.पी.ए.-1 सरकार में कामरेड नेताओ,तथाकथित वामपंथी कवियों,शिक्षाविदो आदि से जुगाड़ लगवा महात्मा गांधी अंतरर्राष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.,वर्धा में कुलपति बन गये महाजुगाड़ी पुलिसवाले विभूति नारायण राय ( V.N.RAI ) के कारनामे एक –एक करके सामने आने लगे हैं। पहले तो इस पुलिसिया कुलपति ने नई एक्जक्यूटिव काउंसिल नहीं होने के आड़ में कुलपति पद के आपातकालीक पावर का उपयोग करके तरह –तरह की मनमानी किया।जिसमें तरह-तरह के आरोपी सजातीय मैटर चोर से लगायत वामपंथी कवियों,आलोचको के चाऱण कीर्तनियों , यू.जी.सी.के अफसरों आदि तक के लोगो को नौकरी पर रखा, जगह-जगह सेंटर खोला, सेमिनार-सेमिनार शुरू किया। पुलिसिया कुलपति ने वि.वि. को अपनी जेबी थाना की तरह चलाने और इस तरह के कारनामे शुरू किया तो ये सब मीडिया में भी आने लगा। जिसे दबाने के लिए ये तरह-तरह के पुलिसिया अनुभव, लतवाला उपक्रम करने लगे । उसी क्रम में बिना पूरी एक्जक्यूटिव काउंसिल के गठन के ही उन्होने 13 जनवरी 2010 को दिल्ली में अधूरी नई एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक करा कर उसमें अपनी सभी मनमानी पर मुहर लगवा ली। एक्जक्यूटिव काउंसिल में म.अं.हि.वि.वि.,वर्धा के जो 10 डीन,प्रोफेसर,रीडर आदि सदस्य होने चाहिए उनमें से किसी को नहीं रखा। यानी इन्टरनल कमेटी बनाये बिना ही एक्जक्यूटिव काउंसिल की 13 जनवरी को बैठक कर ली। इस पुलिसिया कुलपति द्वारा एक केन्द्रीय वि.वि.को अपने जेबी थाने की तरह चलाने का यह एक प्रमाण है। जो सुनाम धन्य लोग इस पर ऐतराज किये बगैर पुलिसिया कुलपति के हर हां में हां मिलाये और मुहर लगाये उनके बारे में विस्तार से जानकारी बाद में। उसी मुहर लगवाने में पुलिसिया कुलपति ने अपने चहेते सजातीय मैटर चोर ( नकल करके एक दर्जन पुस्तकें लिखने व अन्य शैक्षणिक कदाचार के आरोपी) अनिल कुमार राय अंकित(Dr. ANIL K. RAI ANKIT) की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति पर मुहर लगवा दिया। लेकिन अनिल चमड़िया की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति पर मुहर नहीं लगवाया। सूत्रो के मुताबिक - कहा कि अनिल चमड़िया पर कई मामले हैं। सूत्रों के अनुसार पुलिसिया कुलपति ने यह कराने के बाद, अब एक चिट्ठी तैयार कराने की योजना बना रहा है। जिसमें यह होगा कि अनिल चमड़िया की नियुक्ति पर एक्जक्यूटिव काउंसिल ने मंजूरी नहीं दी ,इसलिए उनकी सेवा समाप्त की जाती है। सूत्रो का कहना है कि पुलिसिया कुलपति ने नागपुरवासी एक भाषाशास्त्री से और दिल्ली के एक पत्रकार से भी कहा था कि अनिल चमड़िया की तो छुट्टी करूंगा। पुलिसवाले के चहेतो व कीर्तनियों का कहा यदि सच है तो अनिल चमड़िया को पुलिसिया कुलपति आज-कल में सेवासमाप्ति का पत्र दिलवा देगा।
Tuesday, January 26, 2010
क्या पुलिसिया कुलपति द्वारा अधूरी कार्यकारिणी की कराई बैठक अवैध है ?
क्या महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय( Vibhuty Narayan Rai / V.N.RAI ) ने 13 जनवरी 2010 को दिल्ली में वि.वि. की एक्जक्यूटिव काउंसिल की जो बैठक कराई, वह अधूरी कार्यकारिणी परिषद की बैठक थी ? और यदि यह अधूरी कार्यकारिणी की बैठक थी तो यह बैठक और उसमें किये गये सभी निर्णय अवैध हो सकते हैं। यदि उस अधूरी कार्यकारिणी की बैठक और उसके निर्णयों पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अफसर ध्यान दिये बिना राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिये, और उस पर राष्ट्रपति की मंजूरी की मुहर लग भी जाये तो भी न्यायालय में उसको चैलेंज किया जा सकता है। दोष कुलपति और मंत्रालय के अफसरों पर आयेगा।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के दिनांक 28-12-2001 के पत्रांक सं. F 26 – 21/2001 DESK (U ) के अनुसार महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी परिषद के निम्न सदस्य होंगे-
1-कुलपति
2-प्रति कुलपति
3-कुलपति द्वारा मनोनीत दो डीन
4-दो विभागाध्यक्ष
5-एक प्रोफेसर
6-एक रीडर
7-एक लेक्चरर
8-कुलाध्यक्ष द्वारा मनोनीत वि.वि. के न्यायालय के दो सदस्य
9-कुलाध्यक्ष द्वारा हिन्दी भाषा,साहित्य, संस्कृति,अनुवाद आदि क्षेत्र से 6 सदस्यों का मनोनयन
10-कुलाध्यक्ष द्वारा सूचना व संचार तकनीकी का एक विशेषज्ञ
इस तरह एक्जक्यूटिव काउंसिल के कुल 18 सदस्य
होंगे,तब पूरी एक्जक्यूटिव काउंसिल बनती है।
और 18 सदस्यों की एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक बुलाने पर यदि उसमें से 6 सदस्य भी उपस्थित होते हैं तब एक्जक्यूटिव काउंसिल का कोरम पूरा माना जाएगा।
लेकिन पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने तो नियमानुसार 18 सदस्यों की एक्जक्यूटिव काउंसिल का गठन किये बिना ही इसका(एक्जक्यूटिव काउंसिल का) दिल्ली में बैठक कराके अपने आपातकालीक शक्ति का प्रयोग करके किये मनमानी काम पर मुहर लगवा लिया।
बैठक में कुलाध्यक्ष द्वारा मनोनीत 7 सदस्यों में से केवल 6 सदस्य प्रो.रामकरन शर्मा, मृणाल पाण्डेय,डा.एस.थंकामुनियप्पा, प्रो.कृष्णकुमार, गंगा प्रसाद विमल, डा.एस.एन राय, आये थे। एक सदस्य विष्णुनागर पहली बैठक के पहले ही इस्तीफा दे दिये। पुलिसिया कुलपति विभूति नारायण राय की अध्यक्षता में बैठक हुई। उन्होने जो समझाया, ये नये बने 6 सदस्यों ने उस पर सहमति की मुहर लगा दिया। इस तरह 7 लोग मिलकर एक्जक्यूटिव काउंसिल की बैठक कर लिये और पीछले काफी दिनो से किये पुलिसिया कुलपति के सभी कर्मो को अपनी सहमति की मुहर लगा कर जायज ठहरा दिये। 6 सुनाम धन्यों में से किसी ने भी जांचने पूछने की जरूरत महसूस नहीं की। नकलकरके एक दर्जन के लगभग पुस्तकें अपने नाम छपवालेने वाले अनिल के.राय अंकित ( Dr. ANIL K. RAI ANKIT) को प्रोफेसर नियुक्त करने के मामले में भी 6 सुनामधन्यो में से किसी ने यह नहीं कहा कि इस नकलचेपी के नकल के बारे में मीडिया में इतना आ रहा है, कई जगह लिखित शिकायत भी गई है, तो पहले इसकी जांच कराई जानी चाहिए,उसके बाद इसके नियुक्ति पर एक्जक्यूटिव काउंसिल अपनी सहमति की मुहर लगायेगी। पुलिस से कुलपति बने विभूति राय ने सबको समझा दिया कि एक कमेटी बनाकर इसकी जांच करायेंगे, अभी तो इसकी नियुक्ति की मंजूरी दे दी जाय। तो पुलिसिया कुलपति की बात पर राजी हो कर 6 सुनामधन्यो ने नकलचेपी अनिल कुमार राय की नियुक्ति पर मंजूरी दे दी। लेकिन उसी विभूति नारायण राय ने अनिल चमड़िया की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति की संस्तुति नहीं कराई। कह दिया कि इनके बारे में कम्प्लेन आई है,मामला चल रहा है।
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Saturday, January 23, 2010
का गुरू ,का राममोहन पाठक चोरगुरू हैं ? देखें CNEB पर
-सत्ताचक्र-
CNEB न्यूज चैनल पर दिखाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम चोरगुरू के चौदहवें एपीसोड में, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ के महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान संकाय के प्रोफ़ेसर राममोहन पाठक (PRO.RAM MOHAN PATHAK) के नकलचेपी आदि बहुआयामी कारनामे, रविवार दिनांक 24 जनवरी 2010 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जायेगा।
जिसमें है किस तरह चोरी की बुनियाद पर शोधार्थी राममोहन पाठक ने पीएचडी की डिग्री हासिल की और फिर किस तरह झूठ और भ्रष्टाचार करते हुए सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते रहे, झूठे बयान देकर मकानों की खरीद-फ़रोख्त करते रहे।
इसमे पहले है जब राममोहन पाठक शोधार्थी थे, तब के कारनामे। राममोहन पाठक (RAM MOHAN PATHAK )ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू से सन् 1983 में पूर्णकालिक शोधार्थी के रूप में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उनके गाइड और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ विजय पाल सिंह ने उनके पूर्णकालिक रुप से काम करने और मौलिक शोध करने का प्रमाणपत्र दिया है।
यहीं से शुरू होता है झूठ का सिलसिला। रीडर और प्रोफ़ेसर पद के लिए काशी विद्यापीठ में दिये अपने बायो डाटा में इसी काल में अखबारों में काम करने का दावा किया है राममोहन पाठक ने। यानी एक तरफ़ वे जिस अवधि में पूर्णकालिक शोधार्थी थे, उसी अवधि में वे एक अखबार समूह में पूर्णकालिक पत्रकार के रूप में भी कार्यरत थे। इतना ही नहीं, सन् 1973 से लेकर 1987 तक आज अखबार में संपादक होने का दावा भी किया गया है इन्हीं काग़ज़ात में। और यह झूठ है। इसी तरह के और भी कई छोटे झूठ इन दोनों बायो डाटा में है।
प्रोफ़ेसर पद पर नियुक्ति के लिए राममोहन जी के नाम की संस्तुति करने वालों में एक थे देश के जाने माने पत्रकार वेद प्रताप वैदिक। लेकिन उन वैदिक जी को ज़रा भी अंदाज़ नहीं रहा होगा कि उनकी बहुचर्चित किताब हिंदी पत्रकारिताः विधिध आयाम से अनेक अहम विश्लेषणों को इन्हीं रांममोहन जी ने चुरा कर अपना शोध प्रबंध तैयार किया था। वैदिक जी जब राममोहन की यह करामात देखे तो सन्न रह गये।
इस एपीसोड में आगे दिखाया गया है-शोधार्थी राममोहन पाठक के शोध की मौलिकता के दावे का झूठ। वेद प्रताप वैदिक जी ने दो साल के अथक परिश्रम और कोई पचास लोगों की टीम के सहयोग से हिंदी पत्रकारिता के विविध आयामों पर सन् 1976 में 974 पेज की किताब लिखी। किताब के महत्व का अंदाज़ इसी से लगा लीजिये कि इसका विमोचन राष्ट्रपति भवन में लगभग संपूर्ण कैबिनेट की मौजूदगी मे हुआ था।
वैदिक जी की किताब के चौथे अध्याय का पहला लेख है समाचार और उसका संपादन और इसके लेखक हैं प्रेमनाथ चतुवेर्दी। लेख में समाचार की कुछ परिभाषाएँ दी हैं। विलार्ड ब्लेयर की परिभाषा को शोधार्थी राममोहन ने दो परिभाषाएँ बनाकर पेश किया है। इसी तरह मूल किताब में तीसरी परिभाषा है चिल्टन बुश की। उसे भी शोधार्थी राममोहन ने तोड़ कर दो जुदा परिभाषाओं का रूप दिया है। इन सभी परिभाषाओं के लिए शोधार्थी राममोहन ने किसी का नाम देना मुनासिब नहीं समझा। अंत में जिस अंश को उन्होंने प्रेमनाथ चतुर्वेदी से लिया दिखाया भी है, वह वास्तव में प्रेमनाथ जी के लेख में शिकागो के दो पत्रकारों के नाम से दर्ज है।
दूसरों के मौलिक निष्कर्षों को किस तरह शोधार्थी राममोहन पाठक ने निर्लज्जता से अपना बना कर पेश किया अपनी पीएचडी की थीसिस में, अब इसका एक उदाहरण —
वैदिक जी की किताब के दूसरे अध्याय में श्री लक्ष्मीशंकर व्यास का लेख है उत्तर प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता। व्यास जी राममोहन जी के वरिष्ठ रहे हैं। उनके इस लेख में लिखा है—“उत्तर प्रदेश की हिंदी पत्रकारिता की एक प्रमुख विशेषता उसकी क्रांतिकारी पत्रकारिता ही है।”
चतुर शोधार्थी राममोहन ने इसे अपना बनाकर उतार लिया लेकिन मौलिकता के नाम पर उत्तर प्रदेश की जगह लिख दिया काशी। इसी तरह कुछ लाइनों बाद जहाँ मूल लेख में व्यास जी ने लिखा है—ब्रिटिश सरकार—वहाँ प्रतिभाशाली शोधार्थी राममोहन ने मौलिक होने के लिए लिख दिया—अंग्रेज़ी हुकूमत। और इस तरह तैयार हो गया इस मौलिक शोध का पूर्णकालिक शोध का एक और मौलिक पैराग्राफ़।
ऐसे तमाम उदाहरण हैं राममोहन पाठक के इस मौलिक शोध में।
इस तरह नकल करके पीएच.डी. की डिग्री लेने वालों के बारे में काशी विद्यापीठ के शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष उदित नारायण चौबे का कहना है-—..... पीएचडी की थीसिस कैंसिल होनी चाहिए।....
सोमवार 11 जनवरी 2010 को जब सीएनईबी के वाराणसी संवाददाता जगदीश मोहन और कैमरामैन को, काशीविद्यापीठ,वाराणसी के महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान में भेजकर, दिल्ली से संजय देव ने जगदीश के फ़ोन के माध्यम से डॉ राममोहन पाठक से बात करनी चाही और उनसे बात करने की कोशिश की तो पहलीबार तो राममोहन ने जगदीश मोहन से बड़ी-बड़ी बातें करके कन्नी काट लिया।जगदीश और कैमरा मैन वापस आ गये। तब.संजयदेव ने जगदीश से दुबारा पत्रकारिता संस्थान में जाने और वहां राममोहन के सामने मोबाइल फोन का स्पीकर आन करके आन कैमरा बात कराने को कहा ।फिर जगदीश गये और फोन पर बताये कि सर, राममोहन सर सिर हिला रहे हैं।इधर से कहा गया कि जगदीश जी आप अपने फोन का स्पीकर आन कीजिए और उसे राममोहन के सामने ले जाइये।इधर से संजय ने पूछा कि राममोहन जी क्या आपको मेरी आवाज सुनाई पड़ रही है ? जिस पर जगदीश ने बताया कि राममोहन सर कान पर हाथ रखकर इशारा कर रहे हैं कि कह दो नहीं सुनाई पड़ रहा है।तब संजय ने कहा कि फोन उनके कान के नजदीक ले जाओ।फिर संजय ने सवाल किया कि राममोहन जी आपने नकल करके अपनी पीएच.डी. शोधप्रबंध लिखी है ,उसके पेज फलां का मैटर यहां से उतारा है,इस पर आपका क्या कहना ? उधर से जगदीश मोहन ने बताया कि सर,राममोहन सर हाथ जोड़ रहे है,और इशारा कर रहे हैं कि बात नहीं करेंगे। तब संजय ने कहा कि उनसे कह दो कि यदि वह बात नहीं करना चाहते हैं तो हम बिना उनके वर्सन के ही कार्यक्रम दिखाने को बाध्य होंगे। जगदीश ने उनसे यह बात कही। उसके बाद राममोहन उठकर अपने कमरे का ताला बंद किये और विभाग से बाहर भाग गये।
उसके बाद काशी विद्यापीठ के कुलपति के यहां एक पत्र फैक्स करके आग्रह किया गया कि राममोहन से कहें कि वह CNEB के लिए चोरगुरू कार्यक्रम बना रही टीम को आन कैमरा साक्षात्कार दें। लेकिन कुलपति के यहां से भी इस संबंध में 23 जनवरी 2010 सायं 5 बजे तक तो कोई सूचना नहीं आई थी।
इन डॉ राममोहन पाठक ने अपने शोध प्रबंध में पंडित अंबिका प्रसाद वाजपेयी की किताब से भी इसी तरह चुराया है। जब ये काशी विद्यापीठ में पुस्तकालयाध्यक्ष थे, तो तमाम नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए किताबों की खरीद-फ़रोख्त की। जाँच हुई, दोष सिद्ध हुए, बड़ी जाँच की संस्तुति तक हुई। लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। वर्तमान कुलपति अवध राम जी के लिए रुतबेदार, पहुँच वाले इन पाठक जी के खिलाफ़ कोई कार्रवाई करना अभी तक संभव नहीं हो पाया है।
ऐसे नकलचेपी और तरह-तरह के कदाचार के आरोपी शिक्षक के बारे में कबीर मठ के महंत विवेकदास, धर्माचार्य अविमुक्तेशवरानंद,सम्पूर्णानंद संस्कृत वि.वि.शिक्षक संघ के महामंत्री डा. हरिप्रसाद अधिकारी ने कड़ी टिप्पणी की है ।
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Friday, January 22, 2010
नियम है 8, नकलचेपी अनिल अंकित 12 को करा रहा पी.एच-डी. ?
THE GAZETTE OF INDIA, JULY 11,2009 , PART-III-SEC-4 , PAGE 4053 पर UNIVERSITY GRANTS COMMISSION ,
REGULATION,2009 ,
NEW DELHI-110002,THE 1ST JUNE 2009
शीर्षक से छपे गजट के 7 वें नम्बर के सामने जो कुछ लिखा है उसके अंत में लिखा है- A SUPERVISER SHALL NOT HAVE, AT ANY GIVEN POINT OF TIME, MORE THAN EIGHT Ph.D. SCHOLARS AND FIVE M.Phil. SCHOLARS.
यह नियम यू.जी.सी. का है। लेकिन, , नकल करके एक दर्जन के लगभग अंग्रेजी व हिन्दी में पुस्तकें अपने नाम छपवालेने के आरोपी प्रोफेसर -हेड अनिल कुमार राय अंकित/Dr. ANIL K. RAI ANKIT (जनसंचार विभाग , महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी
सूत्रो के मुताबिक इस नकलचेपी के अंडर में वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उ.प्र.) में इसके लेक्चरर रहने के दौरान जो छात्र पीएच.डी. के लिए रजिस्टर्ड हैं उनके नाम हैं-
1-सुधीर राय रेंटल ( यह दिल्ली के एक प्राइवेट कालेज, टेकनिया इंस्टीट्यूट में पढ़ाते हैं)
2-प्रदीप राय ( इनको अंकित ने यू.जी.सी.के एक मेजर प्रोजेक्ट में फेलो बना दिया और उसकी नियुक्ति से एक साल बैक डेट से सेलरी दिलाने की धांधली किया) ।
3-अमित राय
4-जावेद अहमद
5-अनंत श्रीवास्तव
राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ओपेन यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद में भी अनिल के.राय अंकित के अंडर में 2 छात्रों का पीएच.डी. का रजिस्ट्रेशन है ।
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) के जनसंचार विभाग में नकलचेपी अनिल के. राय अंकित अपने अंडर में निम्न 5 छात्रों को पीएच.डी. करा रहा है -
1-भाल चन्द्र देविदास ( दिनांक 21-08-2009 से)
2-बच्चा बाबू ( दिनांक 03-12-2009से)
3-रमेश चन्द्र पाठक ( दिनांक 03-12-2009से)
4-गजेन्द्र प्रताप सिंह ( दिनांक 03-12-2009से)
5-हिमांशु नारायण ( दिनांक 03-12-2009से)
इस तरह नकलचेपी अनिल के.राय अंकित के अंडर में कुल 12 शोध छात्र, दिनांक 03-12-2009 तक ,पीएच.डी. के लिए रजिस्टर्ड रहे हैं। सूत्रो के अनुसार 17 जनवरी 2010 तक तो संख्या यही थी, आज कितनी है यह तो नकलचेपी प्रो. अनिल के. राय और उसको प्रोफेसर – हेड बनानेवाले व बचाने में हर स्तर पर उतर आये, पुलिस से कुलपति बने सजातीय विभूति नारायण राय (V. N. RAI , vibhuti narayan rai ) ही बता सकते हैं।
अनिल के. राय अंकित के अंडर में पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर में पीएच.डी. कर रहे शोध छात्रों में से एक ने अपना शोध-प्रबंध जमा कर दिया है , जिस पर इसी 18 जनवरी 2010 को वाइवा हुआ है। जिसमें गाइड नकलचेपी अनिल के. राय अंकित तो नहीं गया, लेकिन उसके तरह-तरह के कर्मो के मार्गदर्शक व तरफदार रहे प्रदीप माथुर गये थे। नियमत: जब तक किसी शोध-छात्र को पीएच.डी. की डिग्री एवार्ड नहीं हो जाती तब तक उसकी सीट खाली नहीं मानी जाती।यानी तब तक उसका गाइड किसी और छात्र को उसकी जगह अपने अंडर में पीएच.डी. के लिए नहीं रख सकता है।
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*नकलची प्रोफेसरो की पुस्तको का सालाना 300 करोड रू.क...
Thursday, January 21, 2010
NCERT DIRECTOR - अनिता के लिए बोर्डिया भी लगे
दिल्ली विश्वविद्यालय की डा. अनिता रामपाल को NCERT का निदेशक बनवाने के लिए प्रो. यशपाल व NCERT के निवर्तमान निदेशक कृष्णकुमार तो जी-जान से लगे ही हुए हैं, पूर्व शिक्षा सचिव अनिल बोर्डिया भी पूरी ताकत के साथ लग गये हैं। ये तीनो अच्छी तरह जानते हैं कि अनिता पर एक साथ दो जगह नौकरी करते हुए तनख्वाह लेने, शैक्षणिक,नैतिक कदाचार के गंभीर आरोप हैं। इन तीनों तथाकथित सुनामधन्य शिक्षाविदो के रिकमेंडेशन व सिफारिश को सिर – माथे लगा सर्च कमेटी के दो महानुभावों ने 18 जनवरी 2010 को पूना में हुई बैठक में किस तरह अनिता के नाम के लिए पूरा जोर लगाया और तर्क दिया इसका विस्तृत विवरण जानने के लिए देखते रहिए सत्ताचक्र।
Wednesday, January 20, 2010
IIT-BHU निदेशक पद पर प्रो.के.पी.सिंह की नियुक्ति रूकवाने के लिए लाबिंग
-सत्ताचक्र गपशप-
सूत्रो के मुताबिक IIT-BHU के निवर्तमान निदेशक, जो 1 फरवरी 2010 को पदमुक्त होने वाले हैं ( उनसे चार्ज प्रो. के.पी.सिंह को मिलेगा, जिसका निर्णय पीछले दिनों बी.एच.यू. एक्जक्यूटिव कमेटी की बैठक में हुआ। उस बैठक में के.पी. सिंह का नाम निदेशक पद के लिए ओ.के. कर दिया गया ) , एन-केन-प्रकारेण IIT-BHU पर अपना कब्जा बनाये रखने के लिए बीते एक हप्ते से जोर-शोर से लाबिंग कर रहे हैं । इसके लिए वह और उनके कुछ सजातीय ,कुछ भू-धातु के सहयोगी जी-जान से जुटे हुए हैं। इनमें कुछ लोग केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के यहां सिफारिश लगाने के लिए अपने जाति के कांग्रेसी मैनेजरों के यहां दिल्ली में कई दिनों से साष्टांग कर रहे हैं। कई हप्ते के चिंतन-मनन के बाद इस मंडली ने एक नई थीयरी इजाद की है। यह थियरी है -स्मूथ टेक ओवर थियरी। इसमें फार्मूला बनाया गया है – IIT-BHU को IIT बनाने के लिए एक नोडल बफर बनाओ। उसका सर्वेसर्वा उसी निदेशक को एक्सटेंसन देकर बना दो जो 1 फरवरी 2010 को पद मुक्त होने वाला है। फिर जब IIT-BHU को फुलफ्लैज IIT बनाने की घोषणा हो , 500 या 1000 करोड़ रूपये बजट दिया जाय तो उसके साथ ही इस नोडल के सर्वेसर्वा को ही IIT का निदेशक घोषित कर दिया जाय।
लेकिन यह हुआ तो एक बार संसद से लेकर सड़क तक हंगामा तो होना तय है। क्योंकि ऐसा होने पर IIT एक स्वतंत्र ईकाई हो जायेगी। BHU में होते हुए भी BHU से ऊपर हो जायेगी। उसके निदेशक की सेलरी BHU के कुलपति से भी अधिक हो जायेगी। आज आई.आई.टी. अलग होगा , कल मेडिकल अलग होगा , परसो मैनेजमेंट अलग होगा, नरसो एग्रीकल्चर अलग होगा तो बचेगा क्या। और सबसे बड़ी बात तो यह होगी कि महामना मदन मोहन मालवीय ने भीख मांगकर इतना बड़ा विश्वविद्यालय बनवाया ,उन्होने उस समय आर्वाचीन से लगायत पुरातन तक के तमाम विषय की पढाई शुरू कराई ,एक दूसरे विषयों के तुलनात्मक अध्ययन, शोध आदि के लिए एक जगह व्यवस्थित सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई , उस मालवीय की पूरी अवधारणा को ही यह करके ध्वस्त करने की साजिश रची जा रही है। यदि नया आई.आई.टी. नाम देकर उसे BHU से अलग किया गया तो इस विश्वविद्यालय के सभी पुराने व नये छात्र आंदोलन छेडेंगे। IIT बनाने, BHU से अलग करने से से यहां के छात्र बहुत उम्दा नहीं हो जायेंगे । विश्व के टाप 10 में से एक मैनेजमेंट गुरू रामचरण इसी BHU के इंजीनियरिंग कालेज के पढ़े हुए हैं।उसी इंजीनियरिंग कालेज का नाम बाद में बदलकर IIT-BHU किया गया। और अब उसको BHU से ही अलग करने की साजिश की जा रही है। जो लोग यह मांग कर रहे हैं यदि वे सचमुच ही बड़े प्रतिभाशाली प्रोफेसर या वैज्ञानिक हैं तो देश-विदेश में अपने सम्पर्कों के बदौलत धन इकट्ठा करके मालवीय जी की तरह बड़ा विश्वविद्यालय नहीं सही, एक नया IIT ही खड़ा कर लें। ऐसा करके देश में एक उम्दा उदाहरण पेश करें। उसकी तो औकात है नहीं चाटुकारिता, सिफारिश,घनघोर जुगाड़ के बदौलत मोटी मलाई वाला पद पाने की हवस जरूर है।
Sunday, January 17, 2010
अनिता को NCERT का निदेशक बनवाने के लिए लाबिंग कर रहे यशपाल,कृष्णकुमार
दिल्ली विश्वविद्यालय में भ्रष्टाचार के एक मामले की आरोपी डा.अनिता रामपाल को NCERT का निदेशक बनवाने के लिए प्रो.यशपाल और प्रो. कृष्णकुमार ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। यहां का निदेशक पद कुलपति के रैंक का होता है। निवर्तमान कुलपति प्रो.कृष्णकुमार एक्सटेंसन पर चल रहे हैं। उनकी चाहत अनिता हैं। बुजुर्ग यशपाल की चाहत भी अनिता हैं।सूत्रों के मुताबिक दोनो ने ही अनिता के लिए अपने जुगाड़ दाव पर लगा दिया है। सूत्रो का कहना है कि इसके लिए इनने सेक्रेटरी स्कूल अन्शु वैश्य और प्रो.मृणाल मिरी से कहा है। NCERT का निदेशक खोज कमेटी बनी है उसमें अन्शु वैश्य , प्रो.मृणाल मिरी, प्रो. जयन्त नार्लिकर और हैदराबाद के एक प्रोफेसर हैं । इसकी बैठक दिनांक 18 जनवरी 2010 को पूना में हो रही है।सूत्रो के मुताबिक हैदराबादवाले प्रोफेसर देश से बाहर हैं । सो केवल अन्शु वैश्य , प्रो.मृणाल मिरी, प्रो. जयन्त नार्लिकर ही बैठक कर सूची बना सकते हैं। कहा जाता है कि प्रो.यशपाल और प्रो. कृष्णकुमार की लाबिंग के चलते अन्शु वैश्य और प्रो.मृणाल मिरी का बहुमत तो डा. अनिता रामपाल का नाम सूची में निश्चित ही डलवा देगा। चर्चा है कि अनिता के पति भी इस पद के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं। जहां तक अनिता पर आरोप का सवाल है तो वह पहले लाल बहादुर शास्त्री नेश्नल एकेडमी में थी।वहां से NOC और रिलिविंग आर्डर लिए बगैर ही 2002 में दिल्ली वि.वि. में नौकरी ज्वाइन कर लीं। यहां और वहां दोनो जगह से सेलरी लेती रहीं। जब एकेडमी ने दिल्ली वि.वि. को लिखकर पूछा कि क्या अनिता रामपाल आपके यहां नौकरी कर रही हैं।उसके बाद राज खुला। फिर लालबहादुर शास्त्री एकेडमी ने उस दौरान दी सेलरी अनिता से रिकवरी किया। कहा जाता है उससे संबंधित फाइल दिल्ली वि.वि. से गायब करा दिया गया है। तो ऐसी धांधली की आरोपी मैडम अनिता रामपाल यदि प्रो.यशपाल और प्रो. कृष्णकुमार की कृपा और लाबिंग से NCERT की निदेशक बन गईं तो क्या गुल खिलायेंगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि यहां तो बजट बहुत है और अनिता पर वित्तिय व नैतिक कदाचार का जो आरोप है उसके मद्देनजर तो यहां बहुत कुछ गुल खिल सकता है।
तथाकथितकुटिल कुटियाला कुलपति पद के ज्वाइनिंग लेटर के लिए बेचैन
-सत्ताचक्र गपशप -
भयंकर जुगाड़ी बी.के.कुटियाला यानी बृजलाल कुटियाला ,इनके सताये लोगो के मुताबिक कुटिल कुटियाला , गुरू जम्बेश्वर वि.वि. हिसार (हरियाणा)से रिटायर होने के बाद घनघोर जुगाड़ लगाकर कुरूक्षेत्र वि.वि. कुरूक्षेत्र (हरियाणा) के जनसंचार विभाग में कांट्रैक्ट पर निदेशक बन गये। सूत्रो के मुताबिक वहां जाकर ऐसा कुटिल चाल चले कि लम्बे समय से वहां लेक्चरर –हेड रहे आशुतोष मिश्रा को परेशान होकर इस्तीफा देकर भागना पड़ा। बताया जाता है कि मिश्रा कि सगी पंजाबी पत्नी भी वहीं पढ़ाती हैं लेकिन उनको कुटियाला ने प्रश्रय दिया। लोग तो तरह-तरह की बातें करते हैं पर इसके पीछे क्या वजह रहा यह तो वही लोग बतायेंगे। कहा जाता है कि कुटियाला एन्थ्रोपोलाजी से एम.ए. हैं, लेकिन उसमें अंक 55 प्रतिशत से कम बताया जाता है। आज तक पी.एच-डी. नहीं किये हैं। किताब आदि लिखने में भी इनकी बहुत रूची नहीं रही। कहा जाता है कि इनकी महारत जुगाड़ कला में है, जिसके बदौलत कुर्सी पाते गये। इसके लिए हरियाणा और हिमाचल के भाजपा नेताओं का कीर्तन और गणेश परिक्रमा करते रहे हैं।सजातीय नेताओं आदि के यहां भक्तिभाव से हाजिरी बजाते रहे हैं।जिसके चलते यह, बौद्धिक ऊंचाई में पैदल होते हुए भी, भाजपा के जाति विशेष गुटबाज नेताओं की निगाह में प्यारे एकेडमिशियन हो गये हैं। सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश से राज्य सभा सांसद प्रभात झा बड़े ही गंभीर मुद्रा में संघ के एक सज्जन से हाल ही में कहे थे- माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल का कुलपति कोई एकेडमिशियन होगा। सूत्रो का कहना है कि इस वि.वि. के कुलपति पद के लिए जो तीनजन की सर्च कमेटी बनी थी उनमें तीनो ही ब्राह्मण थे।उनने ब्राह्मण का नाम रिकमेंड किया। और मध्यप्रदेश के बाहर के उस ब्राह्मण ने कुलपति बनने के लिए हरियाणा ,हिमाचल के कई केन्द्रीय भाजपा नेताओं, नेत्रियों के यहां कुलपति बनवाने के लिए साष्टांग किया, और अब जल्दी से जल्दी नियुक्ति पत्र जारी करवाने के लिए साष्टांग कर रहे हैं। कहा जाता है कि सर्च कमेटी में रहे दो महानुभाव भी उस सजातीय के लिए खूब लाबिंग किये और कर रहे हैं। इन सबकी कोशिश है कि एक ब्राह्मण के नाम पर बने इस पत्रकारिता वि.वि. का कुलपति प्रदेश के बाहर का कोई ब्राह्मण ही हो।और उसको जल्दी से जल्दी ज्वाइनिंग लेटर मिल जाय। जहां तक मध्यप्रदेश के इस पत्रकारिता वि.वि. कुलपति पद के लिए मध्यप्रदेश के ही किसी के योग्य व्यक्ति का सवाल है तो यदि वि.वि. के चांसलर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मन से ढ़ूंढ़े तो दिल्ली से थोपे जाने वाले कुटियाला जैसे थोथे से लाख गुना बेहतर बीसीयों व्यक्ति मिल जायेंगे। एक नाम तो और मध्यप्रदेश से ही दिल्ली आकर धारदार हिन्दी पत्रकारिता का झंडा गाड़े प्रख्यात पत्रकार प्रभाष जोशी के पटु शिष्य मध्यप्रदेश के ही भिंड क्षेत्र की उपज आलोक तोमर हैं। हिन्दी में एम.ए.में 70 प्रतिशत का उनका गोल्ड रिकार्ड ग्वालियर वि.वि. में आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है। उन्होने पी.एच-डी. तो नहीं किया है, लेकिन मन से किये उनके एक-एक काम दसीयों पी.एच-डी. पर भारी पड़ेंगे।पत्रकारिता की प्रिंट,टेलिविजन,इंटरनेट तीनो विधा में उनकी महारत है। फिल्मों के बादशाह अमिताभ बच्चन से लगायत कई सीरियल के महानायकों के लिए स्क्रीप्ट लिखे हैं। मनसे किसी विषय पर लिख दें तो किसी कुटियाला को केवल उस तरह लिखने में ही कई जनम लग जायेंगे।जिन नेताओं से भाई लोग कुलपति बनने के लिए जुगाड़ लगवा रहे हैं उनसबसे आलोक की अच्छी पहचान है। और वह पहचान काम के बदौलत है, चाटुकारिता के बदौलत नहीं। इन सभी भाजपा नेताओं के पुरोधा अटल बिहारी वाजपेयी तो आलोक तोमर को पुत्रवत मानते रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री होने के चलते इस वि.वि. के चांसलर शिवराज को तो मध्यप्रदेश के आलोक तोमर जैसे को कुलपति पद देने से ज्यादा दिल्ली में लोकसभा में महत्वपूर्ण पद पर बैठे किसी भाजपाई व उसकी मंडली के किसी बाहरी कीर्तनी को देना लाभदायक लग रहा होगा। क्योंकि अपने राजनीतिक लाभ के लिए घर का सोना गोबर , बाहर का गोबर सोना।
Saturday, January 16, 2010
चोरगुरू अनिल जायेगा तो दूसरा अनिल भी जायेगा
- -सत्ताचक्रगपशप-
बात बहुत पुरानी नही है। वामपंथियों के सहयोग से चल रही यू.पी.ए.-1 की सरकार के समय एक तथाकथित वामपंथी विचारधारावी साहित्यकार होने का दावा करने वाले घनघोर जुगाड़ी पुलिसवाले महानुभाव, महात्मागांधी के नामपर बने एक केन्द्रीय वि.वि. में जुगाड़ लगाकर कुलपति हो गये। होने के बाद अपने सजातीय एक भयंकर नकलचेपी को वि.वि.के एक विभाग में प्रोफेसर नियुक्त करा हेड बना दिया। उस नकलचेपी के नकल करके लगभग एकदर्जन पुस्तकें लिखने के कारनामे मीडिया में लगातार आने के बाद भी वह पुलिस से कुलपति बने महानुभाव मैटर चोर को ठीक उसी तर्ज पर बचाने लगे जैसे कोई पुलिसवाला अपने चहेते चोर को बचाता है। और कोई व्यक्ति उस चोर के खिलाफ प्रमाण बताता है, केस दर्ज करने के लिए कहता है तो पुलिस वाला उल्टे उस व्यक्ति को ब्लैकमेलर कहने लगता है, उल्टे उस व्यक्ति को ही फंसाने की कोशिश करता है। पुलिस वाले से कुलपति बने यह महानुभाव नवम्बर 2009 के प्रथम सप्ताह में दिल्ली आये थे और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में ऱूके थे। इस महानुभाव ने एक पत्रकार को लगभग 5 साल बाद अपने काम से फोन किया। लेकिन बात बनाते हुए कहा- आप से मिले बहुत दिन हो गया, आइये बैठते हैं , बात करते हैं। फिर वह महानुभाव अपने मूल बात पर आये जिसके लिए फोन किये थे। बकौल उस पत्रकार – कहा समय मिला तो आता हूं, लेकिन जा नहीं पाया। पुलिस से कुलपति बने महानुभाव ने उस पत्रकार से कहा – आप मेरे यहां आइये, प्रोफेसर बना देता हूं। पत्रकार ने कहा कि पी.एच-डी. नहीं हूं। जिस पर पुलिस से कुलपति बने महानुभाव ने कहा- उसकी जरूरत नहीं है( इस पुलिस से कुलपति बने व्यक्ति को पता नहीं मालूम है या नहीं कि जिसको प्रोफेसर बनने का प्रलोभन दे रहे थे वह पत्रकार चाहते तो कुलपति बन सकते थे)।9 साल तक रहे एक केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री और दो प्रधानमंत्री से उस पत्रकार के पारिवारिक संबंध रहे हैं और तीनो ही उनको बहुत ज्यादा मानते रहे हैं) । पुलिस से कुलपति बने महानुभाव की उस पत्रकार से और भी बाते हुईं,उसके बाद पुलिस वाले ने उनसे उनके एक वरिष्ठ का फोन नम्बर लेकर और भी करामात किया जिसे जरूरत पड़ने पर बाद में दिया जायेगा। तो पुलिस कुलपति ने उस पत्रकार से आगे बातचीत में अपने सजातीय चहेते नकलची के बारे में भी बात किया,और कहा कि वह (मैटर चुराकर अपने नाम एक दर्जन तक पुस्तकें छपवा लेने वाला) तो कह रहा है कि जो भी मैटर उतारा है वह देशी –विदेशी किताबों का इंटरनेट पर उपलब्ध फ्री का मैटर है। जिस पर पत्रकार ने कहा- आप और वह चाहे जो भी तर्क दें, मैंने खुद अपनी आंखो से देखा है कि चोर ..ने एक –एक किताब से 40 -40 पेज तक मैटर हूबहू उतारकर अपने नाम से छपवा लिया है।... जिस पर पुलिस कुलपति ने कहा था..... यदि वह (मैटर चोर यानी नकलची)अनिल जायेगा तो दूसरा अनिल (उसी विभाग में नियुक्त) भी जाएगा।
इस पुलिस से कुलपति बने महानुभाव ने डेढ़ हप्ते पहले फिर उस पत्रकार को फोन किया था और कहा कि मेरे दिल्ली सेंटर का प्रभारी बन जाइये, इसे खोलने की मंजूरी मिल गई है। जिस पर पत्रकार का जबाब रहा – पहले सेंटर खोल लीजिए फिर बात कीजिएगा।
Friday, January 15, 2010
क्या भ्रष्टाचार के आरोपी कुटियाला को शिवराज ने बना दिया कुलपति ?
सूत्रो के मुताबिक बी.के. कुटियाला (बृज किशोर कुटियाला) ने 14 जनवरी 2010 की रात में हिसार (हरियाणा) के एक व्यक्ति को फोन करके कहा – माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल में कुलपति पद पर मेरी नियुक्ति हो गई है, ज्वाइनिंग लेटर एक-दो दिन में मिल जायेगा।
कहा जाता है कि भ्रष्टाचार के आरोपी कुटियाला को कुलपति बनवाने के लिए राधेश्यामशर्मा, नन्दकिशोर त्रिखा और सच्चिदानंनद जोशी ने सर्च कमेटी का मेंम्बर होने के नाते सूची में नाम डाला। सूत्रों के अनुसार राधेश्याम शर्मा और नन्दकिशोर त्रिखा ने इस भ्रष्टाचार के आरोपी को कुलपति बनवाने के लिए जोरदार लाबिंग की। मध्य प्रदेश में चर्चा है कि बिहार से मध्य प्रदेश में जाकर पहले संघ और अब भाजपा की सेवा के नाम पर राज्य सभा सांसदी का मेवा काट रहे प्रभात झा ने पहले तो अपने सजातीय एसमैन और महाजुगाड़ी सच्चिदानंनद जोशी को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल में कुलपति बनवाने की पुरजोर कोशिश की । लेकिन राज्य के जब कुछ भाजपा- संघ नेताओं ने जोशी के इस वि.वि. में रजिस्ट्रार रहते हुए घोटालों की बात बतानी शुरू की, और कुछ जगह छपा, तो उनको ( जोशी)मा.प.वि.वि.कुलपति सर्च कमेटी का मेम्बर बनवा उनके मार्फत अपने किसी कीर्तनी एसमैन का नाम रिकमेंड कराने और कुलपति बनाने की जुगत बैठाई गई। सच्चिदानंद जोशी को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि., रायपुर कुलपति पद पर एक टर्म और दिलवाने की जुगत भिड़ाई जा रही है। सूत्रो के मुताबिक इसके लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह से भी राज्यपाल के यहां सिफारिश कराने की कोशिश हो रही है। खेल यह है कि भोपाल और रायपुर दोनो जगह ही कुलपति अपने एसमैन कीर्तनी और वह भी ब्राह्मण बनें।
हां तो बात कुटियाला की। कुटियाला जी एन्थ्रोपोलाजी में एम.ए. हैं। उसमें उनका मार्क 55 प्रतिशत है भी या नहीं कुछ दिन में पता चल जायेगा। वैसे उन्होने मैसूर वि.वि. के प्रो.एन.नागराज के अंडर में पी.एच.डी. करने के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था लेकिन कर नहीं पाये। आज तक उन्होने शायद कोई किताब भी नहीं लिखा है। हिसार में थे तो उन्होने जो-जो- कर्म किये उसको अब भी वहां के शिक्षक और कर्मचारी भूले नहीं हैं। वैसे तो माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल में कुलपति बनने के लिए किसी योग्यता की जरूरत नहीं है, वहां के लिए आज की तारीख में सबसे बड़ी योग्यता जुगाड़ व बिना रीढ़ का होना है।और रीढ़विहिन जीव ब्राह्मण हो तो अति उत्तम। कुटियाला में क्या-क्या गुण हैं यह तो उनका नाम बढ़ाने वाले जानें, लेकिन यह तो तय है कि इस विश्वविद्यालय से आज विदा हो रहे कुलपति (खबर लिखते समय उनका विदाई समारोह हो रहा है) अच्युतानंद मिश्र का जो कद था उसके पसंगे भी कुटियाला नहीं हैं। अच्युतानंद के कुलपति रहते माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल के कुलपति पद की गरिमा बढ़ी। अच्युतानंद ने कुलपति बनने के बाद इस वि.वि. में पहले से चल रहे जबरदस्त लूट पर लगाम लगाई। इसके जहां-जहां- सेंटर चल रहे थे वहां 50 छात्रों के एडमिशन का परमिशन वि.वि. से रहता था। लेकिन भाई लोग 100 छात्रों तक का एडमिशन कर लेते थे। सूत्रो के अनुसार इसमें से परमिशन से 50 अधिक बच्चों के एडमिशन की धांधली से जो धन बनता था वह वि.वि. के कुलपति, अफसरों , शिक्षा विभाग के आलाअफसर , राजनीतिक आकाओं में बंट जाता था। अच्युतानंद ने कुलपति बनने के बाद इस लूट तंत्र की कमर तोड़ दी। जांच कराकर 200 सेंटर को निरस्त कर दिया। ऐसा होने पर वि.वि. के भ्रष्ट अफसरों,अध्यापकों, उनके संरक्षक सत्ताधारी नेताओं और आला अफसरों की पहले की तरह काली कमाई बंद हो गई। इससे ये सबकेसब गोलबंद होकर अच्युतानंद मिश्र को परेशान करना शुरू किये। लेकिन अच्युतानंद का कद राज्य के किसी भी सत्ताधारी नेता व अफसर से ऊंचा था। सो जब कुछ बिगाड़ नहीं पाये तो वि.वि. के विकास के लिए सालाना 25 लाख रूपये फंड सरकार से नियमत: जो मिलने चाहिए उसे रोक दिया गया। सरकार ने अच्युतानंद के कुलपति रहते 5 साल में सालाना 25 लाख रू. ( यानी कुल 1 करोड़ 25 लाख रू.) नहीं दिया।क्यों नहीं दिया, वि.वि. के चांसलर मुख्मंत्री शिवराज सिंह चौहान इसका जबाब बेहतर तरीके से दे पायेंगे। शायद उन्होने खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे वाला काम किया। शिवराज ने एक काम और काम किया- पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी को 09 जनवरी 2010 को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल द्वारा दिल्ली में डि.लिट. की उपाधि दिया जाना था । कहा जाता है कि शिवराज को लगा कि यदि 09 को वाजपेयी जी को डि.लिट. की उपाधि दिया गया तो कुलपति अच्युतानंद मिश्र पूरा श्रेय ले जायेंगे। सो किसी बहाने कार्यक्रम स्थगित करा दिया गया।और कहा गया कि वाजपेयी जी को डि.लिट. उपाधि देने का कार्यक्रम फरवरी 2010 में होगा।यानी इस तरह 16 जनवरी 2010 से जो नया कुलपति आयेगा उसके हाथो डि.लिट. उपाधि दिलवाने का खेल। लेकिन अच्युतानंद मिश्र , 5 साल कुलपति रहते बहुत सारे विकास के कार्य और कर्मचारियों को परमानेंट कराने के बाद भी, वि.वि. के श्रोत से ही जो 90 करोड़ रूपये वि.वि. के खाते में जमाकराकर जा रहे हैं , वह अपने आप में एक नजीर है।प्रमाण है। नया कुलपति यदि सत्ताधारी नेताओं, नौकरशाहों का एसमैन कीर्तनी होगा तो कुछ समय में ही पता चल जायेगा कि सूचिता के झंडाबरदार पार्टी के लोगों की चाहत कैसी थी और है।
कुलपति जी,भाग रहे प्रो.राम मोहन से बात करने को कहें
कुलपति,
महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ,
वाराणसी।
प्रिय महोदय,
आप जानते ही हैं कि चोरी करके किताबें लिखने वाले शिक्षकों के कारनामों को उजागर करने वाला कार्यक्रम “चोर गुरू” हमारे चैनल द्वारा पिछले दो माह से प्रत्येक रविवार को दिखाया जा रहा है। इस सिलसिले में हमारी विशेष टीम के दो सदस्य संजय देव और कृष्णमोहन सिंह गत नवंबर माह में आपसे आपके आवास पर मिले भी थे और आपको अनेक चोर गुरुओं के कारनामे दिखाये भी थे, उनमें से एक चोर गुरू आपके ही संस्थान के थे—डॉ अनिल उपाध्याय, जिसपर आपने कड़ी कार्रवाई का वायदा भी किया था।
आपके संस्थान के ही एक वरिष्ठ शिक्षक डॉ राममोहन पाठक के बारे में भी हमारी चोर गुरू टीम ने कुछ प्रमाण जुटाये हैं। .........इसके अलावा भी और कई मुद्दों पर हमारी टीम डॉ राममोहन पाठक से बात करना चाहती है।
इसी बीच में डॉ राममोहन ने एक दिन फ़ोन करके मुझसे कहा था कि वे चैनल की टीम से बात करने के लिए तैयार हैं।..... दो दिन से हमारे वाराणसी स्थित संवाददाता ...और दिल्ली से संजय देव डॉ रांममोहन पाठक से फ़ोन पर बात करने की असफल कोशिश कर रहे हैं। अंततः आज सोमवार 11-01-2010 को सुबह हमारे संवाददाता जगदीश मोहन ने विश्वविद्यालय परिसर जाकर डॉ राममोहन से बात करने की कोशिश की लेकिन वे बातचीत से कतराते रहे। उनसे बार-बार अनुरोध किया गया .......लेकिन वे बिना बात किये ही निकल भागे।
हम आभारी होंगे यदि लोकहित में आप डॉ राममोहन पाठक को प्रेरित करें कि वे हमारी कैमरा टीम का सामना करें और अपने शोध - प्रबन्ध को सामने रखकर बात करें ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। ऐसा न होने की स्थिति में हम बिना उनका बयान शामिल किये ही अपना कार्यक्रम दिखाने को बाध्य होंगे।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ,
प्रदीप सिंह
राजनीतिक संपादक
सीएनईबी न्यूज
Thursday, January 14, 2010
चोरगुरू का 14 वां एपीसोड रविवार 24-01-10 को, इस रविवार 17 को अवकाश
CNEB न्यूज चैनल पर हर रविवार रात 8 से साढ़े आठ बजे के स्लाट में दिखाया जा रहा खोजपरक कार्यक्रम “ चोर गुरू ” का 14 वां एपीसोड अगले रविवार 24 जनवरी 2010 को दिखाया जायेगा। इस कार्यक्रम की पुरोधाटीम, राम व तुलसीदास की पसंदीदा स्थली मंदाकिनी किनारे चित्रकूट में विचरण करती हुई मकर संक्रांति आदि मना रही है। सो इस रविवार (दिनांक 17-01-2010) अवकाश। तब तक सुधिद्रष्टाजन खुद भी मनन करें कि चौर्यकला महारथी सफेदपोश गुरूओं व उनके घाघ दोरंगे संरक्षकों की अच्छी पूजा आदि की उन्हे भी कुछ पहल करनी चाहिए या नहीं ?
Tuesday, January 12, 2010
इतना कीचड़ लेकर मैं क्या करूंगी – मृणाल पाण्डेय
शोभना भरतिया के हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान में हाल तक प्रधान सम्पादक रहीं मृणाल पाण्डेय (MRINAL PANDEY) से एक संवाददाता ने उनके घर के लैंडलाइन वाले वाले नम्बर पर दिनांक 12 जनवरी 2010 को सायं 5 बजकर 27 मिनट पर बात की। बात देशी –विदेशी प्रोफेसरों, विद्वानो, संस्थाओं के पुस्तकों,शोध-पत्रों आदि से मैटर हूबहू उतारकर अपने नाम पुस्तकें लिखने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों,रीडरों, लेक्चररों व उनको संरक्षण दे रहे कुलपतियों के बारे में और इस रैकेट में शामिल पब्लिशरों,सप्लायरों के मार्फत सालाना लगभग 500 करोड़ रूपये के ऐसे पुस्तकों का विश्वविद्यालयों की लाइरेब्रेरियों में सप्लाई के धंधे पर मृणाल पाण्डेय के साक्षात्कार के बावत हुई। जिस पर मृणाल ने कहा- मेरी इसमें रूचि नहीं है।
सवाल- ठीक है आप इस पर साक्षात्कार मत दीजिए , कल जहां आप एक बैठक में जा रही हैं उससे संबंधित एक ऐसे नकलचेपी प्रोफेसर अनिल कुमार राय अंकित( Dr. ANIL K. RAI ANKIT) के नकल करके लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखने का प्रमाण आपके यहां भेजा जा रहा है , उसे आप देख लीजिएगा।
जबाब- इतना कीचड़ लेकर मैं क्या करूंगी ।
सवाल- कल ( दिनांक 13-01-2010) आप महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की एक्जक्यूटिव कमेटी की बैठक में जा रही हैं, आप उसकी सदस्य हैं, उसमें उसी कीचड़ पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगायेंगी क्या ? क्योंकि नकल करके एक दर्जन के लगभग किताबें लिखने वाले अनिल के. राय अंकित के जिस नकल के सबूत को आप कीचड़ कह रही हैं , उसी अनिल के. राय को उस वि.वि. में कुछ माह पहले प्रोफेसर व हेड नियुक्त किया गया है।
जबाब- .......चुप्पी..।( फोन कट गया)।
नकलची की नियु्क्ति पर मुहर लगायेंगे कृष्णकुमार,मृणाल,गंगा,रामकरन ?
एक्जक्यूटिव कमेटी से विष्णु नागर ने दिया इस्तीफा
-सत्ताचक्र-
महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ( महाराष्ट्र) के नये बने एक्जक्यूटिव कमेटी से पत्रकार व साहित्यकार विष्णुनागर ने पहली बैठक के पहले ही इस्तीफा दे दिया । वजह चाहे जो हो लेकिन यह तो तय है कि कोई भी नियम-कानून के प्रति संवेदनशीलऔर भ्रष्टाचार – कदाचार से घृणा करने वाला व्यक्ति किसी संस्था व उसके संचालक के इस तरह के कर्मो वाली फाइल पर अपनी हामी की मुहर लगाने के बजाय ऐसी कमेटियों से बाहर हो जाना अच्छा मानता है। वर्धा के इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय के नये बने एक्जक्यूटिव कमेटी में प्रो.रामकरन शर्मा, मृणाल पाण्डेय,डा.एस.थंकामुनियप्पा, प्रो.कृष्णकुमार, गंगा प्रसाद विमल, डा.एस.एन राय और विष्णुनागर( इन्होने इस्तीफा दे दिया) हैं। इसकी पहली बैठक दिनांक 13 जनवरी 2010 को दिल्ली में हो रही है। सूत्रो के मुताबिक इसमें विश्वविद्यालय के पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण( V.N.RAI ) राय द्वारा आपातकालीशक्ति का प्रयोग कर किये गये तथाकथित तमाम मनमानी पर आलराइट की मुहर लगनी है। इसमें सबसे प्रमुख है देशी-विदेशी प्रोफेसरो,वैज्ञानिको,संस्थाओं आदि के पुस्तकों,शोध पत्रों, साइटों से मैटर, चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर अंग्रेजी और हिन्दी में एक दर्जन से अधिक पुस्तकें अपने नाम से छाप लेने वाले नकलचेपी अनिल कुमार राय उर्फ अनिल के. राय अंकित की पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर व हेड पद पर नियुक्ति। इसके नकलचेपी कारनामों के बारे में सप्रमाण CNEB न्यूज चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” में दो बार दिखाया भी जा चुका है। जल्दी ही इसके अन्य कारनामो व इसको बचा रहे कुलपतियों के कारनामो के बारे में कुछ सबूत आने वाले हैं।पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर से इसको इसके नकलचेपी कारनामो के बारे में नोटिस देकर जबाब मांगा गया है।एक नोटिस का जबाब नहीं दिया तो दूसरी नोटिस 04-01-2010 को इसके नाम गई है। अनिल के. राय अंकित ने अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय , रीवा (म.प्र.) के बी.जे.एम.सी. के पाठ्यसामग्री का फिल्म वाला एक पूरा चैप्टर हूबहू उतारकर अपने नाम से लिखी संचार के सात सोपान नामक पुस्तक का एक चैप्टर ही बना दिया है। जिस पर अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय ने नवम्बर 2009 के अन्त में इसको लीगल नोटिस भेजकर 15 दिन में जबाब मांगा था। उसका अनिल के.राय अंकित ने आज तक जबाब नहीं दिया है। सूत्रो के मुताबिक अवधेश प्रताप विश्वविद्यालय अब इस के खिलाफ कोर्ट में केस करने जा रहा है। इसी अनिल के. राय अंकित ने यू.जी.सी.मेजर प्रोजेक्ट में भी धांधली किया है । इसके खिलाफ और इसको बचा रहे सजातीय कुलपति विभूतिनारायण राय के खिलाफ कई संगठनो और कुछ सांसदों ने हाल ही में, प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को पत्र लिख सी.बी.आई. जांच कराने की मांग की है। CNEB चैनेल ने जब अनिल के. राय को प्रोफेसर नियुक्त कराने ,हेड बनाने व बचाने वाले कुलपति विभूति नारायण राय से पूछा था कि नकलचेपी अनिल के बारे में मीडिया में इतना आ रहा है , आपने उससे कभी नकलकरके लिखी किताबें मांगकर देखी, उसकी जांच कराई ? इस पर पुलिस अफसर रहे कुलपति का जबाब था- मैंने उससे पूछा था, उसने कहा कि उसने फ्री मैटर इंटरनेट से उतारकर किताबें लिखी है। यानी सजातीय नकलचेपी ने जो कहा उसे पुलिसिया कुलपति ने मान लिया । देखा ,जांचा नहीं ।सूत्रो के मुताबिक म.अं.हि.वि.वि. के पत्रकारिता के छात्रों ने कईबार कहा कि उनके प्रोफेसर –हेड अनिल के. राय अंकित हिन्दी में एम.ए. करने के बावजूद, अंग्रेजी ठीक से एक पेज लिख नहीं लिख पाने के बावजूद कैम्ब्रिज और आक्सफोर्ड की अंग्रेजी में , सेटेलाइट,कम्यूटर मैनेजमेंट आदि पर 2500 रू. तक की जो किताबें लिखे हैं उसे विभाग की लाइब्रेरी में मंगाया जाय , ताकि उसका अवलोकन किया जा सके। लेकिन छात्रों की लगातार इस मांग के बावजूद पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने आज तक वे पुस्तकें नहीं मंगाई। क्योंकि पुस्तकें आ जाने पर छात्रों को अपने हेड की नकलचेपी कारनामो की असलियत साक्षात सामने आ जायेगी।उसके कई पूरी की पूरी पुस्तकों के एक-एक पंक्ति के चोरी का विवरण कई अखबारों में ,साइट पर छपा है कि कहां से मैटर चुराकर लिखा है, उनसबको छात्र अपने इस चौर्यकला महारथी चोरगरू प्रोफेसर- हेड व उसके संरक्षक पुलिसवाले को दिखाने लगेंगे।
इसके अलावा भी पुलिसिया कुलपति विभूतिनारायण राय ने बहुत से ऐसे कारनामे किये हैं। उनपर आरोप लगे हैं कि अपने इमरजेंसी पावर का प्रयोग करके मनमाने ढ़ंग से सेंटर खोले हैं, वहां चहेतो को भर रहे हैं, सेमिनार कराने का अपना पसंदीदा शगल पूरा कर रहे हैं। जिसमें अपने चहेतो को बुला लाइजनिंग चेन मजबूत कर रहे हैं।और इस सबमें आम आदमी के टैक्स का पैसा फूंक रहे हैं। विश्वविद्यालय के कई मेरिटोरियस दलित छात्रों को तरह-तरह से प्रताड़ित करने का भी आरोप है।पहले इसी विश्वविद्यालय के एक ऐसे ही करामाती कुलपति ने ऐसे ही मनमानी की थी जिस पर एक कमेटी ने जांच की थी, जिसमें उनके तरह-तरह के कारनामे उजागर हुए। इस पुलिसिया कुलपति के कारनामो की भी जांच की मांग होने लगी है।फिलहाल तो यह देखना है कि जो सुनाम धन्य लोग इस विश्वविद्यालय की एक्जक्यूटिव कमेटी के मेंम्बर बने हैं वे इस पुलिसिया कुलपति के किये को वेरिफाई करते हैं या बिना कोई फाइल लौटाए, इसके हर किये पर आंख मूंद कर अपनी सहमति की मुहर लगा देते हैं।
Saturday, January 9, 2010
इग्नू की पाठ्य सामग्री उतारकर चोरगुरूओं ने लिखी किताबें , देखें CNEB पर
-सत्ताचक्र-
इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय यानी इग्नू के विभिन्न विषयों के पाठ्य सामग्री को हुबहू उतारकर अपने नाम से किताबें लिखने, उन्हें छापने और मंहगे दाम पर विश्वविद्यालयों की लाइब्रेरियों में बेचने का धंधा जोरो पर है।यह कारोबार अरबो रूपये का है। पत्रकारद्वय कृष्णमोहन सिंह व संजयदेव की अगुवाई में बनाये जा रहे खोजपरक कार्यक्रम चोरगुरू के 13वें एपीसोड में रविवार दिनांक 10जनवरी 2010 को रात 8 बजे से साढ़े आठ बजे के स्लाट में CNEB न्यूज चैनेल पर इसके बारे में विस्तार से दिखाया जायेगा। इग्नू के स्टडी मैटेरिल चुराकर किताबें तो बहुतों ने लिखी है जिनमें से इस बार शाहजाद अहमद की लिखी पुस्तक आर्ट आफ़ मॉडर्न जर्नलिज़्म, आर के रवींद्रन की लिखी किताब हैंडबुक आफ़ मास मीडिया, रवीद्रन साहब की एक और किताब है—हैंडबुक आफ़ मास कम्युनिकेशंस। एम एच सैयद. की लिखी एन्साइकलोपीडिया आफ़ मॉडर्न जर्नलिज़्म एण्ड मास मीडिया , में नकलचेपी कारनामों का भंडाफोड़ हुआ है। इन सभी पुस्तकों का प्रकाशक है- ANMOL PUBLICATIONS PVT.LTD. , 4373 / 4 B , ANSARI ROAD , DARYA GANJ, NEW DELHI . । इग्नू के स्टडी मैटेरियल चुराकर 27 हजार रू. तक की इन्साइक्लोपीडिया , मंहगी-मंहगी किताबें छापकर इतने दिनों से खुलेआम कुछ भ्रष्ट कुलपतियों, डीन, प्रोफेसरों ,रीडरों , लेक्चररो ,लाइब्रेरियनों, यू.जी.सी. के अफसरों की मदद से विश्वविद्यालयों में सप्लाई हो रही हैं और इग्नू को पता ही नहीं है। इस बारे में जब इग्नू के कुलपति प्रोफ़ेसर टी एन राजशेखरन पिल्लै को ढ़ेर सारे सबूत दिखाकर पूछा गया तो उनको पसीना छूटने लगा। उन्होने माथा पकड़ लिय़ा। आन कैमरा पिल्लै ने अन्य कुलपतियों की तरह इस पर कार्रवाई करने के लिए कहा तो है , लेकिन करेंगे भी या अन्य की तरह अन्दर –अंदर टालेंगे यह आगे पता चल जायेगा।
सफेदपोश गुरूओं के इस काले धंधे पर कुछ सांसदो ने कड़ा रूख अपनाया है। कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद हर्षवर्धन ने संसद के शीतकालीन सत्र में इस मुद्दे को उठाने की कोशिश भी की थी। अभी, हाल ही में उन्होंने इस मुद्दे पर एक कड़ा पत्र केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को लिखा है।
सीएनईबी पर दिखाये जाने वाले चोर गुरू कार्यक्रम की प्रशंसा करते हुए कांग्रेस के इस वरिष्ठ सांसद ने इग्नू की पाठ्य सामग्री की चोरी और अनिल के राय अंकित, दीपक केम....प्रेम चंद पातंजलि.....रमेश चंद्रा......और डी एस श्रीवास्तव-सरिता कुमारी आदि के नकलचेपी कारनामों की जाँच के लिए सीबीआई जाँच की माँग की है। उन्होने ऐसे नकलचेपी शिक्षकों को किसी न किसी बहाने बचा रहे,अभी तक कोई कार्रवाई नहीं करनेवाले कुलपतियों के खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई करने की मांग की है।
उन्होने पत्र में लिखा है कि—
इन तथाकथित बुद्धिजीवियों का यह कृत्य किसी बड़े से बड़े आपराधिक कृत्य से भी गंभीर मामला है।
ये तथाकथित बुद्धिजीवी लेखक संपूर्ण मानवता के दुश्मन हैं।
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर कुलपति पद के लिए भी भ्रष्टाचार के आरोपी, जुगाड़ी हैं दावेदार
-सत्ताचक्र-
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता वि.वि. रायपुर के कुलपति का पद 17 मार्च 2010 को खाली हो रहा है। उसके लिए जो सर्च कमेटी बनी है उसमें तीन लोग हैं –भाजपा के राज्यसभा सांसद प्रभात झा, छत्तीसगढ़ सरकार के उच्चशिक्षा सचिव , यू.जी.सी की कन्सोल्टियम आफ एजुकेशनल कम्यूनिकेशन के निदेशक टी.आर.केम । जिसकी बैठक 11 जनवरी2010 को रायपुर में होने वाली है।
एजुकेशनल सर्च कमेटी में किसी सांसद का नाम नहीं होना चाहिए लेकिन बताया जाता है कि इसमें कार्यपरिषद नामिनी के तौर पर प्रभात झा का नाम है । टी.आर.केम का नाम यू.जी.सी. की तरफ से यू.जी.सी.चेयरमैन थोराट ने दिया होगा।दोनो दलित हैं।टी.आर.केम को निदेशक थोराट ने बनाया है। केम पर भ्रटाचार के आरोप हैं।इनके सगे पुत्र नकलचेपी दीपक केम हैं, जो जामिया मिलिया , दिल्ली में रीडर हैं और नकल करके कई किताबे लिखे हैं। ये साहब महात्मागांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी वि.वि.वर्धा में अध्यापक अनिल के. राय अंकित( तब पूर्वांचल वि.वि. में लेक्चरर ) के साथ मिलकर ,विदेशी किताबों के चैप्टर का चैप्टर हूबहू उतारकर करके एक 2500 रू. की फोटोग्राफी की किताब भी लिखे हैं। जो CNEB न्यूज चैनल पर खोजपरक कार्यक्रम चोरगुरू में दिखाया गया था। और नकल करके लगभग एक दर्जन पुस्तकें लिखने के अरोपी अनिल के राय अंकित को कुशाभाऊ ठाकरे वि.वि. में सच्चिदानंद जोशी ने रीडर हेड पद पर नियुक्त करवाया था। जोशी अभी भी नकलचेपी अंकित के निजी पत्रिका में एडीटोरियल बोर्ड में हैं।अंकित पर यू.जी.सी. प्रोजेक्ट में भी धांधली का आरोप है। कहा जाता है कि इस तरह इन सबका एक चेन बन गया है।
सूत्रो का कहना है कि इस चेन के चलते इस सर्च कमेटी में प्रभात झा, उच्चशिक्षा सचिव और केम की तरफ से निवर्तमान कुलपति सच्चिदानंद जोशी का नाम सूची में डाला जाना लगभग पक्का है। चर्चा है कि सच्चिदानंद जोशी की तरफदारी प्रभात झा कर रहे हैं , और वह उनको एक टर्म और दिलवाना चाहते हैं। लेकिन जोशी पर कुलपति रहते कई तरह के आरोप लगे हैं। जिसमें से कुछ की रिपोर्ट राज्यपाल के पास भी पहुंच गई है।कहा जाता है कि यहां भी ,कुलपति पद के लिए सूची में नाम डलवाने के लिए भ्रटाचार के आरोपी राममोहन पाठक भी जुगाड़ लगा रहे हैं।सूत्रो के मुताविक टी.आर.केम के मार्फत राममोहन पाठक अपना नाम सूची में डलवाने का जुगाड़ बैठाये हैं । कहा जाता है कि केम पर पुष्पम्-पत्रम् विधा से यह सब करने का आरोप पहले भी लग चुका है।यदि इसबार ऐसा होता है तो उनके खिलाफ सी.बी.आई. जांच की मांग होगी।राज्य के राज्यपाल के यहां केम पिता-पुत्र के अलावा राम मोहन पाठक के तथाकथित भ्रष्टाचार के कारनामों का पुलिंदा पहुंच चुका है।हरियाणा के एक विश्वविद्यालय से मास्टर पद छोड़कर भागे तथाकथित भ्रष्टाचारी व नकलचेपी गैंग के एक और महानुभाव भी कुलपति पद के लिए दावा करते फिर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि वही एक मात्र योग्य छत्तीसगढ़ीब्राह्मण हैं जो कुलपति पद के योग्य हैं।रीडर पद नहीं भाया ,अब सीधे कुलपति पद पर दावा कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के भी एक सज्जन एड़ी-चोटी का जोर लगाये हुए हैं। तीन नाम और चर्चा में हैं।
क्या घोरतिकड़मी,घनघोर जुगाड़ी व भ्रष्टाचार के आरोपी हैं मा.प.वि.वि. के कुलपति पद के दावेदार ?
-सत्ताचक्र-
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ,भोपाल का कुलपति पद पाने के लिए भांति-भांति के मानुष भयंकर जुगाड़ी मुहिम में लगे हुए हैं। ईमानदारी से कुलपति पद के लिए नाम सर्च करने के लिए जो सर्च कमेटी बनाई गई है उसमें जो महानुभाव हैं उनके नाम हैं- नन्दकिशोर त्रिखा, सच्चिदानंद जोशी और राधेश्याम शर्मा । ये तीनो ही ब्राह्मण हैं या नहीं पता नहीं। लेकिन ये तीनो ही मध्यप्रदेश के तो नहीं हैं। 10 जनवरी 2010 को दिल्ली में होने वाली सर्च कमेटी की बैठक में ये कुलपति पद के लिए किन – किन तीन या चार व्यक्ति का नाम ढ़ूढ़कर सूची बनाते हैं ,उसमें कितने इनके कीर्तनी , महाजुगाड़ु व भ्रष्टाचार के आरोपी हैं यह उसके बाद मालूम होगा। भोपाल में फिलहाल जिन नामों की चर्चा है उनमें तथाकथित घनघोर जुगाड़ी ,तथाकथित रोजनेता व नौकरशाह कीर्तनी महेश प्रसाद श्रीवास्तव और बी.के. कुठियाला का नाम सबसे ऊपर बताया जा रहा है। अंदर-अंदर चर्चा में नाम तो शंभूनाथ सिंह , राममोहन पाठक, ऱाजेन्द्र शर्मा, तरूण विजय आदि का भी है। कहा जाता है कि ये सबके सब किसी न किसी के जुगाड़ के बदौलत कुलपति बनना चाहते हैं। सूत्रों का कहना है कि अखबारो में नौकरी करते हुए भी अपनी अक्षर मेघ नामक पत्रिका का धंधा करने वाले और उसके लिए सरकार आदि से विज्ञापन का उपक्रम करने वाले, सरकारी राष्ट्रीय एकता परिषद में उपाध्यक्ष पद पर दो टर्म से लालबत्ती गाड़ी की सीट गर्म करने वाले महेश प्रसाद श्रीवास्तव को जनसम्पर्क विभाग के सचिव मनोज श्रीवास्तव, भाजपा नेता कैलाश सारंग,बाबूलाल गौर व लक्ष्मीकांत शर्मा और कायस्थ लाबी कुलपति बनवाने के लिए पूरा जोर लगाये हुए है। सूत्रो का कहना है कि भ्रष्टाचार,कदाचार के आरोपी बी.के. कुठियाला की सर्च कमेटी के तीनो महानुभावो से अच्छी यारी है। कुठियाला हिमाचल के ब्राह्मण हैं या काष्टकार्यकर्मी इसके बारे में लोगों को भ्रम है। ये भाजपा के कुछ नेताओं के भी किर्तनी बताये जाते हैं।शंभूनाथ सिंह की दो पत्नियों वाला मामला तो जग जाहिर ही है, लेकिन पूर्व भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह इनके लिए कितना जोर लगाते हैं और उनकी बात शिवराज कितना मानते हैं यह बाद में पता चलेगा। वैसे इनकी विरोधी लाबी की कोशिश इनका नाम ही सूची में नहीं होने देने की है। यह भी चर्चा है कि इसको ध्यान में रखते हुए ही सर्च कमेटी में ऐसे लोग रखवाए गये।एक सज्जन जो हाल में ही एक पुरस्कार पाये हैं वह आपसी बातचीत में कई जगह कहे भी हैं कि दो बीवियों का पति हिन्दू , कुलपति कैसे हो सकता है। राममोहन पाठक पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप हैं कि उनका नाम एक तो सूची में आने की संभावना कम है, यदि किसी कारण विशेष से उनका नाम सूची में आ भी गया तो मुख्यमंत्री उनके नाम पर राजी होंगे इसकी संभावना रत्तीभर भी नहीं है। राजेन्द्र शर्मा का नाम सूची में आने की संभावना कम है। आ गया तो सुंदरलाल पटवागुट उनको होने नहीं देगा। पांचजन्य में संपादक रहते तमाम भ्रष्टाचार के आरोपी और उसके चलते वहां से संघ के दबाव में हटाये गये करामाती तरूण विजय तो अभी अपने आका लालकृष्ण आडवाणी और उनकी मंडली के मार्फत राज्य सभा सदस्य व भाजपा महासचिव, प्रवक्ता बनने के लिए रात –दिन लगे हुए हैं। उधर नहीं होने पर इधर का रूख कर सकते हैं। पर यह जगह उनके सियासी हवस को पूरा करने के लिए बहुत छोटी है। माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिए सबसे उपयुक्त नाम तो मध्यप्रदेश से ही कई और हो सकते हैं , जिसमें निमच के रहने वाले और मुंबई में रहते हुए देश-विदेश में लेखन व व्याखान से संघ व भाजपा की विचारधारा को पोषित करने वाले पत्रकार मुजफ्फर हुसैन प्रमुख हैं। उनकी पुस्तक शाकाहार और इस्लाम का अनुवाद कई मुस्लिम देशो में हुआ है। वह मुस्लिम मामलो के एशिया के अच्छे जानकार हैं , संघ के सभी बड़े व भाजपा के पुराठ लोग उनको अच्छी तरह जानते हैं, कइयों से घनिष्ठता है। वह संघ के कई आनुषांगिक संगठनों में प्रमुख जिम्मेदारी निभाते रहे हैं। संघ ने औरंगाबाद से हिन्दी में देवगिरी समाचार निकाला था जिसके वह संपादक थे।हिन्दी व उर्दू के प्रखर वक्ता हैं। लेकिन एक ही कमी है- वह ब्राह्मण नहीं हैं, इसलिए ,पूरे देश में सर्चलाइट लेकर ईमानदारी से कुलपति पद के लिए उपयुक्त नाम ढ़ूंढ़रही सर्च कमेटी को उनका नाम दिखेगा,उसे सूची में शामिल करने योग्य माना जायेगा ,इसकी संभावना बहुत ही कम है।
Friday, January 8, 2010
Thursday, January 7, 2010
वाजपेयी को डि.लिट. देने के बाद होगी मा.प.वि.वि.कुलपति खोज बैठक
-सत्ताचक्र-
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय , 10 जनवरी 2009 को डि.लिट. देगा। उपाधि देने का यह कार्यक्रम दिल्ली में वाजपेयी के आवास पर होगा।जिसमें विश्वविद्यालय के चांसलर यानी कुलाधिपति मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी रहेंगे। उसी दिन उसके बाद दिल्ली में ही विश्वविद्यालय के अगले कुलपति का नाम खोजने के लिए सर्च कमेटी की बैठक होगी।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय , भोपाल में कुलपति पद जनवरी के दूसरे सप्ताह में खाली हो रहा है। अगले कुलपति को ढ़ूढ़ने के लिए एक सर्च कमेटी बनाई गई है। ऐसी सर्च कमेटियां कैसे सर्च करती हैं और कैसे इसमें जुगाड़ तंत्र चलता है या इनकी बनाई लिस्ट में कैसे बाद में नाम जोड़ दिया जाता है, और उसमें से कैसे जोड़-तोड़ या राजनीतिक या नौकरशाही पौवे में भारी व्यक्ति कुलपति बनते हैं इस सबके बारे में बाद में। तो माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय,भोपाल के कुलपति पद के लिए उपयुक्त नाम खोजने के लिए जो खोज कमेटी बनी है, उसमें नंद किशोर त्रिखा,सच्चिदानंद जोशी और राधेश्याम शर्मा के होने की चर्चा है। सूत्रो का कहना है कि 10 जनवरी को दिल्ली में इस कुलपति ढ़ूंढ़ो कमेटी की बैठक होगी। जो कितनी ईमानदारी से नामो की सूची बनायेगी इसका पता 15 जनवरी तक चल जायेगा। त्रिखा ,जोशी और शर्मा तीनो ही मध्यप्रदेश के नहीं हैं। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय , भोपाल में अब राज्य के ही किसी विद्वान व संघ के प्रतिबद्ध व्यक्ति को कुलपति बनाने की मांग जोर पकड़ ली है। इधर भाजपा के कई केन्द्रीय नेता राज्य के बाहर के अपने कीर्तनियों को इस विश्वविद्यालय का कुलपति बनाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पर दबाब बनाये हुए हैं।उनके ही नाम सर्च कमेटी वाली सूची में डलवाने का भी इंतजाम हो रहा है। सर्च कमेटी में जो भी नाम चर्चा में हैं वे उन नेताओं के दबाव के आगे कुछ नहीं कर पायेंगे। और यदि इन पर छोड़ भी दिया गया तो ये अपने घोर जुगाडुओं का नाम आगे करेंगे। इस हालात में जो सूची बननी है वह कुछ उनका कुछ अपना वाली बननी है। लेकिन उसमें से किसी एक के नाम पर अंतिम मुहर तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ही लगानी है।क्योंकि वही इस विश्वविद्यालय के चांसलर हैं। कहा जाता है कि जातिवाद व घोर तिकड़म के आरोपी महेश प्रसाद श्रीवास्तव म.प्र. जनसम्पर्क विभाग के सचिव मनोज श्रीवास्तव और कैलाश सारंग की कृपा से, काशीविद्यापीठ वाराणसी में पुस्तक घोटाले,मूर्ति चोरी,नकलकरके पी.एच-डी.लिखने आदि के आरोपी राममोहन पाठक, दो बीवियों के पति शम्भूनाथ सिंह,भ्रष्टाचार के आरोपी बी.के. आदि कुलपति पद के लिए लाइन में हैं। इनमें कोई भी संघ का प्रतिबद्ध नहीं है। लेकिन घोर भाजपाई होने का दिखावा कर घनघोर जुगाड़ से पद पाने के लिए सब उपक्रम कर रहे हैं।
Sunday, January 3, 2010
सिब्बल पर मोंटेक भारी , दबाव बना फुरकान को हिमाचल में कुलपति बनवाया
नईदिल्ली। प्रधानमंत्री तो प्रधानमंत्री उनके यसमैन मोंटेकसिंह अहलूवालिया भी केन्द्रीय मंत्रियों पर भारी पड़ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक जिस अमेरिकी कृपा और जुगाड़ तंत्र से मनमोहन सिंह व मोंटेक पद और सत्ता की सीढ़ी फांदते- छलांगते ऊपर चढ़े हैं ,उसी तरह ये अपने अमेरिकी भक्त क्लब के महानुभावों को सीढ़ी फदा पद पर बैठाने लगे हैं। जिसका ताजा प्रमाण है डा.फुरकान कमर की नये बने हिमाचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर नियुक्ति । फुरकान कमर दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर रहे हैं। सूत्रो का कहना है कि फुरकान उस अमेरिकी भक्त अर्थशास्त्री क्लब के अंतरंग हैं जिसमें मनमोहन , योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक, उनकी पत्नी इश्शर आदि हैं। सो मोंटेक ने लगभग एक साल पहले फुरकान को योजना आयोग में शिक्षा सलाहकार बनवा लिया। डा.फुरकान को कुलपति बनने की इच्छा हुई तो अपने आका मोंटेक से फरियाद की। मामला तथाकथित अमेरिकी भक्त भारतीय अर्थशास्त्री क्लब के अंतरंग का था सो मोंटेक ने तबके राजस्थान के राज्यपाल एस.के. सिंह (दिवंगत हो गये) को फोन किया और फुरकान को राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर का कुलपति बनाने की सिफारिश की। एस.के.सिंह ने फुरकान कमर को कुलपति बना दिया। फुरकान ने 30 नवम्बर 2009 को ज्वाइन भी कर लिया। लेकिन उनके वहां जाने के पहले से ही हिमाचल प्रदेश में नया बने केन्द्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई थी।तो जनाब फुरकान साहब का दिल केन्द्रीय विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए फुफकारने लगा। सो उन्होने फिर अपने आका के दरवाजे पर मत्था टेका। सूत्रो के मुताबिक उन्होंने उनसे कहा कि जयपुर वाली यूनिवर्सिटी तो राज्यसरकार की है। उसमें तो मात्र 3 साल की नौकरी है, बजट भी बहुत कम है , नये बने हिमाचल केन्द्रीय विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर 5 साल के लिए हो जाता तो जीवन बन जाता। सूत्रों के अनुसार तब मोंटेक ने सर्च कमेटी ने जो लिस्ट बनाई उसमें फुरकान का नाम डलवाया । जिसने पूरी ईमानदारी से मेहनत करके खोजने पर देश भर में से चार लोगो का नाम इस केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति पद के योग्य पाया । वे नाम थे- यू.जी.सी. के सेक्रेटरी आर.के.चौहान, डा. फुरकान कमर , यू.जी.सी. के उपाध्यक्ष प्रो.वेद प्रकाश और मिजोरम वि.वि. के कुलपति राय । सर्च कमेटी ने ये चारो नाम मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के यहां भेज दिया। जहां से उन तीन –चार नाम की सूची राष्ट्रपति के यहां जाने की परम्परा है। राष्ट्रपति जिसमें से किसी एक नाम पर मार्क कर देते हैं और वह कुलपति बना दिया जाता है। सूत्रो के मुताबिक इस मामले में मोंटेक ने सिब्बल पर दबाव बनाकर फुरकान कमर के नाम पर राष्ट्रपति की मुहर लगवाने का इंतजाम कराया। जिस पर राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी। और फुरकान नये बने हिमाचल केन्द्रीय वि.वि. के कुलपति घोषित कर दिये गये। इसके बाद फुरकान ने राजस्थान वि.वि. से कार्यमुक्ति के लिए राज्यपाल के यहां आवेदन दिया। सूत्रो के अनुसार राज्यपाल एस.के. सिंह वह आवेदन देखते ही आगबबूला हो गये।उनको लगा कि उनको छला गया है। सो उन्होने राष्ट्रपति को पत्र लिख दिया कि डा. फुरकान कमर को राजस्थान वि.वि. से कार्यमु्क्त नहीं किया जायेगा। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने वह पत्र मानवसंसाधन विकास मंत्री के यहां भेजवा दिया। जिसके बाद कपिल सिब्बल भी फुरकान को हिमाचल वि.वि. में भेजने से हिचकने लगे। सूत्रो का कहना है कि यह जानने पर मोंटेक ने सिब्बल पर दबाव बनाया कि फुरकान का नाम काटकर किसी और का नाम नहीं जाना चाहिए, फुरकान को ही हिमाचल वि.वि. में ज्वाइन कराना है। जिसके लिए राज्यपाल से कह कर कार्यमु्क्त कराया जाय। सूत्रो का कहना है कि यदि एस.के. सिंह रहते तो वह मोंटेक के कहने पर भी फुरकान को कार्यमुक्त नही करते, क्योंकि वह बहुत नाराज थे।लेकिन संयोग से वह इस दुनिया में नहीं रहे। हिमाचल की राज्यपाल प्रभा राव को राजस्थान के राज्यपाल का चार्ज मिल गया है। कहा जा रहा है कि प्रभा राव को मोंटेक मंडली ने समझा दिया है। इसबारे में इस संवाददाता की फुरकान कमर से उनके मोबाइल पर 30 दिसम्बर को रात 8 बजकर 55 मिनट पर बात हुई। उन्होने बताया कि राजस्थान वि.वि. के कुलपति पद से एक- दो दिन में रिलीव हो जाऊंगा। उसके तुरन्तबाद हिमाचल वि.वि. में ज्वाइन कर लूंगा।
Saturday, January 2, 2010
क्या का.वि.पी. में रीडर हेड अनिल उपाध्याय की डि.लिट. रद्द होगी ? “चोर गुरू” के 12 वें एपीसोड में CNEB पर
-सत्ताचक्र-
लेकिन प्रो. राममोहन पाठक (Pro. RAM MOHAN PATHAK ) के कारनामों के बारे में विस्तार से बात हम फिर कभी करेंगे।
चोर गुरू की पिछली कड़ी में काशी विद्यापीठ के अनिल उपाध्याय की लिखी किताब पत्रकारिता एवं विकास संचार में की गयी मैटर की चोरी के कुछ नमूने पेश किये थे। CNEB संवाददाता जगदीश मोहन ने जब उनसे बात की थी तो वे तमक कर बोले थे। कितने खोखले थे उनके जोशीले जवाब। पहले देखिये अनिल जी के विश्वास से भरे कुछ जवाब -
“संदर्भ जिनके जिनके हैं, सब दिये गये हैं ”
“ये देखिये, 5-6 मूर्ति नादिग कृष्ण ”
“मैने भी वही दस फ़ुटनोट लगाये तो वे आपके
नहीं कहलायेंगे ”
सच्चाई यह है कि अनिल जी ने शब्द दर शब्द ओम प्रकाश सिंह की किताब से उतारा है और संदर्भ ग़लत लिख दिये हैं। कुछ उदाहरण फिर देखिये।
अपनी किताब के सन् 2001 के संस्करण के पेज 66 पर अनिल जी ने संदर्भ क्रमांक 2 अंकित किया है। अध्याय के अंत में अनिल जी संदर्भ 2 को प्रवीण दीक्षित की किताब के पेज 91 से लिया हुआ दिखाते हैं। यह झूठ है। प्रवीण दीक्षित की किताब के पेज 91 पर यह जो मैटर है, उसका अनिल जी की किताब के पेज 66 के इस अंश से दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं। प्रवीण दीक्षित की किताब के इसी तरह के दो और गुमराह करने वाले संदर्भ अनिल जी की किताब में हैं।
डॉ नादिग कृष्ण मूर्ति की अंग्रेज़ी में लिखी गयी किताब इंडियन जर्नलिज़्म से काफ़ी मैटर लेने का और ओम प्रकाश सिंह को ठेंगा दिखाने का दावा करते है अनिल जी। देखिये अनिल जी के झूठ का एक और गुलदस्ता। अपनी किताब के सन् 2007 के संस्करण के पेज 141 की इन छह-सात लाइनों में अनिल जी संदर्भ क्रमांक 8 से 11 तक का उपयोग करते हैं। सब के सब डॉ नादिग कृष्ण मूर्ति के मत्थे। पेज 70-71, 73-74, 440 और 761।
नादिग कृष्ण मूर्ति की किताब में 761 पेज हैं ही नहीं। पेज 70..... 71......और 440 पर जो मैटर है उसका अनिल जी की किताब के इस अंश से कोई लेना देना नहीं। हो भी कैसे,.... मैटर टीपा है ओम प्रकाश सिंह की किताब से।
जो मूल किताब अंग्रेज़ी में थी, तो उसका अनुवाद किया ओम प्रकाश सिंह ने। सही संदर्भ दिये। उसको शब्दशः उतार कर और संदर्भ बदलकर अनिल जी कहते हैं कि मूल से लिया है।
कैसे भाँग पी कर नकल की गयी है अनिल जी की किताब में—अब इसका एक छोटा उदाहरण। ओम प्रकाश सिंह की किताब के पेज 99 पर डॉ श्याम लाल वर्मा की किताब आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के पेज 22 से कुछ वाक्य आभार सहित लिये गये हैं। ग़लती से एक शब्द “अर्थ” छूट गया है ओम प्रकाश सिंह की किताब में। वही शब्द छूटा हुआ है अनिल जी की किताब में भी। क्या कहेंगे इसे आप? संयोग... या भाँग की पिनक में की गयी नकल?
तो असलीयत यह है लेकिन सीएनईबी के संवाददाता से बातचीत में अनिल जी क्या बोले—
“मान भी लीजिये लिया है, तो यह उनका भी तो नहीं है ”
“न कॉपीराइट का उल्लंघन है, न कोई अनुचित कार्य ”
“दो तीन पेजों का मैटर अगर मैंने उनकी किताबों से ले भी लिया तो....
यह नादिक कृष्णमूर्ति वगैरह का संदर्भ तो यह अनुचित नहीं ”
अब आप ही तय करें कि सच क्या है और झूठ क्या? और हम कर रहे हैं इंतज़ार कि विद्यापीठ के कुलपति क्या कार्रवाई करते हैं।
चोर गुरू टीम ने तीन शिक्षक नेताओं से इस चोर गुरू अभियान के अलग अलग मुद्दों पर बात की। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में कार्यरत डॉ सोमनाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश आवासीय विश्वविद्यालय महासंघ के महामंत्री हैं और प्रखरता से उच्च शिक्षा की गुणवत्ता से जुड़े इस मसले के विभिन्न आयामों पर बोले—
“दूसरे के ज्ञान को चुराकर अपना ज्ञान बताना, यह तो चारित्रिक, नैतिक स्खलन का परिचायक ”
“कौटिल्य ने कहा .....ब्राह्मण को चोरी का अधिक दण्ड मिलना चाहिए....”
“अवेयरनेस के कुछ कार्यक्रम चलाने होंगे और उसके बारे में शिक्षक संघ को भी सोचना होगा ”
इस सवाल पर कि कुछ कुलपति, चोर गुरुओं को दंडित करने के बजाय बचाने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहे हैं। सोमनाथ ने कहा-
जो खुद पैसा देकर आये है वह वीसी तो ऐसे लोगों को सपोर्ट ही करेगा।”
“पैरवी और अटैची के आधार पर नियुक्त होते हैं कुलपति....”
“उनसे आदर्श की अपेक्षा करना स्वयं बेइमानी होगी....”
साथ ही श्रीनिवास जी ने एक और मौलिक सवाल उठाया, जिसे सबके सामने लाना बहुत ज़रूरी है—
“हर कोई हठात न तो लेखक बन सकता है, न ही कवि....”
“उच्च शिक्षा लिपिकीय स्तर पर निर्धारित नहीं की जानी चाहिए....”
“शिक्षक के शिक्षण की गुणवत्ता पर, उसके द्वारा छात्रों को समुन्नत करने पर जोर नहीं, किताबों पर ही जोर क्यों....”
“लेकिन जब सरकार कुछ नौकरशाहों के इशारे पर सबको लेखक और कवि बनाना चाहेगी तो यह विसंगति बरकरार रहेगी....”
काशी विद्यापीठ अध्यापक संघ के पूर्व अध्यक्ष डॉ उदित नारायण चौबे ने भी बड़ी प्रखरता और दमदारी से कुलपतियों की भूमिका पर बात रखी।
एक बात और -
“शोधार्थी किसी की थीसिस से नकल करता है तो उसकी थीसिस रिजेक्ट कर दी जाती है।”
विद्यापीठ के कुलपति की नज़र में अनिल उपाध्याय की डी. लिट. की थीसिस क्या इस श्रेणी में आयेगी?
Friday, January 1, 2010
क्या पूर्वांचल वि.वि. के कुलपति नकलचेपी शिक्षकों को बचा रहे हैं ? - 1
-सत्ताचक्र-
क्या वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के कुलपति आर.सी.सारस्वत (R.C.SARASWAT) अपने विश्वविद्यालय के उन शिक्षकों को बचा रहे हैं जिनने देशी-विदेशी शिक्षकों,वैज्ञानिकों की पुस्तकों,शोध-पत्रों से सामग्री लगभग हूबहू उतारकर अपने नाम से दो से लेकर दर्जनों पुस्तकें छपवा ली हैं ? क्या कुलपति इन शिक्षकों की ऐसी पुस्तकों को छापकर इस विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले को भी बचा रहे हैं, उसकी कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड करने, बीते कुछ सालों में लगभग 5 करोड़ रूपये की उसकी सप्लाई की जांच कराने से कन्नी काट रहे हैं ? जिसमें लगभग अढ़ाई करोड़ रूपये के घोटाले का आरोप है। इंडिका सप्लायर, दरियागंज, नईदिल्ली के यहां से किताबें 60 प्रतिशत छूट पर खरीदने का प्रमाण अपने पास है।विश्वविद्यालय को यदि पुस्तकें केवल 10 या 15 प्रतिशत छूट पर सप्लाई की गई होंगी तो आशंका है कि बाकी 45 से 50 प्रतिशत रकम वाया सप्लायर विश्वविद्यालय के संबंधित पुस्तक खरीद का आर्डर देने वाले बड़े से छोटे गुरूजीलोगों, बिल पास करने वालों आदि को पुष्पम्-पत्रम् चढ़ाने में गया होगा।
इस सबके बारे में कई पत्र इस विश्वविद्यालय के कुलपति के पास भेजा गया । जिसमें से प्रमाण के तौर पर दिनांक 31 - 10 - 2009 को भेजे एक पत्र और उसके आगे का व्यौरा प्रस्तुत है-
कुलपति,
वीरबहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय,
जौनपुर ।
विषय : आपके विश्वविद्यालय के कुछ वरिष्ठ प्राध्यापकों द्वारा मैटर चुराकर किताबें लिखने और इस तरह समूचे शिक्षा जगत को कलंकित करने के बारे में ।
महोदय,
हमारे पास इस बात के साफ-साफ स्पष्ट प्रमाण हैं कि आपके विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वरिष्ठ प्राध्यापकों ने विभिन्न श्रोतों से मैटर चुराकर ........पुस्तक लेखन के तमाम स्थापित मानदण्डो को ताक पर रखते हुए अनेक किताबें लिखी हैं। यह कृत्य न केवल अनैतिक है बल्कि दण्डनीय अपराध भी है और इस बारे में बतौर कुलपति आपकी जबाबदेही समस्त आकादमिक जगत के लिए और समाज के लिए बनती है।.....
मैटर चुराकर किताबें लिखने के धंधे में केवल विश्वविद्यालय के प्रध्यापक ही नहीं , दिल्ली के कई प्रकाशक भी शामिल हैं ।और यह प्रतिवर्ष कई अरब रूपये का कारोबार है।.......
चोरी करके किताबें लिखने के प्रमाणो का जो मैटर लेकर हमारी टीम आपके सामने पहुंचेगी वह फिलहाल निम्नलिखित व्यक्तियों से संबंधित है-
1. डा.अनिल के. राय अंकित(प्रवक्ता, पत्रकारिता विभाग,अवैतनिक अवकाश पर )
2. प्रो.रामजी लाल( संकाय अध्यक्ष,सामाजिक विज्ञान)
3. डा.एस.के. सिन्हा (प्रवक्ता, फाइनांसियल स्टडीज विभाग)
हम चाहेंगे कि जब हमारी टीम आपके सामने प्रमाण प्रस्तुत करे तो उपरोक्त उल्लिखित महानुभाव भी मौजूद रहें ताकि उनका पक्ष भी आपके सामने तत्काल आ सके....।......
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ,
प्रदीप सिंह
राजनीतिक संपादक
सी.एन.ई.बी. न्यूज चैनेल
दो पेज का यह पत्र कुलपति, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर के फैक्स नंबर पर भेजा गया। इसकी प्रति राज्यपाल ,उ.प्र. के यहां भी फैक्स कर दिया गया। इसके बाद कुलपति से फोन पर बात कर मुलाकात के लिए उनके दिये दिनांक व समय 6 नवम्बर 2009 को दोपहर लगभग 12 बजे , CNEB की टीम विश्वविद्यालय में उनके कार्यालय में पहुंची। जहां कुलपति आर.सी.सारस्वत और कुलसचिव बी.एल.आर्य को आन कैमरा उक्त तीनो शिक्षकों के नकल करके किताबें लिखने के प्रमाण दिखाये। यह कि कहां से मैटर हूबहू उतारकर इनने अपने नाम से पुस्तकें बनाई हैं। उसके बाद कुलपति ने उक्त शिक्षको की पुस्तकों के पेजेज और जिन पुस्तकों के पन्नो से सामग्री उतार कर अपनी पुस्तकें बनाये हैं उन सबकी फोटोकापी करवाकर अपने पास रख लिये। कुलपति सारस्वत ने आन कैमरा ,आन रिकार्ड कहा कि हम इस पर कार्रवाई करेंगे। CNEB की टीम ने कुलपति और कुलसचिव के सामने ही प्रोफेसर रामजी लाल और डा.एस.के.सिन्हा से उनके नकल करके पुस्तकें लिखने के सबूत दिखा कर उनका वरजन लिया। इस सबमें लगभग अढ़ाई घंटा समय लगा था। उसके बाद इसे CNEB चैनेल के खोजपरक कार्यक्रम “चोरगुरू” के दो एपीसोड में दिखाया गया। जिसपर विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन और फारवर्ड ब्लाक जैसे राजनीतिक दलों के नेताओं ने कुलपति और राज्यपाल को पत्र लिखकर उक्त भ्रष्टाचार की जांच कराने की मांग भी की है। जिसकेबाद वाराणसी व लखनऊ से निकलनेवाले हिन्दी व अंग्रेजी अखबारों में भी इस वि.वि. के नकलचेपी शिक्षकों के कारनामों के बारे में खबर छपीं। इतना सब होने के बाद कुलपति सारस्वत ने कुलसचिव के हस्ताक्षर से तीनो नकलचेपी शिक्षकों को दिनांक 18 नवम्बर 2009 को एक नोटिस भेजवाया ( प्रमाण के तौर पर एक नकलचेपी डा.अनिल कुमार राय अंकित (Dr. ANIL K. RAI ANKIT) को भेजे नोटिस की प्रति संलग्न है) । उस नोटिस पर आगे क्या कार्रवाई हुई इस बारे में दिनांक 01 जनवरी 2010 को कुलसचिव से उनके मोबाइल फोन पर अपरान्ह एक बजकर अट्ठाइस मिनट पर बात हुई। जिसमें कुलसचिव बी.एल.आर्य ने कहा-
सवाल- क्या नोटिस का जबाब आया ? जबाब- तीनो में से किसी शिक्षक ने नोटिस का जबाब नहीं दिया है। सवाल- आपने कितने दिन में नोटिस का जबाब देने के लिए लिखा था, 15 या 30 दिन ? जबाब- समय नहीं लिखा गया था। सवाल- तब तो नकलचेपी शिक्षक जबाब ही नहीं दें तो आप लोग क्या करेंगे ? जबाब- शिक्षक तो मेरे अधिन आते नहीं , वो तो कुलपति जी के अधिन हैं ,वही बतायेंगे। सवाल- नकलचेपी शिक्षकों के खिलाफ आपलोगों को प्रमाण दिये लगभग पौने दो माह हो गये, आपकी साइन से कुलपति ने केवल उन तीनो को नोटिस भेजवाया, जिसमें जबाब के लिए समय सीमा दी ही नहीं, अब तक जबाब नहीं देने पर भी आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई, इससे तो यह आशंका हो रही है कि विश्वविद्यालय प्रशासन नकलचेपी अध्यापकों को बचा रहा है ? जबाब- यह तो कुलपति जी बतायेंगे ? सवाल- नकलची शिक्षकों की पुस्तके छापने व उन्हे विश्वविद्यालय में सप्लाई करने वाले पब्लिशर –सप्लायर से विश्वविद्यालय में करोड़ो रूपये की पुस्तक खरीद मामले की जांच के बारे में क्या हुआ ? जबाब- इसपर आप कुलपति जी से बात करें। सवाल – इसका मतलब आप लोग नकल करके पुस्तकें लिखने वाले विश्वविद्यालय के शिक्षकों, उनकी नकलकर लिखी पुस्तकों को छापने वाले पब्लिशर व सप्लायर को बचा रहे हैं ? जबाब- यह तो कुलपति जी ही बतोयेंगे।